दृष्टि के NCERT कोर्स के साथ करें UPSC की तैयारी और जानें
ध्यान दें:

डेली अपडेट्स


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

मान्यता के बिना संवाद: भारत की तालिबान नीति

  • 21 Oct 2025
  • 75 min read

प्रीलिम्स के लिये: तालिबान, उत्तरी गठबंधन, गोल्डन क्रीसेंट, हार्ट ऑफ एशिया, SCO, मॉस्को फॉर्मेट

मेन्स के लिये:  भारत-अफगानिस्तान संबंध, भारत-अफगानिस्तान संबंधों का महत्त्व, भारत-अफगानिस्तान संबंधों के समक्ष प्रमुख चुनौतियाँ

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों? 

अफगानिस्तान के विदेश मंत्री ने नई दिल्ली का दौरा किया, जो वर्ष 2021 के बाद से तालिबान का सर्वोच्च स्तर का दौरा था, जिसके बाद भारत ने काबुल में अपने तकनीकी मिशन को पूर्ण दूतावास में अपग्रेड किया, लेकिन तालिबान सरकार को औपचारिक रूप से मान्यता नहीं दी, जिससे उसकी ‘मान्यता के बिना संवाद’ की नीति जारी रही।

तालिबान सरकार के प्रति भारत का ‘मान्यता के बिना संवाद’ का दृष्टिकोण क्या है?

  • मान्यता के बिना संवाद: किसी सरकार को मान्यता देना (कानूनी तौर पर) और किसी शासन व्यवस्था के साथ संलग्नता (वास्तविक रूप से) अंतर्राष्ट्रीय कानून द्वारा शासित अलग-अलग राजनीतिक कार्य हैं।
    • भारत तालिबान की कानूनी वैधता को स्वीकार नहीं करता है, लेकिन काबुल स्थित अपने दूतावास के माध्यम से कार्यात्मक राजनयिक माध्यम बनाए रखता है।
  • संवाद का उद्देश्य: भारत के सामरिक और सुरक्षा हितों की रक्षा करते हुए मानवीय सहायता, विकास परियोजनाओं तथा राजनीतिक संवाद का समन्वय करना।
  • अंतर्राष्ट्रीय कानून का आधार: यह दृष्टिकोण राजनयिक संबंधों पर वियना कन्वेंशन (1961) और कांसुलर संबंधों (1963) के अनुरूप है, जो दूतावासों को मेज़बान सरकार की औपचारिक मान्यता के बिना कार्य करने की अनुमति देते हैं।
  • उदाहरण: भारत ने ताइवान और म्याँमार की सरकार के लिये भी इसी प्रकार के मॉडल का उपयोग किया है तथा उनकी सरकारों को औपचारिक रूप से मान्यता दिये बिना ही उनसे बातचीत की है।

अफगानिस्तान में तालिबान सरकार के प्रति वैश्विक दृष्टिकोण

  • सरकार को मान्यता देना दूतावास संचालन से अलग एक राजनीतिक कार्य है।
  • वर्ष 2024 में, संयुक्त राष्ट्र ने लगातार चौथे वर्ष अफगानिस्तान के अपने मुख्यालय के दावे को खारिज कर दिया। तालिबान सरकार को एक समावेशी सरकार बनाने, आतंकवादी समूहों को समाप्त करने और मानवाधिकारों, विशेष रूप से महिलाओं के अधिकारों का सम्मान करने संबंधी संयुक्त राष्ट्र की आवश्यकताओं को पूरा करना था, लेकिन वह इन तीनों ही मामलों में विफल रही है।
  • रूस, चीन, संयुक्त अरब अमीरात और उज़्बेकिस्तान जैसे देशों ने तालिबान के साथ मिश्रित दृष्टिकोण से संवाद किया है, जिनमें से कुछ ने औपचारिक मान्यता दी है, जबकि अन्य ने बिना मान्यता के संवाद किया है।

भारत तालिबान के साथ मान्यता न देने के बावजूद संवाद क्यों कर रहा है?

  • भारत के प्रति सकारात्मक रुख: तालिबान ने अपेक्षाकृत अच्छे संबंध बनाए हैं तथा इस तर्क पर ज़ोर दिया है कि कश्मीर पाकिस्तान के साथ द्विपक्षीय मामला है।
  • रणनीतिक प्रारंभिक लाभ: जल्दी संवाद करने से भारत की राजनयिक प्रभाव क्षमता बढ़ती है, इससे पहले कि चीन या पाकिस्तान रूस का अनुसरण करना।
  • क्षेत्रीय शक्तियों में संतुलन: संवाद से काबुल में चीन-पाकिस्तान प्रभाव को संतुलित करने में सहायता मिलती है और भारत की रणनीतिक उपस्थिति मज़बूत होती है।
    • भारत का दृष्टिकोण अफगानिस्तान की संप्रभुता के प्रति प्रतिबद्धता को रेखांकित करता है, जबकि पाकिस्तान के क्षेत्रीय प्रभाव को सीमित करता है।
  • परिसंपत्तियों की सुरक्षा: भारत ने अफगानिस्तान में 3 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक का निवेश किया है और संवाद इसके विकास परियोजनाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करता है।

भारत-अफगानिस्तान संबंधों का महत्त्व क्या है?

  • सुरक्षा और आतंकवाद निरोध: तालिबान द्वारा अफगानिस्तान को भारत विरोधी समूहों के ठिकाने के रूप में इस्तेमाल न होने की गारंटी, जिसमें आतंकवादी हमलों की निंदा शामिल है, भारत को अफगानिस्तान को एक रणनीतिक साझेदार के रूप में भरोसेमंद बनाती है।
    • वर्ष 1999 में तालिबान ने इंडियन एयरलाइंस फ्लाइट 814 के हाइजैकर्स के साथ भारत की बातचीत में सहयोग किया, जिससे बंधकों की सुरक्षित वापसी संभव हो सकी।
  • विकास और पुनर्निर्माण: भारत ने अफगानिस्तान में 3 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक का निवेश किया है, जिसमें सलमा डैम, ज़रांज-डेलाराम हाइवे, काबुल का संसद भवन, अस्पताल और पावर सबस्टेशन शामिल हैं।            
    • सूखा और कोविड-19 जैसी आपात स्थितियों में मानवीय पहल ने भारत की सॉफ्ट पावर प्रतिबद्धता तथा दीर्घकालिक संवाद को और मज़बूती दी है।
  • आर्थिक सहभागिता: अफगानिस्तान की खनिज संपदा, जिसका मूल्य 1–3 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर है, भारत के लिये खनन और व्यापार में महत्त्वपूर्ण अवसर प्रस्तुत करती है।
    • नॉर्दर्न एलायंस के लिये ऐतिहासिक समर्थन और भारत की प्रमुख विकास साझेदार के रूप में भूमिका क्षेत्र में भारत की सतत् रणनीतिक रुचि को दर्शाती है।
  • संपर्क और क्षेत्रीय व्यापार: भारत तुर्कमेनिस्तान-अफगानिस्तान-पाकिस्तान-भारत (TAPI) गैस पाइपलाइन और चाबहार बंदरगाह (ईरान-अफगानिस्तान-भारत गलियारा) जैसी प्रमुख संपर्क परियोजनाओं पर ध्यान केंद्रित कर रहा है, जिससे व्यापार, क्षेत्रीय एकीकरण तथा पाकिस्तान को दरकिनार करने में सुविधा होगी।
    • इन संपर्कों को मज़बूत करने से भारत की मध्य एशिया तक पहुँच बढ़ेगी और पाकिस्तान का रणनीतिक प्रभाव कम होगा।

भारत-अफगानिस्तान संबंधों के समक्ष क्या चुनौतियाँ हैं?

  • सुरक्षा और आतंकवाद: तालिबान के लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद जैसे समूहों से ऐतिहासिक संबंधों के कारण आतंकवाद एक प्रमुख चिंता बना हुआ है।
    • तालिबान द्वारा अफगान भूमि को भारत विरोधी गतिविधियों के लिये न इस्तेमाल करने के वादों के बावजूद, आतंकवादी संगठनों से पूर्ण दूरी न बनाने के कारण संदेह बरकरार हैं।
  • पाकिस्तान का प्रभाव: पाकिस्तान की इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस (ISI) का तालिबान और प्रॉक्सी समूहों को ऐतिहासिक समर्थन शांति प्रयासों को जटिल बनाता है। इसके अलावा, तालिबान द्वारा तहरिक-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP) विद्रोहियों के खिलाफ कोई कार्रवाई न करना सीमा-पार अस्थिरता का जोखिम उत्पन्न करता है।
  • राजनीतिक अस्थिरता और शासन: तालिबान का गैर-लोकतांत्रिक शासन, महिलाओं के अधिकारों का अभाव, अल्पसंख्यकों की सुरक्षा और असहमति का दमन भारत की मूल्य-आधारित भागीदारी को चुनौती देता है।
  • आर्थिक और अवसंरचना संबंधी बाधाएँ: अफगानिस्तान की गरीबी, सुरक्षा चिंताएँ, तालिबानी शासन और प्रतिबंध भारत के सलमा डैम, काबुल संसद जैसी परियोजनाओं में निवेश को प्रभावित करते हैं। हालाँकि, चाबहार पोर्ट के माध्यम से व्यापार और खनन क्षेत्र में सहभागिता कुछ हद तक सकारात्मक उम्मीद देती है।
  • नशीले पदार्थों की तस्करी: विश्व का सबसे बड़ा अफीम उत्पादक होने के कारण अफगानिस्तान क्षेत्रीय अस्थिरता को बढ़ावा देता है।
    • मादक पदार्थों का भारत पर प्रभाव (जैसे पंजाब में ड्रग संकट) और आतंकवादी गतिविधियों हेतु धन मुहैया कराना इसे सीमा-पार नियंत्रण के लिये एक महत्त्वपूर्ण चुनौती बनाता है।

अफगानिस्तान के साथ भारत के संबंधों को मज़बूत करने हेतु क्या कदम उठाए जा सकते हैं?

  • व्यावहारिक राजनयिक संलग्नता: तत्काल राजनीतिक मान्यता के बिना पूर्ण दूतावास और नियमित आदान-प्रदान बनाए रखना, नैतिक ज़िम्मेदारी के साथ रणनीतिक आवश्यकता को संतुलित करने के लिये मानवीय सहायता जारी रखना।
  • आतंकवाद-रोधी सहयोग: खुफिया जानकारी साझा करना, संयुक्त जाँच, अफगान सुरक्षा बलों के लिये क्षमता निर्माण तथा गोल्डन क्रीसेंट क्षेत्रों में मादक पदार्थ-रोधी सहयोग को संस्थागत बनाना।
  • आर्थिक संपर्क और भू-आर्थिक विकल्प: चाबहार बंदरगाह, भारत-अफगानिस्तान एयर फ्रेट कॉरिडोर के माध्यम से व्यापार और निवेश को बढ़ावा देना तथा हाजीगक जैसे संसाधन-क्षेत्रों में साझेदारी को सुरक्षित करना।
  • बहुपक्षीय एवं क्षेत्रीय सहयोग: समन्वित सहायता, पुनर्निर्माण और आतंकवाद निरोधक पहलों के लिए हार्ट ऑफ एशिया, शंघाई सहयोग संगठन (SCO), मॉस्को फॉर्मेट, संयुक्त राष्ट्र और साझेदार देशों का लाभ उठाना।
  • सामाजिक एवं मानव अधिकारों का समर्थन: महिला शिक्षा, अल्पसंख्यक अधिकारों और राजनीतिक समावेशिता को बढ़ावा देना, छात्रवृत्ति, व्यावसायिक प्रशिक्षण, सांस्कृतिक आदान-प्रदान और मीडिया पहुँच का विस्तार करना।

निष्कर्ष

भारत की तालिबान के साथ भागीदारी रणनीतिक, मानवीय और आर्थिक हितों के संतुलन पर आधारित है, लेकिन यह औपचारिक मान्यता दिये बिना की जाती है। हालाँकि सुरक्षा जोखिम, पाकिस्तान का प्रभाव तथा शासन से जुड़ी समस्याएँ जैसी चुनौतियाँ बनी हुई हैं, फिर भी निरंतर एवं सिद्धांत आधारित भागीदारी यह सुनिश्चित करती है कि भारत अफगानिस्तान की स्थिरता, विकास व क्षेत्रीय संपर्क में एक प्रमुख साझेदार बना रहे।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. तालिबान सरकार के प्रति भारत की “मान्यता के बिना संलग्नता” नीति और इसके रणनीतिक औचित्य का परीक्षण कीजिये।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs):

1. तालिबान के प्रति भारत का “बिना मान्यता के सहयोग” का दृष्टिकोण क्या है?
   भारत, तालिबान सरकार को औपचारिक रूप से मान्यता दिये बिना काबुल स्थित अपने दूतावास के माध्यम से कार्यात्मक राजनयिक चैनल बनाए रखता है, जिससे सहायता, वार्ता तथा रणनीतिक हित जारी रहते हैं।

2. भारत तालिबान सरकार को मान्यता देने में सतर्क क्यों है?
   नैतिक चिंताएँ, मानवाधिकार उल्लंघन तथा चरमपंथी विचारधाराओं के मज़बूत होने की संभावना तथा पाकिस्तान के साथ भू-राजनीतिक निहितार्थ, औपचारिक मान्यता में बाधा डालते हैं।

3. कौन से कदम भारत-अफगानिस्तान संबंधों को मज़बूत कर सकते हैं?
   व्यावहारिक कूटनीति, आतंकवाद-रोधी सहयोग, आर्थिक और व्यापारिक संपर्क, बहुपक्षीय सहभागिता और सामाजिक एवं मानवाधिकारों का समर्थन।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)  

प्रीलिम्स

प्रश्न. निम्नलिखित देशों पर विचार कीजिये: (2022)

  1. अज़रबैजान
  2. किर्गिज़स्तान 
  3. ताजिकिस्तान 
  4. तुर्कमेनिस्तान 
  5. उज़्बेकिस्तान

उपर्युक्त में से किसकी सीमाएँ अफगानिस्तान से लगती हैं?

(a) केवल 1, 2 और 5

(b) केवल 1, 2, 3 और 4

(c) केवल 3, 4 और 5

(d) 1, 2, 3, 4 और 5

उत्तर: (c)


मेन्स

प्रश्न. वर्ष 2014 में अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा सहायता बल (ISAF) की अफगानिस्तान से प्रस्तावित वापसी क्षेत्र के देशों के लिये बड़े खतरों (सुरक्षा उलझनों) भरी है। इस तथ्य के आलोक में परीक्षण कीजिये कि भारत के सामने भरपूर चुनौतियाँ हैं तथा उसे अपने सामरिक महत्त्व के हितों की रक्षा करने की आवश्यकता है। (2013)

close
Share Page
images-2
images-2