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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

भारत में मात्र 10% शिशुओं को ही मिलता है ‘पर्याप्त आहार’

  • 10 May 2017
  • 8 min read

संदर्भ
गौरतलब है कि देश में 6 से 23 माह की आयु के मात्र 10% बच्चों को ही ‘पर्याप्त आहार’ (adequate diet) प्राप्त होता है, जबकि 0-5 वर्ष की आयु के 35.7% बच्चे अल्प-भार (सामान्य से कम वज़न) वाले हैं|  

प्रमुख बिंदु

  • राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS - 4) 2015-16 के अनुसार, जन्म के पश्चात 0-6 माह के शिशुओं की खाद्य और जल आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु स्तनपान ही पर्याप्त है परंतु भारत में केवल 55% बच्चों को ही जन्म के छह माह तक स्तनपान कराया जाता है| हालाँकि वर्ष 2005-06 की तुलना में इस आँकड़े में 9% की बढ़ोतरी दर्ज की गई है|
  • संयुक्त राष्ट्र बाल निधि के अनुसार, स्तनपान से भोजन ग्रहण करने तक की संक्रमण अवधि को पूरक भोजन (complementary feeding) का नाम दिया गया है| पूरक भोजन की समयावधि के अंतर्गत 6-23 माह के बच्चों को शामिल किया जाता है| यह वह समय है जब कई शिशु कुपोषण से ग्रस्त हो जाते हैं| इस प्रकार यह अवधि 2 वर्ष की आयु से कम के बच्चों में होने वाले कुपोषण में अत्यधिक योगदान करती है|  प्रथम वर्ष में कराए गए अधिकाधिक स्तनपान (Optimal breastfeeding) और पूरक भोजन के कारण पाँच वर्ष से कम आयु के बच्चों में होने वाली 1/5 मौतों को रोका जा सकता है 
  • इष्टतम पूरक भोजन अत्यधिक प्रभावी उपाय है जिससे जन्म के बाद के प्रथम दो वर्षों के दौरान स्टंटिंग (stunting) को कम किया जा सकता है| स्टंटिंग से तात्पर्य बच्चे की वृद्धि में होने वाली रुकावट से है| स्टंटेड से पीड़ित बच्चे जल्दी बीमार पड़ते हैं, उनका विद्यालयों में प्रदर्शन खराब रहता है, भार सामान्य से कम होता है| इसके अलावा, लौह पदार्थों की अपर्याप्त मात्रा से एनीमिया हो सकता है जिससे बच्चों की संज्ञानात्मक (cognitive) क्षमताएँ कम हो जाती हैं|  

‘पर्याप्त आहार’ क्या है?
पर्याप्त आहार को छह माह तक स्तनपान सहित दो वर्षों अथवा अधिक समय तक दिये गए  पर्याप्त पोषण और सुरक्षित पूरक खाद्य के रूप में परिभाषित किया जाता है|

पर्याप्त आहार हेतु विश्व स्वास्थ्य संगठन के ‘दिशा-निर्देश’

  • 2 वर्षों अथवा इससे भी अधिक समय तक शिशुओं को आवश्यकतानुसार स्तनपान कराना|
  • छह माह में शिशु को भोज्य पदार्थ देना तथा उसकी बढ़ती आयु के साथ भोज्य पदार्थों की मात्रा में वृद्धि करना|
  • बच्चे को दिये जाने वाले आहार के समय में वृद्धि करना- 6-8 माह के शिशुओं को प्रतिदिन 2-3 बार आहार उपलब्ध कराना, जबकि 9-23 माह के शिशुओं को प्रतिदिन 3-4 बार आहार उपलब्ध कराना तथा इसके साथ आवश्यकतानुसार 1-2 बार अतिरिक्त खाद्य भी देना|
  • बीमारी के दौरान अत्यधिक स्तनपान कराना और हल्का भोजन देना|

भारत की स्थिति के विषय में महत्त्वपूर्ण तथ्य 

  • भारत में उप-सहारा अफ्रीका की तुलना में अधिक अल्पपोषित बच्चे हैं| विश्व में सर्वाधिक अल्पपोषित बच्चे भारत में ही हैं|
  • इस दृष्टि से सबसे खराब प्रदर्शन करने वाला राज्य राजस्थान है जहाँ 6-23 माह की आयु वाले केवल 3.4% बच्चों को ही पर्याप्त आहार प्राप्त हुआ| इसके पश्चात क्रमशः गुजरात (5.2%) व उत्तर प्रदेश (5.3%) का स्थान आता है| सर्वाधिक अच्छा प्रदर्शन करने वाला राज्य अथवा संघ राज्यक्षेत्र पुदुच्चेरी (31%) है, जिसके पश्चात क्रमशः तमिलनाडु (30.7%) और मेघालय (23.6%) का स्थान आता है|
  • 36 राज्यों / संघ राज्यक्षेत्रों में से 21 राज्यों/संघ राज्यक्षेत्रों में स्तनपान न करने वाले बच्चों का प्रतिशत स्तनपान करने वाले बच्चों से अधिक था| 
  • बड़े राज्यों में केवल तमिलनाडु ने ही अपने सहस्राब्दि विकास लक्ष्यों (Millennium Development Goal - MDGs) को प्राप्त किया है| यहाँ वर्ष 2015 में प्रति हज़ार जीवित बच्चों पर होने वाली मौतों की संख्या मात्र 19 थी|
  • समन्वित बाल विकास सेवा (Integrated Child Development Services –ICDS) योजना के अलावा वर्ष 1975 से सरकार एक मुख्य कार्यक्रम का संचालन भी कर रही है जो विश्व का सबसे बड़ा बाल देखभाल और विकास कार्यक्रम है| विदित हो कि भारत ने अभी तक अपने सहस्राब्दि विकास लक्ष्यों को प्राप्त नहीं किया है| 

नीति आयोग द्वारा दिये गए सुझाव

  • भारत को वेब आधारित पोषण सूचना प्रणाली की आवश्यकता है जिसे स्वास्थ्य सूचना प्रबंधन प्रणाली और मातृत्व और बाल खोज प्रणाली से सम्बद्ध किया जाना चाहिये|
  • अधिकतम पोषण के लिये विभिन्न कामगारों के मध्य समन्वय आवश्यक है| उन्हें प्रोत्साहित करने की संयुक्त प्रदर्शन आधारित पहलों के माध्यम से उन्हें प्रोत्साहित किया जा सकता है|
  • पोषण का अभिसरण महत्त्वपूर्ण है| 194 ज़िलों (जहाँ अल्पपोषित बच्चे अधिक थे) में से केवल 11 ज़िलों में ही पोषण संबंधी कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं| 
  • समन्वित बाल विकास योजना के अंतर्गत आने वाले राज्यों को अधिक स्वायत्ता मिलनी चाहिये जिसमें राज्यों को अपनी स्थानीय आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये हस्तक्षेप करने का अधिकार हो|
  • गेंहूँ, आटा, चावल, खाद्य तेल और दूध की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये निजी क्षेत्रों को भी ऐसे कार्यक्रमों में शामिल किया जाए| इन खाद्यानों को मध्याहन भोजन, सार्वजानिक वितरण प्रणाली और आगनबाड़ी केन्द्रों तक पहुँचाया जाना चाहिये| 

निष्कर्ष
राष्ट्रीय पारिवारिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण राज्यों में बच्चों और गर्भवती माताओं के स्वास्थ्य और पोषण स्तर से संबंधित आँकड़े ही उपलब्ध नहीं कराता हैं बल्कि इसके माध्यम से राज्य की नीतियों और कार्यक्रमों में बाल स्वास्थ्य और अल्पपोषण से संबंधित उपायों में संशोधन भी किया जा सकता है|

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