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भारतीय राजनीति

सरकारी अधिकारियों के खिलाफ जाँच हेतु पूर्व अनुमोदन

  • 18 Jan 2024
  • 9 min read

प्रिलिम्स के लिये:

पूर्व अनुमोदन, सर्वोच्च न्यायालय (SC), प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR), कौशल विकास घोटाला मामला, अपराध जाँच विभाग (CID)।

मेन्स के लिये:

पूर्व अनुमोदन।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय (SC) ने कथित कौशल विकास घोटाला मामले में प्रथम सूचना रिपोर्ट (First Investigation Report- FIR) को रद्द करने की आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री की याचिका को रद्द करने का फैसला सुनाया है।

  • न्यायाधीशों के बीच असहमति इस बात को लेकर है कि क्या आंध्र प्रदेश अपराध जाँच विभाग (Crime Investigation Department- CID) को भ्रष्टाचार के आरोपी सार्वजनिक अधिकारियों के खिलाफ जाँच करने से पहले राज्य सरकार से 'पूर्व अनुमोदन' लेने की आवश्यकता थी।

क्या था सर्वोच्च न्यायालय का फैसला?

  • सर्वोच्च न्यायालय ने भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 की धारा 17A की व्याख्या और प्रयोज्यता को रद्द करने का फैसला सुनाया है।
  • एक न्यायाधीश ने कहा कि पूर्व मुख्यमंत्री के खिलाफ PC अधिनियम के तहत कथित अपराधों की जाँच करने के लिये पूर्व अनुमोदन आवश्यक थी। हालाँकि उन्होंने रिमांड आदेश को रद्द करने से इनकार कर दिया और राज्य को ऐसी अनुमति लेने की स्वतंत्रता दी।
  • अन्य न्यायाधीश के अनुसार धारा 17A का पूर्वव्यापी/भूतलक्षी रूप से कार्यान्वन नहीं किया जाएगा तथा FIR को रद्द करने से इनकार करने वाले उच्च न्यायालय के निर्णय को ज्यों का त्यों रखा जाएगा। 
    • न्यायमूर्ति ने यह भी कहा कि रिमांड का विवादित आदेश तथा उच्च न्यायालय के निर्णय में कोई अवैधता नहीं है।
  • एक समान मत न होने के कारणवश मामले को उचित निर्देशों हेतु भारत के मुख्य न्यायाधीश (Chief Justice of India- CJI) को प्रेषित किया गया है।

आंध्र प्रदेश में कौशल विकास घोटाला क्या था?

  • आंध्र प्रदेश में कौशल विकास घोटाले में पूर्व मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू के विरुद्ध कौशल विकास कार्यक्रम के लिये निर्धारित धन राशि का दुरुपयोग करने का आरोप लगाया गया।
  • वर्ष 2021 में 3,356 करोड़ रुपए का कौशल विकास प्रोजेक्ट की जाँच शुरू हुई।
  • दिसंबर 2021 में चंद्रबाबू नायडू के विरुद्ध FIR दर्ज की गई। अपराध अन्वेषण विभाग (Crime Investigation Department- CID) ने आरोप लगाया कि परियोजना के लिये आवंटित लगभग 241 करोड़ रुपए का अंतरण पाँच शेल कंपनियों को किया गया था।

सरकारी अधिकारियों के विरुद्ध जाँच हेतु पूर्व अनुमोदन क्या है?

  • परिचय:
    • पूर्व अनुमोदन जाँचकर्त्ताओं, विशेष रूप से अपराध अन्वेषण विभाग (CID) अथवा केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (Central Bureau of Investigation- CBI) जैसे अभिकरणों के लिये सरकारी अधिकारी के विरुद्ध भ्रष्टाचार के आरोपों की जाँच अथवा जाँच शुरू करने से पूर्व सरकार अथवा सक्षम प्राधिकारी से अनुमोदन प्राप्त करने की आवश्यकता को संदर्भित करता है।
    • किसी भी औपचारिक कार्रवाई, जैसे कि FIR (प्रथम सूचना रिपोर्ट) दर्ज करना या विस्तृत जाँच करने से पहले यह मंज़ूरी आवश्यक है।
  • कानूनी प्रावधान:
    • 'पूर्व अनुमोदन' की आवश्यकता दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम 1946 में संशोधन के माध्यम से शुरू किये गए कानूनी प्रावधानों में निहित है, जिसे बाद में भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 में शामिल किया गया।
    • यह शर्त पहली बार वर्ष 2003 में अपनाई गई थी, जिसमें कहा गया था कि यदि आरोपी संयुक्त सचिव से ऊपर का पद रखता है तो भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत अपराधों की जाँच करने से पहले केंद्र सरकार की मंज़ूरी की आवश्यकता होगी।
    • हालाँकि SC ने वर्ष 2014 में इस आवश्यकता को रद्द कर दिया। इसके बाद, वर्ष 2018 में, भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम में संशोधन के माध्यम से एक समान प्रावधान (धारा 17A) को फिर से पेश किया गया।
      • इस प्रावधान के अनुसार, यदि किसी लोक सेवक पर अपने आधिकारिक कर्त्तव्यों का निर्वहन करते समय अधिनियम के तहत अपराध करने का आरोप लगाया जाता है, तो पूछताछ या जाँच शुरू करने से पहले केंद्र या राज्य सरकार या सक्षम प्राधिकारी से अनुमोदन की आवश्यकता होती है।
  • तर्क:
    • 'पूर्व अनुमोदन' की आवश्यकता के पीछे तर्क सार्वजनिक अधिकारियों से जुड़े भ्रष्टाचार के मामलों की पूछताछ की आवश्यकता को संभावित आधारहीन या राजनीति से प्रेरित जाँच से अधिकारियों की सुरक्षा के साथ संतुलित करना है।
    • इसे यह सुनिश्चित करने के लिये एक प्रक्रियात्मक सुरक्षा के रूप में देखा जाता है कि अन्वेषण/जाँच विवेकपूर्ण ढंग से और उचित निरीक्षण के साथ की जाए, जिससे अन्वेषण शक्तियों का दुरुपयोग रोका जा सके।

पूर्व अनुमोदन के प्रावधान में क्या चुनौतियाँ हैं?

  • 'पूर्व अनुमोदन' की आवश्यकता से यह निर्धारित करना अत्यंत कठिन हो जाता है कि क्या किसी सार्वजनिक अधिकारी द्वारा अपने कर्त्तव्यों का निर्वहन करते समय कोई अपराध किया गया था।
  • प्रारंभिक जाँच क्षमता के बिना, साक्ष्य एकत्रित करना और यह स्थापित करना चुनौतीपूर्ण हो जाता है कि अधिकारी के खिलाफ कोई वैध मामला है या नहीं।
  • पुलिस अधिकारियों और जाँच एजेंसियों पर 'पूर्व अनुमोदन' प्राप्त करने का ज़िम्मेदारी डालने से भ्रष्टाचार के आरोपों का तुरंत तथा प्रभावी ढंग से समाधान करने की उनकी क्षमता में बाधा आ सकती है।
  • यह ज़िम्मेदारी जाँच प्रक्रिया को धीमा कर सकता है, जिससे संभावित रूप से भ्रष्ट अधिकारियों को जाँच से बचने या अपनी गतिविधियों को जारी रखने में सहायता मिल सकती है।

आगे की राह 

  • 'पूर्व अनुमोदन' से संबंधित मौजूदा कानून की व्यापक समीक्षा करने और हितधारकों की चिंताओं को दूर करने के लिये संशोधनों पर विचार करने की आवश्यकता है।
  • 'पूर्व अनुमोदन' द्वारा प्रदान की गई निगरानी और शीघ्र जाँच की आवश्यकता के बीच संतुलन की तलाश करने की आवश्यकता है। यह सुनिश्चित करने के लिये अनुमोदन प्राप्त करने के मानदंडों को परिष्कृत करने पर विचार किया जाना चाहिये कि इससे पूछताछ शुरू करने में अनावश्यक देरी न हो।
  • लोक अधिकारियों की जाँच के लिये 'पूर्व अनुमोदन' देने हेतु स्पष्ट और पारदर्शी मानदंड स्थापित करने की आवश्यकता है। इसमें आरोपों की गंभीरता या इसमें शामिल अधिकारी के पद के लिये सीमा निर्दिष्ट करना शामिल हो सकता है।

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