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भारतीय अर्थव्यवस्था

भारत का स्टार्टअप पारिस्थितिकी तंत्र

  • 30 May 2022
  • 12 min read

प्रिलिम्स के लिये:

भारत का स्टार्टअप पारिस्थितिकी तंत्र, स्टार्टअप इंडिया सीड फंड स्कीम, स्टार्टअप इंडिया पहल, उद्योग 4.0, डिजिटल भारत नवाचार। 

मेन्स के लिये:

स्टार्टअप्स का भारत में विकास, चुनौतियाँ और योजनाएँ। 

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में भारत में यूनिकॉर्न की संख्या 100  के आँकड़े तक पहुँच गई है। 

  • एक यूनिकॉर्न का अर्थ कम-से-कम 7,500 करोड़ रुपए का टर्नओवर वाले स्टार्टअप से है।  इन यूनिकॉर्न का कुल मूल्यांकन 330 अरब अमेरिकी डॉलर है, जो 25 लाख करोड़ रुपए से अधिक है। 
  • भारतीय यूनिकॉर्न की औसत वार्षिक वृद्धि दर अमेरिका, यूके और कई अन्य देशों की तुलना में अधिक है। 

यूनिकॉर्न

  • परिचय: 
    • एक यूनिकॉर्न किसी भी निजी स्वामित्व वाली फर्म है जिसका बाज़ार पूंजीकरण 1 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक है। 
    • यह अन्य उत्पादों/सेवाओं के अलावा रचनात्मक समाधान और नए व्यापार मॉडल पेश करने के लिये समर्पित नई संस्थाओं की उपिस्थिति को दर्शाता है। 
    • फिनटेक, एडटेक,  बिज़नेस-टू-बिज़नेस (B-2-B) कंपनियाँ आदि इसकी कई श्रेणियाँ हैं। 
  • विशेषताएँ: 
    • विभाजनकारी नवाचार: अधिकतर सभी यूनिकॉर्न उस क्षेत्र में नवाचार लाए हैं जिससे वे संबंधित हैं, उदाहरण के लिये ‘उबर’ ने आवागमन के स्वरुप को बदल दिया है। 
    • तकनीक संचालित: यह व्यापार मॉडल नवीनतम तकनीकी नवाचारों और प्रवृत्तियों द्वारा संचालित होता है। 
    • उपभोक्ता-केंद्रित: इनका लक्ष्य उपभोक्ताओं के लिये कार्यों को सरल बनाना और उनके दैनिक जीवन का हिस्सा बनना है। 
    • वहनीयता : उत्पादों को वहनीय बनाना इन स्टार्टअप्स की एक प्रमुख विशेषता है। 
    • निजी स्वामित्व: अधिकांश यूनिकॉर्न निजी स्वामित्व वाले होते हैं, जब एक स्थापित कंपनी इसमें निवेश करती है तो उनका मूल्यांकन और बढ़ जाता है। 
    • सॉफ्टवेयर आधारित: एक हालिया रिपोर्ट बताती है कि यूनिकॉर्न के 87% उत्पाद सॉफ्टवेयर हैं, 7% हार्डवेयर हैं और बाकी 6% अन्य उत्पाद एवं सेवाएंँ हैं। 

भारत में स्टार्टअप्स और यूनिकॉर्न की स्थिति: 

  • स्थिति: 
    • भारत, अमेरिका और चीन के बाद दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा स्टार्टअप पारिस्थितिकी तंत्र बन गया है। 
    • वर्ष 2021 में 44 भारतीय स्टार्टअप ने यूनिकॉर्न का दर्जा हासिल किया है, जिससे यूनिकॉर्न की कुल संख्या 83 हो गई है, जिनमें से अधिकांँश सेवा क्षेत्र में हैं। 
    • भारत ने कई रणनीतिक और सशर्त कारणों से यूनिकॉर्न में इतनी तेज़ी से वृद्धि देखी है। 
  • विकास का चालक: 
    • सरकारी सहायता: 
      • भारत सरकार मूल्य शृंखला में विघटनकारी नवप्रवर्तकों के साथ काम करने और सार्वजनिक सेवा वितरण में सुधार के लिये उनके नवाचारों का उपयोग करने के महत्त्व को समझ रही है। 
      • पशुपालन और डेयरी विभाग ने स्टार्टअप इंडिया के साथ मिलकर 5 श्रेणियों में 10 लाख रुपए के स्टार्टअप को पुरस्कृत करने के लिये एक बड़ी प्रतिस्पर्द्धा का आयोजन किया है।  
    • डिजिटल सेवाओं को अपनाना: 
      • महामारी के दौरान स्टार्टअप और नए जमाने के उपक्रमों को ग्राहकों के लिये तकनीकी केंद्रित व्यवसाय बनाने में मदद करने वाले उपभोक्ताओं द्वारा डिजिटल सेवाओं को अपनाने में तेजी देखी गई। 
    • ऑनलाइन सेवाएंँ और वर्क फ्रॉम होम संस्कृति: 
      • कई भारतीय खाद्य वितरण और एडु-टेक से लेकर ई-किराने तक सेवा प्रदाता ऑनलाइन सेवाएँ प्रदान कर रहे हैं 
      • वर्क फ्रॉम होम संस्कृति ने स्टार्टअप्स के उपयोगकर्त्ता आधार की संख्या बढ़ाने में मदद की और उनकी व्यवसाय विस्तार योजनाओं में तेज़ी लाकर निवेशकों को आकर्षित किया। 
    • डिजिटल भुगतान: 
      • डिजिटल भुगतान की वृद्धि एक और पहलू है जिसने यूनिकॉर्न को सबसे अधिक सहायता दी। 
    • प्रमुख सार्वजनिक निगमों से खरीद: 
      • कई स्टार्टअप प्रमुख सार्वजनिक निगमों से खरीद के परिणामस्वरूप यूनिकॉर्न बन जाते हैं जो आंतरिक विकास में निवेश करने के बजाय अपने व्यवसाय को बढ़ाने के लियेअधिग्रहण पर ध्यान केंद्रित करना पसंद करते हैं। 
  • संबद्ध चुनौतियाँ: 
    • निवेश बढ़ाना स्टार्टअप की सफलता सुनिश्चित नहीं करता: कोविड-19 संकट के बीच जब केंद्रीय बैंकों ने वैश्विक स्तर पर अधिकाधिक मात्रा में तरलता जारी की है, तो पैसा जुटाना कोई कठिन काम नहीं है। 
      • स्टार्टअप्स में निवेश किये जा रहे अरबों डॉलर दूरगामी परिणामों का प्रतिनिधित्त्व करते हैं, न कि राजस्व के माध्यम से मूल्य सृजन। 
      • साथ ही इस तरह के निवेशों के साथ इन स्टार्टअप्स के गतिमान रहने की उच्च दर की कल्पना नहीं की जा सकती है, क्योंकि इसे मुनाफे से सुनिश्चित किया जा सकता है। 
    • अंतरिक्ष क्षेत्र में भारत अभी भी एक सीमांत खिलाड़ी: फिनटेक और ई-कॉमर्स क्षेत्र में भारत के स्टार्टअप असाधारण रूप से अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं, अंतरिक्ष क्षेत्र अभी भी स्टार्टअप के लिये एक बाहरी क्षेत्र बना हुआ है। 
      • वर्तमान में वैश्विक अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था 440 बिलियन डॉलर की हो चुकी है, जिसमें भारत की हिस्सेदारी 2% से भी कम है। 
        • यह परिदृश्य इस तथ्य के बावजूद है कि भारत एंड-टू-एंड क्षमता के साथ उपग्रह निर्माण, संवर्द्धित प्रक्षेपण यान के विकास और अंतर-ग्रहीय मिशनों को तैनात करने के मामले में एक अग्रणी अंतरिक्ष-अन्वेषी देश है। 
      • अंतरिक्ष क्षेत्र में स्वतंत्र निजी भागीदारी की कमी के कारणों में एक ऐसे ढाँचे का अभाव प्रमुख है जो कानूनों के संबंध में पारदर्शिता और स्पष्टता प्रदान करे। 
    • भारतीय निवेशक जोखिम लेने को तैयार नहीं: भारत के स्टार्टअप क्षेत्र के बड़े निवेशक विदेशों से हैं, जैसे जापान का सॉफ्टबैंक, चीन का अलीबाबा और अमेरिका का सिकोइया (Sequoia)। 
      • ऐसा इसलिये है क्योंकि भारत में एक महत्त्वपूर्ण उद्यम पूंजी उद्योग का अभाव है जो जोखिम लेने को तैयार हो।   
      • देश के स्थापित कारोबारी समूह का जुड़ाव प्रायः पारंपरिक व्यवसायों से रहा है। 

संबंधित सरकारी पहल: 

  • स्टार्टअप इनोवेशन चुनौतियांँ: यह किसी भी स्टार्टअप के लिये अपने नेटवर्किंग और फंड जुटाने के प्रयासों का लाभ उठाने का एक शानदार तरीका है। 
  • राष्ट्रीय स्टार्टअप पुरस्कार: यह उन उत्कृष्ट स्टार्टअप और पारिस्थितिकी तंत्र को पहचानने और पुरस्कृत करने का प्रयास करता है जो नवाचार एवं प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा देकर आर्थिक गतिशीलता में योगदान दे रहे हैं। 
  • स्टार्टअप पारिस्थितिकी तंत्र के आधार पर राज्यों की रैंकिंग: यह एक विकसित मूल्यांकन उपकरण है जिसका उद्देश्य राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के समर्थन से अपने स्टार्टअप पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण करना है। 
  • SCO स्टार्टअप फोरम: पहली बार शंघाई सहयोग संगठन (SCO) स्टार्टअप फोरम को सामूहिक रूप से स्टार्टअप पारिस्थितिकी तंत्र को विकसित करने और सुधार के लिये अक्तूबर 2020 में लॉन्च किया गया था। 
  • प्रारंभ (Prarambh): 'प्रारंभ’ शिखर सम्मेलन का उद्देश्य दुनिया भर के स्टार्ट अप और युवांओं को नए विचारों, नवाचारों और आविष्कारो हेतु एक साथ आने के लिये मंच प्रदान करना है। 

आगे की राह 

  • स्टार्टअप पारिस्थितिकी तंत्र के त्वरित विकास के लिये धन की आवश्यकता होती है, इसलिये उद्यम पूंजी और एंजेल निवेशकों की भूमिका महत्त्वपूर्ण होती है। 
  • उद्यमिता को प्रोत्साहित करने वाले नीतिगत निर्णयों के अलावा यह भारत के कॉर्पोरेट क्षेत्र की भी म्मेदारी है कि वह उद्यमिता को बढ़ावा दें और प्रभावशाली प्रौद्योगिकी समाधान और टिकाऊ एवं संसाधन-कुशल विकास के निर्माण के लिये तालमेल बनाए। 
  • हाल की घटनाओं ने चीन में पूंजी को लेकर अविश्वास की स्थिति उत्पन्न की है, दुनिया का ध्यान भारत में आकर्षक तकनीकी अवसरों एवं सृजित किये जा सकने वाले मूल्य पर केंद्रित हो रहा है। इसके लिये भारत को डिजिटल इंडिया पहल के अलावा निर्णायक नीतिगत उपायों की आवश्यकता है। 
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