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जैव विविधता और पर्यावरण

पोल्ट्री किसानों के लिये नए दिशा-निर्देश

  • 28 Aug 2021
  • 7 min read

प्रिलिम्स के लिये: 

जल अधिनियम 1974, वायु अधिनियम 1981, राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, 20वीं पशुधन गणना, राष्ट्रीय हरित अधिकरण, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड

मेन्स के लिये:

भारत में कुक्कुट पालन के अवसर एवं चुनौतियाँ

चर्चा में क्यों?

हाल ही में जारी पोल्ट्री (Poultry) किसानों के लिये नए दिशा-निर्देशों के अनुसार, भारत में छोटे और सीमांत पोल्ट्री किसानों को अब पर्यावरण प्रदूषण को रोकने हेतु अपने बड़े समकक्षों के समान उपाय करने होंगे।

  • अब तक भारत में छोटे पोल्ट्री फार्म पर्यावरण कानूनों से मुक्त थे।
  • राष्ट्रीय हरित अधिकरण (National Green Tribunal) ने वर्ष 2020 में कहा कि केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) को पोल्ट्री फार्मों को हरित श्रेणी में रखने और हवा, पानी तथा पर्यावरण संरक्षण कानूनों से मुक्त रखने के दिशा-निर्देशों पर फिर से विचार करना चाहिये।

भारत में पोल्ट्री पक्षियों की स्थिति

  • 20वीं पशुधन गणना के अनुसार, भारत में 851.8 मिलियन पोल्ट्री पक्षी हैं।
    • इसमें से लगभग 30% छोटे और सीमांत किसानों के पास हैं।
  • मुर्गी, टर्की, बत्तख, गीज़ आदि को मुर्गी फार्मों में मांस और अंडे के लिये पाला जाता है।
  • तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, कर्नाटक, असम और केरल में सबसे अधिक पोल्ट्री संख्या है।

प्रमुख बिंदु

  • प्रमुख प्रावधान:
    • पोल्ट्री किसान की नई परिभाषा:
      • छोटे किसान: 5,000-25,000 पक्षी।
      • मध्यम किसान: 25,000 से अधिक और 1,00,000 से कम पक्षी।
      • बड़े किसान: 1,00,000 से अधिक पक्षी।
    • सहमति प्रमाण पत्र आवश्यक:
    • क्रियान्वयन एजेंसी:
      • पशुपालन विभाग राज्य और ज़िला स्तर पर दिशा-निर्देशों को लागू करने के लिये ज़िम्मेदार होगा।
    • प्रदूषण कम करना:
      • पक्षियों से होने वाले गैसीय प्रदूषण को कम करने के लिये पोल्ट्री फार्म में हवादार कमरा होना चाहिये।
      • साथ ही इस बात का भी ध्यान रखा जाए कि कुक्कुट का मल बहते पानी या किसी अन्य कीटनाशक के साथ न मिल जाए।
      • एक फार्म को आवासीय क्षेत्र से 500 मीटर तथा नदियों, झीलों, नहरों और पेयजल स्रोतों से 100 मीटर, राष्ट्रीय राजमार्गों से 100 मीटर एवं गाँव के फुटपाथों व ग्रामीण सड़कों से 10-15 मीटर की दूरी पर स्थापित किया जाना चाहिये।
  • आवश्यकता:
    • पोल्ट्री उत्पादन विभिन्न प्रकार के पर्यावरण प्रदूषकों से जुड़ा है, जिसमें ऑक्सीजन-डिमांडिंग पदार्थ, अमोनिया, ठोस पदार्थ शामिल हैं, इसके अलावा यह मक्खियों, कृंतकों, कुत्तों और अन्य कीटों को आकर्षित करता है जो स्थानीय स्तर पर अशांति पैदा करते हैं और बीमारियाँ पैदा करते हैं।
      • खाद, कूड़े और अपशिष्ट जल आदि का खराब प्रबंधन आसपास रहने वाले लोगों पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है।
    • इसके अलावा पोल्ट्री उत्पादन ग्रीनहाउस गैसों, अम्लीकरण और यूट्रोफिकेशन के लिये भी उत्तरदायी है।
    • वर्ष 2020 में ‘राष्ट्रीय हरित अधिकरण’ ने कहा था कि सतत् विकास जीवन के अधिकार का एक हिस्सा है और राज्य के अधिकारियों का दायित्व है कि वे सतत् विकास अवधारणा के अनुसार पर्यावरण की रक्षा करें।
  • पोल्ट्री संबंधी पहलें
    • पोल्ट्री वेंचर कैपिटल फंड (PVCF):
      • ‘पशुपालन और डेयरी विभाग’ द्वारा राष्ट्रीय पशुधन मिशन के ‘उद्यमिता विकास और रोज़गार सृजन’ (EDEG) के तहत इसे लागू किया जा रहा है।
      • इसके कार्यक्रम के तहत केंद्र सरकार PVCF के लिये ऋण लेने वाले लाभार्थियों को ‘राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक’ (नाबार्ड) के माध्यम से सब्सिडी प्रदान कर रही है।
    • राष्ट्रीय पशुधन मिशन:
      • ‘राष्ट्रीय पशुधन मिशन’ के अंतर्गत विभिन्न कार्यक्रम, जिसके अंतर्गत ‘ग्रामीण बैकयार्ड पोल्ट्री विकास’ (RBPD) और ‘नवोन्मेषी पोल्ट्री उत्पादकता परियोजना’ (IPPP) के कार्यान्वयन के लिये राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों को वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है।
    • पशु रोग नियंत्रण के लिये राज्यों को सहायता (ASCAD) योजना
      • ASCAD योजना ‘पशुधन स्वास्थ्य और रोग नियंत्रण’ (LH&DC) के तहत आर्थिक रूप से महत्त्वपूर्ण पोल्ट्री रोगों जैसे- रानीखेत रोग, संक्रामक बर्सल रोग, फाउल पॉक्स आदि के टीकाकरण को कवर करती है, जिसमें एवियन इन्फ्लूएंज़ा (Avian Influenza) जैसी आकस्मिक और विदेशी बीमारियों का नियंत्रण और रोकथाम करना शामिल है।

स्रोत: डाउन टू अर्थ

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