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सर्वोच्च न्यायालय ने लोढ़ा समिति की सिफारिशों में किया बदलाव

  • 10 Aug 2018
  • 3 min read

चर्चा में क्यों?

सर्वोच्च न्यायालय ने न्यायमूर्ति आर.एम. लोढ़ा समिति की 'एक राज्य-एक मत' सिफारिश को खारिज करते हुए भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (BCCI) के लिये नए संविधान को अंतिम रूप दिया है।

प्रमुख बिंदु 

  • सर्वोच्च न्यायालय द्वारा बीसीसीआई के बड़े पदाधिकारियों के लिये विश्राम अवधि (कूलिंग–ऑफ़ पीरियड) में भी बदलाव किया गया है। 
  • सिफारिशों में शिथिलता बरतते हुए भारत के मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अगुआई वाली तीन सदस्यीय खंडपीठ लोढ़ा समिति की इस सिफारिश से असहमत थी कि क्रिकेट केवल तभी समृद्ध हो सकता है जब बीसीसीआई का प्रतिनिधित्व हर राज्य और संघ शासित प्रदेश द्वारा किया जाए। 
  • पूर्व मुख्य न्यायाधीश आर.एम. लोढ़ा ने सहयोगी क्रिकेट संघों की सदस्यता को खारिज कर दिया था।
  • इसकी बजाय, न्यायालय ने गुजरात और महाराष्ट्र दोनों राज्यों के सभी क्रिकेट संघों की बीसीसीआई की पूर्ण सदस्यता बहाल कर दी। इन क्रिकेट संघों में महाराष्ट्र राज्य में महाराष्ट्र, मुंबई और विदर्भ क्रिकेट संघ और गुजरात राज्य में बड़ौदा और सौराष्ट्र क्रिकेट संघ शामिल हैं।
  • न्यायालय ने अपने फैसले का कारण बताते हुए कहा कि बहिष्कार के आधार के रूप में क्षेत्रीयता का उपयोग करना समस्या उत्पन्न कर सकती है क्योंकि यह क्रिकेट और इसकी लोकप्रियता के विकास में इस तरह के संगठनों द्वारा किये गए योगदानों और उनके इतिहास को अनदेखा करता है।

लोढ़ा समिति और सर्वोच्च न्यायालय के नियमों में अंतर

  • लोढ़ा समिति के अनुसार, एक कार्यकाल के बाद कूलिंग-ऑफ़ पीरियड का सुझाव दिया गया था जिसे न्यायालय द्वारा दिये गए फैसले के बाद अब लगातार दो कार्यकाल के बाद कर दिया जाएगा।
  • जहाँ लोढ़ा समिति के अनुसार, ‘एक राज्य-एक मत’ की सिफारिश की गई थी, वहीं सर्वोच्च न्यायालय ने इसे अस्वीकार करते हुए गुजरात और महाराष्ट्र के सभी क्रिकेट संघों को पूर्ण सदस्यता प्रदान किये जाने का निर्णय लिया है।
  • राज्यों से अलग किसी क्रिकेट संघ को लोढ़ा समिति द्वारा पूर्ण सदस्यता देने से इनकार किया गया था, जबकि सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के उपरांत रेलवे, सेना और भारतीय विश्वविद्यालय आदि के क्रिकेट संघों को पूर्ण सदस्यता प्रदान की जाएगी।
  • लोढ़ा समिति की सिफारिशों के अनुसार, बीसीसीआई और राज्य क्रिकेट संघों में पद का कार्यकाल कुल 9 वर्ष और आयु सीमा 70 वर्ष तय की गई थी, जबकि न्यायालय द्वारा इन मुद्दों  पर निर्णय लिया जाना अभी बाकी है।
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