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भारतीय इतिहास

रानी चेन्नम्मा

  • 26 Feb 2024
  • 9 min read

प्रिलिम्स के लिये:

रानी चेन्नम्मा, ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी, नानू रानी चेन्नम्मा, डॉक्ट्रिन ऑफ लैप्स

मेन्स के लिये:

रानी चेन्नम्मा, स्वतंत्रता संग्राम और इसके विभिन्न चरण एवं देश के विभिन्न हिस्सों से महत्त्वपूर्ण योगदानकर्त्ता अथवा योगदान।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों?

 ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी कंपनी के विरुद्ध रानी चेन्नम्मा के विद्रोह के 200 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में, भारत में कई सामाजिक समूहों द्वारा 21 फरवरी को एक राष्ट्रीय अभियान, नानू रानी चेन्नम्मा (मैं भी रानी चेन्नम्मा हूँ) का आयोजन किया गया।

  • यह अभियान चेन्नम्मा की स्मृति को याद करके यह दिखाने का प्रयास कर रहा है कि महिलाएँ सम्मान और न्याय की रक्षा में अग्रणी हो सकती हैं। रानी चेन्नम्मा की वीरता देश की महिलाओं के लिये प्रेरणा है।
  • अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिये उनकी कठोर और त्वरित सोच को उनके राज्य की रक्षा के प्रति उनकी प्रतिबद्धता तथा समर्पण के प्रमाण के रूप में देखा जा सकता है।

रानी चेन्नम्मा कौन थी?

  • परिचय:
    • चेन्नम्मा का जन्म 23 अक्टूबर 1778 को कर्नाटक के वर्तमान बेलगावी ज़िले के एक छोटे से गाँव कागती में हुआ था।
    • 15 वर्ष  की उम्र में उन्होंने कित्तूर के राजा मल्लसर्जा से शादी की, जिन्होंने वर्ष 1816 तक प्रांत पर शासन किया।
    • वर्ष 1816 में मल्लसर्जा की मृत्यु के बाद, उनका सबसे बड़ा पुत्र शिवलिंगरुद्र सरजा सिंहासन पर बैठा। लेकिन ज़्यादा समय नहीं बीता जब शिवलिंगरुद्र का स्वास्थ्य बिगड़ने लगा।
    • जीवित रखने के लिये कित्तूर को एक अनुमानित उत्तराधिकारी की आवश्यकता थी। फिर भी, चेन्नम्मा ने भी अपना बेटा खो दिया था और साथ ही शिवलिंगरुद्र के पास कोई स्वाभाविक उत्तराधिकारी भी नहीं था।
    • वर्ष 1824 में अपनी मृत्यु से पहले, शिवलिंगरुद्र ने उत्तराधिकारी के रूप में एक बच्चे, शिवलिंगप्पा को गोद लिया था। हालाँकि ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने 'व्यपगत के सिद्धांत' के तहत शिवलिंगप्पा को राज्य के उत्तराधिकारी के रूप में मान्यता देने से इनकार कर दिया। 
      • उक्त सिद्धांत के तहत, नैसर्गिक उत्तराधिकारी न होने की दशा में संबद्ध रियासत का पतन हो जाएगा और कंपनी द्वारा उस पर कब्ज़ा कर लिया जाएगा।
    • धारवाड़ के ब्रिटिश अधिकारी जॉन थैकेरी ने अक्तूबर 1824 में कित्तूर पर हमला किया।
  • अंग्रेज़ों के विरुद्ध युद्ध:
    • कर्नाटक की पूर्व रियासत पर आक्रमण करने के उद्देश्य से वर्ष 1824 में, 20,000 ब्रिटिश सैनिकों का एक बेड़ा कित्तूर किले की तलहटी में तैनात हुआ।
    • परंतु रानी चेन्नम्मा ने उनक सामना किया और अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिये एक ब्रिटिश अधिकारी को मार डाला।
    • मार्शल आर्ट और सैन्य रणनीति में प्रशिक्षित, वह एक दुर्जेय नेता थीं।
    • उन्होंने ब्रिटिश सेना का सामना करने के लिये गुरिल्ला युद्ध रणनीति अपनाकर युद्ध में अपनी सेना का नेतृत्व किया।
      • यह संघर्ष कई दिनों तक जारी रहा किंतु अंततः अपने बेहतर हथियारों के परिणामस्वरूप अंग्रेज़ विजयी हुए।
  • विरासत:
    • बैलहोंगल किले (बेलगावी, कर्नाटक) में रानी चेन्नम्मा को कैद कर लिया गया किंतु उनकी हौसला अटूट रहा।
    • उनके विद्रोह ने अनगिनत लोगों को ब्रिटिश शासन के विरुद्ध युद्ध करने के लिये प्रेरित किया। वह साहस और अवज्ञा का प्रतीक बन गईं।
    • वर्ष 2007 में भारत सरकार ने उनके नाम पर एक डाक टिकट जारी कर उन्हें सम्मानित किया।
    • रानी चेन्नम्मा को एक रक्षक और संरक्षक के रूप में प्रदर्शित करते हुए कई कन्नड़ लावणी अथवा लोक गीत गाए जाते हैं।
      • लावणी एक जीवंत और अभिव्यंजक लोक कला है जिसकी जड़ें महाराष्ट्र की सांस्कृतिक विरासत में निहित हैं, लेकिन इसे कर्नाटक के कुछ हिस्सों में भी जगह मिली है।  "लावणी" शब्द मराठी शब्द "लावण्या" से लिया गया है, जिसका अर्थ है सुंदरता।
      • लावणी पारंपरिक गीत और नृत्य का एक संयोजन है, जो एक ताल वाद्य यंत्र ढोलकी की लयबद्ध ताल पर प्रस्तुत किया जाता है।

व्यपगत का सिद्धांत क्या है?

  • यह एक विलय नीति थी जिसका पालन लॉर्ड डलहौज़ी ने व्यापक रूप से किया था जब वह वर्ष 1848 से 1856 तक भारत का गवर्नर-जनरल था।
  • इसके अनुसार, कोई भी रियासत जो ईस्ट इंडिया कंपनी के प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष नियंत्रण में थी, जहाँ शासक के पास कोई कानूनी पुरुष उत्तराधिकारी नहीं था, उसे कंपनी द्वारा कब्ज़ा कर लिया जाएगा।
    • इसके अनुसार, भारतीय शासक के किसी भी दत्तक पुत्र को राज्य का उत्तराधिकारी घोषित नहीं किया जा सकता था।
  • व्यपगत के सिद्धांत को लागू करके, डलहौज़ी ने निम्नलिखित राज्यों पर कब्ज़ा कर लिया:
    • सतारा (1848 ई.), जैतपुर, और संबलपुर (1849 ई.), बघाट (1850 ई.), उदयपुर (1852 ई.), झाँसी (1853 ई.) तथा नागपुर (1854 ई.)।

निष्कर्ष

  • कित्तूर रानी चेन्नम्मा का विद्रोह भारत के स्वतंत्रता संग्राम में एक महत्त्वपूर्ण अध्याय बना हुआ है। उनका दृढ़ नेतृत्व और धैर्य एक प्रेरणा है कि अत्यंत कठिन परिस्थितियों में भी वीरता की जीत हो सकती है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स: 

प्रश्न. महारानी विक्टोरिया की उद्घोषणा (1858) का उद्देश्य क्या था? (2014)

  1. भारतीय राज्यों को ब्रिटिश साम्राज्य में मिलाने के किसी भी विचार का परित्याग करना
  2. भारतीय प्रशासन को ब्रिटिश क्राउन के अंतर्गत रखना 
  3. भारत के साथ ईस्ट इंडिया कंपनी के व्यापार का नियमन करना

नीचे दिये गए कूट का उपयोग करके सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (a)

व्याख्या:

  • ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की डॉक्ट्रिन ऑफ लैप्स जैसी नीतियों के कारण 1857 के विद्रोह का उद्देश्य रियासतों पर कब्ज़ा करना था, अवध, झाँसी और नागपुर जैसी कई प्रभावशाली रियासतों तथा कुँवर सिंह जैसे प्रभावशाली ज़मींदारों ने ब्रिटिश नीतियों को अपनी स्वतंत्रता में घुसपैठ के रूप में देखा। रियासतों के डर को दूर करने और विद्रोही सिपाहियों के समर्थन समूह (अर्थात् असंतुष्ट रियासतों के शासकों) समाप्त करने हेतु वर्ष 1858 की उद्घोषणा ने रियासतों के संबंध में ब्रिटिश स्थिति को स्पष्ट किया। अतः कथन 1 सही है।
  • वर्ष 1858 की उद्घोषणा ने ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन को समाप्त कर दिया और भारतीय प्रशासन को ब्रिटिश क्राउन के अधीन कर दिया। अत: कथन 2 सही है।

मेन्स:

प्रश्न. आयु, लिंग तथा धर्म के बंधनों से मुक्त होकर, भारतीय महिलाएँ भारत के स्वाधीनता संग्राम में अग्रणी बनी रही। विवेचना कीजिये। (2013)

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