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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

आर.बी.आई द्वारा पी-2-पी लैंडिंग फर्मों का विनियमन

  • 23 Sep 2017
  • 8 min read

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत सरकार द्वारा जारी की गई एक अधिसूचना में यह स्पष्ट तौर पर उल्लेख किया गया है कि जल्द ही सभी पी-2-पी लैंडिंग फर्मों को भारतीय रिज़र्व बैंक के दायरे में लाया जाएगा| इसका तात्पर्य यह है कि अब इन फर्मों का विनियमन भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा किया जाएगा| 

प्रमुख बिंदु

  • सरकार द्वारा जारी की गई अधिसूचना के आधार पर अब सभी पी-2-पी ऋण प्लेटफॉर्मों (P2P loan platforms) को गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियाँ (non-banking financial companies -NBFCs)  माना जाएगा तथा उन्हें बैंकिंग विनियामक अर्थात् भारतीय रिज़र्व बैंक के दायरे में लाया जाएगा|
  • रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 में उल्लिखित है कि पी-2-पी लैंडिंग प्लेटफॉर्म के कार्यों का संचालन करने वाले गैर-बैंकिंग संस्थानों को गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियाँ समझा जाएगा| 
  • ध्यातव्य है कि यह अधिसूचना रिज़र्व बैंक द्वारा पी-2-पी लैंडिंग फर्मों के विनियमन हेतु जारी किये जाने वाले मानदंडों से पूर्व ही जारी कर दी गई है|
  • यद्यपि यह भारत में नया है और अत्यधिक महत्त्वपूर्ण भी नहीं है परंतु पी-2-पी लैंडिंग के कारण विभिन्न हितधारकों (जैसे-ऋण लेने वाले, ऋणदाता और एजेंसियाँ आदि) को होने वाले लाभ और वित्तीय व्यवस्था को होने वाले जोखिम इतने अधिक हैं, कि उन्हें नज़रंदाज़ नहीं किया जा सकता है|
  • रिज़र्व बैंक ने एक परामर्श पत्र में पी-2-पी लैंडिंग फर्मों के विनियमन के विपक्ष में तर्क दिया था| इसके अनुसार, इन फर्मों में वित्तीय क्षेत्र को बाधित करने की अपार क्षमता है| 
  • रिज़र्व बैंक का मानना है कि पी-2-पी ऋण प्लेटफॉर्म द्वारा उपलब्ध कराए जाने वाले वैकल्पिक लैंडिंग चैनल (alternative lending channel) को भी स्वीकृति दिये जाने की आवश्यकता है|
  • यह अधिसूचना पी-2-पी ऋणदाताओं को आधिकारिक मान्यता प्राप्त करने, फंड की वसूली के नए मार्ग खोलने और कारोबार का विस्तार करने में सहायता करेगी|
  • विनियामक द्वारा पी-2-पी लैंडिंग फर्मों को दिये गए दिशा-निर्देश महत्त्वपूर्ण हैं, क्योंकि ये फर्में निजी निवेशकों के धन से संबंधित हैं|

क्या होगा लाभ?

  • पी-2-पी लैंडिंग फर्मों को गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों का दर्ज़ा देने से उस ‘विनियामक शून्यता’ (regulatory vacuum) की समाप्ति हो जाएगी, जिस पर अभी तक ये फर्में कार्य कर रही थी| अब इन फर्मों को आधिकारिक मान्यता प्राप्त होगी| 
  • रिज़र्व बैंक का नियामकीय दायरा इस क्षेत्र में विश्वसनीयता को बहाल करने में मददगार होगा|
  • इस अधिसूचना के प्रभाव में आने पर ऋणदाताओं को पी-2-पी लैंडिंग फर्मों के साथ कार्य करने में अधिक आसानी होगी|
  • इस प्रकार ‘संस्थागत फंडिंग’ (institutional funding) को भी अनुमति प्रदान की जाएगी| अभी तक किसी भी ‘संगठित उद्यम पूंजी’ (organized venture capital firm) फर्म को इस क्षेत्र में निवेश करते हुए नहीं देखा गया था, परन्तु अब इस प्रवृत्ति में बदलाव आएगा| 

क्या हैं पी-2-पी लैंडिंग फर्म?

  • ‘एग्रीगेटर फर्मों’ (aggregator firms) के विपरीत पी-2-पी लैंडिंग फर्में ऋण लेने वालों (borrower) को ऋण देने से पूर्व ऋणदाता से धन प्राप्त करती हैं| 
  • पी-2-पी लैंडिंग फर्में उन क्षेत्रों में वित्त के वैकल्पिक रूपों को बढ़ावा देती हैं, जहाँ औपचारिक वित्त का पहुँचना संभव नहीं होता है| 
  • कम परिचालन लागत तथा परंपरागत ऋणदाता चैनलों के साथ बढ़ती प्रतिस्पर्द्धा के कारण इनमें लैंडिंग दरों को कम करने की भी क्षमता होती है| 
  • रिज़र्व बैंक के अनुसार, पी-2-पी लैंडिंग “क्राउडफंडिंग”(crowdfunding) का एक प्रकार है जिसका उपयोग ऐसे ऋणों की वसूली के लिये किया जाता है, जिनका भुगतान व्याज के साथ करना हो|
  • इन्हें एक ऐसे ऑनलाइन प्लेटफॉर्म के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जो असुरक्षित ऋण को उपलब्ध कराने के उद्देश्य से ऋणदाताओं (lenders) और ऋण लेने वालों (borrowers) के मध्य सामंजस्य स्थापित करता है|

भारत में पी-2-पी लैंडिंग कंपनियां

  • भारत में पी-2-पी लैंडिंग बाज़ार आश्चर्यजनक रूप से उभर रहा है| यह उन भरोसेमंद और विश्वसनीय व्यक्तियों (जिन्हें धन की आवश्यकता होती है) को उन ऋणदाताओं (जो अपने निवेश पर उच्च रिटर्न प्राप्त करने के लिये अपने धन का ऑनलाइन निवेश करना चाहते हैं) से जोड़ता है| 
  • भारत में रुपया एक्सचेंज एक पी-2-पी लैंडिंग कंपनी है जो आभासी बाज़ार के माध्यम से व्यक्तिगत ऋण को आसानी से उपलब्ध कराती है|

अप्रैल 2016 को जारी किये गए परामर्श पत्र में पी-2-पी ऋणदाताओं के लिये आर.बी.आई द्वारा सुझाए गए विनियामक ढाँचे के महत्वपूर्ण बिंदु-

  • पी-2-पी प्लेटफार्म को एक कंपनी की तरह स्थापित किया जाना चाहिये|
  • इनके पास 2 करोड़ रुपए की न्यूनतम पूंजी होनी चाहिये|
  • धन-शोधन के खतरे से बचने के लिये फंड का प्रवाह ऋणदाता के बैंक खाते से  सीधे ऋण लेने वाले के खाते में किया जाना चाहिये|
  • इन्हें ‘कारोबार सातत्य योजना’ (business continuity plan) की आवश्यकता होगी|
  • ग्राहकों के डाटा की विश्वसनीयता को बनाए रखना पी-2-पी फर्मों का दायित्व होगा|
  • पी-2-पी फर्मों को असाधारण अथवा आश्वस्त वापसी की गारंटी देने से रोकना|
  • इन्हें उचित शिकायत निवारण तंत्र की स्थापना करनी होगी|
  • इनके ऋण वसूली के अनुभवों को मौजूदा गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों से सम्बद्ध किया जा सकता है|

निष्कर्ष 

यह उचित है कि भारत में पी-2-पी लैंडिंग बाज़ार तेज़ी से उभर रहा है परंतु इसका विनियमन अति आवश्यक है| अपेक्षा है कि सरकार द्वारा जारी की गई अधिसूचना के पश्चात् निकट भविष्य में बैंक भी पी-2-पी लैंडिंग फर्मों के साथ गठजोड़ कर सकते हैं,  क्योंकि ये फर्में अब रिज़र्व बैंक के दायरे में रहकर कार्य करेंगी|

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