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जैव विविधता और पर्यावरण

मरुस्थलीकरण, भूमि क्षरण और सूखे पर वार्ता

  • 16 Jun 2021
  • 8 min read

प्रिलिम्स के लिये:

बन्नी क्षेत्र, भूमि क्षरण तटस्थता

मेन्स के लिये:

मरुस्थलीकरण से निपटने हेतु किये गए प्रयास

चर्चा में क्यों?

हाल ही में प्रधानमंत्री ने वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से संयुक्त राष्ट्र (UN) "मरुस्थलीकरण, भूमि क्षरण और सूखे पर उच्च स्तरीय वार्ता" को संबोधित किया।

  • वे संयुक्‍त राष्‍ट्र मरुस्‍थलीकरण रोकथाम कन्‍वेंशन (United Nations Convention to Combat Desertification- UNCCD) के पार्टियों के सम्मेलन (COP) के 14वें सत्र की अध्यक्षता कर रहे थे।
  • यह वार्ता सभी सदस्य राज्यों को भूमि क्षरण तटस्थता (Land Degradation Neutrality- LDN) लक्ष्यों और राष्ट्रीय सूखा योजनाओं को अपनाने तथा लागू करने के लिये प्रोत्साहित करेगी।

प्रमुख बिंदु:

भारत द्वारा उठाए गए प्रमुख कदम:

  • भारत, LDN (सतत विकास लक्ष्य 15.3) पर अपनी राष्ट्रीय प्रतिबद्धता को प्राप्त करने की राह पर है।
    • LDN एक ऐसी स्थिति है जहाँ पारिस्थितिक तंत्र कार्यों और सेवाओं का समर्थन करने तथा खाद्य सुरक्षा को बढ़ाने के लिये आवश्यक भूमि संसाधनों की मात्रा एवं गुणवत्ता स्थिर रहती है या निर्दिष्ट अस्थायी व स्थानिक पैमाने और पारिस्थितिक तंत्र के भीतर बढ़ जाती है।
  • भारत वर्ष 2030 तक 26 मिलियन हेक्टेयर बंजर भूमि की बहाली के लिये कार्य कर रहा है।
    • यह 2.5 से 3 बिलियन टन कार्बन डाइऑक्साइड के बराबर [वर्ष 2015 के पेरिस समझौते के तहत राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (NDC) लक्ष्य का एक हिस्सा] अतिरिक्त कार्बन सिंक को प्राप्त करने की भारत की प्रतिबद्धता में योगदान देगा।
  • पिछले 10 वर्षों में इसमें लगभग 3 मिलियन हेक्टेयर वन क्षेत्र जोड़ा गया है।
  • उदाहरण के लिये: गुजरात के कच्छ के रण में बन्नी क्षेत्र अत्यधिक निम्नीकृत भूमि से ग्रस्त है और यहाँ बहुत कम वर्षा होती है।
    • ऐसे क्षेत्र में घास के मैदानों को विकसित करके भूमि की बहाली की जाती है, जिससे भूमि क्षरण तटस्थता की स्थिति प्राप्त करने में मदद मिलती है।

विकासशील विश्व के सामने आने वाली चुनौतियों के संदर्भ में:

  • वर्तमान में भूमि क्षरण विश्व के दो-तिहाई हिस्से को प्रभावित कर रहा है।
  • भारत अपने साथी विकासशील देशों को भूमि बहाली हेतु रणनीति विकसित करने में सहायता कर रहा है।
  • भूमि क्षरण के मुद्दों के प्रति वैज्ञानिक दृष्टिकोण को बढ़ावा देने के लिये भारत में एक उत्कृष्टता केंद्र स्थापित किया जा रहा है। यह भारतीय वानिकी अनुसंधान और शिक्षा परिषद परिसर में अवस्थित है।
    • देहरादून में स्थित ICFRE पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय का एक स्वायत्त निकाय है।

भूमि क्षरण

संदर्भ:

  • भूमि क्षरण कई कारणों से होता है, जिसमें चरम मौसम की स्थिति, विशेष रूप से सूखा आदि शामिल है।
  • यह मानवीय गतिविधियों के कारण भी होता है जो मृदा और भूमि की गुणवत्ता में कमी लाता है तथा उन्हें प्रदूषित करता है।

प्रभाव:

  • मरुस्थलीकरण गंभीर भूमि क्षरण का परिणाम है और इसे एक ऐसी प्रक्रिया के रूप में परिभाषित किया जाता है जो शुष्क, अर्ध-शुष्क और शुष्क उप-आर्द्र क्षेत्रों का निर्माण करता  है।
  • यह जलवायु परिवर्तन और जैव विविधता की क्षति को बढ़ाता है तथा सूखे, जंगल की आग, अनैच्छिक प्रवास एवं ज़ूनोटिक संक्रामक रोगों के उद्भव में योगदान देता है।

भूमि क्षरण की जाँच के लिये वैश्विक प्रयास:

  • संयुक्‍त राष्‍ट्र मरुस्‍थलीकरण रोकथाम कन्‍वेंशन (UNCCD): इसे वर्ष 1994 में स्थापित किया गया था, यह पर्यावरण और विकास को स्थायी भूमि प्रबंधन से जोड़ने वाला एकमात्र कानूनी रूप से बाध्यकारी अंतरराष्ट्रीय समझौता है।
    • UNCCD के 14वें CoP द्वारा हस्ताक्षरित वर्ष 2019 के दिल्ली घोषणापत्र में भूमि पर बेहतर पहुँच और प्रबंधन का आह्वान किया गया तथा लैंगिक-संवेदनशील परिवर्तनकारी परियोजनाओं पर ज़ोर दिया गया।
  • द बॉन चैलेंज: यह एक वैश्विक प्रयास है। इसके तहत वर्ष 2020 तक विश्व के 150 मिलियन हेक्टेयर गैर-वनीकृत एवं बंजर भूमि पर और वर्ष 2030 तक 350 मिलियन हेक्टेयर भूमि पर वनस्पतियाँ उगाई जाएंगी।
  • ग्रेट ग्रीन वॉल: यह ग्लोबल एन्वायरनमेंट फैसिलिटी (GEF) की पहल है जहाँ साहेल-सहारन अफ्रीका के ग्यारह देशों ने भूमि क्षरण के खिलाफ लड़ने और देशी पौधों के पुनर्जीवन के प्रयासों पर ध्यान केंद्रित किया है।

भूमि क्षरण की जाँच के लिये भारत के प्रयास:

  • भारत अपने निवासियों को बेहतर मातृभूमि और बेहतर भविष्य प्रदान करने, स्थानीय भूमि को स्वस्थ तथा उत्पादक बनाने हेतु सामुदायिक स्तर पर आजीविका सृजन के लिये स्थायी भूमि एवं संसाधन प्रबंधन पर ध्यान केंद्रित कर रहा है।
  • मरुस्थलीकरण से निपटने के लिये राष्ट्रीय कार्यक्रम वर्ष 2001 में तैयार किया गया था ताकि मरुस्थलीकरण की समस्याओं के समाधान हेतु उचित कार्रवाई की जा सके।
  • वर्तमान में भूमि क्षरण और मरुस्थलीकरण से संबंधित मुद्दों को संबोधित करने वाले कुछ प्रमुख कार्यक्रम लागू किये जा रहे हैं:

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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