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विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

दुर्लभ मृदा तत्त्व

  • 27 Dec 2019
  • 9 min read

प्रीलिम्स के लिये:

दुर्लभ मृदा तत्त्व (REE)

मेन्स के लिये:

दुर्लभ मृदा तत्त्व की उपयोगिता और महत्व

चर्चा में क्यों ?

पिछले दिनों चीन-अमेरिका व्यापार युद्ध के दौरान चीन ने अमेरिका (USA) को होने वाले कई दुर्लभ मृदा तत्त्वों के निर्यात पर रोक लगा दी थी। इसके बाद अब अमेरिका की सेना नें दुर्लभ मृदा तत्त्वों (Rare Earth Element -REE) के प्रसंस्करण की तकनीकी में निवेश की इच्छा जाहिर की है।

प्रमुख बिंदु:

  • चीन के साथ व्यापार युद्ध से सीख लेते हए संयुक्त राज्य अमेरिका की सेना ने दुर्लभ मृदा तत्त्वों की स्वदेशी आपूर्ति सुनिश्चित करने के उद्देश्य से दुर्लभ मृदा तत्त्वों के प्रसंस्करण की तकनीकी में निवेश की इच्छा जाहिर की है।
  • यह अमेरिकी सेना द्वारा द्वितीय विश्वयुद्ध के ‘मैनहट्टन परियोजना’ (Manhattan Project) के बाद व्यापारिक स्तर पर दुर्लभ मृदा तत्त्वों के प्रसंस्करण में किया गया पहला निवेश होगा।

मैनहट्टन परियोजना/प्रोजेक्ट द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान अमेरिका द्वारा यूनाइटेड किंगडम और कनाडा के सहयोग से चलाया गया एक शोध और निर्माण कार्यक्रम था, जिसके अंतर्गत प्रथम परमाणु बम का निर्माण किया गया।

  • इस कार्यक्रम के लिये अमेरिकी सेना को 1950 के ‘रक्षा उत्पादन अधिनियम’ के तहत धन उपलब्ध कराया जाएगा।
  • अनुमानतः शुरुआत में छोटे स्तर पर इस संयंत्र को लगाने में 5 से 20 मिलियन डॉलर तक का खर्च आएगा जबकि संयंत्र को पूर्ण रूप से संचालित करने में 100 मिलियन डॉलर तक का खर्च आ सकता है।

क्या हैं दुर्लभ मृदा तत्त्व (REE)?

  • REE 17 दुर्लभ धातु तत्त्वों का समूह है जो पृथ्वी की ऊपरी सतह (क्रस्ट) में पाए जाते हैं।
  • REE आवर्त सारणी में 15 लैंथेनाइड (Z-57 से71) और स्कैंडियम (Scandium) तथा Ytterbium के नाम से जाने जाते हैं।

REE

  • दुर्लभ मृदा तत्त्व अपने नाम के विपरीत पृथ्वी पर प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं परंतु इनके प्रसंस्करण की प्रकिया बहुत ही जटिल है।
    • दुर्लभ मृदा तत्त्वों में अन्य धातुओं की अपेक्षा बेहतर उत्प्रेरक, धातुकर्म, परमाणु, विद्युत और चुंबकीय गुण होते हैं।

REE की कुछ अन्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

  • दुर्लभ मृदा तत्त्व चाँदी के रंग (Silver), सिल्वर व्हाइट या भूरे (Grey) रंग के होते हैं।
  • दुर्लभ मृदा तत्त्व चमकीली लेकिन हवा में आसानी से धूमिल नज़र आने वाली धातुएँ हैं।
  • दुर्लभ मृदा तत्त्वों में उच्च विद्युत चालकता होती है।
  • दुर्लभ मृदा तत्त्व कई समान गुण साझा करते हैं, जिसके कारण इन्हें एक-दूसरे से अलग करना या इनकी अलग-अलग पहचान करना बहुत ही कठिन है।
  • इनकी घुलनशीलता तथा जटिल संरचना में बहुत ही सूक्ष्म अंतर होता है।
  • दुर्लभ मृदा तत्त्व प्राकृतिक रूप से अन्य खनिजों में एक साथ घुले हुए होते हैं। (जैसे Monazite एक मिश्रित दुर्लभ मृदा फॉस्फेट है)

दुर्लभ मृदा तत्त्वों की उपयोगिता: REE के विशिष्ट गुणों के कारण इसका इस्तेमाल स्मार्ट फोन, HD डिस्प्ले, इलेक्ट्रिक कार, वायुयान के महत्त्वपूर्ण उपकरण, परमाणु हथियार और अंतरिक्ष कार्यक्रमों के साथ कई अन्य महत्त्वपूर्ण तकनीकी विकास में होता है।

Rare-Earth

  • वर्तमान समय में REE के बाज़ार में चीन की हिस्सेदारी लगभग 94% है।
  • चीन में सर्वाधिक (83 %) दुर्लभ मृदा तत्त्व बेस्टनासाइट भंडार (Bastnasite deposits) के रूप में इनर मंगोलिया (Inner Mongoliya) प्रांत में पाया जाता है।

भारत में दुर्लभ मृदा तत्त्वों का खनन एवं प्रसंस्करण-

  • एक अनुमान के अनुसार, भारत में दुर्लभ मृदा तत्त्वों का बाज़ार 90 हज़ार करोड़ रुपए से अधिक का है।
  • परमाणु खनिज अन्वेषण और अनुसंधान निदेशालय (Atomic Minerals Directorate for Exploration and Research- AMD) के अनुसार, भारत में 11.93 मिलियन टन मोनाज़ाइट (Monazite) के स्रोत खोजे गए हैं।

AMD

  • भारत में परमाणु ऊर्जा नियामक बोर्ड (Atomic Energy Regulatory Board-AERB) की निगरानी में दुर्लभ मृदा तत्त्वों का सीमित खनन किया जाता है।
  • वर्तमान में भारत सरकार के उपक्रम Erstwhile Indian Rare Earths Limited द्वारा केरल के चवारा (Chavara) और तमिलनाडु के मनावलाकुरीची (Manavalakurichi) में समुद्रतट से REE का खनन और ओडिशा के छतरपुर में ‘ओडिशा सैंड कॉम्प्लेक्स’ (OSCOM) पर इसके पृथक्करण का काम होता है।
  • केरल सरकार के सहयोग से ‘केरल खनिज एवं धातु लिमिटेड’, ‘विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र (Vikram Sarabhai Space Centre-VSSC) और ‘रक्षा धातुकर्म अनुसंधान प्रयोगशाला’ (Defence Metallurgical Research Laboratory- DMRL) के साथ मिलकर इस क्षेत्र में काम करता है।
  • वर्ष 2015 में राज्यसभा में भारत सरकार द्वारा प्रस्तुत आँकड़ों के अनुसार, भारत में वर्ष 2009-2014 के बीच ‘इंडियन रेयर अर्थ लिमिटेड’ (Indian Rare Earth Limited-IREL) द्वारा 310.145 मीट्रिक टन REE की खुदाई की गई और इसी दौरान लगभग 285.90 मीट्रिक टन REE की बिक्री हुई।

अलग-अलग राज्यों में REE के भंडार (सितंबर 2013 तक)-

REE-State

दुर्लभ मृदा तत्त्वों के खनन के दुस्प्रभाव:

यद्यपि दुर्लभ मृदा तत्त्व अंतरिक्ष तथा अन्य तकनीकी विकास के लिये बहुत ही आवश्यक हैं परंतु इनके खनन के अनेक दुष्प्रभाव भी हैं-

  • प्राकृतिक तटों और उन पर आश्रित पारिस्थितिकी प्रणालियों की क्षति।
  • कई महत्त्वपूर्ण और दुर्लभ प्रजातियों के वास स्थान इस प्रक्रिया में नष्ट हो जाते हैं।
  • तटों के प्राकृतिक तंत्र की हानि जिससे मृदाक्षरण जैसी अनेक समस्याएँ उत्पन्न होती हैं।
  • दुर्लभ मृदा तत्त्वों के खनन तथा प्रसंस्करण से बड़ी मात्रा में जल प्रदूषण होता है तथा Monazite जैसे तत्त्वों में यूरेनियम (0.4%) की उपस्थिति से इसके खतरे और भी बढ़ जाते हैं।

आगे की राह:

दुर्लभ मृदा तत्त्व आज के समय में तकनीकी विकास, अंतरिक्ष अनुसंधान आदि क्षेत्रों में बहुत ही महत्त्वपूर्ण हैं। साथ ही इसके लिये किसी भी अन्य देश पर निर्भर होना हमें सामरिक रूप से कमज़ोर बनाता है। परंतु इस प्रतिस्पर्द्धा में निकट लाभ के लिये प्रकृति को अनदेखा करना एक बड़ी भूल होगी। अतः यह आवश्यक है कि REE के प्रसंस्करण के लिये प्रकृति अनुकूल माध्यमों की खोज की जाए, जिससे विकास के कार्यों के साथ-साथ प्रकृति की कम से कम क्षति हो।

स्रोत: पी.आई.बी.

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