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3D प्रिंटिंग तकनीक के विकास हेतु नीति

  • 14 Dec 2020
  • 8 min read

चर्चा में क्यों?

3D प्रिंटिंग तकनीक के उभरते बाज़ार को मद्देनज़र रखते हुए इलेक्‍ट्रॉनिक्‍स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (MeitY) जल्द ही औद्योगिक स्तर पर इस तकनीक को बढ़ावा देने के लिये एक नीति प्रस्तुत करेगा। 

प्रमुख बिंदु

3D प्रिंटिंग का अर्थ

  • 3D प्रिंटिंग विनिर्माण की एक तकनीक है, जिसके अंतर्गत प्लास्टिक, राल, थर्माप्लास्टिक, धातु, फाइबर या चीनी मिट्टी आदि के माध्यम से किसी वस्तु का प्रोटोटाइप अथवा वर्किंग मॉडल बनाने के लिये कंप्यूटर-एडेड डिज़ाइनिंग (CAD) का उपयोग किया जाता है।
    • कंप्यूटर-एडेड डिज़ाइनिंग का आशय किसी डिज़ाइन के निर्माण, संशोधन, विश्लेषण और अनुकूलन आदि के लिये कंप्यूटर का उपयोग करने से है।
  • इस तकनीक के अंतर्गत प्रिंट किये जाने वाले मॉडल को पहले सॉफ्टवेयर की सहायता से कंप्यूटर पर डिज़ाइन किया जाता है, जिसके बाद उस डिज़ाइन के आधार पर 3D प्रिंटर को निर्देश दिये जाते हैं।
  • इस तकनीक में इस्तेमाल होने वाले प्रिंटर योगात्मक विनिर्माण तकनीक (Additive Manufacturing) पर आधारित होते हैं और इसके अंतर्गत कंपनियाँ विशिष्ट मांग वाली परियोजनाओं के लिये विशिष्ट उत्पाद जैसे- हल्के उपकरण ही बनाती हैं।
    • ऐसे उत्पादों के अनुप्रयोग के लिये चिकित्सा और संबद्ध क्षेत्र महत्त्वपूर्ण है।
  • 35 प्रतिशत से अधिक बाज़ार हिस्सेदारी के साथ मौजूदा समय में अमेरिका 3D प्रिंटिंग के क्षेत्र में अग्रणी बना हुआ है।
    • एशिया में 3D प्रिंटिंग के क्षेत्र में 50 प्रतिशत बाज़ार हिस्सेदारी के साथ चीन का वर्चस्व बना हुआ है, जिसके बाद जापान (30 प्रतिशत) और दक्षिण कोरिया (10 प्रतिशत) का स्थान है।

3D प्रिंटिंग नीति की विशेषताएँ

  • यह नीति भारत को 3D विनिर्माण के क्षेत्र में वैश्विक हब के रूप में स्थापित करने हेतु इस क्षेत्र में कार्यरत बड़ी कंपनियों को भारत में आने के लिये प्रोत्साहित करेगी, साथ ही इसके तहत घरेलू उपयोग के लिये प्रिंटिंग सामग्री के आयात को भी हतोत्साहित किया जाएगा। 
  • उद्देश्य 
    • 3D प्रिंटिंग अथवा योगात्मक विनिर्माण तकनीक के डिज़ाइन, विकास और तैनाती के लिये अनुकूल पारिस्थितिकी तंत्र विकसित करने में सहायता करना।
    • घरेलू कंपनियों की तकनीकी और आर्थिक बाधाओं को दूर करना ताकि वे 3D प्रिंटिंग के क्षेत्र में अग्रणी देशों जैसे- अमेरिका और चीन की कंपनियों के लिये सहायक सुविधाओं का विकास कर सकें।
  • प्रमुख क्षेत्र और अनुप्रयोग
    • ऑटो और मोटर स्पेयर पार्ट जैसे- इंजन, लक्जरी वाहनों के आंतरिक और बाहरी हिस्से, या लैंडिंग गियर, जटिल ब्रैकेट और टरबाइन ब्लेड आदि के व्यवसाय में 3D प्रिंटिंग काफी महत्त्वपूर्ण साबित हो सकती है।
    • उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स उपकरणों, प्रिंटेड सर्किट बोर्ड, कपड़े, खिलौने और आभूषणों में भी इस तकनीक के कुछ अनुप्रयोग हो सकते हैं।
  • चुनौतियाँ
    • मानकों का अभाव: चूँकि 3D प्रिंटिंग तुलनात्मक रूप से काफी नया क्षेत्र है, जिसके कारण इससे संबंधित वैश्विक मानदंडों का अभाव है।
    • प्रयोग संबंधी असमंजसता: एक अन्य और महत्त्वपूर्ण चुनौती अलग-अलग उद्योगों और सरकारी मंत्रालयों को अपने संबंधित क्षेत्र में एक नई तकनीक के तौर पर 3D प्रिंटिंग को अपनाने हेतु प्रेरित करना है, क्योंकि यह एक नई तकनीक है और इसे आम लोगों के बीच अपनी जगह बनाने में समय लगेगा।
    • रोज़गार में कमी का खतरा: कई जानकार यह कहते हुए इस तकनीक का विरोध करते हैं कि इससे चिकित्सा उपकरण या एयरोस्पेस प्रौद्योगिकी के क्षेत्रों में अत्यधिक कुशल श्रमिकों की नौकरियों पर खतरा उत्पन्न हो जाएगा।
    • उच्च लागत: यद्यपि इस तकनीक में प्रिंटिंग की लागत काफी कम होती है, किंतु एक 3D प्रिंटर बनाने हेतु प्रयोग होने वाले उपकरणों की लागत काफी अधिक होती है। इसके अलावा इस प्रकार के उत्पादों की गुणवत्ता और वारंटी भी एक चिंता का विषय है, जिसके कारण कई कंपनियाँ अपनी मशीनों में 3D प्रिंटिंग उत्पादों के प्रयोग में संकोच करती हैं।
    • क्षेत्र विशिष्ट चुनौतियाँ: भारत समेत संपूर्ण विश्व में 3D प्रिंटिंग उत्पादों का सबसे बड़ा उपभोक्ता मोटर वाहन उद्योग है, जो कि वर्तमान में BS-VI उत्सर्जन मानकों और इलेक्ट्रिक वाहनों जैसे बदलावों का सामना कर रहा है। इसकी वजह से नए वाहनों के निर्माण की गति धीमी हो गई है, इसलिये 3D प्रिंटिंग उत्पादों की मांग भी काफी कम हो गई है।
  • 3D प्रिंटिंग का संभाव्य बाज़ार
    • इलेक्‍ट्रॉनिक्‍स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (MeitY) के अनुमान के मुताबिक, वर्ष 2024 तक 3D प्रिंटिंग या योगात्मक विनिर्माण तकनीक का वैश्विक बाज़ार 34.8 बिलियन डॉलर तक पहुँच जाएगा, जो कि 23.2 प्रतिशत की वार्षिक वृद्धि दर से बढ़ रहा है।
    • यद्यपि इस तकनीक के कारण रोज़गार सृजन की कोई संभावना नहीं है, किंतु यह तकनीक भविष्य की दृष्टि से काफी लाभदायक साबित हो सकती है।

आगे की राह

  • निवेश तथा अनुसंधान एवं विकास केंद्रों की कमी जैसे कारक इस तकनीक के विकास में एक बड़ी बाधा के रूप में मौजूद हैं। हालाँकि उपयोगकर्त्ताओं के बीच 3D प्रिंटिंग तकनीक और  अनुप्रयोगों की बेहतर समझ इसके उपयोग में अवश्य ही बढ़ोतरी करेगी।
  • 3D प्रिंटिंग समाधानों को अपनाने को लेकर भारतीय उपयोगकर्त्ताओं के बीच लगातार जागरूकता बढ़ रही है, जिसे देखते हुए यह कहा जा सकता है कि भारतीय बाज़ार में इस तकनीक की संभावनाएँ काफी अधिक हैं। इसके अलावा जापान, जर्मनी और अमेरिका जैसे अधिक परिपक्व बाज़ारों की तुलना में भारत में इस तकनीक का विकास किया जाना अभी शेष है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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