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‘दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता’ (संशोधन) अधिनियम, 2020 का SC द्वारा अनुमोदन

  • 21 Jan 2021
  • 9 min read

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने अपने एक निर्णय में ‘दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता’ (संशोधन) अधिनियम, 2020 [Insolvency and Bankruptcy Code (Amendment) Act, 2020] की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा है

प्रमुख बिंदु:

पृष्ठभूमि:

  • सर्वोच्च न्यायालय ने अगस्त 2019 में दिये गए अपने एक आदेश में घर-खरीदारों को वित्तीय लेनदारों का दर्जा देने के सरकारी फैसले को बरकरार रखा था।
    • वित्तीय लेनदार: इसका अभिप्राय ऐसे व्यक्ति से है, जिस पर ‘वित्तीय ऋण’ बकाया है और इसमें ऐसा व्यक्ति भी शामिल है जिसे इस तरह का ऋण कानूनी रूप से सौंपा गया है या हस्तांतरित किया गया है।
  • इसके बाद सरकार ने ‘दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता’ (संशोधन) अधिनियम, 2020 पेश किया, जिसके तहत किसी भी रियल एस्टेट डेवलपर के खिलाफ दिवालिया कार्यवाही शुरू करने के लिये कुल आवंटियों में से कम-से-कम 100 (या कुल आवंटियों के 10%) की संख्या संबंधी शर्त को लागू किया गया।
    • इसका अर्थ है कि रियल एस्टेट डेवलपर/बिल्डर के खिलाफ इन्सॉल्वेंसी कार्यवाही शुरू करने के लिये IBC की धारा-7 के तहत ‘नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल’ (NCLT) में केवल एक आवंटी द्वारा अपील किये जाने पर प्रतिबंध है।
    • संशोधन अधिनियम की धारा-3 घर-खरीदारों को बिल्डरों के खिलाफ ‘कॉर्पोरेट इन्सॉल्वेंसी रिज़ोल्यूशन प्रोसेस’ (Corporate Insolvency Resolution Process- CIRP) अपनाने की अनुमति देती है, परंतु इसके लिये 100 आवंटियों या कुल आवंटियों के कम-से-कम 10% आवंटियों को संयुक्त रूप से आवेदन करना पड़ता है।
      • आवंटियों को एक ही अचल संपत्ति परियोजना से संबंधित होना चाहिये। एक ही डेवलपर की अलग-अलग परियोजनाओं के पीड़ित आवंटी 100 का समूह नहीं बना सकते हैं
    • वर्तमान में 100 आवेदकों की सीमा पूरी करने के लिये 30 दिन की समयसीमा तय की गई है, अन्यथा वर्ष 2020 के इस अधिनियम के शुरू होने से पहले की लंबित याचिका को वापस ले लिया जाएगा।
  • यह प्रावधान कुछ असंतुष्ट घर-खरीदारों/निवेशकों द्वारा अचल संपत्ति परियोजनाओं को बाधा पहुँचाने से बचाने के लिये किया गया था।

सर्वोच्च न्यायालय का आदेश:

  • सीमा:
    • सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि लेनदारों की इन श्रेणियों के संबंध में एक सीमा तय किये जाने से अत्यधिक मुकदमेबाजी की स्थिति पर विराम लगेगा।
    • न्यायालय ने इस कानून पर सहमति व्यक्त करते हुए कहा कि एक ही आवंटी को ट्रिब्यूनल में अपील करने का अधिकार देना जोखिम भरा होगा क्योंकि कॉर्पोरेट इन्सॉल्वेंसी रिज़ॉल्यूशन की वजह से डेवलपर के कंपनी प्रबंधन में पूर्ण रूप से बदलाव या प्रतिस्थापन की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
      • एक अकेले आवंटी द्वारा की गई इस तरह की पहल योजना के उन अन्य आवंटियों को नुकसान पहुँचाएगी, जिन्हें मौजूदा डेवलपर पर  विश्वास था या जो अन्य कानूनी उपायों का पालन कर रहे थे।
    • यह संशोधन कॉर्पोरेट देनदार (रियल एस्टेट डेवलपर्स) की सुरक्षा के प्रयास को दर्शाता है।
  • लेनदारों की सहमति:
    • संशोधन यह सुनिश्चित करने की संभावना व्यक्त करता है कि अपील करने से पहले सभी आवेदकों के बीच कम-से-कम एक आम सहमति हो।
  • आवंटन:
    • इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि किसी व्यक्ति के नाम पर एक या अधिक आवंटन हैं या आवंटन उसके परिवार के सदस्यों के नाम पर है।
    • जब किसी व्यक्ति या उसके परिवार के सदस्यों के लिये अलग-अलग घरों का आवंटन होता है, उस दौरान वे सभी अलग-अलग आवंटियों के रूप में योग्य होते हैं और 100 आवंटियों की गणना में अलग अलग गिने जाएंगे।

 ‘दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता’

अधिनियमन

  • IBC को वर्ष 2016 में अधिनियमित किया गया था।

उद्देश्य:

  • असफल व्यवसायों की समाधान प्रक्रिया को सुव्यवस्थित और तेज़ करना।
  • दिवालियापन की समस्या के समाधान के लिये सभी वर्गों के देनदारों और लेनदारों को  एकसमान मंच प्रदान करने के लिये मौजूदा विधायी ढाँचे के प्रावधानों को मज़बूत करना।
  • किसी तनावग्रस्त कंपनी की समाधान प्रक्रिया को अधिकतम 270 दिनों में पूरा करना।

इन्सॉल्वेंसी को लागू करने के लिये राशि सीमा:

  • मार्च 2020 में सरकार ने कोविड-19 महामारी का सामना कर रहे छोटे और मध्यम उद्यमों के खिलाफ इस तरह की कार्यवाही को रोकने के लिये IBC के तहत इनसॉल्वेंसी की प्रक्रिया के लिये राशि सीमा 1 लाख रुपए से बढ़ाकर 1 करोड़ रुपए कर दी थी।

इन्सॉल्वेंसी समाधान प्रक्रिया को सुगम बनाने के कुछ उपाय:

  • इन्सॉल्वेंसी पेशेवर
    • ये पेशेवर दिवाला समाधान प्रक्रिया का प्रबंधन करते हैं, देनदार की संपत्ति का प्रबंधन करते हैं और लेनदारों को निर्णय लेने में सहायता प्रदान करने के लिये आवश्यक सूचना प्रदान करते हैं।
  • इन्सॉल्वेंसी पेशेवर संस्थान
    • ये संस्थाएँ इन्सॉल्वेंसी पेशेवरों के प्रमाणन और उनसे संबंधित आचार संहिता लागू करने के लिये परीक्षाएँ आयोजित करती हैं।
  • इनफाॅर्मेशन यूटिलिटी
    • इनफाॅर्मेशन यूटिलिटी (IU) ऐसी संस्थाएँ हैं, जो वित्तीय सूचनाओं के डेटा रिपोजिटरी के रूप में कार्य करती हैं और साथ ही किसी देनदार से संबंधित वित्तीय जानकारी प्रदान करती हैं।
  • प्राधिकृत अधिकरण
    • कंपनियों के लिये दिवाला समाधान प्रक्रिया की कार्यवाही नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (NCLT) द्वारा  और  व्यक्तियों के लिये ऋण वसूली अधिकरण (DRT) द्वारा संपन्न की जाती है।
    • प्राधिकरणों के कर्तव्यों में दिवाला समाधान प्रक्रिया शुरू करना, इन्सॉल्वेंसी प्रोफेशनल नियुक्त करना और लेनदारों के अंतिम निर्णय को मंज़ूरी देना आदि शामिल हैं।
  • दिवाला और शोधन अक्षमता बोर्ड  
    • यह बोर्ड दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता के तहत इन्सॉल्वेंसी पेशेवरों, इन्सॉल्वेंसी पेशेवर संस्थानों और  इनफाॅर्मेशन यूटिलिटीज़ को विनियमित करता है।
    • इस बोर्ड में भारतीय रिज़र्व बैंक, वित्त मंत्रालय, कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालय और विधि मंत्रालय के प्रतिनिधि शामिल होते हैं।

नोट

  • इन्सॉल्वेंसी: यह एक ऐसी स्थिति होती है, जिसमें कोई व्यक्ति या कंपनी अपने बकाया ऋण चुकाने में असमर्थ होता है।
  • बैंकरप्सी: यह एक ऐसी स्थिति है जब किसी सक्षम न्यायालय द्वारा एक व्यक्ति या अन्य संस्था को दिवालिया घोषित कर दिया जाता है और न्यायालय द्वारा इसका समाधान करने तथा लेनदारों के अधिकारों की रक्षा करने के लिये उचित आदेश दिया गया हो। यह किसी कंपनी अथवा व्यक्ति द्वारा ऋणों का भुगतान करने में असमर्थता की कानूनी घोषणा है।

स्रोत-इंडियन एक्सप्रेस

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