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RBI द्वारा 'गोल्डीलॉक्स फेज़' को बनाए रखने हेतु रेपो रेट में कटौती

  • 08 Dec 2025
  • 65 min read

स्रोत: ET

चर्चा में क्यों?

भारतीय रिज़र्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति (Monetary Policy Committee- MPC) ने रेपो रेट में 25 बेसिस पॉइंट्स की कटौती की है, जिससे यह 5.25% हो गया है। यह वर्ष 2025 में कुल 125 bps की कटौती है। RBI ने मौजूदा आर्थिक स्थिति को ‘गोल्डीलॉक्स फेज़’ बताया है - जिसमें निम्न मुद्रास्फीति और मज़बूत GDP वृद्धि है।

शामिल है।

अर्थव्यवस्था में 'गोल्डीलॉक्स फेज़' क्या है?

  • परिचय: अर्थव्यवस्था में गोल्डीलॉक्स फेज़ एक ऐसी स्थिति को संदर्भित करता है, जहाँ अर्थव्यवस्था पूरी तरह से संतुलित होती है - वृद्धि मज़]बूत और सतत होती है, लेकिन इतना ज़्यादा नहीं कि अर्थव्यवस्था अति-उत्साहित (Overheating) हो जाए। मुद्रास्फीति (Inflation) कम और स्थिर बनी रहती है, जिससे न तो कमज़ोर मांग या अपस्फीति (Deflationary) के जोखिम की आशंका होती है।
    • दिसंबर 2025 में, RBI गवर्नर ने भारत की अर्थव्यवस्था को "रेयर गोल्डीलॉक्स फेज़" कहा, क्योंकि 2025-26 की दूसरी तिमाही (जुलाई-सितंबर) में वृद्धि दर 8.2% थी, जबकि मुद्रास्फीति दूसरी तिमाही में औसतन 1.7% थी तथा अक्तूबर, 2025 में  घटकर 0.3% हो गई।
  • महत्त्व: गोल्डीलॉक्स फेज़ में, केंद्रीय बैंकों के पास प्रायः अधिक गतिशीलता की आशंका होती है- वे विकास को बढ़ावा देने के लिये दरों को लंबे समय तक कम रख सकते हैं, या (जैसा कि भारत के मामले में है) अनुकूल चक्र को बढ़ाने के लिये दरों में कटौती कर सकते हैं।
    • यह एक अस्थायी आदर्श अवधि है जिसे नीति निर्माता संरक्षित करने और बढ़ाने का प्रयास करते हैं।

RBI द्वारा रेपो रेट में कटौती के प्रमुख कारक क्या हैं?

  • सतत अवमुद्रास्फीति: मुद्रास्फीति में तेजी से गिरावट आई, वर्ष 2025-26 की दूसरी तिमाही में औसतन 1.7% तथा अक्तूबर, 2025 में घटकर 0.3% हो गई, जो RBI के निचले टॉलरेंस बैंड (4% ± 2%) से काफी नीचे है। 
    • मूल्य दबाव में इस गिरावट ने RBI के लिये अर्थव्यवस्था को अधिक प्रभावित किये बिना ब्याज दरों में कटौती करने हेतु नीतिगत आशंका उत्पन्न कर दी।
    • लचीली मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण (FIT) व्यवस्था के अंतर्गत पहली बार हेडलाइन मुद्रास्फीति 2% के निम्न स्तर से नीचे आ गई।
  • भारत का गोल्डीलॉक्स फेज़: दूसरी तिमाही में वृद्धि दर 8.2% पर मजबूत रही, जबकि मुद्रास्फीति 2.2% रही, जिससे सतत आर्थिक विकास के लिये आदर्श समष्टि आर्थिक स्थितियाँ निर्मित हुईं।
    • RBI ने इस अनुकूल अवधि को बनाए रखने और घरेलू मांग का समर्थन करने के लिये दरें कम कीं।
  • बाहरी चुनौतियों का संतुलन: कमजोर वैश्विक व्यापार, अस्थिर बाज़ार और भू-राजनीतिक जोखिम भारत के निर्यात और निवेश को प्रभावित कर रहे थे। 
    • दर में कटौती का उद्देश्य इन बाहरी दबावों के खिलाफ घरेलू मांग को बढ़ाकर अर्थव्यवस्था को संरक्षण प्रदान करना था।
  • विकास की गति को समर्थन: दर में कटौती का उद्देश्य त्यौहारी सीजन में मांग, GST सुधारों के प्रभाव और समग्र घरेलू खपत को बढ़ावा देकर इस अनुकूल समष्टि आर्थिक स्थितियाँ में विकास को प्रोत्साहित करना है।

रेपो रेट

  • रेपो रेट (पुनर्खरीद समझौता दर) वह ब्याज दर है जिस पर वाणिज्यिक बैंक केंद्रीय बैंक से धन ऋण लेते हैं ।
  • कार्यप्रणाली: इसमें बैंकों को अल्पकालिक तरलता की ज़रूरत पूरी करने के लिये धन ऋण लेने की सुविधा मिलती है, जिसमें प्रतिभूतियों को संपार्श्विक के रूप में रखा जाता है और बाद में उन्हें ब्याज सहित उच्च मूल्य पर पुनःखरीदा जाता है।
  • ऋण लागत पर प्रभाव: उच्च रेपो रेट से ऋण लेने की लागत बढ़ती है तथा क्रेडिट प्रवाह धीमा हो जाता है, जबकि कम रेपो रेट से उधार लेने की लागत कम हो जाती है।
  • मौद्रिक नीति में भूमिका: केंद्रीय बैंक रेपो रेट के माध्यम से मुद्रा आपूर्ति, मुद्रास्फीति और आर्थिक विकास को नियंत्रित करता है।

लचीला मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण

  • लचीला मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण (FIT): FIT एक मौद्रिक नीति ढाँचा है, जिसमें केंद्रीय बैंक का उद्देश्य एक निश्चित मध्यम अवधि के मुद्रास्फीति लक्ष्य को प्राप्त करना होता है, साथ ही अल्पकालिक उत्पादन और रोज़गार की स्थिरीकरण आवश्यकताओं के लिये लचीलापन बनाए रखा जाता है।
  • प्राथमिक अधिदेश: FIT का प्राथमिक अधिदेश एक सार्वजनिक रूप से घोषित, विशिष्ट मुद्रास्फीति लक्ष्य है, जिसे आमतौर पर एक बिंदु या सीमा के रूप में व्यक्त किया जाता है। 
    • उदाहरण के लिए: भारत में, RBI का लक्ष्य उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) आधारित मुद्रास्फीति को 4% पर बनाए रखना है, जो ±2% यानी 2% से 6% के बैंड के भीतर रहता है।
  • व्यापार-चक्र प्रबंधन: FIT औपचारिक रूप से अल्पकालिक व्यापार-चक्र को स्वीकार करता है, ताकि केंद्रीय बैंक मुद्रास्फीति को मुख्य नाममात्र मानक के रूप में रखते हुए विकास का समर्थन कर सके और इन दोनों उद्देश्यों के बीच संतुलन स्थापित कर सके।

भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा रेपो रेट में कटौती के भारतीय अर्थव्यवस्था पर क्या प्रभाव हो सकते हैं?

  • आर्थिक विकास को बढ़ावा: कम ब्याज दरें ऋण लागत को घटाती हैं, बैंकिंग ऋण को बढ़ावा देती हैं, खपत को प्रोत्साहित करती हैं और व्यवसायों के पूंजीगत व्यय में निवेश को उत्साहित करती हैं।
  • मुद्रास्फीति का दबाव: यदि वस्तुओं और सेवाओं की आपूर्ति सीमित है तो बढ़ी हुई तरलता मांग-जनित मुद्रास्फीति को बढ़ा सकती है, RBI की कटौती इस विश्वास को दर्शाती है कि मुद्रास्फीति 2–6% के लक्ष्य बैंड के भीतर बनी रहेगी।
  • बाहरी क्षेत्र की परिस्थितियाँ: कम ब्याज दरों से निवेश आकर्षण घट सकता है, जिससे रुपया कमज़ोर हो सकता है; यह निर्यात प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ाता है लेकिन आयात लागत को बढ़ाकर व्यापार घाटा का जोखिम उत्पन्न करता है।
  • बचत पर प्रभाव: कम ब्याज दरें सावधि जमा और लघु बचत पर रिटर्न को घटाती हैं, जिससे घरेलू परिवारों द्वारा बचत करने की प्रवृत्ति कम हो सकती है।

MPC

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न: भारत के हालिया आर्थिक आँकड़ों के संदर्भ में, मुद्रास्फीति नियंत्रण और आर्थिक विकास को प्रोत्साहित करने के बीच संतुलन बनाने में मौद्रिक नीति समिति (MPC) की भूमिका पर चर्चा कीजिये।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

1. रेपो रेट क्या है?
रेपो रेट वह ब्याज दर है जिस पर वाणिज्यिक बैंक अपनी अल्पकालिक तरलता आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये RBI से ऋण लेते हैं

2. अर्थशास्त्र में गोल्डीलॉक्स मोमेंट क्या है?
एक ऐसा अवधि जिसमें विकास मज़बूत होता है और मुद्रास्फीति कम होती है, जिससे नीति निर्माता अर्थव्यवस्था का समर्थन करने के लिये लचीलापन रखते हैं बिना अधिक गर्म होने के जोखिम के।

3. लचीली मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण (FIT) कैसे काम करता है:
FIT एक मध्यम अवधि के लिये मुद्रास्फीति लक्ष्य तय करता है, जबकि अल्पकालिक झटकों के दौरान वृद्धि और रोजगार का समर्थन करने हेतु विवेक का उपयोग करने की अनुमति देता है।

सारांश

  • RBI ने रेपो रेट में 25 आधार अंक की कटौती कर 5.25% कर दी, यह बताते हुए कि अर्थव्यवस्था एक असाधारण 'गोल्डीलॉक्स' फेस में है, जिसमें वृद्धि (~8%) मज़बूत है और मुद्रास्फीति असामान्य रूप से कम (2% से नीचे) है।
  • यह निर्णय लगातार मुद्रास्फीति में गिरावट के कारण संभव हुआ, जिसने लचीली मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण (FIT) ढाँचे के तहत नीति बनाने की सुविधा प्रदान की।
  • इस रणनीतिक कटौती का उद्देश्य घरेलू मांग को मज़बूत करना और अनुकूल परिस्थितियों को बनाए रखना है साथ ही वैश्विक अनिश्चितताओं से अर्थव्यवस्था को पहले से ही सुरक्षा प्रदान करना है।
  • यह वृद्धि बनाए रखने और मूल्य स्थिरता के बीच संतुलन बनाने के लिये एक समायोजित कदम को दर्शाता है, जो वर्तमान मैक्रोइकॉनॉमिक गति को सुरक्षित करने हेतु RBI के दायरे में उपलब्ध लचीलापन का उपयोग करता है।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न(PYQs)

प्रिलिम्स

प्रश्न. मौद्रिक नीति समिति (MPC) के संबंध में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (2017)

  1. यह आरबीआई की बेंचमार्क ब्याज दरों को तय करती है।
  2. यह आरबीआई के गवर्नर सहित 12 सदस्यीय निकाय है जिसका प्रतिवर्ष पुनर्गठन किया जाता है।
  3. यह केंद्रीय वित्त मंत्री की अध्यक्षता में कार्य करती है।

निम्नलिखित कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये :

(a) केवल 1

(b) केवल 1 और 2

(c) केवल 3

(d) केवल 2 और 3


उत्तर: (a)

प्रश्न. यदि भारतीय रिज़र्व बैंक एक विस्तारवादी मौद्रिक नीति अपनाने का निर्णय लेता है, तो वह निम्नलिखित में से क्या नहीं करेगा? (2020)

  1. वैधानिक तरलता अनुपात में कटौती और अनुकूलन
  2.  सीमांत स्थायी सुविधा दर में बढ़ोतरी 
  3. बैंक रेट और रेपो रेट में कटौती

निम्नलिखित कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और 2

(b) केवल 2

(c) केवल 1 और 3

(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (b)


Mains

प्रश्न.1 संभावित सकल घरेलू उत्पाद (GDP) क्या है। इसके निर्धारकों की चर्चा कीजिये। उन कारकों का भी उल्लेख कीजिये जो भारत को अपनी संभावित सकल घरेलू उत्पाद प्राप्त करने में बाधा डालते हैं। (250 शब्द)  (2020)  

प्रश्न: क्या आप इस बात से सहमत हैं कि स्थिर जीडीपी वृद्धि और कम मुद्रास्फीति ने भारतीय अर्थव्यवस्था को अच्छी स्थिति में रखा है? अपने तर्कों के समर्थन में कारण बताइये। (2019)

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