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भारतीय अर्थव्यवस्था

GDP से परे आर्थिक अंतर्दृष्टि: ICOR

  • 13 Sep 2023
  • 13 min read

प्रिलिम्स के लिये:

सकल घरेलू उत्पाद (GDP), वृद्धिशील पूंजी उत्पादन अनुपात, हैरोड-डोमर मॉडल, एकीकृत भुगतान इंटरफेस (UPI), भारतीय राष्ट्रीय भुगतान निगम, मुद्रास्फीति, अनौपचारिक क्षेत्र

मेन्स के लिये:

भारत में ICOR में गिरावट के कारक, आर्थिक संकेतक के रूप में ICOR का उपयोग करने की सीमाएँ

स्रोत: इकोनॉमिक टाइम्स

चर्चा में क्यों?

भारत का नवीनतम सकल घरेलू उत्पाद (GDP) डेटा, वर्ष 2023 की अप्रैल से जून तिमाही के दौरान 7.8% की उल्लेखनीय वृद्धि के साथ सुर्खियों में है, जिसने विश्व की सबसे तेज़ी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में से एक के रूप में अपनी स्थिति मज़बूत कर ली है।

GDP और ICOR:

  • GDP आर्थिक प्रदर्शन और विकास के सबसे व्यापक रूप से उपयोग किये जाने वाले संकेतकों में से एक है। यह किसी निश्चित समयावधि में किसी देश में उत्पादित वस्तुओं और सेवाओं के कुल मूल्य का मापन है।
    • हालाँकि GDP की अपनी खूबियाँ हैं, लेकिन यह आर्थिक कल्याण का संपूर्ण दृष्टिकोण प्रस्तुत नहीं करती है। यह दक्षता, आय वितरण और संस्थागत गुणवत्ता जैसे कारकों की अनदेखी करती है, जो सतत् विकास के लिये आवश्यक हैं।
    • निवेश बढ़ाने से सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि हो सकती है, लेकिन वास्तविक सतत् विकास उत्पादकता में वृद्धि पर निर्भर करता है।
    • इसलिये अर्थशास्त्री और नीति निर्माता प्रायः आर्थिक विकास की दक्षता, स्थिरता एवं गुणवत्ता का आकलन करने के लिये अन्य पूरक संकेतकों का उपयोग करते हैं।
  • ऐसा ही एक संकेतक ICOR है; यह हैरोड-डोमर ग्रोथ थ्योरी से विकसित हुआ है और नए निवेश एवं आर्थिक विकास के बीच संबंधों की जाँच करता है, यह दर्शाता है कि 1% अधिक उत्पादन के लिये कितनी अतिरिक्त पूंजी की आवश्यकता है।
    • कम ICOR पूंजी की अधिक दक्षता और उत्पादक उपयोग का प्रतीक है।
    • SBI की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में बचत और निवेश में बढ़ोतरी का रुझान देखा जा रहा है, जिसके साथ-साथ ICOR में भी कमी आ रही है
      • भारत में वर्तमान ICOR- 4.4 है, जो पूंजी के कुशल उपयोग का संकेत देता है।

नोट: अर्थशास्त्री रॉय हैरोड और एवसी डोमर द्वारा बनाया गया हैरोड-डोमर मॉडल दावा करता है कि आर्थिक विकास निवेश के लिये पूंजी की उपलब्धता पर निर्भर करता है और पूंजी संचय की दर सीधे बचत की दर से जुड़ी होती है।

भारत में ICOR में गिरावट के कारण:

  • आर्थिक और तकनीकी नवाचार: भारत लागत-सचेत नवाचार का केंद्र रहा है, जहाँ कंपनियाँ लागत प्रभावी समाधान विकसित करती हैं जिनके लिये न्यूनतम पूंजी निवेश और न्यूनतम टूट-फूट प्रतिस्थापन की आवश्यकता होती है।
    • उदाहरण के लिये टाटा मोटर्स जैसी कंपनियों ने नैनो कार विकसित की, जो मध्यम वर्ग की आबादी के लिये एक कम लागत वाला विकल्प है, यह दर्शाता है कि कैसे मितव्ययी नवाचार से ICOR कम हो सकता है।
  • आर्थिक विविधीकरण: भारत का अधिक सेवा-उन्मुख और प्रौद्योगिकी-गहन अर्थव्यवस्था की ओर बदलाव आर्थिक गतिविधियों की पूंजी तीव्रता को कम करता है।
    • IT और सॉफ्टवेयर विकास जैसी सेवाओं के लिये आमतौर पर पारंपरिक विनिर्माण की तुलना में आउटपुट की प्रति यूनिट कम पूंजी की आवश्यकता होती है।
    • हालाँकि सावधानी बरतना और विनिर्माण क्षेत्र को बढ़ावा देकर संतुलित दृष्टिकोण बनाए रखना आवश्यक है।
  • विकेंद्रीकृत विनिर्माण: 3D प्रिंटिंग और अन्य प्रौद्योगिकियों का उपयोग करके विकेंद्रीकृत एवं वितरित विनिर्माण के बढ़ने से केंद्रीकृत कारखानों तथा बड़े पैमाने पर उत्पादन सुविधाओं में भारी पूंजी निवेश की आवश्यकता कम हो जाती है।
    • भारत के पहले 3D-प्रिंटेड डाकघर का उद्घाटन बंगलूरू में किया गया है।
  • कृत्रिम बुद्धिमत्ता और मशीन लर्निंग इंटीग्रेशन: कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) और मशीन लर्निंग (ML) विभिन्न क्षेत्रों में दक्षता एवं उत्पादकता बढ़ाकर भारत में ICOR को कम करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।
    • उदाहरण के लिये स्वास्थ्य सेवा में AI-संचालित डायग्नोस्टिक्स महँगे उपकरणों पर निर्भरता को कम करता है, जिससे स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र का ICOR कम होता है।
    • विनिर्माण में ML-आधारित पूर्वानुमानित रखरखाव डाउनटाइम को कम करता है और मशीनरी के जीवन को बढ़ाता है, जिससे बार-बार पूंजी प्रतिस्थापन की आवश्यकता कम हो जाती है।
    • इसके अलावा कृषि में AI-सक्षम परिशुद्ध खेती संसाधनों के उपयोग को बढ़ाती है, जिसके परिणामस्वरूप कम पूंजीगत व्यय के साथ अधिक फसल की पैदावार होती है।

आर्थिक संकेतक के रूप में ICOR के उपयोग की सीमाएँ:

  • अनौपचारिक अर्थव्यवस्था पर प्रभाव: भारत की अनौपचारिक अर्थव्यवस्था विशाल और गतिशील है, लेकिन यह काफी हद तक औपचारिक डेटा संग्रह के दायरे से बाहर संचालित होती है।
    • अनौपचारिक क्षेत्र की औपचारिक क्षेत्र के साथ अंतःक्रिया जटिल और चुनौतीपूर्ण हो सकती है, जिसे ICOR गणना में सटीक रूप से शामिल किया जा सकता है।
    • परिणामस्वरूप ICOR आर्थिक विकास और पूंजी दक्षता में पूरी तरह से अनौपचारिक क्षेत्र के योगदान की भूमिका नहीं हो सकती है।
  • मूल्य विकृतियाँ: ICOR निवेश और आउटपुट के नाममात्र/नॉमिनल मूल्यों पर आधारित है, जो समय के साथ मूल्य परिवर्तन से प्रभावित होते हैं।
    • इसलिये मुद्रास्फीति या अपस्फीति निवेश और आउटपुट के बीच वास्तविक संबंध को विकृत कर सकती है, जिससे ICOR के भ्रामक परिणाम सामने आ सकते हैं।
    • अतः विश्वसनीय ICOR आँकड़े प्राप्त करना डेटा की उपलब्धता और सटीकता के कारण प्रभावित हो सकता है।
  • बुनियादी ढाँचे की बाधाएँ: ICOR में गिरावट के बावजूद भारत बुनियादी ढाँचे की बाधाओं से जूझ रहा है।
    • इसका अर्थ यह हो सकता है कि जहाँ नए पूंजी निवेश अपेक्षाकृत कुशल हैं, वहीं मौजूदा बुनियादी ढाँचे की बाधाएँ समग्र आर्थिक दक्षता और उत्पादकता में बाधा बन सकती हैं।
  • क्षेत्रीय असमानताएँ: भारत में क्षेत्रीय विविधताएँ ICOR की व्याख्या को महत्त्वपूर्ण रूप से प्रभावित कर सकती हैं। घटती राष्ट्रीय ICOR असमानताओं को छिपा सकती हैं जहाँ कुछ क्षेत्र अधिक कुशल पूंजी उपयोग से लाभान्वित होते हैं, जबकि अन्य पीछे रह जाते हैं।
  • प्राकृतिक संसाधनों की कमी: निम्न ICOR में प्राकृतिक संसाधनों की कमी को प्रतिबिंबित करने की क्षमता नहीं है, यह दीर्घकालिक धारणीयता संबंधी चुनौतियाँ उत्पन्न कर सकता है।
    • प्राकृतिक संसाधनों का दोहन करने वाले पूंजी-प्रधान उद्योग पर्यावरण को नुकसान पहुँचाते हुए ICOR में गिरावट दिखा सकते हैं।

वृद्धिशील पूंजी आउटपुट अनुपात (ICOR) में सुधार:

  • क्षेत्रीय और अनुभाग आधारित विश्लेषण: मात्र राष्ट्रीय स्तर के विश्लेषण के बजाय ICOR का क्षेत्रीय और अनुभाग आधारित मूल्यांकन किये जाने की आवश्यकता है।
    • इससे एक अधिक विस्तृत समझ प्राप्त होती है कि पूंजी निवेश कहाँ सबसे अधिक कुशल है और कहाँ इसमें सुधार की आवश्यकता है। इसके बाद लक्षित नीतियों को तदनुसार डिज़ाइन किया जा सकता है।
  • पारदर्शी डेटा रिकॉर्डिंग के लिये ब्लॉकचेन: आर्थिक डेटा की पारदर्शी और छेड़छाड़-रोधी रिकॉर्डिंग सुनिश्चित करने के लिये ब्लॉकचेन तकनीक का उपयोग करने से डेटा हेर-फेर अथवा अशुद्धियों के जोखिम को कम किया जा सकता है। इससे ICOR गणना की विश्वसनीयता में वृद्धि हो सकती है।
  • सार्वजनिक-निजी सहयोग: पूंजी आवंटन अक्षमताओं का संयुक्त रूप से समाधान करने के लिये सार्वजनिक व निजी क्षेत्रों के बीच सहयोग को बढ़ावा दिया जा सकता है।
    • सार्वजनिक-निजी भागीदारी की मदद से बुनियादी ढाँचे और विकास परियोजनाओं को अधिक प्रभावी ढंग से पूरा किया जा सकता है।


UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न

प्रिलिम्स:

प्रश्न. निरपेक्ष तथा प्रति व्यक्ति वास्तविक GNP में वृद्धि आर्थिक विकास की ऊँची स्तर का संकेत नहीं करती, यदि: (2018)

(a) औद्योगिक उत्पादन कृषि उत्पादन के साथ-साथ बढ़ने में विफल रह जाता है।

(b) कृषि उत्पादन औद्योगिक उत्पादन के साथ-साथ बढ़ने में विफल रह जाता है।

(c) निर्धनता और बेरोज़गारी में वृद्धि होती है।

(d) निर्यात की अपेक्षा आयात तेज़ी से बढ़ता है।

उत्तर: (c)

प्रश्न. किसी दिये गए वर्ष में भारत के कुछ राज्यों में आधिकारिक गरीबी रेखाएँ अन्य राज्यों की तुलना में उच्चतर हैं क्योंकि: (2019)

(a) गरीबी की दर अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग होती है।

(b) कीमत- स्तर अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग होता है।

(c) सकल राज्य उत्पाद अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग होता है।

(d) सार्वजनिक वितरण की गुणवत्ता अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग होती है।

उत्तर: (b)

मेन्स:
प्रश्न. संभाव्य सकल घरेलू उत्पाद (जी.डी.पी.) को परिभाषित कीजिये और उसके निर्धारकों की व्याख्या कीजिये। वे कौन से कारक हैं जो भारत को अपनी संभाव्य जी.डी.पी. को साकार करने से रोकते हैं? (2020)

प्रश्न. भारत की सकल घरेलू उत्पाद (जी.डी.पी.) के वर्ष 2015 के पूर्व तथा वर्ष 2015 के बाद परिकलन विधि में अंतर की व्याख्या कीजिये। (2021)

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