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भारतीय अर्थव्यवस्था

उधार पर राज्य की गारंटी पर दिशा-निर्देश

  • 06 Feb 2024
  • 13 min read

प्रिलिम्स के लिये:

उधार पर राज्य की गारंटी पर RBI के दिशा-निर्देश, भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI), भारतीय संविदा अधिनियम, 1872

प्रिलिम्स के लिये:

उधार पर राज्य की गारंटी पर RBI के दिशा-निर्देश।

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) द्वारा गठित एक कार्य समूह ने राज्य सरकारों द्वारा दी गई गारंटी से संबंधित मुद्दों के समाधान के लिये कुछ सिफारिशें की हैं। 

  • जुलाई 2022 में आयोजित राज्य वित्त सचिवों के 32वें सम्मेलन के दौरान कार्य समूह का गठन किया गया।

गारंटी क्या है?

  • परिचय:
    • भुगतान करने और किसी निवेशक/ऋणदाता को उधारकर्त्ता द्वारा डिफाॅल्ट के जोखिम से बचाने के लिये 'गारंटी' राज्य हेतु एक कानूनी दायित्व है।
    • भारतीय संविदा अधिनियम, 1872 के अनुसार, एक गारंटी, किसी तीसरे व्यक्ति के डिफाॅल्ट के मामले में "वादा पूरा करने या दायित्व का निर्वहन करने" का एक अनुबंध है। इसमें तीन पक्ष शामिल हैं: प्रमुख देनदार, लेनदार और ज़मानतदार।
      • लेनदार: वह संस्था जिसे गारंटी दी गई है। यह वह पक्ष है जिसे भुगतान देय है और वे गारंटी द्वारा सुरक्षित हैं।
      • प्रमुख देनदार: वह संस्था जिसकी ओर से गारंटी दी गई है। यह वह पार्टी है जिस पर क़र्ज़ बकाया या देनदारी है।
      • ज़मानतदार: गारंटी प्रदान करने वाली इकाई (इस संदर्भ में राज्य सरकारें), जो वादा पूरा करने या डिफाॅल्ट के मामले में मुख्य देनदार की देनदारी का निर्वहन करने का वादा करती है।
        • यदि गारंटीकर्त्ता डिफाॅल्ट करता है तो वह वादा पूरा करने या प्रमुख देनदार की देनदारी का निर्वहन करने के लिये कानूनी दायित्व लेता है।
    • एक गारंटी को 'क्षतिपूर्ति' अनुबंध के साथ भ्रमित नहीं किया जाना चाहिये जो ऋणदाता को वचनकर्त्ता/प्रॉमिसर (या मूल देनदार) के आचरण से होने वाले नुकसान से बचाता है।
  • चित्रण (Illustration):
    • यदि A, B को कुछ सामान या सेवाएँ वितरित करता है और B सहमत भुगतान नहीं करता है, तो B चूककर्त्ता है तथा उस पर ऋण के लिये मुकदमा दायर होने का जोखिम है।
    • जब C आगे आता है और वादा करता है कि वह B के लिये भुगतान करेगा। A मना करने के अनुरोध से सहमत है। C की कार्रवाई एक गारंटी का गठन करती है।
  • गारंटी का उद्देश्य:
    • राज्य स्तर पर, गारंटियों का उपयोग आमतौर पर तीन स्थितियों में किया जाता है।
      • रियायती ऋण की मांग: सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों के लिये द्विपक्षीय या बहुपक्षीय एजेंसियों से रियायती ऋण की मांग करते समय, अक्सर संप्रभु गारंटी की आवश्यकता होती है।
      • परियोजनाओं की व्यवहार्यता में सुधार के लिये: महत्त्वपूर्ण सामाजिक और आर्थिक लाभ का वादा करने वाली परियोजनाओं की व्यवहार्यता सुधार हेतु गारंटियाँ नियोजित की जाती हैं।
      • कम ब्याज पर संसाधनों को सुरक्षित करना: सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यम कम ब्याज़ दरों अथवा अधिक अनुकूल शर्तों पर संसाधनों को सुरक्षित करने के लिये गारंटी का उपयोग कर सकते हैं।
  • गारंटी से संबंधित जोखिम:
    • उपयुक्त समय में गारंटियाँ उपयोगी होती हैं किंतु इनके उपयोग से राजकोषीय जोखिम उत्पन्न होता है।
    • कार्य-दल की रिपोर्ट के अनुसार गारंटी के मामले में आमतौर पर अग्रिम नकद भुगतान की आवश्यकता नहीं होती है जिसके परिणामस्वरूप इसका व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है।
    • गारंटी ट्रिगर तथा संबंधित लागतों का अनुमान लगाना अक्सर चुनौतीपूर्ण होता है जिससे इस प्रथा से अप्रत्याशित नकदी बहिर्वाह हो सकता है एवं राज्य के लिये ऋण में वृद्धि हो सकती है।
    • वाणिज्यिक बैंकों अथवा वित्तीय संस्थानों से ऋण प्राप्त करने के लिये राज्य सरकारें अक्सर राज्य के स्वामित्व वाले उद्यमों, सहकारी संस्थानों और शहरी स्थानीय निकायों जैसी विभिन्न संस्थाओं की ओर से गारंटी प्रदान करने के लिये बाध्य होती है।
      • राज्य द्वारा गारंटी दिये जाने के बदले में ये संस्थाएँ राज्य सरकार को गारंटी कमीशन अथवा शुल्क का भुगतान करती हैं।

गारंटी के संबंध में RBI कार्य-दल की प्रमुख अनुशंसाएँ क्या हैं?

  • गारंटी की परिभाषा:
    • कार्य-दल के अनुसार गारंटी शब्द का उपयोग व्यापक अर्थ में किया जाना चाहिये तथा इनमें वे सभी कारक शामिल होने चाहिये जिनके अंतर्गत उधारकर्त्ता द्वारा भविष्य में भुगतान करने में विफल रहने की दशा में गारंटीकर्त्ता (राज्य) द्वारा उसके ऋण भुगतान के दायित्व का निर्वहन किया जाता है।
    • इसके अतिरिक्त राजकोषीय जोखिम का आकलन करने के लिये राज्य को सशर्त अथवा शर्त रहित अथवा वित्तीय अथवा निष्पादन गारंटी के बीच अंतर स्पष्ट करना चाहिये।
      • ये सशर्त देनदारियाँ हैं जो भविष्य में संभावित जोखिम पेश कर सकती हैं।
  • केवल मूल ऋण के लिये गारंटी:
    • सरकारी गारंटी का उपयोग राज्य के स्वामित्व वाली संस्थाओं के माध्यम से वित्त प्राप्त करने के लिये नहीं किया जाना चाहिये जो राज्य सरकार के बजटीय संसाधनों के विकल्प के रूप में कार्य करती हैं।
      • इसके अतिरिक्त गारंटी का उपयोग करके राज्य पर प्रत्यक्ष दायित्व/वस्तुतः दायित्व बनाने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिये।
    • संबद्ध विषय में भारत सरकार के दिशा-निर्देशों का अनुपालन किया जाना चाहिये जो यह निर्धारित करते हैं कि गारंटी केवल मूल राशि तथा अंतर्निहित ऋण के सामान्य ब्याज के लिये प्रदान की  जानी चाहिये।
    • बाह्य वाणिज्यिक उधार (External Commercial Borrowings) के लिये गारंटी नहीं दी जानी चाहिये, परियोजना ऋण के 80% से अधिक के लिये गारंटी दी जानी चाहिये (ऋणदाता द्वारा लगाई गई शर्तों के आधार पर) और साथ ही निजी क्षेत्र की कंपनियों तथा संस्थानों को गारंटी प्रदान नहीं किया जाना चाहिये।
    • उचित पूर्व शर्तें जैसे कि गारंटी की अवधि, जोखिम को कवर करने के लिये (गारंटी) शुल्क लगाना, उधार लेने वाली इकाई के प्रबंधन बोर्ड में सरकारी प्रतिनिधित्व तथा अंकेक्षण का अधिकार आदि निर्दिष्ट किया जाना चाहिये।
  • जोखिम निर्धारण, शुल्क तथा उच्चतम सीमा:
    • कार्य-दल द्वारा अनुशंसा की गई है कि राज्य संबद्ध इकाई के विगत व्यतिक्रम (Default) इतिहास को ध्यान में रखते हुए गारंटी से जुड़े जोखिम का आकलन उच्च, मध्यम अथवा निम्न जोखिम के रूप में वर्गीकृत करके किया जाना चाहिये।
      • इन जोखिम भारों को निर्दिष्ट करने के लिये उपयोग की जाने वाली पद्धति पारदर्शी और सुस्पष्ट होनी चाहिये।
      • जोखिम मूल्यांकन के आधार पर न्यूनतम गारंटी शुल्क न्यूनतम 2.5% प्रति वर्ष निर्धारित किया जाना चाहिये।
    • यह रिपोर्ट इस बात पर बल देती है कि गारंटी लागू करने से राज्य सरकार पर काफी वित्तीय दबाव पड़ सकता है।
  • प्रकटीकरण एवं प्रतिबद्धताओं का सम्मान:
    • समूह की सिफारिश है कि आरबीआई को बैंकों/NBFC को राज्य सरकार की गारंटी के साथ राज्य के स्वामित्व वाली संस्थाओं को दिये गए ऋण का खुलासा करने का सुझाव देना चाहिये। 
    • रिपोर्ट में विस्तारित गारंटी को ट्रैक करने के लिये एक व्यापक डेटाबेस की आवश्यकता पर बल दिया गया है, इस उद्देश्य के लिये राज्य स्तर पर एक इकाई के निर्माण का प्रस्ताव भी है।
    • संभावित जोखिमों को स्वीकार करते हुए, रिपोर्ट इस बात पर प्रकाश डालती है कि गारंटी का सम्मान करने में देरी राज्य सरकार की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुँचा सकती है और कानूनी जोखिम पैदा कर सकती है।
    • यह राज्यों को प्रतिबद्धताओं को पूरा न करने के इतिहास वाली संस्थाओं को वित्त प्रदान करते समय सतर्क रहने की सलाह देता है।
    • इसके अतिरिक्त, रिपोर्ट ऋणदाताओं और निवेशकों के बीच विश्वसनीयता बनाए रखने के लिये गारंटी का तुरंत सम्मान करने के महत्त्व पर बल देती है।

सरकार द्वारा दी गई विभिन्न गारंटियाँ क्या हैं?

  • धन के पुनर्भुगतान और ब्याज के भुगतान, नकद ऋण सुविधा, मौसमी कृषि कार्यों के वित्तपोषण तथा कंपनियों, निगम सहकारी समितियों एवं सहकारी बैंकों के संबंध में कार्यशील पूंजी प्रदान करने के लिये RBI, अन्य बैंकों व वित्तीय संस्थानों (भारतीय औद्योगिक वित्त निगम,भारतीय बीमा निगम, भारतीय यूनिट ट्रस्ट) को दी गई गारंटी।
  • धन की अदायगी, ब्याज के भुगतान आदि के लिये भारत सरकार द्वारा अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों के साथ किये गए समझौतों के अनुसरण में दी गई गारंटी।
  • बैंकों द्वारा कंपनियों/निगमों के पक्ष में क्रेडिट आधार पर की गई आपूर्ति/सेवाओं के लिये विदेशी आपूर्तिकर्त्ताओं को प्राधिकार पत्र जारी करने पर विचार करते हुए बैंकों को जवाबी गारंटी
  • कंपनियों/निगमों द्वारा बकाया/माल ढुलाई शुल्क के उचित और समय पर भुगतान के लिये रेलवे/राज्य विद्युत बोर्डों को दी गई गारंटी। (पिछले कुछ वर्षों से शून्य)
  • भारतीय कंपनियों या विदेशी कंपनियों को विदेशों में किये गए अनुबंधों/परियोजनाओं की पूर्ति के लिये दी गई प्रदर्शन की गारंटी। (पिछले कुछ वर्षों से शून्य)
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