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भारतीय राजनीति

औद्योगिक आपदा और ‘पूर्ण दायित्त्व का सिद्धांत’

  • 09 May 2020
  • 6 min read

प्रीलिम्स के लिये:

पूर्ण दायित्त्व का सिद्धांत, सख्त दायित्त्व सिद्धांत

मेन्स के लिये:

औद्योगिक आपदा प्रबंधन 

चर्चा में क्यों?

विशाखापत्तनम गैस त्रासदी’ मामले में 'राष्ट्रीय हरित अधिकरण' (National Green Tribunal) ने 19 वीं शताब्दी के ब्रिटिशकालीन 'सख्त दायित्त्व ' (Strict Liability) के सिद्धांत के आधार पर 'एलजी पॉलिमर' कंपनी को प्रथम दृष्ट्या (Prima Facie) ज़िम्मेदार माना है।

प्रमुख बिंदु:

  • 'सख्त दायित्त्व ' के सिद्धांत को सर्वोच्च न्यायालय द्वारा वर्ष 1986 में निरर्थक (Redundant) बना दिया गया था।
  • NGT ने ‘एलजी पॉलिमर’ कंपनी को 50 करोड़ की प्रारंभिक क्षतिपूर्ति राशि जमा करने के निर्देश के साथ ही एक 'तथ्य खोज समिति' (Fact-Finding Committee) का गठन किया है।

'सख्त दायित्त्व  सिद्धांत' (Strict Liability Principle):

  • इस सिद्धांत के अनुसार, एक औद्योगिक इकाई किसी आपदा के लिये उत्तरदायी नहीं होगी यदि औद्योगिक पदार्थों का रिसाव किसी दुर्घटना या 'प्रकृतिजन्य कार्य' (Act of God) के कारण हुआ है। ऐसे में इन औद्योगिक इकाइयों को कोई क्षतिपूर्ति देने की आवश्यकता नहीं है। 
  • इस सिद्धांत की उत्पति ब्रिटिशकालीन वर्ष 1868 के ‘रिलेंड्स बनाम फ्लेचर’ (Rylands versus Fletcher) मामले से मानी जाती है। यह सिद्धांत किसी औद्योगिक आपदा के समय कंपनियों को आवश्यक दायित्त्व निभाने में कई प्रकार की छूट प्रदान करता है।

‘पूर्ण दायित्त्व का सिद्धांत’ (Absolute Liability Principle):

  • सर्वोच्च न्यायालय ने दिल्ली के ‘ओलियम गैस रिसाव मामले’ (Oleum Gas leak Case) में निर्णय दिया कि भारत जैसे विकासशील देश में नागरिकों के अधिकारों की रक्षा के लिये ‘सख्त दायित्त्व का सिद्धांत’ (Strict Liability Principle) अपर्याप्त है और इसके स्थान पर ‘पूर्ण दायित्त्व का सिद्धांत’ (Absolute Liability Principle) लागू किया जाना चाहिये।

‘पूर्ण दायित्त्व का सिद्धांत’ की आवश्यकता: 

  • यहाँ ध्यान देने योग्य तथ्य यह है कि पूर्ण दायित्त्व का सिद्धांत वर्ष 1984 की 'भोपाल गैस त्रासदी' के बाद में दिया गया था जिसमें तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश पी.एन. भगवती भविष्य में ऐसी घटनाओं के लिये कॉर्पोरेट इकाइयों को ज़िम्मेदार ठहराना चाहते थे। 
  • 'पूर्ण दायित्त्व का सिद्धांत' के माध्यम से सर्वोच्च न्यायालय यह तय करना चाहता था कि भविष्य में ऐसी दुर्घटना होने पर कॉर्पोरेट को किसी प्रकार की छूट प्रदान न की जाए तथा इन इकाइयों से आवश्यक क्षतिपूर्ति राशि अवश्य वसूल की जाए। यहाँ ‘निरपेक्ष’ या पूर्ण (Absolute) का तात्पर्य है समाज के लिये ज़िम्मेदारी निभाने की बाध्यता है।

‘पूर्ण दायित्त्व का सिद्धांत’ और ‘अनुच्छेद 21’:

  • ‘पूर्ण दायित्त्व का सिद्धांत' अनुच्छेद 21 का हिस्सा है तथा इसे जीवन के अधिकार के एक भाग के रूप में माना गया है।  

NGT अधिनियम तथा पूर्ण दायित्त्व का सिद्धांत:

  • सर्वोच्च न्यायालय द्वारा वर्ष 1986 में 'ऑलियम गैस रिसाव मामले' में प्रतिपादित किये गए ‘पूर्ण दायित्त्व के सिद्धांत’ को बाद में 'राष्ट्रीय हरित अधिकरण' (National Green Tribunal- NGT) अधिनियम- 2010 की धारा 17 में शामिल किया गया।
  • NGT अधिनियम की धारा 17 के अनुसार यदि कोई औद्योगिक आपदा किसी दुर्घटना के कारण होती है तब भी अधिकरण 'बिना त्रुटि का सिद्धांत' (No Fault Principle) के आधार पर औद्योगिक इकाई पर आवश्यक कार्यवाही की जा सकती है।

पूर्ण दायित्त्व के सिद्धांत का नकारात्मक पक्ष:

  • यह अधिनियम किसी खतरनाक कारखाने में हुई दुर्घटना के लिये हमेशा उद्यम को ही उत्तरदायी ठहराता है, भले ही आपदा किसी दुर्घटना के कारण हुई हो तथा आपदा के पीछे उद्यम की कोई लापरवाही नहीं हो।

निष्कर्ष: 

  • औद्योगिक आपदाओं की जाँच के लिये स्पष्ट कार्यप्रणाली अपनानी चाहिये तथा एक ‘सहायता राशि कोष’ की स्थापना की जानी चाहिये जो औद्योगिक इकाइयों पर लगाए जाने वाले आवश्यक शुल्क से मिलकर बनी हो। 

स्रोत: द हिंदू

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