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कितना उचित है पटाखों पर प्रतिबंध?

  • 10 Oct 2017
  • 6 min read

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली एनसीआर में पटाखों की बिक्री पर रोक लगा दी है। दीवाली के दौरान होने वाली आतिशबाजियों के कारण प्रत्येक वर्ष राष्ट्रीय राजधानी में वायु की गुणवत्ता काफी गिर जाती है। इसके मद्देनज़र सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि 1 नवंबर तक पटाखों की बिक्री पर रोक लगनी चाहिये और उसके बाद यह अवलोकन किया जाएगा कि इस प्रतिबंध से वायु की गुणवत्ता में कुछ सुधार आया है कि नहीं।

क्यों उचित है पटाखों पर प्रतिबंध?

  • केवल मनोरंजन के लिये छोड़े जाने वाले पटाखों से नाइट्रोजन डाइऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड और सूक्ष्म कणों का उत्सर्जन होता है। ये सुक्ष्म कण इतने खतरनाक होते हैं कि ये किसी व्यक्ति के फेफड़े में जमा हो सकते हैं, यहाँ तक कि ये रक्त प्रवाह में भी घुस सकते हैं। दीवाली के दौरान अस्थमा और अन्य श्वसन विकारों से ग्रस्त लोगों को विशेष रूप से कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।
  • पटाखे, उन रसायनों से बने होते हैं जो स्वास्थ्य के लिये घातक होते हैं। कॉपर की वज़ह से श्वसन तंत्र प्रभावित होता है, कैडमियम एनीमिया का कारण बनता है और गुर्दे को नुकसान पहुँचाता है, लीड तंत्रिका तंत्र को प्रभावित करता है, नाइट्रेट व्यक्ति को मानसिक तौर पर अपंग बना सकता है या फिर कोमा में भी पहुँचा सकता है।
  • पटाखों से होने वाला ध्वनि प्रदूषण स्थायी और अस्थायी तौर पर व्यक्ति की सुनने की क्षमता को प्रभावित कर सकता है। दीवाली की रात पटाखों के कारण बुजुर्गों को कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है जैसे- बेचैनी और रक्तचाप में वृद्धि।
  • हर साल, पटाखों के अनुचित उपयोग होने के कारण बहुत सारी दुर्घटनाएँ होती हैं, जिनमें या तो कुछ लोग जीवन से हाथ धो बैठते हैं या फिर हमेशा के लिये अपंग हो जाते हैं। आग से खेलना हर किसी के लिये मज़ेदार नहीं हो सकता है, खासकर जब देश के अधिकतर हिस्से में पूरी रात सल्फर और नाइट्राइट का उत्सर्जन होता है।
  • इन पटाखों का उत्पादन करने वाले कारखानों में काम करने वालों की परिस्थितियाँ दयनीय हैं। बिना किसी एहतियाती उपाय या उचित सुरक्षा के वे खतरनाक रसायनों के साथ दिन-रात काम करते हैं और परिणामस्वरूप प्रायः दुर्घटनाएँ होती रहती हैं। दीवाली के दौरान इन पटाखों की बढ़ी हुई मांग को पूरा करने के लिये इस उद्योग में बड़ी संख्या में बाल मज़दूरों को भी शामिल कर लिया जाता है।

पटाखों पर प्रतिबंध उचित क्यों नहीं?

  • वर्षों से लोग पटाखों के साथ दीवाली मनाते आ रहे हैं और अचानक उन पर प्रतिबंध लगाने से उनकी धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँच सकती है। पटाखे दीवाली समारोह का एक अंतर्निहित हिस्सा हैं। साथ ही न कि केवल हिंदु समुदाय, बल्कि अन्य धर्मों के लोग भी इस त्यौहार में समान रूप से हिस्सा लेते हैं।
  • आतिशबाजी पर प्रतिबंध लगाने के बजाय पटाखों की मात्रा को कम करने के लिये सुधार किये जा सकते हैं, जैसे- कम आवाज़ और कम प्रदूषण वाले पटाखों की बिक्री को ही अनुमति देना और अस्पतालों एवं अन्य संवेदनशील क्षेत्रों में पटाखों को लेकर निषेध नियम बनाना तथा इन्हें कड़ाई से लागू करना।

निष्कर्ष

  • ध्वनि और वायु प्रदूषण को कम करने के लिये हर साल कुछ न कुछ उपाय किये जाते हैं, लेकिन अंततः ये उपाय इन पटाखों के भारी धुएँ में धूमिल हो जाते हैं। आज भारत ही नहीं बल्कि समूचा विश्व पर्यावरणीय समस्याओं से जूझ रहा है और परंपरा के नाम पर पटाखों पर प्रतिबंध न लगाना उचित नहीं जान पड़ता है। 
  • जिस तरह से परंपरा के नाम पर दीवाली के दौरान आतिशबाजी पर प्रतिबंध का विरोध हो रहा है, वैसा ही विरोध अगर बलि प्रथा पर लगे प्रतिबंध का भी होने लगे, सती, जाति और छुआछूत को भी परंपरा कहकर फिर से लागू करने की बात की जाने लगे तो?
  • देश को यह समझना होगा कि हम परंपराओं के नाम पर अपनी ही धरती को खत्म नहीं कर सकते। हाँ यदि कोई परंपरा जन-मानस के अंदर इतनी रच-बस गई है कि उसे समाप्त नहीं किया जा सकता तो उस परंपरा में सुधारवादी प्रयास तो होने ही चाहिये।
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