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जैव विविधता और पर्यावरण

मानव शरीर में माइक्रोप्लास्टिक

  • 13 Jun 2019
  • 4 min read

चर्चा में क्यों?

वर्ल्ड वाइड फंड फॉर नेचर (World Wide Fund for Nature- WWF) द्वारा हाल ही में एक अध्ययन प्रकाशित किया गया जिसके अनुसार, दुनियाभर में सभी लोग अप्रत्यक्ष रूप से हर हफ्ते लगभग पाँच ग्राम माइक्रोप्लास्टिक (प्लास्टिक के ऐसे कण जिनका आकार 5 मिमी. या उससे भी कम होता है) के कण निगल जाते हैं। प्लास्टिक के इतने कण एक क्रेडिट कार्ड के वज़न के बराबर होते हैं।

अध्ययन का निष्कर्ष:

  • प्लास्टिक अंतर्ग्रहण के स्रोत
    • पीने का पानी: अध्ययन के अनुसार, पीने योग्य पानी माइक्रोप्लास्टिक अंतर्ग्रहण का सबसे प्रमुख कारण है। प्लास्टिक की बोतल, नल और भू-जल आदि सभी में प्लास्टिक के छोटे-छोटे कण मौजूद होते हैं।
    • एक हफ्ते में एक घोंघा मछली: के सेवन से भी 0.5 ग्राम प्लास्टिक शरीर में प्रवेश करता है।
  • अन्तःश्वसन क्रिया भी प्लास्टिक के नगण्य कणों को हमारे शरीर में पहुँचाने के लिये उत्तरदायी होती है।
  • घरेलू हवा (घर में मौजूद हवा) अपने सीमित प्रवाह के कारण बाहरी हवा से ज़्यादा प्रदूषित होती है और इसमें प्लास्टिक के कण भी अधिक मात्रा में पाए जाते हैं।
  • घरेलू माइक्रोप्लास्टिक के प्रमुख स्रोत संश्लिष्ट वस्त्र और घरेलू धूल हैं।

प्लास्टिक का बोझ:

  • पिछले दो दशकों में उत्पादित प्लास्टिक की मात्रा उससे पूर्व उत्पादित प्लास्टिक की कुल मात्रा के बराबर है, इसके अतिरिक्त वर्ष 2025 तक इसमें 4 प्रतिशत की अतिरिक्त वृद्धि होने की संभावना है।
  • महासागरों में वर्ष 2025 तक हर तीन मीट्रिक टन मछली पर एक मीट्रिक टन प्लास्टिक होगा।
  • रोज़ाना प्लास्टिक अपशिष्ट का लगभग एक-तिहाई हिस्सा प्रदूषित भूमि, नदियों तथा समुद्रों आदि प्राकृतिक स्रोतों में निस्तारित किया जाता है।

प्लास्टिक प्रदूषण और वन्य जीव:

  • प्लास्टिक प्रदूषण का वन्य जीवों पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ता है। वे बड़े-बड़े प्लास्टिक के मलबों में दब जाते हैं जो उनके लिये मृत्यु या चोट का कारण बनता है।
  • जानवर भी हमारी तरह बहुत अधिक मात्रा में प्लास्टिक का सेवन करते हैं, जिसे वे पूरी तरह से पचा नहीं पाते हैं और जो आंतरिक घर्षण (Internal Abrasion), पाचन क्रिया में रूकावट तथा मृत्यु आदि का कारण बनता है।
  • प्लास्टिक से निकलने वाले विषाक्त पदार्थ न सिर्फ जानवरों की प्रजनन क्षमता को प्रभावित करते हैं बल्कि उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता को भी कम कर देते हैं।

प्लास्टिक प्रदूषण का नियंत्रण:

  • पर्यावरण में फैलाते जा रहे प्लास्टिक को नियंत्रित करने के लिये हमें प्रभावी राजनीतिक तथा आर्थिक उपायों की आवश्यकता है ताकि इस विराट समस्या को जल्द-से-जल्द टाला जा सके।
  • हमें प्लास्टिक का प्रयोग कम-से-कम करना होगा और प्लास्टिक को पूर्णतः बंद करने की नीति के बजाय हमें उसके पुनर्चक्रण को प्रोत्साहित करना होगा।
  • हमें एक ऐसे क़ानूनी रूप से बाध्यकारी समझौते को अपनाने की आवश्यकता है जो मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल (Montreal Protocol) तथा पेरिस समझौते (Paris Agreement) की तरह एकमात्र समझौता हो तथा किसी अन्य पर आश्रित नहीं हो, एक ऐसा प्रोटोकॉल जो प्लास्टिक के व्यावसायिक तथा घरेलू प्रयोग को सीमित करता हो।

स्रोत : द हिंदू

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