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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

महिलाओं की श्रम में कम होती भागीदारी

  • 10 Apr 2017
  • 5 min read

समाचारों में क्यों?
विश्व बैंक के पाँच अर्थशास्त्रियों ने पाया है कि आर्थिक सुधारों की अवधि के दौरान विश्व की कई उभरती अर्थव्यस्थाओं ने उच्च विकास दर तो हासिल कर लिया लेकिन जहाँ तक ‘रोज़गार के अवसर’ का प्रश्न है महिलाओं की स्थिति अभी भी दयनीय है और भारत भी उन्हीं उभरती अर्थव्यस्थाओं में से एक है।

विदित हो कि वर्ष 2013 के आँकड़ों पर आधारित और अप्रैल 2017 में विश्व बैंक द्वारा जारी इस रिपोर्ट में महिलाओं के लिये रोज़गार के अवसर के मामले में  भारत को 131 देशों की सूची में 121वाँ स्थान प्राप्त हुआ है।

विश्व बैंक
विश्व बैंक एक अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्था है जो कि दुनिया भर की सरकारों को कर्ज़ देती है, इसका काम वित्‍तीय मदद के साथ-साथ परामर्श देना भी है। इसका मुख्यालय अमेरीका की राजधानी वाशिंगटन डीसी में है। विश्व बैंक और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष की स्थापना एक साथ 1944 में ब्रेटन वुड्स सम्मेलन के दौरान हुई थी, इसलिये इन दोनों संस्‍थानों को ब्रेटन वुड्स संस्‍थान भी कहा जाता है।

इन संस्‍थानों की स्‍थापना का उद्देश्‍य दूसरे विश्व युद्ध और विश्वव्यापी आर्थिक मंदी से जूझ रहे देशों की मदद करना था। विश्‍व बैंक अपने सदस्य देशों को विकास के कार्यों में आर्थिक सहायता व वित्‍तीय मामलों से संबंधित सलाह भी देता है।

क्यों नहीं मिल रहा महिलाओं को रोज़गार के समान अवसर ?
ध्यातव्य है कि हमारे समाज में भेदभाव के अलावा महिलाओं की काबिलियत पर भी सवाल उठाए जाते हैं, यही कारण है कि रोज़गार के अवसर से लेकर महिला उद्यमिता तक की रैंकिंग में भारत की स्थिति बदतर हैं। हालाँकि भारत में अब उच्च तकनीकी शिक्षा और प्रबंधन की डिग्री के साथ हर साल पहले के मुकाबले ज़्यादा महिलाएँ कारोबार के क्षेत्र में कदम रख रही हैं, लेकिन यह भी सही है कि समानता के तमाम दावों के बावजूद उनको इस क्षेत्र में पुरुषों के मुकाबले अधिक परेशानियों का सामना करना पड़ता है।

दरअसल, महिलाओं के प्रति हमारे समाज का नज़रिया इसकी एक प्रमुख वज़ह है। यहाँ तक कि बैंकों और वित्तीय संस्थानों में भी उनकी काबिलियत पर संदेह किया जाता है। बैंक प्रायः महिला उद्यमियों को ऋण नहीं देते हैं, इसलिये महिला उद्यमियों को जरूरी पूंजी जुटाने में काफी मशक्कत करनी पड़ती है।

क्या हो आगे का रास्ता ?
गौरतलब है कि देश की महिलाओं को आर्थिक रूप से मज़बूत बनाने के लिये सरकार कई प्रयास कर रही है। जिसमें देश की सरकारी और निजी क्षेत्र के बैंकों की भी अहम भूमिका है। मुद्रा स्कीम, वैभव लक्ष्‍मी, वी शक्ति, वुमन सेविंग आदि कुछ ऐसी योजनाएँ हैं जिनसे महिलाओं को रोज़गार के अवसर प्रदान किये जा रहे हैं। लेकिन बैंक खातों तक महिलाओं की आसान पहुँच सुनिश्चित करने, वित्तीय प्रशिक्षण कार्यक्रम आरम्भ करने और पूंजीगत ज़रूरतों को पूरा करने के लिये अभी बहुत कुछ करना बाकी है।

दरअसल, इस प्रकार की कोई योजना और अभियान पूर्ण रूप से तभी सफल हो सकता है जब हम समाज को यह सन्देश देने में सफल रहेंगे कि महिलाएँ भी किसी कार्य को उतनी ही कुशलता से कर सकती हैं जितना कि कोई पुरुष कर्मी। वस्तुतः  बैंक और वित्तीय संस्थाओं में कार्यरत व्यक्ति भी हमारे इसी समाज के हिस्से हैं, अतः जब तक उनके मन से इस प्रकार के पूर्वाग्रह समाप्त नहीं होंगे भारत, महिला को रोज़गार के अवसर प्रदान करने के मामले में फिसड्डी ही रहेगा।

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