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भारतीय रेलवे: वर्ष 2030 तक नेट-ज़ीरो उत्सर्जक

  • 22 Oct 2021
  • 8 min read

प्रिलिम्स के लिये:

नेट-ज़ीरो कार्बन उत्सर्जक, अक्षय ऊर्जा, ग्रीनहाउस गैस।

मेन्स के लिये:

नेट-ज़ीरो कार्बन उत्सर्जक बनने की राह पर भारतीय रेलवे- संभावनाएँ, चुनौतियाँ एवं आगे की राह।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारतीय रेलवे ने यह संभावना व्यक्त की है कि वह वर्ष 2030 तक विश्व का पहला 'नेट-ज़ीरो' कार्बन उत्सर्जक बन सकता है।

  • इसके लिये भारतीय रेलवे एक बहु-आयामी दृष्टिकोण अपना रहा है जिसमें अक्षय ऊर्जा के स्रोतों में वृद्धि से लेकर अपने ट्रैक्शन नेटवर्क का विद्युतीकृत करना और अपनी ऊर्जा खपत को कम करना शामिल हैं।

प्रमुख बिंदु

  • परिचय:
    • भारतीय रेलवे: यह आकार के मामले में विश्व का चौथा सबसे बड़ा रेलवे नेटवर्क है। यह देश के सबसे बड़े बिजली उपभोक्ताओं में से एक है। 
      • यात्री सेवाएँ: लगभग 67,956 किलोमीटर की दूरी तय करने वाली 13,000 ट्रेनों के माध्यम से पूरे उपमहाद्वीप में प्रतिदिन 24 मिलियन यात्री यात्रा करते हैं।
      • माल ढुलाई सेवाएँ: प्रति दिन 3.3 मिलियन टन माल ढुलाई का कार्य किया जाता है जिसके लिये बड़े पैमाने पर ईंधन की आवश्यकता होती है।
    • कुल उत्सर्जन में योगदान: भारत का परिवहन क्षेत्र देश के ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में 12% का योगदान देता है, जिसमें रेलवे की हिस्सेदारी लगभग 4% है।
    • उत्सर्जन में कमी की संभावना: भारतीय रेलवे वर्ष 2030 तक माल ढुलाई के पने आधिकारिक लक्ष्य को वर्तमान 33% से बढ़ाकर 50% तक कर सकता है।
      • माल ढुलाई को रेल में स्थानांतरित करके और ट्रकों के उपयोग को अनुकूल बनाकर, भारत सामान्य व्यापार परिदृश्य की तुलना में वर्ष 2050 तक रसद लागत को सकल घरेलू उत्पाद के 14% से घटाकर 10% तक कर सकता है और कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन को 70% तक कम कर सकता है।
  • भारतीय रेलवे द्वारा की गई पहल:
    • माल ढुलाई की मात्रा में वृद्धि: भारतीय रेलवे ने परिवहन से होने वाले कुल उत्सर्जन को कम करने के लिये अपने द्वारा की जाने वाली माल ढुलाई की मात्रा को वर्ष 2015 के लगभग 35% से बढ़ाकर वर्ष 2030 तक 45% निर्धारित कर दिया है।
    • पूर्ण विद्युतीकरण: भारतीय रेलवे का पूर्ण विद्युतीकरण वित्तीय वर्ष 2024 तक लक्षित है। इसके पश्चात् यह विश्व की सबसे बड़ी 100% विद्युतीकृत वाली रेल परिवहन प्रणाली होगी।
    • सौर ऊर्जा का उपयोग: ट्रैक्शन (कर्षण) भार और गैर-ट्रैक्शन भार दोनों के लिये 20 गीगावाट (GW) सौर ऊर्जा स्थापित करने की योजना है।
      • जुलाई 2020 में मध्य प्रदेश के बीना में एक 1.7 मेगावाट सौर ऊर्जा संयंत्र का निर्माण किया। यह विश्व का पहला सौर ऊर्जा संयंत्र है जो सीधे रेलवे ओवरहेड लाइनों को बिजली प्रदान करता है, जिससे लोकोमोटिव ट्रैक्शन पावर का संचरण करते हैं।
      • हरियाणा के दीवाना में 2.5 मेगावाट की सौर परियोजना।
      • भिलाई (छत्तीसगढ़) में 50 मेगावाट क्षमता वाली तीसरी पायलट परियोजना पर काम शुरू हो गया है।
      • साहिबाबाद रेलवे स्टेशन पर प्लेटफॉर्म शेल्टर के रूप में 16 किलोवाट का सोलर पावर प्लांट लगाया गया है।
      • रेल मंत्रालय ने 960 से अधिक स्टेशनों पर सौर पैनल स्थापित किये हैं और रेलवे स्टेशन की ऊर्जा आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु सौर ऊर्जा का उपयोग किया जा रहा है।
    • निजी क्षेत्र की भागीदारी: मंत्रालय ने रेलवे भुगतान में चूक की स्थिति में साख पत्र (Letter of Credit) के प्रावधानों को शामिल किया है साथ ही सौर ऊर्जा निर्माताओं के लिये मॉडल नीलामी दस्तावेज़ में देरी से भुगतान के लिये ज़ुर्माने का भी प्रावधान है।
      • इसका उद्देश्य निजी क्षेत्रों को परियोजना में भाग लेने के लिये प्रोत्साहित करना है।
  • चुनौतियाँ:
    • ओपन एक्सेस के लिये अनापत्ति प्रमाण पत्र: पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, छत्तीसगढ़, ओडिशा, आंध्र प्रदेश, केरल और तेलंगाना में नियामक चुनौतियों के कारण रेलवे के लिये बिजली के प्रवाह हेतु अनापत्ति प्रमाण पत्र (NoC) का संचालन शुरू नहीं हो पाया है। हालाँकि रेलवे इसे संचालित करने का पूरा प्रयास कर रहा है।
      • अगर इन राज्यों में ओपन एक्सेस के जरिये बिजली खरीदने की मंज़ूरी मिल जाती है तो सौर परिनियोजन (Solar Deployment) में वृद्धि हो सकती है।
    • व्हीलिंग और बैंकिंग प्रावधान: यदि राज्य व्हीलिंग और बैंकिंग व्यवस्था उपलब्ध कराते हैं तो सौर क्षमता की पूर्ण तैनाती अधिक व्यवहार्य हो जाएगी।
    • सोलर खरीद दायित्व और गैर-सोलर  खरीद दायित्व का विलय: सोलर  एवं गैर-सोलर  दायित्वों का समेकन रेलवे को अपने अक्षय ऊर्जा खरीद दायित्वों को पूरा करने की अनुमति देगा।
    • अप्रतिबंधित नेट मीटरिंग नियम: रूफटॉप सोलर प्रोजेक्ट्स के लिये अप्रतिबंधित नेट मीटरिंग से रेलवे सोलर प्लांट्स की तैनाती में तेज़ी आएगी।

शुद्ध शून्य उत्सर्जन/नेट ज़ीरो उत्सर्जन  (NZE)

  • ‘शुद्ध शून्य उत्सर्जन' का तात्पर्य उत्पादित ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन और वातावरण से निकाले गए ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के मध्य एक समग्र संतुलन स्थापित करना है।
    • सर्वप्रथम मानवजनित उत्सर्जन (जैसे जीवाश्म-ईंधन वाले वाहनों और कारखानों से) को यथासंभव शून्य के करीब लाया जाना चाहिये।
    • दूसरा, किसी भी शेष GHGs को कार्बन को अवशोषित कर (जैसे- जंगलों की पुनर्स्थापना द्वारा) संतुलित किया जाना चाहिये। 
  • वैश्विक परिदृश्य:
    • जून 2020 तक बीस देशों और क्षेत्रों ने शुद्ध-शून्य लक्ष्यों को अपनाया है। 
    • भूटान पहले से ही कार्बन नकारात्मक देश है अर्थात् यह CO2  के उत्सर्जन की तुलना में अवशोषण अधिक करता है।
  • भारतीय परिदृश्य:
    • भारत का प्रति व्यक्ति CO2 उत्सर्जन, जो कि वर्ष 2015 में 1.8 टन के स्तर पर था, संयुक्त राज्य अमेरिका के नौवें हिस्से के बराबर और वैश्विक औसत (4.8 टन प्रति व्यक्ति) के लगभग एक-तिहाई है।
    • हालाँकि समग्र तौर पर भारत अब चीन तथा संयुक्त राज्य अमेरिका के बाद CO2 का तीसरा सबसे बड़ा उत्सर्जक है।
    • सर्वाधिक उत्सर्जन करने वाले क्षेत्र:
      • ऊर्जा> उद्योग> वानिकी> परिवहन> कृषि> भवन

स्रोत: डाउन टू अर्थ

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