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भारत में स्विस चैलेंज की प्रासंगिकता

  • 20 Jun 2018
  • 6 min read

संदर्भ

जैसा कि हम सभी जानते हैं कि बोलीदाताओं के बीच झड़पों से बोली प्रक्रिया में बाधा उत्पन्न होती है तथा इन झड़पों के कारण भारत में कई कॉर्पोरेट दिवालियापन के मामले सामने आते हैं, इसलिये भारतीय बैंक अब बोली लगाने वालों पर फैसला करने के लिये स्विस चैलेंज रूट का उपयोग करने पर विचार कर रहे हैं। उदाहरण के लिये इस सप्ताह अदानी विल्मर और पतंजलि के बीच रुचि सोया इंडस्ट्रीज खरीदने के लिये जिस प्रकार की होड़ देखी गई, उसे देखते हुए भारत में स्विस चैलेंज की प्रासंगिकता बढ़ गई है|

स्विस चैलेंज क्या है?

  • स्विस चैलेंज बोली लगाने का एक तरीका है जो अक्सर सार्वजनिक परियोजनाओं में उपयोग किया जाता है जिसमें एक इच्छुक पार्टी अनुबंध के लिये प्रस्ताव या किसी परियोजना के लिये बोली शुरू करती है।
  • तब सरकार जनता के बीच परियोजनाओं का विवरण विज्ञापित करती है और इसे निष्पादित करने में रुचि रखने वाले अन्य लोगों के प्रस्ताव आमंत्रित करती है।
  • इन बोलियों की प्राप्ति पर मूल ठेकेदार को इनका मिलान सर्वोत्तम बोली से करने का अवसर मिलता है।
  • एक स्विस चैलेंज डिस्ट्रेस कंपनी या उसकी संपत्ति के लिये बोली लगाने की प्रक्रिया को दो दौर में शामिल किया जा सकता है जो पहले से चल रहे दिवालियापन के मामलों पर लागू होती है|
  • मान लीजिये कि कंपनी A बिजली संयंत्र के लिये 5,000 करोड़ रुपए की कीमत उद्धृत करके बोली लगाने का पहला दौर जीत लेती है। इसे सार्वजनिक किया जाएगा और बोलियों का दूसरा सेट आमंत्रित किया जाएगा।
  • अगर कंपनी B ने 5,500 करोड़ रुपए उद्धृत किये हैं तो कंपनी A को इसे प्राप्त करने के लिये एक और मौका दिया जाएगा। 
  • अगर कंपनी A द्वारा इससे इनकार कर दिया जाता है तो कंपनी B को विजेता बोली लगाने वाला घोषित किया जाएगा।
  • अगर कंपनी A आगे आती है तो उसे बिजली संयंत्र के लिये 5,500 करोड़ रुपए के स्तर पर आना होगा।

स्विस चैलेंज महत्त्वपूर्ण क्यों है?

  • स्विस चैलेंज विक्रेता को एक परिसंपत्ति के लिये सर्वोत्तम मूल्य की खोज हेतु खुली नीलामी और बंद निविदा दोनों की विशेषताओं का मिश्रण और मिलान करने की अनुमति देता है।
  • बिनानी सीमेंट्स की हालिया दिवालियापन की कार्यवाही में भारतीय बैंक एक कठिन परिस्थिति से गुज़रे, जहाँ आधिकारिक बोली प्रक्रिया समाप्त होने के बाद अल्ट्राटेक सीमेंट्स ने डालमिया समूह द्वारा जीती जाने वाली बोली को चकनाचूर कर दिया।
  • इस स्थिति को डालमिया समूह द्वारा कानूनी रूप से चुनौती दी गई थी।
  • स्विस चैलेंज विधि बोली लगाने की प्रक्रिया के दो दौर की अनुमति देकर समस्या को हल कर सकती है।

स्विस चैलेंज के अन्य उपयोग 

  • स्विस चैलेंज विधि के अन्य उपयोग भी हैं। अपने मूल रूप में  एक स्विस चैलेंज बुनियादी ढाँचा डेवलपर को सरकार द्वारा बोलियों के लिये बुलाए जाने का इंतजार किये बिना एक नई परियोजना के लिये स्व-प्रेरणा (suo motu) से प्रस्ताव के साथ आने की अनुमति देता है।
  • यह नवाचार को बढ़ावा दे सकता है  क्योंकि ठेकेदार या डेवलपर्स परियोजनाओं को शुरू कर सकते हैं|
  • सार्वजनिक परियोजनाओं के लिये भारत के सुप्रीम कोर्ट ने इस विधि को अपनाए जाने की सलाह दी थी और भारत सरकार ने सड़क तथा रेलवे परियोजनाओं में इस विधि को आजमाया है।

नकारात्मक पक्ष 

  • यदि इस विधि को सार्वजनिक परियोजनाओं पर लागू किया जाता है  तो इससे अधिक अभिनव परियोजना का प्रस्ताव और उसका त्वरित निष्पादन हो सकता है, क्योंकि एक अच्छे विचार के साथ बोली लगाने वाले को कार्य शुरू करने की प्रतीक्षा करने की आवश्यकता नहीं होती है।
  • यदि दिवालियापन के मामलों में स्विस चैलेंज लागू किया जाता है तो बैंक तनावग्रस्त परिसंपत्तियों की नीलामी से अधिक धन उगाह सकते हैं।
  • लेकिन इस प्रक्रिया से बोली लगाने वाले को एक विचार शुरू करने और उसे अस्वीकार करने का पहला अधिकार प्रदान करने की अनुमति देकर स्विस चैलेंज भ्रष्टाचार के दरवाजे खोलने, सार्वजनिक परियोजनाओं के अवार्ड में पक्षपात को बढ़ावा दे सकता है।
  • इसके खिलाफ सुरक्षा के लिये  कानूनी विशेषज्ञ सार्वजनिक परियोजनाओं की एक खुली सूची का सुझाव देते हैं जो सरकार को प्रस्ताव प्राप्त करते समय स्विस चैलेंज और बोली विवरणों के पूर्ण सार्वजनिक प्रकटीकरण की अनुमति देता है।
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