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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

जल संकट का प्रकृति-आधारित समाधान

  • 21 Mar 2018
  • 10 min read

संदर्भ
पिछले कुछ दशकों से अन्य कारकों के अलावा जनसंख्या वृद्धि, आर्थिक विकास और बदलते उपभोग पैटर्न के चलते जल की वैश्विक मांग प्रतिवर्ष लगभग 1% की दर से बढ़ रही है और यह वृद्धि निकट भविष्य में भी जारी रहेगी।

  • कृषि क्षेत्र में पानी की मांग औद्योगिक और घरेलू मांग की तुलना में तेजी से बढ़ेगी। हालाँकि कृषि क्षेत्र पानी का सबसे बड़ा उपयोगकर्ता बना रहेगा।
  • विश्व जल विकास रिपोर्ट- 2018 में यह कहा गया है कि प्रकृति-आधारित समाधान जो कि 2030 के सतत् विकास एजेंडे के अनुरूप है, हमारी जल संबंधी समस्याओं का समाधान करने में सक्षम है।

प्रकृति-आधारित समाधान (Nature‐based Solutions-NBS)

  • ‘संयुक्त राष्ट्र विश्व जल विकास रिपोर्ट- जल के लिये प्रकृति-आधारित समाधान’ को 8वें वर्ल्ड वाटर फोरम के दौरान 19 मार्च, 2018 को लॉन्च किया गया था।
  • यह रिपोर्ट विश्व जल दिवस (22 मार्च) के संयोजन से यह दर्शाती है कि जल संबंधी चुनौतियों का सामना करने के लिये प्रकृति-आधारित समाधान (Nature‐based Solutions-NBS) उपयोगी होने के साथ ही सतत् विकास लक्ष्यों की पूर्ति में सहायता कर सकते हैं। 
  • NBS प्राकृतिक प्रक्रियाओं के उपयोग या अनुकरण से बहुआयामी जल प्रबंधन का कार्य करती है जैसे-जल उपलब्धता का संवर्द्धन (मृदा में नमी को रोककर रखना, भू-जल पुनर्भरण), पानी की गुणवत्ता में सुधार (प्राकृतिक और निर्मित आर्द्रभूमियों अथवा नदी तटों पर बफर स्ट्रिप्स के निर्माण द्वारा), जल संबंधी आपदाओं और जलवायु परिवर्तन से जुड़े जोखिमों को कम करना आदि।

जल सुरक्षा के समक्ष चुनौतियाँ

  • वैश्विक आबादी के 7.6 बिलियन (2017) से 9.4 और 10.2 बिलियन (2050) के बीच बढ़ने की उम्मीद है जिनमें से दो-तिहाई आबादी शहरों में निवास करेगी।
  • संयुक्त राष्ट्र का अनुमान है कि इस अनुमानित वृद्धि का आधा हिस्सा अफ्रीका (1.3 अरब) और एशिया (0.75 अरब) में होगा। इसलिये जिन लोगों को पानी की अधिक जरूरत होगी वे विकासशील या उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं से होंगे।
  • जलवायु परिवर्तन भी वैश्विक जल चक्र को प्रभावित कर रहा है। अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में अधिक वर्षा हो रही है तो सूखा प्रभावित क्षेत्रों में सूखे की बारंबारता बढ़ रही है।
  • एक अनुमान के मुताबिक़ 3.6 बिलियन लोग अब उन क्षेत्रों में रहते हैं जो साल में कम-से-कम एक महीने तक पानी की कमी का सामना कर सकते हैं और इस आबादी में 2050 तक 4.8 से 5.7 बिलियन तक की वृद्धि हो सकती है।
  • अंतर्राष्ट्रीय जल प्रबंधन संस्थान का अनुमान है कि जल की कुल मांग 680 अरब घन मीटर से 2025 तक 833 अरब घन मीटर (BCM) और 2050 तक 900 BCM तक बढ़ सकती है।
  • जल संकट का सामना कर रहे देशों को 2050 तक सतही जल संसाधनों की कम होती उपलब्धता की समस्या से भो दो-चार होना पड़ सकता है।
  • जल संकट के साथ जल की गुणवत्ता भी एक मुद्दा है। संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम UNEP) के अनुसार 1990 के दशक से अफ्रीका, एशिया और लैटिन अमेरिका में अधिकांश नदियों में जल प्रदूषण बदतर स्थिति तक बिगड़ गया है।
  • अधिकांश जल निकायों के शहरी केंद्रों के समीप स्थित होने से भारत की जल सुरक्षा के समक्ष बड़ी समस्याएँ मौजूद हैं क्योंकि ये जल निकाय काफी मात्रा में प्रदूषित हैं।
  • लगभग 80% औद्योगिक और नगरपालिका अपशिष्ट जल बिना किसी पूर्व उपचार के इन जल निकायों में छोड़ दिया जाता है जो मानव स्वास्थ्य और पारिस्थितिक तंत्र पर हानिकारक प्रभाव डालता है।
  • केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ भारत की लगभग 50% अंतर-राज्यीय नदियाँ प्रदूषित हैं।
  • यह भी पाया गया है कि गैर-उपचारित सीवेज और औद्योगिक अपशिष्ट 40 में से 16 अंतर-राज्यीय नदियों में प्रदूषण का प्रमुख कारण है। 
  • अधिकांश नदी बेसिनों के एक से अधिक राज्यों में फैलाव को देखते हुए जल गुणवत्ता की चुनौतियों को हल करने के लिये क्षेत्रीय सहयोग आवश्यक है। किंतु अंतर-राज्यीय नदी विवाद भी अधिक तीव्र और व्यापक होते जा रहे हैं

केस स्टडी : शहरी विकास में जल कुप्रबंधन 

  • चेन्नई एक प्रमुख उदाहरण है कि कैसे शहरी विकास-जनित चुनौतियों में प्रकृति की अनदेखी की जा रही है।
  • अनियोजित शहरी विकास और बिना हाइड्रोलॉजिकल नियोजन के विकासात्मक गतिविधियों से कई समस्याएँ पैदा हो रही हैं।
  • जब चेन्नई में भारी बारिश हुई थी तो झीलों, तालाबों, अंतर्संबंधित जलनिकास प्रणालियों और नदियों ने भू-जल की रिचार्जिंग में मदद की तथा अतिरिक्त जल को महासागरों की ओर मोड़ने में भी सहायता की।
  • किंतु अनियोजित विकास ने इन क्षेत्रों में अतिक्रमण को बढ़ावा दिया है।
  • कूउम, अदयार और बकिंघम जैसी नहरों और प्रमुख नदियों का कार्य अतिरिक्त वर्षा जल को बंगाल की खाड़ी में ले जाना था।
  • किंतु अब ये शहरी अपशिष्ट की निकासी का माध्यम बन कर रह गई हैं। पल्लीकरनई मार्श जो कि अतिरिक्त वर्षा जल के लिये एक स्पंज के रूप में काम करता था अब अतिक्रमित है।
  • हमें यह समझना होगा कि जल सुरक्षा संबंधित चुनौतियों के समाधान में अब परंपरागत दृष्टिकोण व्यवहार्य नहीं है।
  • प्रकृति-आधारित समाधान सतत् विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये महत्त्वपूर्ण हैं। उन्हें अपनाने से न केवल जल प्रबंधन में सुधार होगा बल्कि इससे जल सुरक्षा में भी आसानी होगी।

NBS किस प्रकार जल प्रबंधन में सहायक है?

  • ‘आपूर्ति-पक्ष प्रबंधन’ के माध्यम से प्रकृति-आधारित समाधान (Nature-based solutions) जल संकट की समस्या का समग्र रूप से समाधान प्रस्तुत कर सकते है।
  • प्रकृति-आधारित समाधान एक बहुआयामी रणनीति है जिससे सतत् खाद्य उत्पादन, बेहतर मानव अधिवास, पेयजल आपूर्ति और स्वच्छता, जल संबंधी आपदा जोखिम न्यूनीकरण और जल संसाधनों पर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का समाधान सुनिश्चित किया जा सकता है।
  • सतत् कृषि उत्पादन में वृद्धि के लिये प्रकृति-आधारित समाधानों के पर्यावरणीय सह-लाभ भी पर्याप्त हैं क्योंकि इससे भूमि रूपांतरण के दबाव में कमी आती है तथा प्रदूषण, अपरदन और जल आवश्यकताओं को कम किया जा सकता है।
  • अपशिष्ट जल उपचार के लिये तैयार की गई आर्द्रभूमियाँ भी एक लागत प्रभावी, प्रकृति-आधारित समाधान सिद्ध हो सकती हैं जो कई गैर-पीने योग्य अनुप्रयोगों (सिंचाई) के लिये पर्याप्त गुणवत्ता वाला जल प्रदान करा सकती है तथा ऊर्जा उत्पादन का अतिरिक्त लाभ भी मिल सकता हैं।
  • प्राकृतिक और निर्मित आर्द्रभूमि कई उभरते प्रदूषको का जैव-निम्नीकरण अथवा उन्हें अवरुद्ध करने में भी सहायक है।
  • हाल के कुछ प्रयोगों से यह ज्ञात हुआ है कि कुछ उभरते प्रदूषकों के लिये प्रकृति-आधारित समाधान बेहतर परिणाम दे सकते है और कुछ मामलों में ये एकमात्र व्यवहार्य विकल्प हो सकते है।
  • वाटरशेड मैनेजमेंट एक और प्रकृति-आधारित समाधान है जो स्थानीय आर्थिक विकास, रोज़गार सृजन, जैव विविधता संरक्षण और जलवायु परिवर्तन के प्रति लचीलेपन को भी बढ़ावा दे सकता है।
  • प्रकृति-आधारित समाधान जलीय भिन्नता और परिवर्तनशीलता के संदर्भ में स्थानीय और आदिवासी लोगों के परंपरागत और स्थानीय ज्ञान के अनुरुप है।
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