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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

अमेरिका ने ईरान पर फिर से लगाए प्रतिबंध : क्या हैं इन प्रतिबंधों के मायने

  • 07 Aug 2018
  • 4 min read

संदर्भ

अमेरिका ने ईरान पर एक बार फिर से प्रतिबंध लगा दिये हैं। इन प्रतिबंधों के साथ ही ईरान पर वे प्रतिबंध फिर से लागू हो गए हैं वर्ष साल 2015 में हटा लिया गया था। उल्लेखनीय है कि पूर्व अमेरिकी राष्‍ट्रपति बराक ओबामा के कार्यकाल के दौरान ईरान के साथ परमाणु समझौता हुआ था जिसके तहत ईरान से ये प्रतिबंध हटा लिये गए थे। अमेरिका का मानना है कि आर्थिक दबाव के कारण ईरान नए समझौते के लिये तैयार हो जाएगा और अपनी हानिकारक गतिविधियों पर रोक लगा देगा।

क्या हैं प्रतिबंध?

  • ईरान सरकार द्वारा अमेरिकी डॉलर को खरीदने या रखने पर रोक।
  • सोने या अन्य कीमती धातुओं में व्यापार पर रोक।
  • ग्रेफ़ाइट, एल्युमीनियम, स्टील, कोयला और औद्योगिक प्रक्रियाओं में इस्तेमाल होने वाले सॉफ्टवेयर पर रोक।
  • ईरान की मुद्रा रियाल से जुड़े लेन-देन पर रोक
  • ईरान सरकार को ऋण देने से संबंधित गतिविधियों पर रोक।
  • ईरान के ऑटोमोटिव सेक्टर पर प्रतिबंध।
  • इन सबके अलावा ईरानी कालीन तथा खाद्य पदार्थों का आयात भी बंद कर दिया जाएगा।

अमेरिका ने यह भी चेतावनी दी है कि यदि कोई भी कंपनी या देश इन प्रतिबंधों का उल्लंघन करेगा तो उन्हें इसके गंभीर परिणामों का सामना करना पड़ सकता है।

5 नवंबर से लगाए जाने वाले प्रतिबंध

  • ईरान के बंदरगाहों का संचालन करने वालों पर प्रतिबंध। 
  • ऊर्जा, शिपिंग और जहाज़ निर्माण सेक्टर पर प्रतिबंध।
  • ईरान के पेट्रोलियम संबंधित लेन-देन पर प्रतिबंध।
  • सेंट्रल बैंक ऑफ ईरान के साथ विदेशी वित्त संस्थानों के लेन-देन पर प्रतिबंध।

प्रतिबंधों का प्रभाव

  • दोबारा लगाए गए प्रतिबंध अपरदेशीय (extraterritorial) हैं। ये प्रतिबंध न केवल अमेरिकी नागरिकों और व्यवसायों पर लागू होते हैं, बल्कि गैर-अमेरिकी व्यवसायों या व्यक्तियों पर भी लागू होते हैं। 
  • इन प्रतिबंधों का उद्देश्य द्वारा ईरान से संबंधित व्यापार और निवेश गतिविधि में शामिल उन सभी लोगों को दंडित करना है जिन्हें इन प्रतिबंधों के तहत कोई विशेष छूट प्राप्त नहीं है।
  • कई बड़ी अंतर्राष्ट्रीय कंपनियों ने पहले से ही अपने ईरानी व्यवसाय बंद कर दिये हैं या ऐसा करने की तैयारी कर रहे हैं।

ईरान पर लगे प्रतिबंधों का भारत पर असर

  • चीन के बाद भारत ईरान का दूसरा सबसे बड़ा तेल ख़रीदार है। वहीं, ईरान भी अपने दस प्रतिशत तेल का निर्यात केवल भारत को ही करता है।
  • भारत के लिये यह एक मुश्किल स्थिति है। एक तरफ़ जहाँ ईरान के साथ उसके गहरे संबंध हैं वहीँ दूसरी ओर, वह ईरान परमाणु समझौते से अमेरिका के अलग होने के फ़ैसले से भी सहमत नहीं है।
  • भारत पर इस समय अमेरिकी दबाव भी बढ़ता जा रहा है। 
  • भारत ने ईरान में चाबहार बंदरगाह के विकास के लिये भी निवेश किया है जो भारत-अफ़ग़ानिस्तान के बीच एक महत्त्वपूर्ण लिंक है। अमेरिकी प्रतिबंध इस परियोजना के विकास में बाधा डाल सकते हैं।
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