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भारतीय अर्थव्यवस्था

GDP की अपर्याप्त रिकवरी

  • 10 Jun 2023
  • 20 min read

यह एडिटोरियल 07/06/2023 को ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित ‘‘Latest GDP estimates’’ लेख पर आधारित है। इसमें विकास के अंतर्निहित चालकों की गति पर्याप्त प्रबल नहीं होने और चुनौतियों का समाधान करने की आवश्यकता के संबंध में चर्चा की गई है।

प्रिलिम्स के लिये:

जी.डी.पी., मनरेगा, प्रति व्यक्ति जी.डी.पी., निवेश-जी.डी.पी. अनुपात, क्रय शक्ति

मेन्स के लिये:

आर्थिक विकास की चुनौतियाँ, अनौपचारिक क्षेत्र की औपचारीकरण, समावेशी विकास

भारत के नवीनतम सकल घरेलू उत्पाद (GDP) अनुमानों ने सबसे आशावादी अनुमानों को भी पार कर लिया है, जिससे चालू वित्तीय वर्ष के लिये आर्थिक विकास अनुमानों में ऊर्ध्वगामी संशोधन किये गए हैं। भारत के जी.डी.पी. अनुमान महामारी के दौरान अनुभव किये गए गिरावटों से उबरने का संकेत दे रहे हैं।

हालाँकि ग्रामीण मांग, विनिर्माण प्रदर्शन, अनौपचारिक क्षेत्र के विकास, निवेश पैटर्न, उदासीन घरेलू व्यय आदि में व्याप्त चुनौतियों के साथ रिकवरी पर्याप्त नहीं है और आर्थिक हानि देश की विकास संभावनाओं के लिये चुनौतियाँ पेश कर रही है। सतत् एवं संतुलित आर्थिक विकास प्राप्त करने के लिये इन विरोधाभासों को सुलझाना अत्यंत आवश्यक है।

जी.डी.पी. रिकवरी चुनौतीपूर्ण क्यों है?

  • कृषि विकास के बावजूद ग्रामीण मांग में कमी:
    • ग्रामीण बाज़ारों का पिछड़ापन:
      • कृषि क्षेत्र में मज़बूत वृद्धि के बावजूद ग्रामीण मांग कमज़ोर बनी हुई है, जहाँ ग्रामीण बाज़ारों में ‘वॉल्यूम ग्रोथ’ (volume growth) सुस्त बनी हुई है।
    • प्रति व्यक्ति आय में गिरावट:
      • कृषि क्षेत्र में श्रमिकों की बढ़ती भागीदारी के परिणामस्वरूप प्रति व्यक्ति आय में कमी आई है।
    • गैर-कृषि क्षेत्र का कमज़ोर प्रदर्शन:
      • गैर-कृषि क्षेत्र, जो ग्रामीण घरेलू आय में महत्त्वपूर्ण योगदान देता है, संभवतः कमज़ोर प्रदर्शन कर रहा है।
      • मनरेगा (MGNREGA) के तहत परिवारों द्वारा कार्य की मांग में हालाँकि कोविड वर्षों के दौरान गिरावट देखी गई थी, यह महामारी-पूर्व स्तरों से पर्याप्त ऊपर बनी हुई है।
      • वर्ष 2022-23 में इस कार्यक्रम के अंतर्गत 8.76 करोड़ व्यक्तियों को काम मिला (वर्ष 2019-20 में 7.88 करोड़ और वर्ष 2018-19 में 7.77 करोड़ व्यक्तियों की तुलना में)।
  • औद्योगिक क्षेत्र में मंदी और विनिर्माण प्रदर्शन:
    • औद्योगिक क्षेत्र में मंदी:
      • औद्योगिक क्षेत्र, विशेष रूप से विनिर्माण क्षेत्र में उल्लेखनीय मंदी आई है।
      • चौथी तिमाही में टर्न-अराउंड (turnaround) के बावजूद पूरे वर्ष के लिये विनिर्माण क्षेत्र की वृद्धि मात्र 1.3% रही।
  • गैर-कृषि क्षेत्र के अंतर्गत अनौपचारिक क्षेत्र रोज़गार में वृद्धि:
    • अनौपचारिक क्षेत्र रोज़गार:
      • गैर-कृषि क्षेत्र के अंतर्गत स्वामित्व और साझेदारी उद्यमों (अनौपचारिक क्षेत्र की फर्में) में संलग्न श्रमिकों की हिस्सेदारी 68.2% (वर्ष 2017-18) से बढ़कर 71.8% (वर्ष 2021-22) हो गई।
      • अनौपचारिक क्षेत्र रोज़गार में वृद्धि अर्थव्यवस्था को औपचारिक बनाने और रोज़गार अवसरों को बढ़ावा देने के सरकारी प्रयासों से भिन्न तस्वीर पेश करती है।
  • निवेश गतिविधि और चालू खाता गतिशीलता:
    • स्वस्थ निवेश वृद्धि:
      • निवेश-जी.डी.पी. अनुपात के 29.2% (2022-23) तक पहुँचने के साथ निवेश गतिविधि में स्वस्थ प्रवृत्ति नज़र आई।
    • घरेलू क्षेत्र द्वारा प्रेरित विकास:
      • निवेश अनुपात में दो-तिहाई वृद्धि घरेलू क्षेत्र द्वारा संचालित थी, जिसके बाद सार्वजनिक क्षेत्र और निजी क्षेत्र की फर्मों का योगदान रहा।
    • चालू खाता अधिशेष की संभावना:
      • हाल के जी.डी.पी. आँकड़े चालू खाता अधिशेष (current account surplus) या न्यूनतम घाटे की संभावना प्रकट करते हैं, जो बचत के सापेक्ष कमज़ोर निवेश मांग का संकेत देते हैं।
  • कमज़ोर घरेलू व्यय और मुद्रास्फीति का प्रभाव:
    • हाई-एंड खर्च बनाम समग्र घरेलू व्यय:
      • हाई-एंड वस्तुओं एवं सेवाओं पर खर्च बढ़ा है, जबकि निम्न एवं मध्यम आय वाले परिवारों द्वारा कम खर्च करने के कारण समग्र घरेलू व्यय में गिरावट बनी हुई है।
    • निम्न आय वृद्धि:
      • उत्पादक रोज़गार के सीमित अवसर और निम्न आय वृद्धि ने कमज़ोर घरेलू व्यय में योगदान दिया है।
    • मुद्रास्फीति द्वारा क्रय शक्ति का क्षरण:
      • स्थिर मुद्रास्फीति परिवारों की क्रय शक्ति को कम करती है और उपभोग को संकुचित करती है।
  • आर्थिक हानि और असमान रिकवरी:
    • वास्तविक विकास की कमी:
    • महामारी से पहले की वृद्धि की तुलना में, भारतीय अर्थव्यवस्था की वास्तविक वृद्धि वर्तमान स्तरों से कम बनी हुई है, जो आर्थिक हानि को दर्शाती है।

आर्थिक विकास के प्रमुख चालक कौन-से हैं?

  • निवेश:
    • भौतिक अवसंरचना, मशीनरी, प्रौद्योगिकी और मानव पूंजी में निवेश आर्थिक विकास का एक प्रमुख चालक है।
    • इससे उत्पादन क्षमता, दक्षता और नवाचार में वृद्धि होती है, जिसके परिणामस्वरूप उच्च उत्पादकता और उत्पादन की स्थिति बनती है।
  • प्रौद्योगिकी और नवाचार:
    • तकनीकी प्रगति और नवाचार उत्पादकता में सुधार, नए उद्योगों एवं बाज़ारों के सृजन और प्रतिस्पर्द्धात्मकता को बढ़ाने के रूप में आर्थिक विकास को प्रेरित करते हैं।
    • अनुसंधान एवं विकास (R&D) और प्रौद्योगिकी अंगीकरण में निवेश आर्थिक विस्तार में योगदान देता है।
  • मानव पूंजी विकास:
    • शिक्षा, प्रशिक्षण और कौशल विकास आर्थिक विकास के आवश्यक चालक हैं।
    • एक सुशिक्षित एवं कुशल कार्यबल अधिक उत्पादक, नई तकनीकों के प्रति अनुकूल और नवाचार एवं उद्यमिता को प्रेरित करने में सक्षम होता है।
  • व्यापार और वैश्वीकरण:
    • अंतर्राष्ट्रीय व्यापार और वैश्वीकरण आर्थिक विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
    • व्यापार बाज़ारों का विस्तार करके, विशेषज्ञता को सुगम बनाकर और संसाधनों एवं पूंजी तक पहुँच को बढ़ावा देकर उत्पादकता की वृद्धि कर सकता है, आर्थिक दक्षता को प्रेरित कर सकता है तथा रोज़गार के अवसर सृजित कर सकता है।
  • अवसंरचना विकास:
    • आर्थिक विकास के लिये परिवहन, संचार, ऊर्जा और स्वच्छता सहित पर्याप्त अवसंरचना अत्यंत आवश्यक है।
    • सुविकसित अवसंरचना लेनदेन लागत को कम करती है, वस्तुओं एवं सेवाओं की आवाजाही को सुगम बनाती है और निवेश को आकर्षित करती है।
  • संस्थागत ढाँचा:
    • आर्थिक विकास के लिये एक सुदृढ़ एवं कुशल संस्थागत ढाँचा अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। इसमें विधि का शासन, संपत्ति अधिकारों की रक्षा, पारदर्शी शासन, कुशल विधिक प्रणालियाँ और उद्यमशीलता एवं निवेश को बढ़ावा देने वाला व्यवसाय-अनुकूल माहौल शामिल है।
  • मैक्रोइकोनॉमिक स्थिरता:
    • निवेश, व्यापार और आर्थिक विकास के अनुकूल वातावरण को बढ़ावा देने के लिये सुदृढ़ राजकोषीय एवं मौद्रिक नीतियों, निम्न मुद्रास्फीति दर और विनिमय दर स्थिरता के माध्यम से मैक्रोइकोनॉमिक स्थिरता को बनाए रखना महत्त्वपूर्ण है।
  • उद्यमिता और नवाचार:
    • उद्यमशील गतिविधियाँ और नवाचार नए व्यवसायों, उत्पादों एवं सेवाओं का सृजन कर, रोज़गार उत्पन्न कर और प्रतिस्पर्धा एवं बाज़ार की गतिशीलता को बढ़ावा देकर आर्थिक विकास को गति प्रदान करते हैं।

संभावित समाधान

  • ग्रामीण मांग को बढ़ावा देना:
    • विकास एवं रोज़गार के अवसरों को प्रोत्साहित करने के लिये लक्षित नीतियों एवं पहलों के माध्यम से ग्रामीण क्षेत्रों में गैर-कृषि क्षेत्र को बढ़ावा देना।
    • निवेश आकर्षित करने और आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिये ग्रामीण क्षेत्रों में अवसंरचना एवं कनेक्टिविटी में सुधार करना।
    • उद्यमशीलता और लघु व्यवसाय विकास को प्रोत्साहित करने के लिये ग्रामीण परिवारों एवं उद्यमियों के लिये ऋण और वित्तीय सेवाओं तक पहुँच को बढ़ाना।
    • आर्थिक लाभों का समान वितरण सुनिश्चित करते हुए कृषि और गैर-कृषि क्षेत्रों के बीच आय के अंतर को दूर करने के उपाय करना।
  • विनिर्माण क्षेत्र का पुनरुद्धार:
    • विनिर्माण को प्रोत्साहित करने के लिये क्षेत्र-विशिष्ट नीतियों को लागू करना, जैसे कर प्रोत्साहन, सरलीकृत विनियमन और कारोबार सुगमता संबंधी सुधार।
    • उत्पादकता एवं प्रतिस्पर्द्धात्मकता बढ़ाने के लिये विनिर्माण क्षेत्र में नवाचार, अनुसंधान एवं विकास और प्रौद्योगिकी अंगीकरण को प्रोत्साहित करना।
    • श्रम बल में व्याप्त कौशल अंतराल को दूर करने के लिये कौशल विकास कार्यक्रमों को सशक्त करना और इसे विनिर्माण उद्योग की आवश्यकताओं के साथ संरेखित करना।
    • निवेश आकर्षित करने और औद्योगिक विकास को बढ़ावा देने के लिये सार्वजनिक-निजी भागीदारी एवं सहयोग को सुगम बनाना।
  • अनौपचारिक क्षेत्र का औपचारीकरण:
    • अनौपचारिक क्षेत्र के उद्यमों की औपचारिकता को बढ़ावा देने के लिये नीतियाँ और कार्यक्रम पेश करना, जैसे कि वित्त तक पहुँच प्रदान करना, पंजीकरण प्रक्रियाओं को सरल बनाना तथा अनुपालन के लिये प्रोत्साहन (incentives) की पेशकश करना।
    • अनौपचारिक क्षेत्र के श्रमिकों की आय सुरक्षा और समग्र कल्याण में सुधार के लिये सामाजिक सुरक्षा जाल को बढ़ाना।
    • व्यापार विकास सहायता, प्रशिक्षण और बाज़ारों तक पहुँच प्रदान कर औपचारिक क्षेत्र की ओर संक्रमण हेतु अनौपचारिक उद्यमों के लिये एक सक्षमकारी माहौल का संपोषण करना।
  • आय असमानता को संबोधित करना और घरेलू व्यय को बढ़ावा देना:
    • आय के पुनर्वितरण और धन असमानताओं को कम करने के लिये प्रगतिशील कराधान नीतियों को लागू करना।
    • निम्न आय वाले परिवारों और कमज़ोर समूहों को सहायता प्रदान करने के लिये सामाजिक कल्याण कार्यक्रमों और सुरक्षा तंत्रों को बढ़ाना।
    • व्यक्तियों को सशक्त बनाने और उनकी रोज़गार क्षमता में सुधार के लिये शिक्षा एवं कौशल विकास में निवेश बढ़ाना।
    • परिवारों की क्रय शक्ति की रक्षा के लिये प्रभावी मौद्रिक एवं राजकोषीय नीतियों के माध्यम से मुद्रास्फीति के दबावों का सामना करना।
  • निगरानी एवं मूल्यांकन:
    • कार्यान्वित नीतियों एवं हस्तक्षेपों की प्रभावशीलता की निगरानी एवं मूल्यांकन के लिये सुदृढ़ तंत्र स्थापित करना।
    • प्रमुख आर्थिक संकेतकों पर नीतिगत उपायों के प्रभाव का नियमित रूप से आकलन करना और वांछित परिणाम सुनिश्चित करने के लिये आवश्यक समायोजन करना।
    • नीति निर्माण और कार्यान्वयन को सूचना-संपन्न बनाने के लिये अनुसंधान एवं डेटा-संचालित निर्णयन को प्रोत्साहित करना।

अभ्यास प्रश्न: सतत् और समावेशी आर्थिक विकास प्राप्त करने में भारतीय अर्थव्यवस्था के समक्ष विद्यमान प्रमुख चुनौतियों की चर्चा कीजिये।

 UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्न (PYQs) 

प्रिलिम्स

प्रश्न: भारतीय अर्थव्यवस्था के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2015)

  1. पिछले दशक में वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर में लगातार वृद्धि हुई है।
  2. बाज़ार मूल्य पर सकल घरेलू उत्पाद (रुपए में) में पिछले एक दशक में लगातार वृद्धि हुई है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (b)

व्याख्या:

  • सकल घरेलू उत्पाद (Gross Domestic Product- GDP) किसी देश की सीमाओं के भीतर एक विशिष्ट समय अवधि, आम तौर पर 1 वर्ष में उत्पादित सभी अंतिम वस्तुओं और सेवाओं का मौद्रिक मूल्य है। यह एक राष्ट्र की समग्र आर्थिक गतिविधि का एक व्यापक माप है।
  • वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद एक मुद्रास्फीति-समायोजित उपाय है जो किसी दिये गए वर्ष में अर्थव्यवस्था द्वारा उत्पादित सभी वस्तुओं और सेवाओं के मूल्य को आधार-वर्ष की कीमतों में व्यक्त करता है।
  • वास्तविक GDP की वृद्धि दर पिछले एक दशक में लगातार नहीं बढ़ी है। विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय घरेलू आर्थिक दबावों के कारण इसमें उतार-चढ़ाव आया है। अतः कथन 1 सही नहीं है।
  • भारत के बाज़ार मूल्यों पर सकल घरेलू उत्पाद पिछले एक दशक में वर्ष 2005 में लगभग 900 बिलियन अमेरीकी डॉलर से बढ़कर वर्ष 2015 में 2.1 ट्रिलियन अमेरीकी डॉलर हो गया है। वर्ष 2020 तक, भारत का सकल घरेलू उत्पाद 2.63 ट्रिलियन अमेरीकी डॉलर था। अत: कथन 2 सही है।

प्रश्न. किसी देश के सकल घरेलू उत्पाद के अनुपात में कर में कमी निम्नलिखित में से किसको दर्शाती है? (2015)

  1. धीमी आर्थिक विकास दर
  2. राष्ट्रीय आय का कम न्यायसंगत वितरण

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर का चुनिये:

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (a)

व्याख्या:

  • कर GDP अनुपात किसी देश के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) के सापेक्ष उसके कर राजस्व का अनुपात है। उदाहरण के लिये, यदि भारत का टैक्स-टू-GDP अनुपात 20% है, तो इसका मतलब है कि सरकार को अपने सकल घरेलू उत्पाद का 20% कर योगदान के रूप में मिलता है।
  • कर GDP अनुपात का उपयोग वर्ष-दर-वर्ष कर प्राप्तियों की तुलना करने के लिये किया जाता है। चूँकि कर आर्थिक गतिविधि से संबंधित हैं इसलिये अनुपात अपेक्षाकृत स्थिर रहना चाहिये। जब सकल घरेलू उत्पाद (GDP) बढ़ता है, तो कर राजस्व में भी वृद्धि होनी चाहिये।
  • आर्थिक मंदी के परिणामस्वरूप विकास की दर कम होती है, जहाँ आमतौर पर बेरोज़गारी बढ़ती है और उपभोक्ता खर्च घटता है। नतीजतन, टैक्स-टू-GDP अनुपात में गिरावट आती है। अतः कथन 1 सही है।
  • राष्ट्रीय आय का असमान वितरण सीधे तौर पर GDP अनुपात में कर में कमी से संबंधित नहीं है।
  • राष्ट्रीय आय और संसाधन आवंटन का समान वितरण आमतौर पर किसी देश की आर्थिक योजना पर निर्भर करता है। अतः कथन 2 सही नहीं है।
  • अतः विकल्प (a) सही है।

मेन्स

प्रश्न. उच्च संवृद्धि के लगातार अनुभव के बावजूद, भारत के मानव विकास के निम्नतम संकेतक चल रहे हैं। उन मुद्दों का परीक्षण कीजिये जो संतुलित और समावेशी विकास को पकड़ में आने नहीं दे रहे हैं। (2019)

प्रश्न. संभावित सकल घरेलू उत्पाद को परिभाषित करते हुए इसके निर्धारकों की व्याख्या कीजिये। वे कौन-से कारक हैं जो भारत को अपनी संभावित GDP को साकार करने से रोक रहे हैं? (2020)

प्रश्न. वर्ष 2015 से पहले और वर्ष 2015 के बाद भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की कंप्यूटिंग पद्धति के बीच अंतर को स्पष्ट कीजिये। (2021)

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