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सामाजिक न्याय

भारत में बंधुआ मज़दूरी

  • 09 Nov 2019
  • 6 min read

प्रीलिम्स के लिये:

बंधुआ मज़दूरी, बंधुआ मज़दूरी प्रणाली (उन्मूलन) अधिनियम, बंधुआ मज़दूर पुनर्वास योजना

मेन्स के लिये:

भारत में बंधुआ मज़दूरी की वर्तमान स्थिति और संबंधित मुद्दे

चर्चा में क्यों?

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग द्वारा आयोजित एक दिवसीय संगोष्ठी में ज़िक्र किया गया कि यदि देश में सती प्रथा जैसी सामाजिक बुराइयों को समाप्त किया जा सकता है, तो बंधुआ मज़दूरी को क्यों नहीं?

  • गौरतलब है कि भारत में बंधुआ मज़दूरी प्रणाली (उन्मूलन) अधिनियम, 1976 के माध्यम से बंधुआ मज़दूरी को पूर्णतः प्रतिबंधित कर दिया गया था।
  • श्रम एवं रोज़गार मंत्रालय के आँकड़े बताते हैं कि बीते 4 वर्षों में 13,500 से अधिक बंधुआ मज़दूरों को रिहा करवाया गया और उनके पुनर्वास की व्यवस्था की गई।

बंधुआ मज़दूरी और भारत में उसकी स्थिति

  • बंधुआ मज़दूरी में व्यक्ति निश्चित समय तक सेवाएँ देने के लिये बाध्य होता है। ऐसा वह साहूकारों या ज़मींदारों से लिये गए ऋण को चुकाने के लिये करता है। एक अनुमान के मुताबिक, वर्ष 2018 में भारत में लगभग 32 लाख बंधुआ मज़दूर थे और इनमें से अधिकांश ऋणग्रस्तता के शिकार थे।
  • वर्ष 2016 में जारी ग्लोबल स्लेवरी इंडेक्स के मुताबिक, भारत में तकरीबन 8 मिलियन लोग आधुनिक गुलामी में जी रहे हैं।
  • बंधुआ मज़दूरी मुख्यतः कृषि क्षेत्र तथा अनौपचारिक क्षेत्र, जैसे- सूती कपड़ा हथकरघा, ईंट भट्टे, विनिर्माण, पत्थर खदान, रेशमी साड़ियों का उत्पादन, चाँदी के आभूषण, सिंथेटिक रत्न आदि में प्रचलित है।
  • गौरतलब है कि कम आय वाले राज्य जैसे- झारखंड, ओडिशा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश आदि बंधुआ मज़दूरी की दृष्टि से अधिक संवेदनशील हैं।

बंधुआ मज़दूरी के प्रसार के कारण

  • विशेषज्ञों के अनुसार, देशव्यापी स्तर पर फैली गरीबी और सामाजिक-आर्थिक असमानता बंधुआ श्रम के प्रसार के पीछे प्रमुख कारण है।
  • भूमिहीनता को भी बंधुआ मज़दूरी के प्रसार का बड़ा कारण माना जा सकता है। भूमि न होने के कारण लोगों को मज़दूरी के विकल्प का चुनाव करना पड़ता है और वे ऋण जाल में फँस जाते हैं।
  • औपचारिक ऋण की अनुपस्थिति में ग्रामीण गरीब धन उधारदाताओं से ऋण लेने के लिये मजबूर हो जाते हैं।
  • श्रमिकों और नियोक्ताओं के मध्य इस संबंध में जागरूकता की कमी भी देखी गई है।

बंधुआ मज़दूरी प्रणाली (उन्मूलन) अधिनियम, 1976

  • बंधुआ मज़दूरी प्रणाली (उन्मूलन) अधिनियम, 1976 आर्थिक और सामाजिक रूप से कमज़ोर वर्गों के शोषण को रोकने के उद्देश्य वर्ष 1976 में इसे अधिनियमित किया गया था।
  • इस अधिनियम के तहत बंधुआ मज़दूरी को पूरी तरह से खत्म कर मज़दूरों को रिहा कर दिया गया और उनके कर्ज़ भी समाप्त कर दिये गए।
  • साथ ही इस अधिनियम के तहत बंधुआ मज़दूरी प्रथा को एक दंडनीय संज्ञेय अपराध भी घोषित किया गया।
  • विदित हो कि यह कानून श्रम एवं रोज़गार मंत्रालय तथा संबंधित राज्य सरकार द्वारा प्रशासित और कार्यान्वित किया जा रहा है।
  • मंत्रालय द्वारा बंधुआ मज़दूरी को पूर्णतः समाप्त करने के उद्देश्य से बंधुआ मज़दूरों के पुनर्वास से संबंधित भी कई योजनाएँ चलाई जा रही हैं।

अधिनियम के मुख्य प्रावधान:

  • बंधुआ मज़दूरी प्रणाली को समाप्त कर प्रत्येक बंधुआ मज़दूर को मुक्त किया जाए।
  • कोई भी प्रथा, समझौता या अन्य साधन जिसके आधार पर किसी व्यक्ति को बंधुआ मज़दूरी जैसी कोई सेवा देने की आवश्यकता हो, को निरस्त किया गया है।
  • अधिनियम के लागू होने से पूर्व लिये गए ऋण को चुकाने के लिये बंधुआ मज़दूर के दायित्व को समाप्त किया जाता है।

पुनर्वास के प्रयास- बंधुआ मज़दूर पुनर्वास योजना 2016

  • इस योजना के तहत बंधुआ मज़दूरी से मुक्त किये गए वयस्क पुरुषों को 1 लाख रुपए तथा बाल बंधुआ मज़दूरों और महिला बंधुआ मज़दूरों को 2 लाख रुपए तक की वित्तीय सहायता प्रदान करने की व्यवस्था की गई है।
  • साथ ही योजना के तहत प्रत्येक राज्य को इस संबंध में सर्वेक्षण के लिये भी प्रति ज़िला 4.50 लाख रुपए की वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है।

स्रोत: द हिंदू

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