जैव विविधता और पर्यावरण
आक्रामक विदेशी प्रजातियाँ
- 26 Aug 2025
- 96 min read
प्रिलिम्स के लिये: आक्रामक विदेशी प्रजातियाँ, जैवविविधता, जलकुंभी, कुनमिंग-मॉन्ट्रियल वैश्विक जैवविविधता ढाँचा, जैवविविधता पर अभिसमय, प्रवासी प्रजातियों के संरक्षण पर अभिसमय, वन्य जीव-जंतुओं और वनस्पतियों की लुप्तप्राय प्रजातियों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर अभिसमय।
मेन्स के लिये: बढ़ती आक्रामक प्रजातियों के लिये उत्तरदायी कारक, आक्रामक प्रजातियों का प्रभाव और उन्हें कम करने की रणनीतियाँ।
चर्चा में क्यों?
हालिया एक अध्ययन के अनुसार वर्ष 1960 से 2022 के बीच आक्रामक विदेशी प्रजातियों (Invasive Alien Species) की वैश्विक आर्थिक लागत 2.2 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक है, जबकि प्रबंधन लागतों की रिपोर्ट वास्तविक आँकड़ों से लगभग 16 गुना कम की गई है।
- भारत के संदर्भ में, अध्ययन यह दर्शाता है कि रिपोर्ट किये गए आँकड़ों की तुलना में वास्तविक लागत 1.16 बिलियन गुना अधिक है, जो आक्रामक प्रजातियों के प्रबंधन हेतु वित्तीय और प्रशासनिक उपायों के बड़े पैमाने पर कम आकलन (गंभीर कमी) को इंगित करता है।
आक्रामक विदेशी प्रजातियाँ क्या हैं?
- परिचय: आक्रामक विदेशी प्रजातियाँ (Invasive Alien Species) वे गैर-स्थानीय जीव (पौधे, जानवर, कवक, या यहाँ तक कि सूक्ष्मजीव) हैं जिन्हें उनके प्राकृतिक क्षेत्र से बाहर लाया जाता है, जो स्वयं-निर्भर आबादी का निर्माण कर लेते हैं।
- ये देशज (स्थानीय) प्रजातियों से प्रतिस्पर्द्धा करके उन्हें पीछे छोड़ देती हैं, पारिस्थितिक तंत्र को बाधित करती हैं, गंभीर पारिस्थितिक, आर्थिक तथा सामाजिक प्रभाव उत्पन्न करती हैं।
- जैवविविधता पर कन्वेंशन (Convention on Biological Diversity – CBD) के अनुसार, आक्रामक विदेशी प्रजातियाँ वे प्रजातियाँ हैं जो “आती हैं, जीवित रहती हैं और पनपती हैं”, तथा अक्सर संसाधनों के लिये देशज प्रजातियों को पछाड़ देती हैं।
- भारत में वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 आईएएस को गैर-देशी प्रजातियों के रूप में परिभाषित करता है जो वन्यजीवों या आवासों के लिये खतरा उत्पन्न करती हैं।
- भारत में प्रमुख आक्रामक विदेशी प्रजातियाँ: पशु प्रजातियों में अफ्रीकी कैटफिश, नील तिलापिया, रेड-बैली पिरान्हा, एलीगेटर गार, रेड-ईयर स्लाइडर (एक उत्तरी अमेरिकी कछुआ) और पौधों में लैंटाना, वाटर हायसिंथ तथा प्रोसोपिस जुलिफ्लोरा भारत में सबसे अधिक फैलने वाली आक्रामक प्रजातियों में शामिल हैं।
- आक्रामक विदेशी प्रजातियों के उदय के लिये ज़िम्मेदार कारक:
- वैश्वीकरण-संबंधित प्रसार: बढ़ते व्यापार और यात्रा से प्रजातियों का अनजाने में प्रसार सुगम हो जाता है, जो कार्गो, बैलास्ट, जल और परिवहन वाहनों के माध्यम से होता है।
- उदाहरण के लिये, 1800 के दशक में ऑस्ट्रेलिया में लाए गए काले चूहे को IUCN द्वारा "विश्व की सबसे खराब" आक्रामक प्रजातियों में सूचीबद्ध किया गया है।
- इसके अलावा, यूरेशिया के मूल निवासी ज़ेबरा मसल को मालवाहक जहाजों (कार्गो शिप्स) के पानी के माध्यम से उत्तरी अमेरिका के ग्रेट लेक्स में लाया गया था।
- जलवायु-संचालित प्रसार: तापमान और वर्षा में परिवर्तन आक्रामक प्रजातियों के लिये अनुकूल परिस्थितियां उत्पन्न करते हैं तथा देशी प्रजातियों के जीवन चक्र को बाधित करते हैं, जिससे वे प्रतिस्पर्द्धा और शिकार के प्रति संवेदनशील हो जाते हैं।
- उदाहरण: ऊष्ण परिस्थितियाँ आक्रामक कीटों, दालचीनी कवक और जलीय प्रजातियों (मछली, मोलस्क) के प्रसार को तेज़ करती हैं, जिससे देशी प्रजातियों पर प्रतिस्पर्द्धा और शिकार तीव्र हो जाता है।
- आवासीय व्यवधान और अवनति: मानव गतिविधियाँ जो प्राकृतिक पारिस्थितिक तंत्रों को बाधित या क्षतिग्रस्त करती हैं, जैसे वनों की कटाई, शहरीकरण और कृषि, आक्रामक प्रजातियों को उपनिवेश बनाने के अवसर प्रदान कर सकती हैं।
- उदाहरण: पार्थेनियम हिस्टेरोफोरस, जिसे आमतौर पर गाजर घास कहा जाता है, सड़कों के किनारे और कृषि क्षेत्रों जैसे बाधित आवासों में पनपती है। इसकी उपस्थिति अक्सर पर्यावरणीय अवनति का संकेत मानी जाती है।
- विदेशी प्रजातियों का मानव द्वारा परिचय: विश्व भर में, सजावटी बागवानी, भू-दृश्यांकन, जलीय कृषि या कीट नियंत्रण जैसे उद्देश्यों के लिये मनुष्यों द्वारा कई आक्रामक विदेशी प्रजातियों को जानबूझकर पेश किया गया है।
- हालाँकि, ये प्रवेश अक्सर उलटे पड़ जाते हैं, क्योंकि प्रजातियाँ जंगलों में भाग जाती हैं और देशी जैव विविधता को मात दे देती हैं।
- उदाहरण के लिये, जलकुंभी या "बंगाल का आतंक" को इसके सुंदर पत्तों और फूलों के कारण भारत में लाया गया था।
- वैश्वीकरण-संबंधित प्रसार: बढ़ते व्यापार और यात्रा से प्रजातियों का अनजाने में प्रसार सुगम हो जाता है, जो कार्गो, बैलास्ट, जल और परिवहन वाहनों के माध्यम से होता है।
आक्रामक विदेशी प्रजातियों के प्रमुख प्रभाव क्या हैं?
- पारिस्थितिक प्रभाव: वैश्विक स्तर पर, आक्रामक विदेशी प्रजातियाँ जैवविविधता हानि के 5 प्रमुख प्रत्यक्ष चालकों में से एक हैं।
- वे प्रतिस्पर्द्धा, शिकार या बीमारी के माध्यम से देशी प्रजातियों की गिरावट या विलुप्ति का कारण बनते हैं, पारिस्थितिकी तंत्र के कार्यों को बाधित करते हैं तथा पारिस्थितिक असंतुलन और आवास की हानि का कारण बनते हैं।
- उदाहरण: द्वितीय विश्व युद्ध के बाद गलती से गुआम में प्रवेश कर गए ब्राउन ट्री सर्प ने महत्त्वपूर्ण पारिस्थितिक क्षति पहुँचाई है, जिसके कारण कई देशी वन पक्षी प्रजातियाँ विलुप्त (स्थानीय विलुप्त) हो गई हैं।
- आर्थिक प्रभाव: ये दुनिया भर के देशों और क्षेत्रों पर भारी वित्तीय बोझ डालते हैं तथा कृषि, वानिकी और मत्स्य पालन को प्रभावित करके विकासशील देशों में आजीविका को प्रभावित करते हैं।
- आक्रामक विदेशी प्रजातियों में, पौधे आर्थिक रूप से सबसे अधिक नुकसानदायक हैं, जिनकी प्रबंधन लागत 926.38 बिलियन अमेरिकी डॉलर है, इसके बाद आर्थ्रोपोडा और स्तनधारी आते हैं।
- विक्टोरिया झील में जलकुंभी जैसी जलीय प्रजातियों के कारण तिलापिया की संख्या में कमी आई है, जिससे स्थानीय मत्स्य पालन पर असर पड़ा है।
- उच्च कृषि मूल्यों और प्रबंधन व्यय के कारण यूरोप को सबसे अधिक निरपेक्ष लागत (वैश्विक व्यय का 71.45%) वहन करना पड़ता है।
- आक्रामक विदेशी प्रजातियों में, पौधे आर्थिक रूप से सबसे अधिक नुकसानदायक हैं, जिनकी प्रबंधन लागत 926.38 बिलियन अमेरिकी डॉलर है, इसके बाद आर्थ्रोपोडा और स्तनधारी आते हैं।
- स्वास्थ्य पर प्रभाव: एडीज एल्बोपिक्टस और एडीज एजिप्टी जैसी आक्रामक विदेशी प्रजातियाँ मलेरिया, जीका और वेस्ट नाइल बुखार फैलाती हैं, जिससे मानव स्वास्थ्य प्रभावित होता है।
- कई आक्रामक विदेशी प्रजातियाँ एलर्जी उत्पन्न करने वाली या विषाक्त होती हैं, उदाहरण के लिये, पार्थेनियम श्वसन संबंधी विकार और त्वचा की एलर्जी का कारण बनता है।
- इसके अलावा, आक्रामक खरपतवारों द्वारा फसल संदूषण भी खाद्य शृंखलाओं में विषाक्त एल्केलॉइड्स को शामिल करता है, जो दीर्घकालिक स्वास्थ्य को प्रभावित करता है।
- खतरा गुणक: लैंटाना जैसी आक्रामक विदेशी प्रजातियाँ (IAS) आग के पैटर्न को बदल देती हैं, देशज वनस्पतियों को विस्थापित करती हैं, कार्बन अवशोषण को कम करती हैं तथा जलवायु विनियमन को कमज़ोर करती हैं।
- जलवायु परिवर्तन इनके प्रसार को तेज करता है, जिससे ये एक खतरा गुणक बन जाती हैं, जो पारिस्थितिकी तंत्र की अनुकूलन क्षमता को कमज़ोर करती हैं।
आक्रामक विदेशी प्रजातियों के प्रबंधन से संबंधित पहल क्या हैं?
- वैश्विक:
- जैवविविधता पर अभिसमय (CBD): भारत सहित सदस्य देशों से आग्रह करता है कि वे विदेशी प्रजातियों को रोकें, नियंत्रित करें या समाप्त करें (अनुच्छेद 8(h)) और इसके लिये दिशा-निर्देश, प्राथमिकताएँ और समन्वय प्रदान करता है।
- सीबीडी (जैविक विविधता पर अभिसमय): भारत सहित सभी पक्षों से विदेशी प्रजातियों को रोकने, नियंत्रित करने या उन्मूलन करने का आग्रह करता है (अनुच्छेद 8(h)) और दिशा-निर्देश, प्राथमिकताएँ और समन्वय प्रदान करता है।
- कुनमिंग-मॉन्ट्रियल वैश्विक जैव विविधता रूपरेखा: लक्ष्य 6 का उद्देश्य वर्ष 2030 तक आक्रामक विदेशी प्रजातियों के जैवविविधता और पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं पर पड़ने वाले प्रभाव को 50% तक कम करना है।
- IUCN आक्रामक प्रजाति विशेषज्ञ समूह (ISSG): वैश्विक आक्रामक प्रजाति डेटाबेस (GISD) और परिचित व आक्रामक प्रजातियों के वैश्विक रजिस्टर का प्रबंधन करता है, जो वैश्विक आक्रामक प्रजातियों के प्रबंधन के लिये जानकारी प्रदान करता है।
- साइट्स (CITES) 1975: वन्य जीव-जंतुओं और वनस्पतियों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को नियंत्रित करता है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि यह उनके अस्तित्व के लिये खतरा न बने।
- भारत-विशिष्ट पहल:
- राष्ट्रीय जैवविविधता कार्य योजना (NBAP): आक्रामक प्रजातियों की रोकथाम और प्रबंधन पर केंद्रित है।
- आक्रामक विदेशी प्रजातियों पर राष्ट्रीय कार्य योजना (NAPINVAS): पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा शुरू की गई, यह आक्रामक प्रजातियों की रोकथाम, शीघ्र पहचान, नियंत्रण और प्रबंधन पर ज़ोर देती है।
- राष्ट्रीय आक्रामक प्रजाति सूचना केंद्र (NISIC): भारत में आक्रामक प्रजातियों के बारे में जानकारी, संसाधन और जागरूकता प्रदान करता है।
- पादप संगरोध आदेश, 2003: कृषि एवं सहकारिता विभाग (DAC) द्वारा प्रशासित, यह आक्रामक प्रजातियों के प्रवेश को रोकने के लिये पौधों और पादप सामग्री के आयात को नियंत्रित करता है।
आक्रामक विदेशी प्रजातियों से निपटने में भारत के समक्ष मुख्य चुनौतियाँ क्या हैं और इसके लिये क्या उपाय आवश्यक हैं?
चुनौतियाँ |
आगे की राह/प्रबंधन रणनीतियाँ |
रिपोर्टिंग की कमी और डाटा का अभाव: सीमित केंद्रीकृत डाटाबेस और बिखरी हुई रिपोर्टिंग से पारिस्थितिक और आर्थिक लागत का आकलन कम होता है। |
डाटा और निगरानी प्रणाली को मज़बूत करना: आक्रामक प्रजातियों के लिये केंद्रीकृत डाटाबेस स्थापित करना, डाटा संग्रह, निगरानी, वैज्ञानिक प्रलेखन और व्यय ट्रैकिंग को मज़बूत करना। |
संसाधनों की कमी: सीमित वित्तीय और मानव संसाधन प्रभावी निगरानी, नियंत्रण और उन्मूलन में बाधा डालते हैं। |
समर्पित संसाधन आवंटन: समर्पित धन आवंटित करना और मानव संसाधन को बढ़ाना, ताकि निगरानी, नियंत्रण और उन्मूलन कार्यक्रमों को पर्याप्त समर्थन मिले। |
उच्च उन्मूलन लागत: आक्रामक प्रजातियों (जैसे लैंटाना, प्रोसोपिस) को बड़े पैमाने पर हटाने के लिये भारी वित्तीय और मानव संसाधनों की आवश्यकता होती है। |
समुदाय-केंद्रित समाधान: लागत-प्रभावी जैविक नियंत्रण विधियाँ अपनाना; उन्मूलन अभियानों में सामुदायिक भागीदारी को बढ़ावा देना। उदाहरण के लिये, केरल के वज़ाचल की कादर जनजाति ने आक्रामक विदेशी प्रजातियों द्वारा क्षतिग्रस्त प्राकृतिक वनों के सक्रिय पुनर्स्थापन का बीड़ा उठाया है। |
नीतिगत कमियाँ: जैव विविधता अधिनियम, 2002, वन्यजीव संरक्षण अधिनियम और पादप संगरोध नियमों के तहत खंडित कवरेज। मौजूदा जैव-सुरक्षा मानकों का कमजोर प्रवर्तन। |
संस्थागत और नीतिगत सुदृढ़ीकरण: जैवविविधता अधिनियम, 2002 के कड़े प्रवर्तन, सुदृढ़ संस्थागत समन्वय और क्षेत्रीय नीतियों के साथ एकीकरण के माध्यम से इसके प्रभावी क्रियान्वयन को सुनिश्चित करना। पर्यावरण एवं वन मंत्रालय, राज्य वन विभागों, कृषि विश्वविद्यालयों और अनुसंधान निकायों के बीच समन्वय बढ़ाना। आक्रामक प्रजातियों के प्रबंधन को जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना (NAPCC) और संबंधित जैव विविधता नीतियों में शामिल करना। |
निष्कर्ष:
आक्रामक बाह्य प्रजातियों (Invasive Alien Species) को नियंत्रित करने के लिये तीन ‘I’ आवश्यक हैं – प्रवर्तन के लिये मज़बूत संस्थान (Institutions), जैव विविधता–जलवायु रणनीतियों के साथ एकीकरण (Integration) और सतत् कार्यवाही के लिये समुदायों की सहभागिता (Involvement)। ये सभी स्तंभ मिलकर पारिस्थितिकीय अनुकूलन और आर्थिक विकास के बीच संतुलन स्थापित कर सकते हैं।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. आक्रामक प्रजातियों के प्रबंधन में क्या चुनौतियाँ हैं और उनके प्रतिकूल प्रभावों को कम करने के लिये रणनीतियाँ और पहल सुझाएँ? |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)
प्रिलिम्स
प्रश्न. प्रकृति एवं प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण के लिये अन्तर्राष्ट्रीय संघ (इंटरनैशनल यूनियन फॉर कन्जर्वेशन ऑफ नेचर ऐंड नेचुरल रिसोर्सेज़) (IUCN) तथा वन्य प्राणिजात एवं वनस्पतिजात की संकटापन्न स्पीशीज़ के अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार पर कन्वेंशन (कन्वेशन ऑन इंटरनैशनल ट्रेड इन एन्डेंजर्ड स्पीशीज़ ऑफ वाइल्ड फॉना ऐंड फ्लोरा) (CITES) के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (2015)
- IUCN संयुक्त राष्ट्र (UN) का एक अंग है तथा CITES सरकारों के बीच अन्तर्राष्ट्रीय करार है।
- IUCN, प्राकृतिक पर्यावरण के बेहतर प्रबन्धन के लिये, विश्व भर में हज़ारों क्षेत्र-परियोजनाएँ चलाता है।
- CITES उन राज्यों पर वैध रूप से आबद्धकर है जो इसमें शामिल हुए हैं, लेकिन यह कन्वेंशन राष्ट्रीय विधियों का स्थान नहीं लेता है।
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये।
(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3
उत्तर: (b)
मेन्स:
प्रश्न. भारत में जैव विविधता किस प्रकार भिन्न है? जैव विविधता अधिनियम, 2002 वनस्पतियों और जीवों के संरक्षण में किस प्रकार सहायक है? (2018)