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भारत-विश्व

एलओयू और एलओसी सुविधा की होगी पुनः बहाली

  • 07 Aug 2018
  • 3 min read

चर्चा में क्यों?

हाल ही में वाणिज्य मंत्रालय की संसदीय स्थायी समिति ने राज्यसभा में पेश की गई एक रिपोर्ट में कहा कि भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा व्यापार ऋणों के लिये जारी किये जाने वाले लेटर्स ऑफ़ अंडरटेकिंग (LOU) और लेटर्स ऑफ क्रेडिट (LOC) को बंद करने का निर्णय पंजाब नेशनल बैंक धोखाधड़ी के मामले में “बिना सोचे-समझे की गई प्रतिक्रिया" थी और इस सुविधा को बहाल किया जाना चाहिये।

प्रमुख बिंदु 

  • समिति ने यह विचार भी व्यक्त किया कि व्यापार और उद्योग का प्रतिनिधित्व करने वाले सभी हितधारकों ने सर्वसम्मति से कहा कि एलओयू और एलओसी सुविधा को बंद करने के परिणामस्वरूप साख की लागत में 2-2.5% की वृद्धि हुई है।
  • समिति का मानना है कि आरबीआई, पीएनबी धोखाधड़ी से हतोत्साहित हो गया तथा उसने बिना अधिक सोचे और विचारे एलओयू/एलओसी पर प्रतिबंध लगाने का फैसला जल्दबाज़ी में कर दिया।
  • समिति के अनुसार, बैंक समेत सभी हितधारकों का मानना था कि एलओयू और एलओसी विश्व स्तर पर स्वीकार्य थे और आयातकों के लिये विदेशी मुद्रा के लागत प्रभावी अल्पकालिक उधार के स्रोत के रूप में उनकी प्रभावोत्पादकता "बेजोड़" थी।
  • साख की लागत बढ़ने से देश के व्यापार और उद्योग की लागत प्रतिस्पर्द्धात्मकता प्रभावित होगी और नौकरियों पर भी विपरीत प्रभाव पड़ेगा। नौकरियों की हानि देश की अर्थव्यवस्था को सीधे प्रभावित करेगी।
  • समिति ने कहा कि भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा एलओयू और एलओसी को बंद किये जाने से पहले इस मामले पर उसे संबंधित सभी हितधारकों के साथ और अधिक विचार-विमर्श करना चाहिये था।
  • समिति का मानना है कि उचित सुरक्षा उपायों के साथ एलओयू/एलओसी को जल्द-से-जल्द बहाल किया जाना चाहिये। इसकी बहाली इसलिये भी महत्त्वपूर्ण है क्योंकि भारत के आयात की सामग्री इसके कुल निर्यात का 20% अधिक है।
  • समिति ने इस तथ्य को भी उजागर किया कि धोखाधड़ी के प्रतिक्रियास्वरूप एलओयू और एलओसी को बंद करना बैंकिंग क्षेत्र में रूढ़िवाद के द्वितीयक प्रभाव की वज़ह बना है।

एमएसएमई क्षेत्र पर बुरा प्रभाव

  • रिपोर्ट में कहा गया है, "बैंक अपने संचालन और ऋण जोखिम के मामलों में अधिक सख्त हो गए हैं।" इस सतर्कता ने अनजाने में बैंकों को एमएसएमई क्षेत्र की पहुँच से दूर कर दिया है।
  • समिति इस बात से भी चिंतित है कि इस तरह के दृष्टिकोण में बैंकिंग सेवाओं को संभ्रांतवादी बनाने और एमएसएमई इकाइयों के विशाल समूह को छोड़कर कुछ बड़े निगमों के अधीनस्थ होने का खतरा है।
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