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क्या ज़रूरतमंदों तक कृषि ऋण पहुँच रहा है?

  • 23 May 2018
  • 6 min read

चर्चा में क्यों?

रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया (Reserve Bank of India) द्वारा प्रदान की गई जानकारी के मुताबिक कृषि ऋण प्राप्तकर्त्ताओं की गणना में यह पाया गया है कि छोटे और सीमांत किसानों को बहुत कम संख्या में कृषि ऋण प्रदान किया गया है। आँकड़ों से प्राप्त जानकारी के अनुसार, केवल 30 से 40% ऋण ही छोटे एवं सीमान्त किसानों को दिये जाते हैं।

रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया की रिपोर्ट

  • रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया द्वारा कृषि पर बनी संसदीय स्थायी समिति (Parliamentary Standing Committee on Agriculture) को प्रस्तुत एक रिपोर्ट के अनुसार, 2016-17 में वितरित कृषि ऋण का केवल 42.2% छोटे और सीमांत किसानों को प्रदान किया गया।

इस रिपोर्ट का विचारणीय पक्ष क्या है?

  • इस रिपोर्ट का अध्ययन करने के बाद दो महत्त्वपूर्ण विचारणीय पक्ष सामने आते हैं। पहला, यह न्यायसंगत नहीं है, जहाँ कुछ किसानों (बड़े किसान और कुछ वे जो शहरी क्षेत्रों के करीब रहते हैं) की किसान ऋण तक पर्याप्त पहुँच है, वे इस सुविधा का अत्यधिक लाभ उठा रहे हैं अथवा यह कहा जा सकता है कि वे इसका दोहन कर रहे हैं।
  • दूसरा यह कि ऐसी स्थिति में जहाँ तक प्राथमिकता क्षेत्र ऋण जनादेश (Priority Sector Lending Mandates) का संबंध है, यह जनादेश एक विशेष प्रकार के किसान तक पहुँचने में सफल नहीं हो पा रहा है। स्पष्ट रूप से कार्यक्रम स्वयं में पूर्ण रूप से लक्षित नहीं है।

ऋण लागत

  • रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया के नियमानुसार, किसी भी बैंक के समायोजित नेट बैंक क्रेडिट का 18% कृषि क्षेत्र को दिया जाना चाहिये। इतना ही नहीं, इस क्रेडिट का 8% छोटे और सीमांत किसानों को दिया जाना चाहिये। तब जबकि बैंकिंग क्षेत्र ने समग्र रूप से इस सीमा को पूरा किया है, फिर भी कृषि क्षेत्र को दिया जाने वाल ऋण एक अंतर्निहित लक्ष्यीकरण समस्या के रूप में उभर कर सामने आ रहा है।
  • यहाँ यह समझना बेहद ज़रुरी है कि आरबीआए द्वारा प्राथमिकता क्षेत्र ऋण जनादेश के रूप में इसलिये नियम बनाए गए हैं ताकि बैंक कृषि क्षेत्र में निवेश कर सकें, अधिक मुनाफा न होने की स्थिति में बैंक इस क्षेत्र को उतना उधार नहीं देंगे जितना कि वर्तमान में केंद्रीय बैंक द्वारा तय किया गया है।
  • इसलिये इस क्षेत्र को उधार देने की कुछ लागतें तय की गई हैं और यदि उन्हें यह जनादेश नहीं दिया जाता है, तो इस ऋण लागत के चलते बैंक कृषि क्षेत्र को उतना उधार नहीं देंगे जितना सरकार उनसे चाहती है।
  • ऐसी स्थिति में होता क्या है कि बैंक कृषि ऋण प्रदान करने के लिये केवल उन क्षेत्रों का चुनाव करते हैं जहाँ ऋण लागत कम होती है, जैसे- शहरी क्षेत्रों के नज़दीक या उन किसानों के लिये जो अधिक क्रेडिट योग्य हैं अर्थात् मध्यम और बड़े किसान।
  • रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया के आँकड़े इसी धारणा का समर्थन करते प्रतीत होते हैं। ये आँकड़े यह दर्शाते हैं कि 2017 तक बकाया कृषि ऋण का केवल 34.5% ग्रामीण किसानों को प्रदान किया गया है।
  • शेष ऋण अर्द्ध-शहरी, शहरी और महानगरीय किसानों को दिया गया है। मुद्दा यह है कि इन किसानों को प्राथमिकता क्षेत्र ऋण जनादेश के बिना भी क्रेडिट मिलता है।
  • यह इस बात को स्पष्ट करता है कि प्राथमिकता क्षेत्र ऋण जनादेश के संबंध में गहन अध्ययन किये जाने की आवश्यकता है।

आँकड़ों से प्राप्त जानकारी के अनुसार

  • आँकड़ों से यह भी पता चलता है कि न केवल सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों द्वारा कृषि ऋण प्रदान करने की संख्या में कमी आ रही है, बल्कि यही स्थिति निजी क्षेत्र के बैंकों की भी है।
  • इस संबंध में सबसे अधिक विचारणीय प्रश्न यह है कि प्राथमिकता क्षेत्र ऋण जनादेश के बिना भी किसानों को ऋण प्राप्त होना चाहिये। इसके अंतर्गत भले ही ऋण की सीमा को कम किया जा सकता है, लेकिन किसानों को ऋण दिये जाने के संबंध में नियमों को और अधिक कठोर बनाया जाना चाहिये।

निष्कर्ष

ये आँकड़े राज्यों के बीच ऋण संबंधी प्रदर्शन के संदर्भ में विद्यमान एक बड़ी असमानता को भी स्पष्ट करते है, एक उदाहरण के अनुसार, मेघालय जैसे राज्य छोटे और सीमांत किसानों को 93.6% कृषि ऋण प्रदान करते हैं, जबकि सिक्किम जैसे कुछ अन्य राज्यों में यह अनुपात 1.67% से भी कम है। हालाँकि इनमें से कुछ को इन राज्यों के किसानों के विभिन्न प्रकार के वितरण द्वारा भी समझा जा सकता है, तथापि यह स्पष्ट है कि ऋण वितरण के संबंध में विसंगति की एक बड़ी वज़ह लक्ष्यीकरण समस्या के कारण है। इसके निदान के लिये गहन अध्ययन के साथ-साथ विशेषज्ञों द्वारा विचार-विमर्श भी किया जाना चाहिये। 

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