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भारतीय अर्थव्यवस्था

फैक्टरिंग विनियमन (संशोधन) विधेयक, 2021

  • 30 Jul 2021
  • 7 min read

प्रिलिम्स के लिये

यूके सिन्हा समिति, फैक्टरिंग व्यवसाय

मेन्स के लिये

संशोधन विधेयक संबंधी मुख्य प्रावधान

चर्चा में क्यों?

हाल ही में राज्यसभा ने सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (MSME) क्षेत्र की मदद करने के उद्देश्य से कानून में बदलाव लाने के लिये ‘फैक्टरिंग विनियमन (संशोधन) विधेयक, 2021’ पारित किया है।

इसमें यूके सिन्हा समिति के कई सुझावों को शामिल किया गया है।

फैक्टरिंग व्यवसाय

  • फैक्टरिंग व्यवसाय ऐसा व्यवसाय है, जहाँ एक इकाई एक निश्चित राशि के लिये किसी अन्य इकाई की प्राप्य राशि का अधिग्रहण कर लेती है।
    • गौरतलब है कि प्राप्य की सुरक्षा के विरुद्ध बैंक द्वारा प्रदान की जाने वाली क्रेडिट सुविधाओं को फैक्टरिंग व्यवसाय नहीं माना जाता है।
  • इस व्यवसाय में एक बैंक, एक पंजीकृत गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी या कंपनी अधिनियम के तहत पंजीकृत कोई भी कंपनी शामिल हो सकती है।
  • प्राप्य का आशय ऐसी कुल राशि से है, जो किसी भी सामान, सेवाओं या सुविधा के उपयोग के लिये ग्राहकों की ओर से (ऋणी के रूप में संदर्भित) बकाया है या जिसका भुगतान किया जाना है।

प्रमुख बिंदु

विधेयक के प्रमुख प्रावधान:

  • परिभाषा में बदलाव
    • यह ‘प्राप्तियों’, ‘असाइनमेंट’ और ‘फैक्टरिंग व्यवसाय’ की परिभाषाओं में संशोधन करता है, ताकि उन्हें अंतर्राष्ट्रीय मानकों के समान बनाया जा सके।
  • NBFC की फैक्टरिंग सीमा में छूट:
    • यह विधेयक ‘फैक्टरिंग विनियमन अधिनियम, 2011’ में संशोधन करने का प्रयास करता है. ताकि उन संस्थाओं के दायरे को बढ़ाया जा सके जो फैक्टरिंग व्यवसाय में संलग्न हो सकते हैं।
    • वर्तमान कानून, भारतीय रिज़र्व बैंक को गैर-बैंक वित्त कंपनियों को फैक्टरिंग व्यवसाय में बने रहने की अनुमति देने का अधिकार देता है, यदि फैक्टरिंग उसका प्रमुख व्यवसाय है।
      • यानी आधी से ज़्यादा संपत्तियाँ फैक्टरिंग कारोबार में तैनात हैं और आधी से अधिक आय भी इसी कारोबार से प्राप्त होती है।
    • यह विधेयक इस सीमा को समाप्त करता है और इस व्यवसाय में गैर-बैंकिंग ऋणदाताओं को नए अवसर प्रदान करता है।
  • शुल्क दर्ज करने के लिये TReDS:
    • बिल में कहा गया है कि जहाँ ट्रेड रिसीवेबल्स को व्यापार प्राप्य बट्टाकरण/छूट प्रणाली (TReDS) के ज़रिये फाइनेंस प्रदान किया जाता है, वहाँ फैक्टर या फैक्टरिंग के आधार पर TReDS द्वारा ट्रांजैक्शन से जुड़ी डिटेल्स सेंट्रल रजिस्ट्री में फाइल की जानी चाहिये।
      •  TReDS मंच कई फाइनेंसरों के माध्यम से सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (MSME) की व्यापार प्राप्तियों के वित्तपोषण की सुविधा के लिये एक ऑनलाइन इलेक्ट्रॉनिक संस्थागत तंत्र है।
  • RBI को विनियमित करना:
    • यह भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) को एक कारक को पंजीकरण प्रमाण पत्र देने, सेंट्रल रजिस्ट्री के साथ लेन-देन विवरण दाखिल करने तथा अन्य सभी मामलों के लिये विनियम बनाने का अधिकार देता है।
  • पंजीकरण की समयावधि:

महत्त्व:

  • गैर-एनबीएफसी कारकों और अन्य संस्थाओं को फैक्टरिंग की अनुमति देने से छोटे व्यवसायों के लिये उपलब्ध धन की आपूर्ति में वृद्धि होने की उम्मीद है।
  • इसके परिणामस्वरूप धन की लागत कम हो सकती है और ऋण की कमी वाले छोटे व्यवसाय अधिक पहुँच में सक्षम हो सकते हैं, जिससे उनकी प्राप्तियों के खिलाफ समय पर भुगतान सुनिश्चित हो सके।
  • MSME को आसान तरलता मिलेगी जिससे उनके संचालन में मदद होगी।
    • प्राप्य में देरी के कारण MSME को कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है और यह बिल सुचारु कार्यशील पूंजी चक्र तथा स्वस्थ नकदी प्रवाह (Healthier Cash Flow) सुनिश्चित करने में मदद करेगा।
  • यह अधिनियम में प्रतिबंधात्मक प्रावधानों को उदार बनाएगा और साथ ही सुनिश्चित करेगा कि RBI के माध्यम से एक मज़बूत नियामक/निगरानी तंत्र स्थापित किया जाए।

यूके सिन्हा समिति:

  • रिज़र्व बैंक ने वर्ष 2019 में MSME क्षेत्र के लिये रूपरेखा की समीक्षा करने हेतु भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) के पूर्व अध्यक्ष यूके सिन्हा के नेतृत्व में आठ सदस्यीय विशेषज्ञ समिति का गठन किया था।
  • इसने MSME विकास अधिनियम में संशोधन, वित्तीय वितरण तंत्र को मज़बूत करने, विपणन समर्थन में सुधार, प्रौद्योगिकी अपनाने को प्रोत्साहित करने और MSME आदि के लिये क्लस्टर विकास समर्थन को मज़बूत करने के संबंध में सिफारिशें की हैं।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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