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सामाजिक न्याय

भारत चिल्ड्रेन एंड आर्म्ड कनफ्लिक्ट रिपोर्ट से बाहर

  • 29 Jun 2023
  • 12 min read

प्रिलिम्स के लिये:

रिपोर्ट ऑन चिल्ड्रेन एंड आर्म्ड कनफ्लिक्ट, संयुक्त राष्ट्र महासभा, किशोर न्याय अधिनियम, 2015, यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (POCSO) अधिनियम

मेन्स के लिये:

बच्चों की सुरक्षा के लिये भारत सरकार द्वारा उठाए गए कदम, चिल्ड्रेन एंड आर्म्ड कनफ्लिक्ट से संबंधित वैश्विक अभिसमय, बच्चों पर आर्म्ड कनफ्लिक्ट का प्रभाव

चर्चा में क्यों? 

वर्ष 2010 के बाद पहली बार संयुक्त राष्ट्र महासचिव ने बच्चों की सुरक्षा के लिये भारत सरकार द्वारा उठाए गए कदमों को ध्यान में रखते हुए भारत को रिपोर्ट ऑन चिल्ड्रेन एंड आर्म्ड कनफ्लिक्ट 2023 से बाहर रखा है।

  • भारत पर जम्मू-कश्मीर (J&K) में सशस्त्र समूहों में लड़कों की भर्ती और उनके इस्तेमाल का आरोप लगाया गया था। वर्ष 2022 में जम्मू-कश्मीर में बच्चों के खिलाफ अधिक संख्या में उल्लंघन की पुष्टि हुई। 

रिपोर्ट ऑन चिल्ड्रेन एंड आर्म्ड कनफ्लिक्ट:

  • पृष्ठभूमि: 
    • 25 वर्ष पूर्व दिसंबर 1996 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने बच्चों को शोषण से मुक्त करने और उनका दुरुपयोग रोकने के लिये एक जनादेश तैयार करने का अभूतपूर्व निर्णय लिया था तथा संकल्प 51/77 की सहायता से चिल्ड्रेन एंड आर्म्ड कनफ्लिक्ट (CAAC) जनादेश का निर्माण किया।
      • 51/77 प्रस्ताव में सिफारिश की गई कि बच्चों के सशस्त्र समूहों में भर्ती होने से उन पर पड़ने वाले प्रभाव का आकलन करने के लिये महासचिव द्वारा तीन वर्ष की अवधि के लिये एक विशेष प्रतिनिधि की नियुक्ति की जानी चाहिये।
  • उद्देश्य: 
    • सशस्त्र संघर्ष से प्रभावित बच्चों के सुरक्षा तंत्र को मज़बूत करना, जागरूकता बढ़ाना, युद्ध से प्रभावित बच्चों की दुर्दशा के बारे में सूचना संग्रह को बढ़ावा देना तथा उनकी सुरक्षा में सुधार के लिये अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देना।
    • इस रिपोर्ट में विभिन्न सुरक्षा बलों द्वारा बच्चों को हिरासत में लेने, हत्या करने आदि का भी जिक्र किया गया है।
  • हालिया अवलोकन: 
    • बच्चों के प्रति होने वाले विभिन्न प्रकार के उल्लंघनों के बारे में प्राप्त सूचना के अनुसार, 2,985 बच्चों की हत्या और 5,655 बच्चों के अपंग/घायल होने की सूचना मिली, यह कुल (8,631) मिलाकर प्रभावित होने वाले बच्चों की सबसे अधिक संख्या है।
      • इसके बाद 7,622 बच्चों की भर्ती और उपयोग तथा 3,985 बच्चों के अपहरण की भी जानकारी मिली है। इसके अतिरिक्त 2,496 बच्चों को राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े कारणों अथवा संयुक्त राष्ट्र द्वारा आतंकवादी संगठनों के रूप में वर्गीकृत समूहों सहित सशस्त्र समूहों के साथ उनके वास्तविक या कथित संबंधों के कारण गिरफ्तार किया गया था।
    • सबसे अधिक संख्या में उल्लंघन करने वाले देशों में डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो, इज़रायल, फिलिस्तीन राज्य, सोमालिया, सीरिया, यूक्रेन, अफगानिस्तान और यमन शामिल थे।

बच्चों की सुरक्षा के लिये भारत सरकार द्वारा उठाए गए कदम: 

  • जम्मू-कश्मीर में बीते समय में उचित कार्य प्रणालियों में कमी देखी गई, क्योंकि यहाँ किशोर न्याय अधिनियम, 2015 लागू नहीं किया गया था और भारत में किशोरगृह प्रभावी ढंग से काम भी नहीं कर रहे थे। 
    • हालाँकि इन मुद्दों के समाधान के लिये उपाय किये गए हैं, जिनमें जेजे अधिनियम, 2015 के अंतर्गत बाल कल्याण समितियों, किशोर न्याय बोर्ड और बाल देखभाल गृह जैसे बुनियादी ढाँचे की स्थापना करना शामिल है। 
  • संयुक्त राष्ट्र द्वारा अनुशंसित कई उपाय भारत में पूर्व में ही लागू किये जा चुके हैं एवं वर्तमान में उनका संचालन हो रहा हैं। बच्चों की सुरक्षा के लिये सुरक्षा बलों के  प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किये गए हैं और पैलेट गन का उपयोग निलंबित कर दिया गया है।
  • बच्चों की सुरक्षा के लिये कानूनी और प्रशासनिक ढाँचे के कार्यान्वयन तथा छत्तीसगढ़, असम, झारखंड, ओडिशा एवं जम्मू-कश्मीर में बाल संरक्षण सेवाओं तक बेहतर पहुँच की भी UNGA द्वारा सराहना की गई।
    • इसके अलावा बाल अधिकारों की सुरक्षा के लिये जम्मू-कश्मीर आयोग की स्थापना में प्रगति को स्वीकार किया गया।

संबंधित वैश्विक सम्मेलन: 

  • सैनिकों के रूप में 15 वर्ष से कम आयु के बच्चों की भर्ती या उपयोग को संयुक्त राष्ट्र बाल अधिकार समझौते (CRC) और जेनेवा सम्मेलनों के अतिरिक्त प्रोटोकॉल द्वारा प्रतिबंधित किया गया है।
    • CRC का कहना है कि बचपन की स्थिति वयस्कता से अलग है और यह 18 वर्ष की आयु तक रहती है; यह एक विशेष, संरक्षित समय है, जिसमें बच्चों को सम्मान के साथ बढ़ने, सीखने, खेलने, विकसित होने और फलने-फूलने की अनुमति दी जानी चाहिये।
    • जिनेवा कन्वेंशन और उसके अतिरिक्त प्रोटोकॉल अंतर्राष्ट्रीय मानवीय कानून का मूल हैं, जो सशस्त्र संघर्ष के स्थिति को नियंत्रित करता है और इसके प्रभावों को सीमित करने का प्रयास करता है। ये४ उन लोगों की रक्षा करते हैं जो युद्ध में हिस्सा नहीं लेते या जो अब ऐसा नहीं कर रहे होते हैं।
  • सशस्त्र संघर्ष में बच्चों की भागीदारी पर CRC का वैकल्पिक प्रोटोकॉल 18 वर्ष से कम आयु के बच्चों को अनिवार्य रूप से राज्य या गैर-राज्य सशस्त्र बलों में भर्ती होने या सीधे युद्ध में शामिल होने से रोकता है।
    • मानवाधिकार संधियों की वैकल्पिक प्रोटोकॉल संधियाँ हैं, साथ ही यह उन देशों के लिये  हस्ताक्षर, परिग्रहण या अनुसमर्थन हेतु खुले हैं जो मुख्य संधि के पक्षकार हैं।
  • अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय (ICC) के रोम कानून के अंतर्गत बाल सैनिकों की भर्ती को भी युद्ध अपराध माना जाता है।
  • इसके अतिरिक्त संयुक्त राष्ट्र ने बाल सैनिकों की भर्ती तथा प्रयोग को छह "गंभीर उल्लंघनों" के रूप में पहचाना है: 

नोट: 

  • भारत, CRC  का एक पक्षकार है, साथ ही नवंबर 2005 में वैकल्पिक प्रोटोकॉल में शामिल हुआ। संविधान के CRC  में शामिल अधिकांश अधिकारों को मौलिक अधिकारों तथा राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों (DPSP) के रूप में शामिल किया गया है।
    • अनुच्छेद 39 (f) में कहा गया है कि बच्चों को स्वास्थ्य,स्वतंत्रता तथा सम्मानजनक स्थितियों में विकसित होने के अवसर तथा सुविधाएँ प्रदान की जाती हैं, इसके साथ ही बचपन तथा युवावस्था के शोषण, नैतिक तथा भौतिक परित्याग के विरुद्ध संरक्षण प्रदान किया जाता है।
  • भारतीय दंड संहिता (IPC), राज्य सशस्त्र बलों या गैर-राज्य सशस्त्र समूहों द्वारा 18 वर्ष से कम उम्र के व्यक्तियों की सेना में भर्ती या प्रयोग को अपराध घोषित करता है।

बच्चों पर सशस्त्र संघर्ष का प्रभाव: 

हत्या तथा अपंगता: संघर्षों में आमतौर पर बच्चों को प्रत्यक्ष रूप से निशाना बनाया जाता है, जिसके कारण उनकी मृत्यु हो जाती है या उन्हें गंभीर चोटें आती हैं। इसमें सोच-समझकर की गई हत्या की घटनाओं के साथ हिंसा के कृत्य शामिल हैं जो शारीरिक हानि या विकलांगता का कारण बनते हैं।

  • भर्ती तथा उपयोग: सशस्त्र समूहों द्वारा बच्चों को बलपूर्वक भर्ती कर या युद्ध में भाग लेने के लिये बाध्य कर उनका शोषण किया जाता है। बच्चों का उपयोग लड़ाकू, संदेशवाहक, जासूस या अन्य सहायक भूमिकाओं के लिये किया जा सकता है।
  • अपहरण और जबरन विस्थापन: बच्चों को अक्सर अपहरण का शिकार होना पड़ता है तथा उन्हें जबरदस्ती उनके परिवार से दूर ले जाया जाता है। आर्म्ड कनफ्लिक्ट के कारण व्यापक स्तर पर विस्थापन भी होता है जिससे बच्चों को अपने घरों, स्कूलों और समुदायों से भागने के लिये विवश होना पड़ता है। इस कारण उन्हें अक्सर आघात तथा अपने परिवारों से अलगाव का सामना करना पड़ता है।
  • यौन हिंसा और शोषण: संघर्ष की स्थितियों के कारण बच्चों के शोषण और यौन हिंसा का खतरा बढ़ जाता है। वे बलात्कार, जबरन वेश्यावृत्ति, तस्करी तथा अन्य प्रकार के दुर्व्यवहार के प्रति संवेदनशील हो जाते हैं।
  • मनोसामाजिक प्रभाव: आर्म्ड कनफ्लिक्ट से प्रभावित बच्चे अक्सर गंभीर मनोवैज्ञानिक संकट का सामना करते हैं जिसमें हिंसा के संपर्क में आना, प्रियजनों को खो देना तथा इसके अतिरिक्त उनके जीवन में व्यवधान के कारण पोस्ट-ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर (PTSD), चिंता, अवसाद एवं भावनात्मक आघात शामिल हैं।
  • मानवीय सहायता में बाधा: अनेक संघर्ष-प्रभावित क्षेत्रों में बच्चों को भोजन, स्वच्छ पेयजल, स्वास्थ्य देखभाल तथा आश्रय सहित जीवन-रक्षक सहायता तक सीमित या कोई पहुँच नहीं मिलती है।
    • मानवीय सहायता में बाधा से बच्चों की असुरक्षा और बढ़ जाती है। यह बच्चों के कल्याण एवं विकास के लिये आवश्यक सेवाएँ और सहायता प्रदान करने के प्रयासों में भी बाधा उत्पन्न करता है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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