इंदौर शाखा: IAS और MPPSC फाउंडेशन बैच-शुरुआत क्रमशः 6 मई और 13 मई   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

डेली अपडेट्स


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

क्यों विशेष हैं ओलिव रिडले समुद्री कछुए?

  • 10 Nov 2017
  • 5 min read

चर्चा में क्यों?

  • उड़ीसा में गंजम ज़िले के समुद्री तट के आस-पास ओलिव रिडले कछुओं का दिखना आरंभ हो गया है। करीब ढाई किलोमीटर में फैले इस समुद्री तट पर प्रत्येक वर्ष लाखों की संख्या में ओलिव रिडले कछुए अपना बसेरा बनाते हैं।
  • गौरतलब है कि इस मौसम में ओलिव रिडले कछुए अपने मूल निवास-स्थान से हज़ारों किलोमीटर का सफर तय करने के बाद उड़ीसा के तट पर पहुँचते हैं। 

ओलिव रिडले कछुओं से संबंधित महत्त्वपूर्ण बिंदु

  • ओलिव रिडले समुद्री कछुओं (Lepidochelys olivacea) को ‘प्रशांत ओलिव रिडले समुद्री कछुओं’ के नाम से भी जाना जाता है।
  • यह मुख्य रूप से प्रशांत, हिन्द और अटलांटिक महासागरों के गर्म जल में पाए जाने वाले समुद्री कछुओं की एक मध्यम आकार की प्रजाति है। ये मांसाहारी होते हैं।
  • पर्यावरण संरक्षण की दिशा में काम करने वाला विश्व का सबसे पुराना और सबसे बड़ा संगठन आईयूसीएन (International Union for Conservation of Nature- IUCN) द्वारा जारी रेड लिस्ट में इसे अतिसंवेदनशील (Vulnerable) प्रजातियों की श्रेणी में रखा गया है।
  • ओलिव रिडले कछुए हज़ारों किलोमीटर की यात्रा कर उड़ीसा के गंजम तट पर अंडे देने आते हैं और फिर इन अंडों से निकले बच्चे समुद्री मार्ग से वापस हज़ारों किलोमीटर दूर अपने निवास-स्थान पर चले जाते हैं।
  • उल्लेखनीय है कि लगभग 30 साल बाद यही कछुए जब प्रजनन के योग्य होते हैं, तो ठीक उसी जगह पर अंडे देने आते हैं, जहाँ उनका जन्म हुआ था।
  • दरअसल अपनी यात्रा के दौरान वे भारत में गोवा, तमिलनाडु, केरल, आंध्र प्रदेश के समुद्री तटों से गुजरते हैं, लेकिन प्रजनन करने और घर बनाने के लिये उड़ीसा के समुद्री तटों की रेत को ही चुनते हैं।

गंजम तट पर ही क्यों आते हैं ओलिव रिडले कछुए?

  • दुनिया भर के विशेषज्ञ ओलिव रिडले कछुओं की इस प्रवृत्ति के बारे अब तक कुछ साफ नहीं बता पाए हैं, फिर भी कुछ वैज्ञानिकों का अनुमान है कि ओलिव रिडले कछुए ऐसी जगहों पर अपना बसेरा बनाते हैं जहाँ लवणता कम हो।
  • यही कारण है कि ये गंजम ज़िले में रशिकुल्या नदी के समुद्र से लगते मुहाने के पास अपना बसेरा बनाते हैं। हालाँकि बात जब यह आती है कि कैसे ये कछुए समुद्र की लवणता के बारे में अनुमान लगाते हैं तो वैज्ञानिकों के पास इसका कोई उत्तर नहीं मिलता है।

ओलिव रिडले कछुओं के अस्तित्व पर संकट क्यों?

  • विदित हो कि इन कछुओं को सबसे बड़ा नुकसान मछली पकड़ने वाले ट्रॉलरों से होता है। वैसे तो ये कछुए समुद्र की गहराई में तैरते हैं लेकिन चालीस मिनट के बाद इन्हें साँस लेने के लिये समुद्र की सतह पर आना पड़ता है और इस दौरान ये मछली पकड़ने वाले ट्रॉलरों की चपेट में आ जाते हैं।
  • हालाँकि, इस संबंध में उड़ीसा हाईकोर्ट ने आदेश दे रखा है कि कछुए के आगमन के रास्ते में संचालित होने वाले ट्रॉलरों में ‘टेड’ यानी टर्टल एक्सक्लूजन डिवाइस (एक ऐसा यंत्र जिससे कछुए मछुआरों के जाल में नहीं फँसते) लगाई जाए। यह चिंतनीय है कि इस आदेश का सख्ती से पालन नहीं होता है।
  • सरकार का आदेश है कि समुद्र तट के 15 किलोमीटर इलाके में कोई ट्रॉलर मछली नहीं पकड़ सकता लेकिन इस कानून का क्रियान्वयन सुनिश्चित नहीं किया जा सका है। कछुए जल-पारिस्थितिकी के संतुलन में अहम भूमिका निभाते हैं और इनका सरंक्षण सुनिश्चित किया जाना चाहिये।
close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2