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भारतीय विरासत और संस्कृति

चार धाम यात्रा में तीर्थयात्रियों की सुरक्षा चुनौतियाँ

  • 29 Jun 2023
  • 10 min read

प्रिलिम्स के लिये:

चार धाम परियोजना, चार धाम यात्रा, फ्लैश फ्लड, भूस्खलन 

मेन्स के लिये:

आपदा प्रबंधन चुनौतियाँ

चर्चा में क्यों?  

हिमालय क्षेत्र में स्थित चार पवित्र हिंदू तीर्थस्थलों की यात्रा अर्थात् चार धाम यात्रा के दौरान इस वर्ष बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं की मृत्यु हुई।

  • आधिकारिक आँकड़ों के अनुसार, अप्रैल 2023 में यात्रा शुरू होने के बाद से 149 तीर्थयात्रियों की मृत्यु हो गई है जिनमें से अधिकतर मौतों का कारण हृदय गति रुकना और अन्य स्वास्थ्य समस्याएँ हैं। यह यात्रा जो कि प्रत्येक वर्ष लाखों तीर्थयात्रियों को आकर्षित करती है, सड़क दुर्घटनाओं और भूस्खलन के कारण भी प्रभावित हुई है।

चार धाम यात्रा:

  • परिचय: 
    • भारत के उत्तराखंड राज्य में चार धाम यात्रा एक पवित्र तीर्थयात्रा है।
    • इस यात्रा में हिमालय में स्थित चार पवित्र हिंदू तीर्थस्थलों का भ्रमण शामिल है।
      • इस यात्रा में शामिल चार पवित्र धाम- बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री शामिल हैं।
      • ऐसा माना जाता है कि चार धाम यात्रा को दक्षिणावर्त दिशा में पूरा करना चाहिये- यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ।
  • धार्मिक महत्त्व: 
    • इनमें से प्रत्येक तीर्थस्थल हिंदू धर्म में धार्मिक और पौराणिक महत्त्व रखता है।
    • ऐसा माना जाता है कि चार धाम यात्रा करने से व्यक्ति के सभी पाप समाप्त हो जाते हैं तथा आध्यात्मिक मुक्ति मिल जाती है। 
  • तीर्थयात्रा का समय:  
    • आमतौर पर यात्रा अप्रैल या मई माह में शुरू होती है तथा मौसम की स्थिति के आधार पर नवंबर तक जारी रहती है। 
    • यात्रा में चुनौतीपूर्ण उच्च पहाड़ी क्षेत्रों में ट्रैकिंग शामिल है।
  • आर्थिक महत्त्व: 
    • यह न केवल एक धार्मिक यात्रा है, बल्कि उत्तराखंड के लिये एक महत्त्वपूर्ण सांस्कृतिक और पर्यटन कार्यक्रम भी है, जो पूरे भारत और दुनिया भर से पर्यटकों को आकर्षित करती है।
    • यह स्थानीय समुदायों के लिये बहुत महत्त्वपूर्ण है, जो  रोज़गार के अवसर प्रदान करती है और क्षेत्र में पर्यटन उद्योग को बढ़ावा देती है।

  •  टिप्पणी: 
    • यमुनोत्री धाम:
      • स्थान:  ज़िला उत्तरकाशी
      • समर्पित: देवी यमुना
      • गंगा नदी के बाद यमुना नदी भारत की दूसरी सबसे पवित्र नदी है।
    • गंगोत्री धाम:
      • स्थान: ज़िला उत्तरकाशी 
      • समर्पित: देवी गंगा
      • गंगा नदी सभी भारतीय नदियों में सबसे पवित्र मानी जाती है। 
    • केदारनाथ धाम:
      • स्थान: ज़िला रुद्रप्रयाग
      • समर्पित: भगवान शिव
      • मंदाकिनी नदी के तट पर स्थित है।
      • भारत में 12 ज्योतिर्लिंगों (भगवान शिव के दिव्य प्रतिनिधित्व) में से एक
    • बद्रीनाथ धाम:
      • स्थान: ज़िला चमोली 
      • पवित्र बद्रीनारायण मंदिर 
      • समर्पित: भगवान विष्णु
      • वैष्णवों के पवित्र तीर्थस्थलों में से एक।
  • चार धाम परियोजना: 
    • चार धाम परियोजना भारतीय राज्य उत्तराखंड में एक प्रमुख बुनियादी ढाँचा योजना है।
    • इसका उद्देश्य चार पवित्र हिंदू स्थलों, जिन्हें चार धाम के नाम से जाना जाता है, तक कनेक्टिविटी और तीर्थ पर्यटन में सुधार करना है।
    • इससे उत्तराखंड में पर्यटन, व्यापार, परिवहन और रोज़गार के अवसरों को बढ़ावा मिलने की उम्मीद है।
    • तीर्थयात्रियों की सुरक्षा बढ़ाना और सीमावर्ती क्षेत्रों में सैन्य अभियानों को मज़बूत करना।
    • आपात स्थिति में आपदा प्रबंधन और राहत कार्यों को सुविधाजनक बनाना।

चार धाम यात्रा की आपदा प्रबंधन चुनौतियाँ: 

  • आपदा प्रबंधन चुनौतियाँ: 
    • कठोर मौसम की स्थितियाँ: 
      • अत्यधिक तापमान: ठंडे तापमान के संपर्क में आने से हाइपोथर्मिया और अन्य स्वास्थ्य संबंधी जटिलताएँ हो सकती हैं
      • हिमपात: यह तीर्थयात्रा मार्गों पर फिसलन के साथ परिवहन संचालन को कठिन बना देता है। 
    • संवेदनशील भू-भाग: 
      • पर्वतीय क्षेत्र: खड़ी ढलानें तथा ऊबड़-खाबड़ भू-भाग आधारभूत ढाँचे के विकास एवं रखरखाव के लिये चुनौतियाँ उत्पन्न करते हैं।
      • दूरस्थ स्थान: चिकित्सा सुविधाओं, आपातकालीन सेवाओं तथा संचार नेटवर्क तक सीमित पहुँच।
      • सीमित निकासी मार्ग: किसी आपदा या आपातकालीन चिकित्सा की स्थिति में दूरदराज़ के क्षेत्रों से तीर्थयात्रियों को निकालना चुनौतीपूर्ण हो जाता है।
    • स्वास्थ्य संबंधी खतरे: 
      • ऊँचाई वाले क्षेत्रों में स्वास्थ्य समस्या: तीर्थयात्रियों को ऊँचाई वाले क्षेत्रों में चक्कर आना, मतली तथा साँस लेने में कठिनाई आदि समस्याएँ हो सकती हैं।
      • कठिन ट्रेक: लंबी एवं कठिन पैदल यात्रा, विशेष रूप से अधिक ऊँचाई शारीरिक थकावट तथा चोटों का कारण बन सकती है।
      • अनुकूलन का अभाव: तीर्थयात्रियों के लिये उच्च ऊँचाई तथा कठोर मौसम की स्थिति में समायोजित होने के लिये अपर्याप्त समय।
    • प्राकृतिक आपदाएँ: 
      • भूस्खलन: अस्थिर ढलानों तथा भारी वर्षा से भूस्खलन का खतरा बढ़ जाता है, जिससे तीर्थयात्रा मार्ग बाधित हो जाता है। 
      • आकस्मिक बाढ़: अचानक एवं तीव्र वर्षा के परिणामस्वरूप अचानक बाढ़ आ सकती है, जिससे नदियों तथा नालों के समीप तीर्थयात्रियों के लिये खतरा उत्पन्न होता है।
        • जून 2013 में केदारनाथ में अचानक आई बाढ़ के कारण हज़ारों तीर्थयात्रियों की मृत्यु हो गई, साथ ही कई लोग यहाँ फँसे रह गए।
      • भूकंप: उत्तराखंड भूकंपीय क्षेत्र की दृष्टि से एक संवेदनशील क्षेत्र है, जिसके कारण भूस्खलन तथा आधारभूत ढांँचे को हानि होती है।
  • निवारक उपाय और न्यूनीकरण रणनीतियाँ: 
    • मौसम निगरानी और पूर्व चेतावनी प्रणाली: 
      • मौसम में परिवर्तन पर दृष्टि रखने तथा गंभीर मौसम की घटनाओं के लिये पूर्व चेतावनी प्रणाली लागू करने हेतु तीर्थयात्रा मार्ग पर मौसम निगरानी स्टेशन स्थापित करना। 
    • अवसंरचना विकास और रख-रखाव: 
      • इसके अंतर्गत सड़कों के बुनियादी ढाँचे में सुधार (सड़कों को चौड़ा करना और मज़बूत करना) भूस्खलन संभावित क्षेत्रों में सुरक्षात्मक अवरोधों का निर्माण करना तथा आसान व सुरक्षित यात्रा के लिये सार्वजनिक-निजी भागीदारी को प्रोत्साहित करना शामिल है।
    • मृदा अपरदन और भूस्खलन को रोकना:
      • मिट्टी के कटाव और भूस्खलन को रोकने के लिये ढलान स्थिरीकरण तकनीक/स्लोप स्टेबिलाइज़ेशन टेक्नीक का इस्तेमाल तथा वनीकरण कार्यक्रम लागू करना।
    • आपातकालीन और चिकित्सा सुविधाएँ:
      • इसमें मार्गों पर चिकित्सा सुविधाएँ और आपातकालीन प्रतिक्रिया केंद्र की स्थापना, संचार नेटवर्क में सुधार तथा चिकित्सा कर्मचारियों व आपात काल में सेवा प्रदान करने वालों को प्रशिक्षण प्रदान करना शामिल है।
    • तीर्थयात्री सुरक्षा और जागरूकता:
      • यात्रा-पूर्व अभिविन्यास कार्यक्रम का आयोजन कर मार्ग की विस्तृत जानकारी प्रदान करना और तीर्थयात्रियों के लिये चिकित्सा जाँच की अनिवार्यता को प्रोत्साहित करना।
    • आपदा प्रतिक्रिया और निकासी योजनाएँ:
      • व्यापक आपदा प्रतिक्रिया योजनाएँ विकसित करना, सुरक्षित असेंबली पॉइंट और अस्थायी आश्रयों को नामित करना तथा आपदा से बचाव की तैयारी सुनिश्चित करने के लिये नियमित मॉक ड्रिल/अभ्यास का आयोजन करना।

स्रोत: द हिंदू

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