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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

भारत, पाकिस्तान ने परमाणु प्रतिष्ठानों की सूची का आदान-प्रदान किया

  • 02 Jan 2017
  • 4 min read

सन्दर्भ

भारत और पाकिस्तान ने द्विपक्षीय समझौते के तहत अपने परमाणु प्रतिष्ठानों की सूची का आदान-प्रदान किया है। गौरतलब है कि भारत और पाकिस्तान ने नई दिल्ली और इस्लामाबाद में राजनयिक माध्यमों से उन परमाणु प्रतिष्ठानों एवं स्थलों की सूची का आदान-प्रदान किया, वस्तुतः यह भारत और पाकिस्तान के परमाणु प्रतिष्ठानों के खिलाफ हमले को रोकने वाले समझौते के तहत आता है।

महत्त्वपूर्ण बिंदु

  • दोनों देशों के बीच 31 दिसंबर, 1988 को इस समझौते पर हस्ताक्षर किये गए थे, यह समझौता 27 जनवरी, 1991 को अमल में आया था।
  • समझौते के तहत दोनों देश हर साल जनवरी में दूसरे के परमाणु प्रतिष्ठानों और स्थलों के बारे में सूचना का आदान-प्रदान करते हैं।
  • दोनों देशों ने 26वीं बार इस तरह की सूची का आदान-प्रदान किया है। पहली बार इस तरह की सूची का आदान-प्रदान 1 जनवरी, 1992 को हुआ था। 
  • गौरतलब है कि दोनों देशों ने राजनयिक माध्यमों से नई दिल्ली और इस्लामाबाद में एक-दूसरे के उन नागरिकों की सूची का भी आदान-प्रदान किया जो एक-दूसरे के  यहाँ जेलों में बंद हैं।
  • कैदियों की सूची का आदान-प्रदान कूटनीतिक मदद से संबंधित समझौते के प्रावधानों के अनुसार होता है। इस समझौते पर 21 मई, 2008 को हस्ताक्षर किये गए थे। 
  • इसके तहत, साल में दो बार एक-दूसरे के यहाँ जेलों में बंद नागरिकों की सूची का आदान-प्रदान करना होता है। गौरतलब है कि कैदियों की यह सूची एक जनवरी और एक जुलाई को दोनों देशो की तरफ से एक-दूसरे को सौंपी जाती है।

निष्कर्ष

  • यदि निशस्त्रीकरण की दृष्टि से देखा जाए तो भारत और पाकिस्तान का विशाल परमाणु भंडार चिंता का विषय हो सकता है| हालाँकि, नई दिल्ली को पहले ही एक ज़िम्मेदार परमाणु शक्ति का दर्जा दिया जा चुका है, वहीं पाकिस्तान को लेकर विश्व समुदाय की ऐसी धारणा अभी तक नहीं बन पाई है।
  • हालाँकि, परमाणु हथियारों को लेकर चिंताएँ अपनी जगह सही हैं लेकिन यदि क्षेत्रीय नज़रिये से देखा जाए तो भारत का परमाणु शक्ति होना अप्रत्यक्ष तौर से एक वरदान साबित हुआ है।1974 में जब भारत ने अपनी परमाणु शक्ति का सार्वजनिक प्रदर्शन किया तो पाकिस्तान ने भी उसका अनुसरण किया, फलस्वरूप दक्षिण एशिया में हथियारों की एक होड़ शुरू हो गई थी।
  • थोड़ा अजीब होते हुए भी सच यही है कि “पिछले तीन दशकों से दक्षिण एशिया में असहजता ही सही, लेकिन जो शांति है वह तबाही के उसी डर के कारण है जो दोनों देशों के परमाणु हथियार इन देशों में मचा सकते हैं”।
  • भले ही भारत और पाकिस्तान दोनों कई बार छोटी-मोटी लड़ाइयों में उलझते रहे हैं, लेकिन उन्हें एक-दूसरे के पास मौजूद महाविनाशकारी शक्तियों का अंदाज़ा है जिसकी वजह से किसी बड़े सैन्य युद्ध की संभावनाएँ न के बराबर हो गई हैं।
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