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भारतीय अर्थव्यवस्था

व्यापार परिदृश्य में सुधार के लिये आवश्यक कदम

  • 22 Jun 2020
  • 7 min read

प्रीलिम्स के लिये:

व्यापार सुगमता सूचकांक

मेन्स के लिये:

व्यापार सुगमता सूचकांक

चर्चा में क्यों?

'भारतीय उद्योग परिसंघ' (Confederation of Indian Industry- CII) ने भारत के व्यापार परिदृश्य को आसान बनाने के लिये प्रमुख क्षेत्रों में आवश्यक उपायों की पहचान की है ताकि आत्मनिर्भर भारत का निर्माण किया जा सके।

प्रमुख बिंदु:

  • भारतीय प्रधानमंत्री द्वारा COVID-19 महामारी के दौरान देश को संबोधित करते हुए 'आत्मनिर्भर भारत अभियान' की चर्चा की गई थी।
  • भारतीय उद्योग परिसंघ ने ‘आत्मनिर्भर भारत’ के निर्माण के लिये व्यापार सुगमता परिदृश्य में आवश्यक सुधारों पर बल दिया है। 

व्यापार सुगमता सूचकांक’:

  • विश्व बैंक द्वारा जारी व्यापार सुगमता सूचकांक (Ease Of Doing Business) किसी भी देश के व्यापार परिदृश्य की सुगमता को मापता है। 
  • व्यापार सुगमता सूचकांक में व्यवसाय शुरू करना, निर्माण परमिट, विद्युत, संपत्ति का पंजीकरण,  ऋण उपलब्धता, अल्पसंख्यक निवेशकों की सुरक्षा, करों का भुगतान करना, सीमा-पार व्यापार, अनुबंध लागू करना, दिवालियापन होने पर समाधान आदि मानक शामिल हैं।

भारत की रैंकिंग में सुधार:

  • विश्व बैंक द्वारा जारी व्यापार सुगमता रिपोर्ट- 2020 में भारत 190 देशों में 63वें स्थान पर है। सरकार के निरंतर प्रयासों के परिणामस्वरूप भारत पिछले 5 वर्षों (वर्ष 2014-19) में ’व्यापार सुगमता सूचकांक’ में अपनी रैंकिंग में 79 पायदानों का उल्लेखनीय सुधार करने में सफल रहा है।
  • ’व्यापार सुगमता सूचकांक’-2020 में भारत की रैंकिंग में निम्नलिखित मापदंडों में सुधार देखने को मिला है:

मानक 

स्थानों का सुधार 

संपत्ति का पंजीकरण 

12

निर्माण परमिट

25

सीमा-पार व्यापार करना

12

दिवालियापन का समाधान करना 

56

नवीन सुधारों की आवश्यकता:

स्व-प्रमाणन मार्ग की आवश्यकता:

  • सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (Micro, small and medium enterprises- MSMEs) को विशेष मदद की ज़रूरत है। इन उद्यमों को तीन वर्ष के लिये मंज़ूरी तथा निरीक्षण आवश्यकताओं से छूट दी जानी चाहिये।
  • अच्छा ट्रैक रिकॉर्ड रखने वाले MSMEs के लिये स्व-प्रमाणन मार्ग का उपयोग किया जा सकता है। 

ऑनलाइन एकल खिड़की प्रणाली:

  • उत्पादों के आयात-निर्यात प्रक्रिया संबंधी जानकारी के लिये विभिन्न मंत्रालयों की वेबसाइटों पर अनेक अधिसूचनाएँ हैं, परंतु वैश्विक आपूर्तिकर्त्ताओं को इनसे अनेक परेशानियों का सामना करना पड़ता है। 
  • इस समस्या को दूर करने के लिये ऑनलाइन एकल विंडो प्रणाली बनाने की आवश्यकता पर बल दिया जाना चाहिये। 

संपत्ति पंजीकरण तथा भूमि अधिग्रहण कानून

  • संपत्ति पंजीकरण प्रक्रिया को आसान बनाने की आवश्यकता है तथा उद्योगों को किसानों से सीधे भूमि खरीदने की अनुमति दी जानी चाहिये।

व्यावसायिक विवाद समाधान प्रक्रिया:

  • भारत में पर्याप्त व्यावसायिक न्यायालयों तथा बुनियादी ढाँचे के अभाव के कारण अनुबंधों को लागू करना एक चुनौती है। अत: न्यायालयों में प्रमुख डिजिटल सुधारों जैसे कि आभासी अदालती कार्यवाही, ई-फाइलिंग, घर से कार्य करना आदि को लागू किया जाना चाहिये। 
  • 'वैकल्पिक विवाद समाधान संस्थानों' (Alternative Dispute Resolution Institution) को स्थापित करने के साथ ही मध्यस्थता तथा सुलह केंद्रों का विस्तार किया जाना चाहिये।

लॉजिस्टिक सुधारों की आवश्यकता:

  • भारत में लॉजिस्टिक लागत अधिक होने के कारण व्यावसायिक प्रतिस्पर्द्धा  प्रभावित होती है। लॉजिस्टिक लागत में कमी लाने के लिये मध्यम अवधि की कार्रवाई पर बल देने की आवश्यकता है। इसके लिये निम्नलिखित कदम उठाए जा सकते हैं:
    • रेलवे एवं जलमार्ग की परिवहन में हिस्सेदारी बढ़ाना; 
    • प्रथम-मील तथा अंतिम-मील कनेक्टिविटी (first-mile and last-mile connectivity) में सुधार करना;
    • बंदरगाह पर वाहनों को माल के लोडिंग तथा अनलोडिंग के समय को कम करना;

परिणाम-उन्मुख कार्रवाई:

  • परिणाम-उन्मुख कार्रवाई को अपनाने की आवश्यकता है। ज़मीनी स्तर के परिणाम निवेशकों की धारणा में परिवर्तन लाने तथा आत्मविश्वास बढ़ाने में मदद करते हैं।

अन्य आवश्यक कदम:

  • श्रम विनियमों के अनुपालन में तेज़ी लाना;
  • संयुक्त उपक्रमों को समायोजन।

निष्कर्ष:

  • वर्तमान समय में भारतीय अर्थव्यवस्था में विद्यमान समस्याओं का संधारणीय समाधान निकाला जाना चाहिये। व्यापार सुगमता सूचकांक में भारत की स्थिति में सुधार से न केवल बाहरी निवेश बढ़ेगा अपितु घरेलू उद्यमों को भी आत्मनिर्भर बनने में मदद मिलेगी।

स्रोत: बिज़नेस इनसाइडर

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