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विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

भारत की पहली CAR-T सेल थेरेपी को स्वीकृति

  • 16 Oct 2023
  • 7 min read

प्रिलिम्स के लिये:

CAR-T सेल थेरेपी,  केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (CDSCO), ल्यूकेमिया, NexCAR19 (एक्टालिकैब्टाजीन ऑटोल्यूसेल), T-कोशिकाएँ

मेन्स के लिये:

CAR-T सेल थेरेपी, विकास और उनके अनुप्रयोग तथा रोज़मर्रा की जिंदगी में प्रभाव, विज्ञान और प्रौद्योगिकी में भारत की उपलब्धियाँ

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों?

आई.आई.टी. बॉम्बे समर्थित कंपनी इम्यूनो एडॉप्टिव सेल थेरेपी (ImmunoACT) को पहले मानवकृत CD19-लक्षित चिमेरिक एंटीजन रिसेप्टर टी सेल (Chimeric Antigen Receptor T cell- CAR T-cell) थेरेपी उत्पाद के लिये केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (Central Drugs Standard Control Organisation- CDSCO) द्वारा विपणन संबंधी अनुमोदन प्राप्त हुआ है। इस उत्पाद का उपयोग भारत में पुनरावर्ती/दुर्दम्य B-सेल लिंफोमा और ल्यूकेमिया (Relapsed/Refractory B-cell Lymphomas and Leukaemia) के लिये किया जाता है।

  • NexCAR 19 आई.आई.टी. बॉम्बे और टाटा मेमोरियल सेंटर के बीच एक दशक लंबे सहयोगात्मक प्रयास का परिणाम है तथा इसका काफी अच्छे से नैदानिक जाँच एवं परिणाम संबंधी अध्ययन किया गया है।

CAR-T सेल थेरेपी:

  • परिचय:
    • CAR T- सेल थेरेपी कैंसर के इलाज में एक बड़ी सफलता है।
      • कीमोथेरेपी या इम्यूनोथेरेपी, जिसमें ड्रग्स लेना शामिल है, के विपरीत CAR T-सेल थेरेपी रोगी की कोशिकाओं का उपयोग करती है। उन्हें टी-कोशिकाओं को सक्रिय करने और ट्यूमर कोशिकाओं को लक्षित करने हेतु इनको प्रयोगशाला में संशोधित किया जाता है।
    • ल्यूकेमिया (श्वेत रक्त कोशिकाओं का उत्पादन करने वाली कोशिकाओं से उत्पन्न होने वाले कैंसर) और लिम्फोमा (लसीका प्रणाली से उत्पन्न होने वाले) के उपचार के लिये CAR-T सेल थेरेपी को मंज़ूरी दी गई है
  • प्रक्रिया:
    • T- कोशिकाओं को एक रोगी के रक्त से लिया जाता है और फिर एक विशेष रिसेप्टर के जीन को प्रयोगशाला में T- कोशिकाओं से संयोजित किया जाता है जो रोगी की कैंसर कोशिकाओं पर एक निश्चित प्रोटीन को लक्षित करता है
      • विशेष रिसेप्टर को काइमेरिक एंटीजन रिसेप्टर (CAR) कहा जाता है। बड़ी संख्या में CAR-T कोशिकाएँ प्रयोगशाला में सृजित की जाती हैं और इन्फ्यूज़न द्वारा रोगी को दी जाती हैं।

  • महत्त्व:
    • CAR-T सेल थेरेपी लक्षित औषधियों की तुलना में और भी अधिक विशिष्ट होते हैं तथा कैंसर से लड़ने के लिये रोगी की प्रतिरक्षा प्रणाली को सीधे प्रेरित करते हैं, जिससे अधिक नैदानिक ​​प्रभावकारिता बढ़ जाती है।
      • इस विशिष्टता के कारण उन्हें "लिविंग ड्रग्स" कहा जाता है।
  • चुनौतियाँ:
    • तैयारी: CAR T-सेल थेरेपी तैयार करने में होने वाली कठिनाई इसके व्यापक उपयोग में एक बड़ी बाधा रही है।
      • इसका पहला सफल क्लिनिकल परीक्षण एक दशक पहले प्रकाशित हुआ था और भारत में स्वदेशी रूप से विकसित पहली थेरेपी वर्ष 2021 में की गई थी।
    • दुष्प्रभाव: कुछ प्रकार के ल्यूकेमिया और लिम्फोमा में प्रभावकारिता 90% तक होती है, जबकि अन्य प्रकार के कैंसर में यह काफी कम होती है।
      • इसके संभावित गंभीर दुष्प्रभाव भी हैं, जो साइटोकिन रिलीज़ सिंड्रोम (प्रतिरक्षा प्रणाली की व्यापक सक्रियता और शरीर की सामान्य कोशिकाओं को संपार्श्विक क्षति) तथा न्यूरोलॉजिकल लक्षण (गंभीर भ्रम, दौरे एवं वाक् हानि) से संबद्ध हैं।
    • सामर्थ्य: भारत में CAR T-सेल थेरेपी की शुरुआत को लागत और मूल्य संबंधी चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।
      • आलोचकों का तर्क है कि भारत में CAR T-सेल थेरेपी विकसित करना लागत प्रभावी नहीं हो सकता है क्योंकि यह अभी भी अधिकांश लोगों के लिये अप्राप्य होगी।

T कोशिकाएँ:

  • T कोशिकाएँ, जिन्हें T लिम्फोसाइट्स भी कहा जाता है, एक प्रकार की श्वेत रक्त कोशिकाएँ हैं जो प्रतिरक्षा अनुक्रिया में केंद्रीय भूमिका निभाती हैं।
  • T कोशिकाएँ, कोशिका-मध्यस्थ प्रतिरक्षा में शामिल होती हैं, जिसका अर्थ है कि वे शरीर को बाह्य पदार्थों, जैसे- वायरस, बैक्टीरिया और असामान्य कोशिकाओं, जैसे- कैंसर कोशिकाओं को पहचानने तथा इनके विरुद्ध अनुक्रिया करने में सहायता करती हैं।
  • T कोशिकाएँ दो प्रमुख प्रकार की होती हैं: सहायक T कोशिका और साइटोटॉक्सिक T कोशिका।
    • जैसा कि नाम से पता चलता है, सहायक T कोशिकाएँ प्रतिरक्षा प्रणाली की अन्य कोशिकाओं की 'सहायता' करती हैं, जबकि साइटोटॉक्सिक T कोशिकाएँ वायरल रूप से संक्रमित कोशिकाओं और ट्यूमर को समाप्त कर देती हैं।

कैंसर के इलाज से संबंधित सरकारी पहल:

 UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न 

प्रिलिम्स:

प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-सा एक, मानव शरीर में B कोशिकाओं और T कोशिकाओं की भूमिका का सर्वोत्तम वर्णन करता है? (2022)

(a) वे शरीर की पर्यावरणीय प्रतूर्जकों (एलर्जनों) से संरक्षित करती हैं।
(b) वे शरीर के दर्द और सूजन का अपशमन करती हैं।
(c) वे शरीर में प्रतिरक्षा निरोधकों की तरह काम करती हैं।
(d) वे रोगजनकों द्वारा होने वाले रोगों से बचाती हैं।

उत्तर: (d)

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