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सामाजिक न्याय

अंग प्रत्यारोपण में लैंगिक असमानता

  • 17 Nov 2023
  • 9 min read

प्रिलिम्स के लिये:

मानव अंग प्रत्यारोपण अधिनियम 1994, राष्ट्रीय अंग प्रत्यारोपण दिशा-निर्देश, राष्ट्रीय अंग और ऊतक प्रत्यारोपण संगठन

मेन्स के लिये:

अंग प्रत्यारोपण में लैंगिक असमानता हेतु उत्तरदायी कारक

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों?

राष्ट्रीय अंग और ऊतक प्रत्यारोपण संगठन (National Organ and Tissue Transplant Organisation- NOTTO) से प्राप्त आँकड़ों से भारत में अंग प्रत्यारोपण में व्यापक लैंगिक असमानता का खुलासा हुआ है। वर्ष 1995 से 2021 के बीच प्रत्येक पाँच अंग प्राप्तकर्त्ताओं में से चार पुरुष थे। यह स्थिति महत्त्वपूर्ण स्वास्थ्य देखभाल में असंतुलन का संकेत देती है।

  • सभी के लिये स्वास्थ्य देखभाल तक समान पहुँच की आवश्यकता एवं महत्त्व को देखते हुए अंग प्रत्यारोपण में महिलाओं का कम प्रतिनिधित्व असमानता को उजागर करता है।

नोट:

  • NOTTO की स्थापना स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के स्वास्थ्य सेवा महानिदेशालय (Directorate General of Health Services) के अंतर्गत की गई है। यह दिल्ली में अवस्थित है।
  • NOTTO का राष्ट्रीय नेटवर्क प्रभाग (National Network Division) देश में अंग एवं ऊतक दान तथा प्रत्यारोपण हेतु अंगों की खरीद, वितरण व रजिस्ट्री के लिये सभी भारतीय गतिविधियों के शीर्ष केंद्र के रूप में कार्य करता है।

भारत में अंग प्रत्यारोपण के रुझान क्या हैं?

  • भारत में अंग एवं ऊतक दान और प्रत्यारोपण के लिये नोडल एजेंसी NOTTO द्वारा संग्रहीत आँकड़ों के अनुसार, देश में अंग प्राप्तकर्त्ताओं और दाताओं के बीच एक व्यापक लैंगिक असमानता विद्यमान है।
    • आँकड़ों से पता चलता है कि वर्ष 1995 से 2021 के बीच अंग प्रत्यारोपण कराने वाले कुल 36,640 रोगियों में से 29,695 पुरुष और केवल 6,945 महिलाएँ थीं
      • हालाँकि अध्ययनों से यह भी पता चलता है कि अंगदान के मामले में महिलाओं की संख्या पुरुषों की तुलना में अधिक है।
    • इससे पता चलता है कि जिन महिलाओं को अंग प्रत्यारोपण की आवश्यकता होती है, उन्हें विभिन्न सामाजिक-सांस्कृतिक और आर्थिक कारकों के चलते स्वास्थ्य देखभाल एवं उपचार तक पर्याप्त पहुँच प्राप्त नहीं हो पाती है।
  • NOTTO के आँकड़ों के अनुसार, वर्ष 2022 में 16,041 अंग प्रत्यारोपण के रिकॉर्ड उच्च स्तर के साथ भारत में अंग प्रत्यारोपण की संख्या में समग्र रूप से वृद्धि दर्ज की गई है।
  • विभिन्न प्रकार के अंग प्रत्यारोपणों में किडनी प्रत्यारोपण सर्वाधिक प्रचलित है, इसके बाद यकृत, हृदय और फेफड़े के प्रत्यारोपण होते हैं।
  • विभिन्न राज्यों में दिल्ली जीवित दाता प्रत्यारोपण (Living Donor Transplants) के मामले में शीर्ष स्थान पर है, जबकि तमिलनाडु मृत दाता प्रत्यारोपण, जिसमें मस्तिष्क-मृत (brain-dead) रोगियों के अंग भी शामिल हैं, के मामले में अग्रणी है।
  • इसके अलावा विश्व में सर्वाधिक अंग प्रत्यारोपण करने के मामले में भारत तीसरे स्थान पर है।

अंग प्रत्यारोपण में लैंगिक असमानता के कारण और परिणाम क्या हैं?

  • अंग प्रत्यारोपण में लैंगिक असमानता के कारण:
    • अंग प्रत्यारोपण में लैंगिक असमानता भारतीय समाज में प्रचलित लैंगिक असमानता और भेदभाव को दर्शाती है, जहाँ महिलाओं के स्वास्थ्य एवं कल्याण को प्रायः उपेक्षित कर दिया जाता है या संकट में डाल दिया जाता है।
    • अंग प्रत्यारोपण की आवश्यकता एवं लाभों के बारे में महिलाओं तथा उनके परिवारों के बीच जागरूकता और शिक्षा का अभाव है।
    • प्राप्तकर्त्ता के रूप में पुरुष सदस्यों को प्राथमिकता, विशेष रूप से जीवित दाता प्रत्यारोपण के मामलों में, जहाँ परिवार के सदस्यों के अंगों का उपयोग किया जाता है।
    • अंग दान और प्रत्यारोपण से जुड़ा भय और बदनामी, विशेषकर महिलाओं में, जिन्हें सामाजिक बहिष्कार या वैवाहिक समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है।
    • वित्तीय बाधाएँ और सामर्थ्य के मुद्दे, क्योंकि अंग प्रत्यारोपण महँगा कोने के साथ ही इसमें लंबे समय तक फॉलो-अप/निगरानी और दवा की आवश्यकता होती है।
  • अंग प्रत्यारोपण में लैंगिक असमानता के परिणाम:
    • स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली में लैंगिक पक्षपात और भेदभाव, जहाँ महिलाओं को चिकित्सा कर्मचारियों या अधिकारियों द्वारा उत्पीड़न, लापरवाही या इलाज से इनकार जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है।

भारत में अंग दान से संबंधित कानून:

  • मानव अंग प्रत्यारोपण अधिनियम, 1994:
    • इसे चिकित्सीय उद्देश्यों हेतु मानव अंगों के पृथकत्व, भंडारण और प्रत्यारोपण के लिये एक प्रणाली को लागू करने के साथ-साथ मानव अंगों से जुड़े व्यावसायिक लेन-देन की रोकथाम हेतु अधिनियमित किया गया था।
  • राष्ट्रीय अंग प्रत्यारोपण दिशा-निर्देश:
    • ऊपरी आयु सीमा में परिवर्तन: अधिक अवधि तक के जीवन के उद्देश्य से ऊपरी आयु सीमा को हटा दिया गया है। अब 65 वर्ष से अधिक आयु के लोग प्रत्यारोपण के लिये मृत दाताओं से अंग प्राप्त कर सकते हैं।
    • डोमिसाइल/अधिवास की कोई आवश्यकता नहीं: अब कोई भी ज़रूरतमंद मरीज़ अपनी पसंद के किसी भी राज्य में अंग प्राप्त करने के लिये पंजीकरण करा सकता है और वहाँ सर्जरी भी करवा सकेगा।
    • पंजीकरण हेतु कोई शुल्क नहीं: केंद्र ने ऐसे पंजीकरण हेतु शुल्क लेने वाले राज्यों से कहा है कि वे ऐसा न करें।

आगे की राह

  • विभिन्न मीडिया और प्लेटफॉर्मों के माध्यम से महिलाओं व उनके परिवारों को लक्षित करते हुए अंग दान और प्रत्यारोपण पर जागरूकता एवं सूचना अभियान आयोजित किये जाने चाहिये।
  • महिलाओं और उनके परिवारों को अंग दान तथा प्रत्यारोपण के संबंध में उनकी शंकाओं, भय तथा चिंताओं को दूर करने के लिये परामर्श एवं सहायता सेवाएँ प्रदान की जानी चाहिये।
  • अंगों एवं सेवाओं तक समयबद्ध और न्यायसंगत पहुँच तथा उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिये अंग व ऊतक दान एवं प्रत्यारोपण के नेटवर्क के साथ-साथ अवसंरचना को मज़बूत और विस्तारित किया जाना चाहिये।
  • किसी भी कदाचार या उल्लंघन को रोकने तथा दंडित करने के लिये अंग एवं ऊतक दान और प्रत्यारोपण हेतु कानूनी व नैतिक मानदंडों और दिशा-निर्देशों को लागू करना चाहिये।
  • अंग दाताओं एवं प्राप्तकर्त्ताओं की भूमिकाओं में महिलाओं की भागीदारी और सशक्तीकरण को बढ़ावा दिया जाना चाहिये, साथ ही उनके योगदान व उपलब्धियों को मान्यता तथा सराहना के माध्यम से सक्षम बनाना चाहिये।
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