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भारतीय अर्थव्यवस्था

प्रणालीगत रूप से महत्त्वपूर्ण घरेलू बीमाकर्त्ता

  • 03 Oct 2020
  • 8 min read

प्रिलिम्स के लिये 

‘प्रणालीगत रूप से महत्त्वपूर्ण घरेलू बीमाकर्त्ता, अंतर्राष्ट्रीय बीमा पर्यवेक्षक संघ 

मेन्स के लिये:

बीमा क्षेत्र में सार्वजनिक कंपनियों की भूमिका, बीमा क्षेत्र में स्थिरता हेतु सरकार के प्रयास  

चर्चा में क्यों?

हाल ही में ‘भारतीय बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण’ (Insurance Regulatory and Development Authority of India- IRDAI) द्वारा सार्वजनिक क्षेत्र की तीन बीमा कंपनियों को वित्तीय वर्ष 2020-21 के लिये ‘प्रणालीगत रूप से महत्त्वपूर्ण घरेलू बीमाकर्त्ता’ (Domestic Systemically Important Insurers or D-SIIs) के तौर पर चिह्नित किया गया है।

प्रमुख बिंदु:

  • IRDAI द्वारा भारतीय जीवन बीमा निगम (Life Insurance Corporation of India- LIC), भारतीय साधारण बीमा निगम (General Insurance Corporation of India) और न्यू इंडिया इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड को वित्तीय वर्ष 2020-21 के लिये D-SIIs के रूप में चिह्नित किया गया है।
  • D-SIIs को ऐसे बीमाकर्त्ताओं के रूप में देखा जाता है, जो ‘टू बिग ऑर टू इंपोर्टेंट टू फेल’ (Too Big or Too Important to Fail- TBTF) के सिद्धांत पर कार्य करते हैं।
  • D-SIIs ऐसे आकार और बाज़ार महत्त्व, घरेलू तथा वैश्विक परस्पर संबंध के बीमाकर्त्ताओं को संदर्भित करता है, जिनका संकट या विफलता घरेलू वित्तीय प्रणाली में एक बड़ी अव्यवस्था का कारण बन सकता है।
  • अतः राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था को बीमा सेवाओं की निर्बाध उपलब्धता के लिये निरंतर D-SIIs का कार्य करना आवश्यक है।
  • गौरतलब है कि वित्तीय वर्ष 2019-20 में भारतीय रिज़र्व बैंक (Reserve Bank of India- RBI) द्वारा भारतीय स्टेट बैंक (SBI), आईसीआईसीआई बैंक (ICICI Bank) और एचडीएफसी बैंक (HDFC Bank) को ‘प्रणालीगत रूप से महत्त्वपूर्ण घरेलू बैंक’ ( Domestic Systemically Important Banks or D-SIB) के तौर पर  चिह्नित किया गया था।
  • RBI के मानदंडों के अनुसार, D-SIB के रूप में चिह्नित बैंकों को अपने निरंतर संचालन के लिये पूंजी संरक्षण बफर के रूप (Capital Conservation Buffer) में अधिक पूंजी अलग रखनी होती है।

कारण:  

  • D-SIIs के साथ जुड़ी हुई TBTF की अवधारणा और सरकार के समर्थन से जुड़ी अपेक्षाएँ ऐसी इकाइयों की जोखिम लेने की भावना में वृद्धि, बाज़ार में अनुशासन की कमी तथा प्रतिस्पर्द्धी विकृतियाँ पैदा कर सकती हैं जिससे भविष्य में इनमें संकट की संभावनाएँ भी बढ़ सकती हैं।
  • IRDAI के अनुसार, पिछले 15 वर्षों में देश के बीमा क्षेत्र में तेज़ी से वृद्धि हुई है, इसके साथ ही कुछ बीमाकर्त्ताओं का बाज़ार के एक बड़े हिस्से पर हस्तक्षेप है और वे अन्य वित्तीय संस्थानों से भी जुड़े हैं। ऐसे में इनकी असफलता अर्थव्यवस्था के लिये एक बड़ी चुनौती बन सकती है।
  • इन चिंताओं को देखते हुए IRDAI द्वारा D-SIIs को प्रणालीगत जोखिमों (Systemic Risks)और नैतिक खतरे (Moral Hazard) के मुद्दों से निपटने के लिये अतिरिक्त नियामकीय उपायों के अधीन किये जाने का सुझाव दिया गया है।
  • गौरतलब है कि बीमा क्षेत्र से जुड़ी चिंताओं को देखते जनवरी 2019 में IRDAI द्वारा D-SIIs पर एक समिति का गठन किया गया था।
  • इससे पहले ‘अंतर्राष्ट्रीय बीमा पर्यवेक्षक संघ’ (International Association of Insurance Supervisors- IAIS) द्वारा सभी सदस्य देशों को स्थानीय/घरेलू D-SIIs के विनियमन हेतु एक नियमकीय ढाँचा तैयार करने के लिये कहा गया था।   

प्रभाव:   

  • IRDAI का यह निर्णय ऐसे समय में आया है जब केंद्र सरकार द्वारा अगले वर्ष LIC के शेयरों को ‘आरंभिक सार्वजनिक निर्गम’ (Initial Public Offer-IPO) के माध्यम से स्टॉक एक्सचेंज में सूचीबद्ध करने पर विचार किया जा रहा है। 
  • सार्वजनिक क्षेत्र की इन तीन बीमा कंपनियों को D-SIIs के रूप में चिह्नित करने से इनमें पारदर्शिता बढ़ेगी और इनकी कार्यप्रणाली में भी सुधार होगा।   
  • IRDAI के अनुसार, इन तीन बीमाकर्त्ताओं को अपने  कॉर्पोरेट प्रशासन के स्तर को बढ़ाने के लिये कहा गया है।
  • इसके साथ ही इनमें सभी प्रासंगिक जोखिमों की पहचान करने और एक प्रभावी जोखिम प्रबंधन प्रणाली को बढ़ावा देने का निर्देश दिया गया है।

D-SIIs में स्थिरता सुनिश्चित करने के प्रयास: 

  • IRDAI द्वारा D-SIIs की पहचान और उनके पर्यवेक्षक के लिये एक पद्धति का विकास किया गया है।
  • इसमें  संचालन का आकार (कुल राजस्व के संदर्भ में), प्रबंधन के तहत संपत्ति का मूल्य, एक से अधिक क्षेत्राधिकार में वैश्विक गतिविधियाँ आदि मापदंडों को शामिल किया गया है।
  • IRDAI द्वारा वार्षिक आधार पर  D-SIIs की पहचान कर ऐसे बीमाकर्त्ताओं के नामों को सार्वजनिक किया जाएगा। 

‘भारतीय बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण’

(Insurance Regulatory and Development Authority of India- IRDAI):

  • IRDAI की स्थापना वर्ष 1999 में आर.एन. मल्होत्रा समिति की सिफारिशों के आधार पर एक स्वायत्त निकाय के रूप में की गई थी।
  •  अप्रैल 2000 में इसे एक वैधानिक निकाय का दर्जा प्रदान किया गया।
  • इसका मुख्यालय हैदराबाद में स्थित है।
  • IRDAI का मुख्य उद्देश्य पॉलिसीधारकों के हितों और अधिकारों की रक्षा तथा बीमा उद्योग के विकास को बढ़ावा देना है।   

‘अंतर्राष्ट्रीय बीमा पर्यवेक्षक संघ’

(International Association of Insurance Supervisors- IAIS):

  • IAIS बीमा पर्यवेक्षकों और नियामकों का एक स्वैच्छिक सदस्यता संगठन है। 
  • इसकी स्थापना वर्ष 1994 में की गई थी। 
  • यह बीमा क्षेत्र में एक अंतर्राष्ट्रीय मानक निर्धारण निकाय है, जो बीमा क्षेत्र के पर्यवेक्षण हेतु मानकों और सिद्धांतों के निर्धारण और क्रियान्वयन में सहायता प्रदान करता है।

स्रोत: द हिंदू

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