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डिजिटल सिल्क रोड पर पीछे छूटता भारत

  • 20 Jun 2018
  • 11 min read

चर्चा में क्यों?

  • हाल ही में शंघाई सहयोग संगठन के किंगदाओ सम्मलेन में भारत पहली बार पूर्ण सदस्य राष्ट्र के तौर पर शामिल हुआ जहाँ भारत को चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की बेल्ट और रोड पहल (बीआरआई) के पक्ष में सर्वसम्मति के बावजूद खुद को अलग करना पड़ा। 
  • वहीं दूसरी ओर जकार्ता में भारतीय प्रधानमंत्री ने इंडोनेशिया के साथ बंदरगाह अवसंरचना के विकास सहित समुद्री कनेक्टिविटी को बढ़ावा देने की इच्छा प्रकट की। किंतु कनेक्टिविटी के क्षेत्र में प्रदर्शन और भारत के वादे के बीच में व्याप्त अंतर को स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। 

महत्त्वपूर्ण बिंदु

  • इस बीच, जब नेपाल के प्रधानमंत्री खड़ग प्रसाद शर्मा ओली चीन की यात्रा करेंगे तो चीन की बीआरआई परियोजना भारत के और करीब आ जाएगी। भारत के अधिकांश अन्य पड़ोसियों की तरह, नेपाल पहले ही चीन की इस पहल का समर्थन कर चुका है। लेकिन पाकिस्तान, श्रीलंका और मालदीव की तरह नेपाल प्रमुख बीआरआई परियोजनाओं पर हस्ताक्षर करने के लिये तैयार है।
  • इनमें से कई परियोजनाओं को तथाकथित ट्रांस-हिमालयी कनेक्टिविटी पहल के तहत रखा जाएगा। इसमें तेल भंडारण टर्मिनलों, रेल और सड़क लिंक, जल विद्युत परियोजनाओं और बिजली संचरण लाइनों को शामिल किये जाने की संभावना है।
  • यद्यपि चीन की परियोजनाओं से संबंधित लागतों पर हाल ही में मलेशिया सहित दुनिया के कई हिस्सों में सवाल उठाया गया है, लेकिन इससे भारत के पड़ोसियों के बीच बीआरआई के प्रति उत्साह में कमी होने की संभावना कम दिखाई देती है। उनके लिये इन परियोजनाओं से संबंधित मुद्दों का महत्त्व आर्थिक और राजनीतिक दोनों है।
  • पाकिस्तान के लिये चीन के बीआरआई में भागीदारी भारत को संतुलित करने हेतु दशकों पहले गढ़ी गई उसकी सामरिक साझेदारी का महत्त्वपूर्ण हिस्सा है। अन्य पड़ोसियों के लिये बीआरआई  भारत से "कूटनीतिक स्वायत्तता" के तौर पर खुद को प्रस्तावित करता है।
  • बड़े पड़ोसियों से कूटनीतिक स्वायत्तता की मांग का विचार दक्षिण एशिया के लिये नया नहीं है। पूर्वी एशिया में चीन के खास पड़ोसियों में से कई ने ऐसा ही किया है- वे भारत सहित कई देशों के साथ विविध प्रकार की साझेदारी के माध्यम से सुरक्षा की तलाश करते हैं। लेकिन चीन के विपरीत, भारत अपने पूर्वी एशियाई भागीदारों से किये गए वादे को पूरा करने में सक्षम नहीं रहा है। 

बेल्ट और रोड परियोजना (बीआरआई)

  • इस नीति का उद्देश्य एशिया, यूरोप और अफ्रीका को जोड़ना है| दरअसल, चीन विकासशील पूर्वी एशिया के आर्थिक केंद्रों को विकसित यूरोपीय आर्थिक क्षेत्रों से जोड़ना चाहता है| यहाँ ‘बेल्ट’ से तात्पर्य सिल्क रोड आर्थिक बेल्ट से है जो तीन स्थल मार्गों से मिलकर बनी है- 

♦ चीन, मध्य एशिया और यूरोप को जोड़ने वाला मार्ग|
♦ चीन को मध्य व पश्चिम एशिया के माध्यम से फारस की खाड़ी और भूमध्य सागर से जोड़ने वाला मार्ग|
♦ चीन को दक्षिण-पूर्व एशिया, दक्षिण एशिया और हिन्द महासागर से जोड़ने वाला मार्ग|

  • ‘रोड’ से तात्पर्य 21वीं सदी की समुद्री सिल्क रोड से है जिसका निर्माण दक्षिण चीन सागर व हिन्द महासागर के माध्यम से चीन के तट से यूरोप में व्यापार करने तथा दक्षिण चीन सागर के माध्यम से चीन के तट से दक्षिण प्रशांत तक व्यापार करने के लिये किया गया है। 

भारत के लिये संभावनाएँ

  • यदि भारत को अपनी सीमाओं के पार और परे अवसंरचना परियोजनाओं के क्रियान्वयन हेतु संस्थागत क्षमताओं को विकसित करना कठिन लगता है, तो भी डिजिटल कनेक्टिविटी के क्षेत्र में भारत के लिये कुछ संभावनाएँ हैं। 
  • डिज़िटल और अंतरिक्ष ज्ञानक्षेत्र में भारत के पास लंबे समय से महत्त्वपूर्ण और बढ़ती हुई राष्ट्रीय क्षमताएँ विद्यमान हैं। लेकिन महत्त्वपूर्ण राष्ट्रीय आर्थिक और सुरक्षा रणनीतियों के साथ इन्हें एकीकृत करने में भारत बहुत पीछे रहा है। 
  • प्रधानमंत्री की सिंगापुर की यात्रा के दौरान डिजिटल कनेक्टिविटी की संभावनाओं को प्रदर्शित किया गया जहाँ उन्होंने दोनों देशों के वित्तीय बाजारों को जोड़ने के लिये कई समझौतों पर हस्ताक्षर किये। इनमें भारत के रुपे कार्ड, भीम क्यूआर कोड और एसबीआई के सीमा पार प्रेषण ऐप का शुभारंभ शामिल था। पिछले साल, भारत ने ‘पड़ोसी पहले’ की नीति के हिस्से के रूप में दक्षिण एशिया सैटेलाइट लॉन्च किया था।
  • लेकिन यहाँ भी फिर से, चीन हमसे आगे है। बीजिंग ने कई महत्वाकांक्षी पहलों की शुरुआत की है, जिसे अब "डिजिटल सिल्क रोड" के रूप में जोड़ा जा रहा है। 

डिज़िटल सिल्क रोड

  • चीन का डिज़िटल सिल्क रोड एजेंडा इंटरनेट अवसंरचना को मज़बूत करने, अंतरिक्ष सहयोग को और प्रगाढ़ बनाने, ई-कॉमर्स की बाधाओं को कम करने, सामान्य प्रौद्योगिकी मानकों को विकसित करने, साइबर सुरक्षा को बढ़ावा देने और बीआरआई देशों के बीच पुलिस व्यवस्था की दक्षता में सुधार के बारे में है।
  • चीन इन लक्ष्यों की पूर्ति के लिये कृत्रिम बुद्धिमत्ता, बिग डेटा, क्लाउड स्टोरेज और क्वांटम कंप्यूटिंग पर आधारित अपने राष्ट्रीय तौर पर विकसित प्लेटफॉर्मों को तैनात करना चाहता है। 

चीन द्वारा डिज़िटल कनेक्टिविटी की दिशा में किये जा रहे प्रयास

  • चीन और नेपाल ने इस साल की शुरुआत में दोनों देशों के बीच एक ऑप्टिक फाइबर लिंक को कार्यान्वित किया है। यह लिंक अंततः इंटरनेट कनेक्टिविटी के लिये  भारत पर नेपाल की निर्भरता को कम करेगा। 
  • पिछले साल चीनी कंपनी हुवावे ने पाकिस्तान ईस्ट अफ्रीका केबल एक्सप्रेस (पीएसीईई) का निर्माण करने के लिये एक समझौते पर हस्ताक्षर किये जो पाकिस्तान को जिबूती के माध्यम से केन्या से जोड़ेगा। हुवावे इस केबल को उत्तर में मिस्र और दक्षिण में दक्षिण अफ्रीका तक बढ़ा सकता है। इसका निर्माण पूरा होने पर केबल की कुल लंबाई 13,000 किमी. हो सकती है।
  • अंतरिक्ष सहयोग को प्रगाढ़ करना भी चीन की डिज़िटल पहल में शामिल है। पाकिस्तान के साथ अपने दीर्घकालिक अंतरिक्ष सहयोग के अलावा, चीन नेपाल के लिये राष्ट्रीय उपग्रह लॉन्च करने की योजना पर चर्चा कर रहा है। पिछले साल श्रीलंका, चीन के बेईदोउ नेविगेशन सिस्टम में शामिल हुआ।
  • चीन पर्यावरण की निगरानी से आपदा प्रबंधन तक के कई क्षेत्रों में सहयोग को मज़बूती प्रदान करने के लिये अपनी पृथ्वी अवलोकन उपग्रह क्षमताओं का लाभ उठाना चाहता है। 
  • भविष्य में चीन द्वारा नेपाल में आपदा प्रबंधन केंद्र स्थापित किये जाने की उम्मीद है जो चीन की राष्ट्रीय रिमोट सेंसिंग प्रणाली से जुड़ा होगा। 

भारत के समक्ष चुनौतियाँ

  • अगर भारत ने अपने पड़ोसियों को मज़बूत भौगोलिक परस्पर निर्भरता प्रदान करने की अनुमति दी होती और 21वीं सदी के हिसाब से इन्हें आधुनिक बनाने के लिये थोड़ा भी प्रयास किया होता, तो हमारे पड़ोसियों के पास इसे अपनाने के अलावा कोई विकल्प नहीं होता जो कि अब उनके पास चीनी कनेक्टिविटी पहल के रूप में है। हालाँकि हो सकता है यह एक महँगा विकल्प साबित हो लेकिन वे बिना किसी हिचकिचाहट के बीआरआई को अपना रहे हैं।
  • अधिक विनियमन के संबंध में नौकरशाही पूर्वाग्रह, घरेलू निजी क्षेत्र पर प्रतिबंध, नवाचार पर बाधाएँ और बाहरी सहयोग पर संदेह ने डिज़िटल विकास और कूटनीति पर भारत की संभावनाओं को सीमित कर दिया है।
  • शताब्दी के अंत में भारत ने चीन की बीआरआई परियोजना के अंतर्गत आने वाली आंतरिक, सीमापार और अंतर्राष्ट्रीय आधारभूत संरचना परियोजनाओं पर थोड़ा ध्यान दिया। फलतः, भारत उपमहाद्वीप और हिंद महासागर के रणनीतिक परिणामों से निपटने के लिये प्रयासरत है।
  • भारत को शीघ्र ही अपनी डिज़िटल रक्षात्मकता का विस्तार करते हुए चीन के सिल्क रोड नीति के नवीनतम संस्करण का प्रत्युत्तर तैयार करना चाहिये। 
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