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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

1° सेल्सियस ताप वृद्धि पर लगभग 70 किसान आत्महत्याएँ

  • 02 Aug 2017
  • 4 min read

संदर्भ
अमेरिका से प्रकाशित एक शोधपत्र के अनुसार तापमान का बढ़ना भारत में किसान आत्महत्या का कारण बनता है। शोधकर्त्ताओं का दावा है कि गर्म जलवायु फसल उत्पादन को कम कर रही है, जिससे भारतीय किसानों की समस्याएँ बढ़ रही हैं। इस अध्ययन के मुताबिक भारत में पिछले 30 वर्षों में जलवायु परिवर्तन के कारण  59,000 से अधिक किसानों ने आत्महत्याएँ की हैं। 

प्रमुख बिंदु 

  • अमेरिका के बर्कले में स्थित कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय से ज़ारी एक शोधपत्र ‘प्रोसिडिंग्स ऑफ द नैशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज’ में कहा गया है कि फसल उगाने के मौसम में एक दिन में 20 डिग्री सेल्सियस से अधिक तापमान में 1 डिग्री सेल्सियस की बढ़ोतरी के कारण भारत में लगभग 70 आत्महत्याएँ  होती हैं।
  • यह अध्ययन भारत के सभी राज्यों और संघ शासित प्रदेशों के आँकड़ों का उपयोग करके किया गया है। 

सीमाएँ 

  • हालाँकि इस शोध में कुछ कमियाँ हैं।  इसमें कुछ अन्य कारकों पर ध्यान नहीं दिया है, जो आत्महत्याओं में योगदान देते हैं। 
  • इस शोधपत्र के एक लेखक ने जलवायु परिवर्तन, फसल की पैदावार और आत्महत्या के बीच 1967 और 2013 के बीच फसल की पैदावार और जलवायु के आंकड़ों के साथ भारत में आत्महत्याओं की संख्या की तुलना करते हुए उसके संबंधों का परीक्षण किया है। 
  • उन्होंने किसान आत्महत्याओं के आँकड़े राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो से एकत्र किये थे। 

एक अतिरिक्त बोझ

  • लेखक ने पाया कि गर्मी के कारण हुए फसल के नुकसान से किसानों पर अतिरिक्त बोझ पड़ता है, जिससे किसान आत्महत्या की ओर बढ़ जाता है।

दक्षिण भारत में अधिक 

  • इस अध्ययन में बताया गया है कि दक्षिण भारत में किसान आत्महत्या की दर उच्च है, क्योंकि  दक्षिण भारत आम तौर पर गर्म रहता है|
  • 13 राज्यों में मौसम की तुलना पैदावार से करते हुए, लेखक ने पाया कि उच्च तापमान से पैदावार के अधिक प्रभावित होने वाले राज्यों में ऐसे भी राज्य हैं, जहाँ आत्महत्या की घटनाएँ अधिक होती हैं।
  • महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश में न केवल  आत्महत्या की अत्यधिक प्रतिक्रिया दिखती हैं, बल्कि वहाँ उच्च तापमान से फसल की पैदावार भी नकारात्मक रूप से अधिक प्रभावित होती है।

भारत में अध्ययन पर्याप्त नहीं 

  • भारत के प्रख्यात कृषि वैज्ञानिक प्रोफेसर एम.एस. स्वामीनाथन ने भी तापमान और फसल उपज के बीच संबंध का अनुमोदन करते हुए माना है कि फसल की पैदावार पर तापमान बढ़ने का असर वास्तविक है। 
  • उन्होंने बताया कि 1980 के दशक में जब तापमान 1 से 1.5 डिग्री सेल्सियस बढ़ता था, तब फसल की अवधि एक महीने तक कम हो जाती थी। चूँकि फसल पकने की अवधि कम हो जाती थी, इसलिये उपज भी 300-400 किलोग्राम तक घट जाता था। 
  • प्रोफेसर स्वामीनाथन के अनुसार भारत में इस दिशा में गंभीरता से शोध नहीं किया गया है। 2050 तक भारत का औसत तापमान 3 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ने की संभावना है।
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