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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

मानव स्वास्थ्य को प्रभावित करता पोल्ट्री उद्योग

  • 10 Nov 2017
  • 6 min read

चर्चा में क्यों?

पक्षियों (मुर्गी) के प्रति स्वच्छता के अभाव एवं क्रूरता के व्यवहार (उन्हें बैटरी-पिंजरों में सीमित करना) का सीधा असर इनसे प्राप्त मांस और अंडों का उपभोग करने वालों लोगों के स्वास्थ्य पर पड़ता है, जिसके कारण बहुत सी स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ उत्पन्न होती हैं। उदाहरण के तौर पर, कैंसर जैसे रोगों में वृद्धि होना।

  • भारतीय कानून आयोग द्वारा अपनी 269वीं रिपोर्ट में, पक्षियों के साथ किये जाने वाले क्रूरतापूर्ण व्यवहार को समाप्त करने तथा पोल्ट्री उद्योग में अधिक करुणामय प्रक्रियाओं का अनुपालन करने के लिये निम्नलिखित दो नए कानूनों का मसौदा प्रस्तुत किया गया है। 
  • इन दोनों कानूनों को प्रिवेंशन ऑफ क्रुएल्टी टू एनिमल्स (एग लेइंग हेन्स) रूल्स (Prevention of Cruelty to Animals (Egg Laying Hens) Rules), 2017 तथा प्रिवेंशन ऑफ क्रुएल्टी टू एनिमल्स (ब्रॉयलर चिकन) रूल्स (Prevention of Cruelty to Animals (Broiler Chicken) Rules), 2017 के रूप में प्रस्तुत किया गया है। 

रिपोर्ट में किन-किन बिन्दुओं पर प्रकाश डाला गया है? 

  • इन नए नियमों में मौजूदा बैटरी पिंजरों के बेहतर विकल्प के रूप में यह प्रावधान किया गया है कि मुर्गियों के लिये आवास के रूप में एक अधिक प्राकृतिक वातावरण उपलब्ध कराया जाना चाहिये, जिसमें कि मुर्गियाँ स्वतंत्र रूप से विचरण करते हुए अंडे दे सकें। इन नियमों के अंतर्गत मुर्गीपालन के संबंध में बेहतर तकनीकों को अपनाए जाने की मांग की गई है।
  • भारतीय कानून आयोग की रिपोर्ट में पोल्ट्री उद्योग में युवा नर चूज़ों की चोंच को तोड़ने और उनकी हत्या करने जैसी प्रथाओं की भी निंदा की गई है। 
  • इसके अंतर्गत इस विषय में चर्चा की गई है कि इन पक्षियों को अनावश्यक रूप से गैर-चिकित्सीय एंटीबायोटिक दवाइयाँ (जो अंततः एंटीबायोटिक प्रतिरोध को बढ़ावा प्रदान करती है) दिये जाने का सीधा प्रभाव मानव स्वास्थ्य पर पड़ता है।
  • कानून आयोग द्वारा अपनी रिपोर्ट में इस बात को भी इंगित किया गया है कि भारतीय पोल्ट्री उद्योग क्रूरता मुक्त मांस/जैविक रूप से उत्पादित अंडों के संबंध में उपभोक्ताओं की बढ़ती मांग को पूरा करने में असमर्थ है। इस प्रकार की प्रवृत्ति के अभाव ने विक्रेताओं और आतिथ्य उद्योग को अपने व्यवसाय का संचालन करने में काफी मुश्किलें उत्पन्न कर दी हैं।

प्रमाणीकरण संबंधी सुझाव 

  • इस रिपोर्ट में राज्य पशुपालन विभागों (State animal husbandry departments) द्वारा मुर्गीपालन के फार्मों के प्रमाणीकरण संबंधी सिफारिश भी प्रस्तुत की गई है। 
  • प्रमाणीकरण के अंतर्गत पिंजरे मुक्त मुर्गियों द्वारा प्रदत्त अंडों एवं बैटरी वाले पिंजरे युक्त फार्मों से प्राप्त अंडों के मध्य भेद किया जाना चाहिये।

नए नियम क्या है?

  • प्रिवेंशन ऑफ क्रुएल्टी टू एनिमल्स (एग लेइंग हेन्स) रूल्स में किसानों के लिये भी दायित्व निर्धारित किये गए हैं। इन नियमों के अंतर्गत किसान द्वारा किसी भी प्रकार के ज्यूनोटिक (zoonotic) रोगों (पशुओं से मानवों में होने वाले रोग जैसे रेबीज़ आदि) या संक्रामक बीमारी के संक्रमण फैलने अथवा संदिग्ध प्रकोप की स्थिति के विषय में तत्काल स्थानीय प्राधिकरण, राज्य बोर्ड एवं राज्य सरकार को रिपोर्ट किया जाएगा। 
  • इसके अतिरिक्त यह भी व्यवस्था की गई है कि प्रत्येक फार्म में अलग से एक ऐसा बाड़ा बनाया जाना चाहिये जिसमें बीमार मुर्गियों या बीमार होने की संभावना वाली मुर्गियों को उपचार के निवारण हेतु रखा जा सके। 
  • प्रिवेंशन ऑफ क्रुएल्टी टू एनिमल्स (ब्रॉयलर चिकन) नियमों के अंतर्गत आयोग द्वारा यह सिफारिश की गई है कि चूज़ों को पिंजरों में अथवा तार या स्लैटेड फ़र्श पर नहीं रखा जाना चाहिये। 
  • चूज़ों को बिना किसी कठिनाई के घुमने-फिरने, सामान्य रूप से खड़े होने तथा पंखों को फैलाने आदि के लिये पर्याप्त जगह उपलब्ध कराई जानी चाहिये।
  • इसके अतिरिक्त इन नियमों में इस बात को भी स्पष्ट किया गया है कि घर के अंदर रहने वाले चूज़ों को सक्रिय बनाए रखने के लिये एक "प्रेरणादायक वातावरण" उपलब्ध कराया जाना चाहिये। इनके तहत  रैंप, बैठने की उचित जगह, चुगने के लिये ब्लॉक और पुआल की गाँठे, भोजन करने के लिये घुमने-फिरने की जगह आदि को शामिल किया गया है। 
  • इसके अलावा यह भी सुनिश्चित किया गया है कि मुर्गीपालन फार्मों द्वारा केवल लाइसेंस प्राप्त वधशालाओं (slaughter houses) को ही मुर्गियाँ बेची जानी चाहिये।
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