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भारतीय इतिहास

NCERT ने प्राचीन भारतीय ज्ञान को पाठ्यपुस्तक में शामिल किया

  • 12 Nov 2025
  • 82 min read
प्रिलिम्स के लिये: आर्यभट्ट, ब्रह्मगुप्त, राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन, TKDL, जैव विविधता अधिनियम 2002, जीआई टैग।
मेन्स के लिये: भारतीय विरासत और संस्कृति, आधुनिक नवाचार और अनुसंधान में प्राचीन वैज्ञानिक सिद्धांतों की प्रासंगिकता

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों?

राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद (NCERT) ने अपनी कक्षा 7 की गणित की पाठ्यपुस्तक में अद्यतन किया है, जिसमें गणित, विशेषकर बीजगणित और ज्यामिति में प्राचीन भारतीय ज्ञान परंपरा को प्रमुखता से शामिल किया गया है।

गणित के विकास में प्राचीन भारत का प्रमुख योगदान क्या था?

  • प्राचीन भारतीय योगदान: संशोधित पाठ्यपुस्तक में भारतीय गणितज्ञों जैसे भास्कराचार्य (12वीं सदी) और भास्करगुप्त (7वीं सदी) के बीजगणित के क्षेत्र में उनके मौलिक कार्यों को शामिल किया गया है।
    • इसमें ब्रह्मगुप्त की 'ब्रह्मस्फुटसिद्धांत' (Brahmasphutasiddhanta) का उल्लेख किया गया है, जिसमें धनात्मक और ऋणात्मक संख्याओं के साथ संचालन के लिए पहले ज्ञात नियमों को स्पष्ट किया गया था, जो अंकगणित और बीजगणित के इतिहास में एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि मानी जाती है।
    • ब्रह्मगुप्त के ब्रह्मस्फुटसिद्धांत ने शून्य (0) को एक संख्या के रूप में प्रयोग करने का प्रस्ताव दिया।
      • ये विचार बाद में अरबी में अनूदित किये गए और अल-ख्वारिज़्मी (Al-Khwarizmi) जैसे इस्लामी विद्वानों को प्रभावित किया, जिनके कार्य यूरोप पहुँचे और आधुनिक गणित के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
    • शुल्ब सूत्र (800–500 ईसा पूर्व) में उन्नत ज्यामितीय ज्ञान दर्शाया गया है, जिसमें पाइथागोरस प्रमेय (Pythagoras Theorem) जैसी अवधारणाएँ शामिल हैं।
    • आर्यभट्ट (476 ईस्वी) ने स्थान मान प्रणाली (Place Value System) और दशमलव अंक प्रणाली (Decimal Notation) की खोज की।
      • इस प्रणाली ने अंकगणित को सरल बना दिया, जिससे गणनाएँ तेज़ और आसान हो गईं तथा यह कई व्यावहारिक आविष्कारों का मूल आधार बनी।

विभिन्न क्षेत्रों में प्राचीन भारत के प्रमुख योगदान

  • विज्ञान-परमाणु सिद्धांत: प्राचीन भारतीय वैज्ञानिक कणाद ने जॉन डाल्टन से सदियों पहले परमाणु सिद्धांत का प्रस्ताव रखा था, जिसमें अणु नामक छोटे, अविनाशी कणों के अस्तित्व का अनुमान लगाया गया था, जो विश्राम या गति की अवस्था में हो सकते हैं।
  • खगोल विज्ञान-सूर्यकेंद्रित सिद्धांत: आर्यभट्ट ने अपनी पुस्तक आर्यभटीय में सबसे पहले यह सही ढंग से कहा था कि पृथ्वी गोल है, अपनी धुरी पर घूमती है तथा सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाती है, जो सूर्यकेंद्रित सिद्धांत से सदियों पहले की बात है।
    • वराहमिहिर के पंचसिद्धांतिका में यूनानी और भारतीय खगोल विज्ञान को एकीकृत किया गया है, जबकि ब्रह्मगुप्त ने ग्रहों की स्थिति और सौर वर्ष की सटीक गणना की है।
  • धातुकर्म-वुट्ज़ स्टील: प्राचीन भारत में वूट्ज़ स्टील का विकास हुआ, जो तलवारों और अन्य हथियारों में इस्तेमाल होने वाला एक उच्च-गुणवत्ता वाला मिश्र धातु इस्पात है। तमिल लोगों द्वारा निर्मित, यह अपने पैटर्न वाले बैंड के लिये प्रसिद्ध था और प्राचीन दुनिया में अत्यधिक मूल्यवान था।
    • भारत ने जस्ता प्रगलन के लिये आसवन प्रक्रिया में अग्रणी भूमिका निभाई है, राजस्थान में ज़ावर का प्राचीन स्थल विश्व का पहला ज्ञात जस्ता प्रगलन स्थल है। यह तकनीक 12वीं शताब्दी में ही विकसित हो गई थी।
  • चिकित्सा: सुश्रुत संहिता, जिसे सुश्रुत ने 6वीं सदी ईसा पूर्व लिखा था, में जटिल शल्य चिकित्सा तकनीकों का वर्णन है, जिनमें राइनोप्लास्टी (नाक का पुनर्निर्माण) शामिल है। यह प्लास्टिक सर्जरी के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण योगदान माना जाता है।
    • भारतीय चिकित्सा के जनक माने जाने वाले चरक ने चरकसंहिता की रचना की, जिसमें पाचन, चयापचय और प्रतिरक्षा पर आधारभूत विचार प्रस्तुत किये गए, जिसने सदियों तक चिकित्सा पद्धतियों को प्रभावित किया।
  • रसायन शास्त्र: नागार्जुन जैसे विद्वानों ने रसायन के माध्यम से धातुओं को परिष्कृत  किया और इत्र, रंगद्रव्य और काँच तैयार किये, जिससे उनके गहन रासायनिक ज्ञान का पता चलता है।

स्कूल पाठ्यक्रम में प्राचीन भारत के योगदान को शामिल करने का क्या महत्त्व है?

  • पाठ्यक्रम का उपनिवेशीकरण समाप्त करना: ये परिवर्तन भारतीय शिक्षा में यूरोसेंट्रिक आख्यानों से आगे बढ़ने, भारत की बौद्धिक विरासत के चित्रण को पुनर्संतुलित करने के NEP 2020 के उद्देश्य को दर्शाते हैं।
  • जाँच-आधारित शिक्षा के लिये प्रोत्साहन: विविध गणितीय परंपराओं और संस्कृत स्रोतों से मूल समस्याओं को शामिल करके, नए पाठ्यक्रम का उद्देश्य अधिक जाँच-आधारित दृष्टिकोण और ऐतिहासिक संदर्भ के साथ जुड़ाव को बढ़ावा देना है।
  • राष्ट्रीय एकीकरण और प्रेरणा: भारतीय ज्ञान प्रणालियों पर नए सिरे से ध्यान केंद्रित करने का उद्देश्य भारत की वैज्ञानिक और गणितीय विरासत में गर्व की भावना को पोषित करना है तथा छात्रों को गहरी सांस्कृतिक समझ के साथ STEM को आगे बढ़ाने के लिये प्रेरित करना है।

प्राचीन भारतीय ज्ञान को संरक्षित करने में क्या चुनौतियाँ हैं?

  • भौतिक और संरक्षण संबंधी चुनौतियाँ: ताड़पत्र, भोजपत्र जैसी जैविक सामग्रियों पर लिखी पांडुलिपियाँ अत्यंत नाज़ुक होती हैं और समय के साथ क्षय, कीटों द्वारा नुकसान तथा फफूंद संक्रमण जैसी समस्याओं के प्रति संवेदनशील रहती हैं।
  • शोधात्मक और भाषाई चुनौती: पांडुलिपियाँ 80 से अधिक भाषाओं और कई प्राचीन लिपियों (जैसे शारदा और ग्रंथ) में लिखी गई हैं, जिन्हें आज बहुत कम विद्वान ही पढ़ या समझ सकते हैं।
    • बार-बार होने वाली लेखन त्रुटियाँ, गायब अंश एवं मौखिक परंपरा की सूक्ष्मताओं का लोप इन सबके कारण सटीक पुनर्निर्माण और अनुवाद अत्यंत कठिन हो जाता है।
  • संस्थागत और कानूनी चुनौतियाँ: लाखों पांडुलिपियाँ मंदिरों, निजी संग्रहों और पुस्तकालयों में संरक्षित हैं, जिनमें से अनेक अब भी सूचीबद्ध नहीं की गई हैं या आम जन के लिए उपलब्ध नहीं हैं।
    • एक एकीकृत कानूनी ढाँचे की अनुपस्थिति और स्वामित्व से जुड़े विवाद समन्वित संरक्षण तथा पहुँच के प्रयासों में बाधा उत्पन्न करते हैं
  • औपनिवेशिक विरासत: पश्चिमी इतिहासलेखन ने भारतीय वैज्ञानिक परंपराओं को प्राय: हाशिये पर रखा, उन्हें अनुभवजन्य के बजाय दार्शनिक बताया। यह धारणा आज भी कुछ अकादमिक कथनों में बनी हुई है।
  • व्यावसायिक दोहन: नीम, बासमती चावल और हल्दी जैसे मामलों में पारंपरिक ज्ञान के जैव-अपहरण ने यह स्पष्ट किया है कि उचित कानूनी संरक्षण के अभाव में पारंपरिक ज्ञान के दुरुपयोग की संभावना बनी रहती है।
  • विखंडित संस्थागत प्रयास: पारंपरिक ज्ञान डिजिटल लाइब्रेरी (TKDL) और राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन (NMM) जैसी पहलों के बावजूद, पारंपरिक विद्वानों तथा आधुनिक वैज्ञानिक संस्थानों के बीच समन्वय अभी भी सीमित है।

भारत द्वारा प्राचीन भारतीय ज्ञान के संरक्षण हेतु उठाए गए प्रमुख कदम क्या हैं?

  • संस्थागत एवं मिशन आधारित पहलें:
    • राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन (NMM) (2003): संस्कृति मंत्रालय के अंतर्गत स्थापित NMM मिशन विभिन्न भारतीय भाषाओं और लिपियों में लिखी पांडुलिपियों के दस्तावेज़ीकरण, संरक्षण तथा डिजिटलीकरण हेतु कार्य करता है।
    • इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र (IGNCA): यह भारत की पारंपरिक कला और ज्ञान प्रणालियों के अनुसंधान, संरक्षण तथा प्रसार का प्रमुख केंद्र है।
  • शिक्षा और डिजिटल संरक्षण:
    • राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020: यह नीति गणित, खगोलशास्त्र, चिकित्सा एवं दर्शन जैसी भारत की प्राचीन विद्या परंपराओं को स्कूल और उच्च शिक्षा के पाठ्यक्रमों में समाहित करने पर बल देती है।
    • डिजिटल संरक्षण: विश्वविद्यालयों और सांस्कृतिक संस्थानों द्वारा संस्कृत ग्रंथों तथा पांडुलिपियों का डिजिटलीकरण एवं अनुवाद किया जा रहा है, जिससे वे वैश्विक स्तर पर सुलभ हो सकें।
  • पारंपरिक ज्ञान प्रणालियों का संवर्द्धन:
    • आयुष मंत्रालय: यह आयुर्वेद, योग, यूनानी, सिद्ध और होम्योपैथी प्रणालियों को अनुसंधान एवं वैज्ञानिक सत्यापन के माध्यम से वैश्विक स्तर पर प्रोत्साहित करता है।
    • UNESCO की ‘लोकल एंड इंडिजिनस नॉलेज सिस्टम्स’ (LINKS) पहल: यह एक अंतःविषयक कार्यक्रम है जो पारंपरिक एवं स्थानीय ज्ञान को पर्यावरणीय नीतियों और कार्यों में सार्थक रूप से शामिल करने को बढ़ावा देता है।
  • संरक्षण हेतु कानूनी एवं नीतिगत उपाय:
    • पारंपरिक ज्ञान डिजिटल लाइब्रेरी (TKDL)
    • ट्रेडमार्क अधिनियम, 1999: ट्रेडमार्क अधिनियम ब्रांड विभेदन के माध्यम से स्वदेशी कृषि और जैविक उत्पादों की पहचान की रक्षा करता है।
    • भौगोलिक संकेतक (GI): भौगोलिक संकेतक किसी क्षेत्र विशेष के उत्पाद को विशिष्ट पहचान और सांस्कृतिक प्रामाणिकता प्रदान करता है।
    • बौद्धिक संपदा, आनुवंशिक संसाधन और पारंपरिक ज्ञान पर WIPO संधि (2024): यह संधि पेटेंट में आनुवंशिक संसाधनों की उत्पत्ति और संबंधित पारंपरिक ज्ञान के प्रकटीकरण को अनिवार्य बनाकर पारदर्शिता को सुदृढ़ करती है।

निष्कर्ष

प्राचीन भारत ने गणित, खगोलशास्त्र, चिकित्सा, धातुकर्म और रसायन विज्ञान के क्षेत्रों में अमिट योगदान दिये। इन नवाचारों ने एशिया, मध्य पूर्व और यूरोप की सभ्यताओं के वैज्ञानिक विकास को गहराई से प्रभावित किया। इन योगदानों की पुनः मान्यता भारत की वैज्ञानिक विरासत को पुनः प्राप्त करने और उसका गौरवपूर्वक उत्सव मनाने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न

प्रश्न. समकालीन वैज्ञानिक नवाचार और बौद्धिक संपदा संरक्षण के संदर्भ में पारंपरिक भारतीय ज्ञान प्रणालियों की प्रासंगिकता का आकलन कीजिये।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

प्रश्न. प्राचीन भारतीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी का अध्ययन UPSC अभ्यर्थियों के लिये क्यों महत्त्वपूर्ण है?
यह भारत की वैज्ञानिक विरासत को उजागर करता है, जिसमें गणित, खगोलशास्त्र, चिकित्सा और धातुकर्म में स्वदेशी नवाचार शामिल हैं जो UPSC के सांस्कृतिक एवं विज्ञान-आधारित विषयों के लिये अत्यंत प्रासंगिक हैं।

प्रश्न. प्राचीन भारतीय गणितीय ज्ञान ने वैश्विक वैज्ञानिक विकास को कैसे प्रभावित किया?
भारतीय विद्वानों जैसे ब्रह्मगुप्त और आर्यभट्ट द्वारा प्रस्तुत बीजगणित, शून्य और दशमलव पद्धति की अवधारणाएँ अरबी अनुवादों के माध्यम से विश्वभर में फैलीं तथा आधुनिक गणित का आधार बनीं।

प्रश्न. प्राचीन भारतीय ज्ञान के संरक्षण में मुख्य चुनौतियाँ क्या हैं?
पांडुलिपियों का नष्ट होना, सीमित अनुवाद, औपनिवेशिक उपेक्षा और कमज़ोर संस्थागत समन्वय पारंपरिक ज्ञान के दस्तावेज़ीकरण तथा वैश्विक पहुँच को खतरे में डालते हैं।

प्रश्न. पारंपरिक ज्ञान की रक्षा के लिये सरकार ने क्या कदम उठाए हैं?
NMM, TKDL, आयुष मंत्रालय (AYUSH) एवं नई शिक्षा नीति (NEP 2020) जैसी पहलों के माध्यम से भारत संरक्षण, वैज्ञानिक प्रमाणीकरण और प्राचीन ज्ञान के शिक्षा व नीति में एकीकरण को बढ़ावा दे रहा है।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)

मेन्स 

प्रश्न. भारत सरकार औषधि के पारंपरिक ज्ञान को औषधि कंपनियों द्वारा पेटेंट कराने से कैसे बचा रही है? (2019)

प्रश्न. भारत की पारंपरिक ज्ञान डिजिटल लाइब्रेरी (टी.के.डी.एल.), जिसमें 20 लाख से ज़्यादा औषधीय फर्मूलेशनों पर संरूपित जानकारी है, त्रुटिपूर्ण पेटेंटों के प्रति देश की लड़ाई में एक शक्तिशाली हथियार साबित हो रही है। मुक्त-स्रोत लाइसेंसिंग के अधीन इस आँकड़ा-संचय (डेटाबेस) को सार्वजनिक रूप से उपलब्ध कराने के पक्ष और विपक्ष पर चर्चा कीजिये। (2015)

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