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राजनीतिक उदासीनता के बीच आगे बढ़ सकता चुनाव बॉन्ड कार्यक्रम

  • 26 Jul 2017
  • 3 min read

चर्चा में क्यों ?
सरकार ने कहा है कि आम सहमति में टाल-मटोल के बावजूद वह चुनाव बॉन्ड कार्यक्रम के साथ आगे बढ़ेगी, क्योंकि अभी तक कोई भी राजनीतिक दल इस बारे में सुझाव के साथ आगे नहीं आया है। उल्लेखनीय है कि राजनीतिक चंदे की प्रक्रिया में पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिये सरकार ने राजनीतिक दलों को अज्ञात नकद चंदे की सीमा 2,000 रुपए तय की थी तथा चुनाव बॉन्ड लाने का विचार पेश किया था।

क्या है चुनाव बॉन्ड

  • यदि हम बॉन्ड की बात करें तो यह एक ऋण सुरक्षा है। चुनावी बॉन्ड का जिक्र सर्वप्रथम वर्ष 2017 के आम बजट में किया गया था।
  • दरअसल, यह कहा गया था कि आरबीआई एक प्रकार का बॉन्ड जारी करेगा और जो भी व्यक्ति राजनीतिक पार्टियों को दान देना चाहता है, वह पहले बैंक से बॉन्ड खरीदेगा फिर वह जिस भी राजनैतिक दल को दान देना चाहता है दान के रूप में बॉन्ड दे सकता है।
  • राजनैतिक दल इन चुनावी बॉन्‍ड की बिक्री अधिकृत बैंक को करेंगे और वैधता अवधि के दौरान राजनैतिक दलों के बैंक खातों में बॉन्ड के खरीद के अनुपात में राशि जमा करा दी जाएगी।
  • गौरतलब है कि चुनाव बॉन्ड एक प्रामिसरी नोट की तरह होगा, जिस पर किसी भी प्रकार का ब्याज नहीं दिया जाएगा। उल्लेखनीय है कि चुनाव बॉन्‍ड को चैक या ई-भुगतान के ज़रिये ही खरीदा जा सकता है।

निष्कर्ष

  • कालेधन और भ्रष्टाचार की जड़ समझे जाने वाले राजनीतिक दलों के चंदे में पारदर्शिता लाने के लिये बॉन्ड जारी करना निश्चित रूप से एक महत्त्वपूर्ण सुधार है, लेकिन इस से कुछ चिंताएँ भी जुड़ी हुई हैं।
  • सरकार की योजना ये है कि जो भी व्यक्ति किसी पार्टी को वैध तरीके से अर्जित पैसा देना चाहे, वो बैंक जाकर उतनी रकम का चुनाव बॉन्ड खरीद लेगा। 
  • दरअसल, राजनैतिक दलों को यह नहीं बताना पड़ेगा कि उन्हें किस व्यक्ति और कंपनी से दान मिला है। राजनैतिक दलों को ये भी नहीं बताना पड़ेगा कि उसे कुल कितनी रकम के बॉन्ड मिले हैं।
  • अतः पार्टियों को मिलने वाले चंदे में पारदर्शिता सुनिश्चित करने के उदेश्य से लाया गया चुनाव बॉन्ड तभी अपने उदेश्यों को प्राप्त कर सकेगा, जब इसकी व्यवहार्यता के बारे में चर्चा हो। राजनैतिक दलों का इसके प्रति उदासीनता दिखलाना चिंतिंत करने वाला है।
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