शासन व्यवस्था
फेक न्यूज़ पर अंकुश
- 20 Sep 2025
- 74 min read
प्रिलिम्स के लिये: सूचना का अधिकार, अनुच्छेद 19, भारतीय साइबर अपराध समन्वय केंद्र
मेन्स के लिये: भारत में डिजिटल मीडिया के लिये नियामक ढाँचे, लोकतंत्र और सार्वजनिक व्यवस्था के लिये फेक न्यूज़ (फर्जी खबरों) की चुनौतियाँ और निहितार्थ
चर्चा में क्यों?
संसद में संचार और सूचना प्रौद्योगिकी संबंधी स्थायी समिति ने ‘फेक न्यूज़’ और गलत सूचना के प्रसार को रोकने के उद्देश्य से कई उपाय प्रस्तावित किये हैं तथा इस बात पर प्रकाश डाला है कि ऐसी सामग्री से सार्वजनिक व्यवस्था और लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को संभावित नुकसान हो सकता है।
फेक न्यूज़ पर अंकुश लगाने के लिये प्रमुख सिफारिशें क्या हैं?
- तथ्य-जाँच (फैक्ट-चेकिंग) तंत्र: समिति सभी मीडिया संगठनों के लिये तथ्य-जाँच (फैक्ट-चेकिंग) तंत्र और संपादकीय सामग्री की निगरानी हेतु एक आंतरिक लोकपाल (ombudsman) रखना अनिवार्य बनाने के पक्ष में है।
- दंडात्मक प्रावधान: समिति ने कानूनों में संशोधन का सुझाव दिया है, ताकि जुर्माने की राशि बढ़ाई जा सके, मीडिया को संपादकीय सामग्री के लिये जवाबदेह ठहराया जा सके और भ्रामक सूचनाओं के प्रसार को हतोत्साहित किया जा सके।
- 'फेक न्यूज़' की परिभाषा: समिति स्पष्ट रूप से 'फेक न्यूज़' की परिभाषा तय करने और उसे मौजूदा मीडिया विनियमों में शामिल करने का समर्थन करती है, साथ ही यह भी सुनिश्चित करती है कि ऐसे प्रयास वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता या व्यक्तिगत अधिकारों का उल्लंघन न करें।
- भारतीय प्रेस परिषद को सशक्त बनाना: बेहतर निगरानी के लिये शिकायत पोर्टल और एक स्वतंत्र निगरानी निकाय बनाने का सुझाव दिया गया है।
- AI-जनित सामग्री का विनियमन: AI सामग्री निर्माताओं के लिये लाइसेंसिंग और AI-जनित सामग्री (जैसे वीडियो) की अनिवार्य लेबलिंग का प्रस्ताव है, ताकि पारदर्शिता बढ़ाई जा सके और भ्रामक सामग्री के प्रसार को कम किया जा सके।
फेक न्यूज़ पर अंकुश लगाने की क्या आवश्यकता है?
- लोकतंत्र के लिये खतरा: फेक न्यूज़ जनमत को प्रभावित कर सकती है, विशेषकर चुनावों के दौरान, जिससे लोकतांत्रिक प्रक्रिया कमज़ोर होती है।
- फेक न्यूज़ नागरिकों के सूचना के अधिकार को कमज़ोर करती हैं, जिसे अनुच्छेद 19 के तहत संरक्षित किया गया है, जैसा कि राज नारायण बनाम उत्तर प्रदेश सरकार (1975) में भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा बरकरार रखा गया था।
- लोक व्यवस्था का विघटन: भ्रामक सूचना हिंसा और अशांति को जन्म दे सकती है, जिससे सामाजिक स्थिरता को खतरा होता है।
- वर्ष 2018 में भारत में बच्चों के अपहरणकर्त्ताओं के बारे में व्हाट्सएप अफवाहों ने कई राज्यों में भीड़ द्वारा की गई हत्याओं (Mob Lynchings) को जन्म दिया, जिसके कारण मौतें और लोक-व्यवस्था भंग हुई।
- विश्वास का ह्रास: फेक न्यूज़ मीडिया और संस्थानों पर भरोसा कम करती है, जिससे समाज के लिये सूचित निर्णय लेना कठिन हो जाता है।
- कोविड-19 महामारी के दौरान वैक्सीन और उपचार से जुड़ी भ्रामक सूचनाएँ बड़े पैमाने पर फैलीं, जिससे लोगों ने सरकारी स्वास्थ्य दिशा-निर्देशों पर सवाल उठाए और टीकाकरण प्रक्रिया में देरी हुई।
- राष्ट्रीय सुरक्षा के जोखिम: भ्रामक सूचना राष्ट्रों को अस्थिर कर सकती है और विभाजन उत्पन्न कर सकती है, जिससे सुरक्षा को खतरा होता है।
फेक न्यूज़ को नियंत्रित करने में क्या चुनौतियाँ हैं?
- फेक न्यूज़ की परिभाषा: ‘फेक न्यूज़’ की परिभाषा व्यक्तिपरक है। इसकी कोई सार्वभौमिक रूप से स्वीकार्य परिभाषा नहीं है, जिसके कारण फेक न्यूज़ को विचारों, व्यंग्य या टिप्पणियों से अलग करना कठिन हो जाता है।
- वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता: अत्यधिक नियमन संविधान के अनुच्छेद 19 के अंतर्गत प्रदत्त मौलिक वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार को सीमित करने का जोखिम उत्पन्न करता है। नियमन और लोकतांत्रिक स्वतंत्रताओं के बीच संतुलन स्थापित करना एक जटिल कार्य है।
- डिजिटल प्लेटफॉर्म पर तीव्र प्रसार: सोशल मीडिया सामग्री को तुरंत साझा करने में सक्षम बनाता है, जिससे तथ्य-जाँच से पहले ही फेक न्यूज़ वायरल हो जाती है। इस तीव्र प्रसार के कारण समय पर हस्तक्षेप करना कठिन हो जाता है।
- कई सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म भारत के बाहर स्थित हैं, जिससे प्रवर्तन तथा जवाबदेही में कानूनी और क्षेत्राधिकार संबंधी चुनौतियाँ उत्पन्न हो रही हैं।
- तकनीकी जटिलता: AI-जनित सामग्री, डीपफेक और स्वचालित बॉट अत्यंत वास्तविक दिखने वाली भ्रामक जानकारी उत्पन्न कर सकते हैं, जिसे पहचानना कठिन होता है। कानून प्रायः इन तीव्र गति से विकसित हो रही प्रौद्योगिकियों से पीछे रह जाते हैं।
- इंटरनेट द्वारा प्रदान की गई गोपनीयता लोगों को बिना किसी जवाबदेही के झूठी जानकारी फैलाने की अनुमति देती है। इससे फेक न्यूज़ के स्रोत का पता लगाना और उसके लिये ज़िम्मेदार लोगों को जवाबदेह ठहराना कठिन हो जाता है।
- कम डिजिटल साक्षरता जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा ऑनलाइन जानकारी का समालोचनात्मक मूल्यांकन करने की क्षमता नहीं रखता, जिससे वे भ्रामक सामग्री के प्रति अधिक संवेदनशील हो जाते हैं।
- सरकारी अतिक्रमण का जोखिम: कड़े नियमन को सेंसरशिप के रूप में देखा जा सकता है, जिससे प्राधिकरणों और मीडिया संस्थानों पर विश्वास कमज़ोर पड़ सकता है।
- राजनीतिक और सामाजिक ध्रुवीकरण: राजनीतिक या सामाजिक रूप से ध्रुवीकृत वातावरण में लोग उस फेक न्यूज़ को अधिक आसानी से स्वीकार कर सकते हैं, जो उनके विश्वासों से मेल खाती है, जिससे भ्रामक सूचना को नियंत्रित करना तथा चुनौती देना और कठिन हो जाता है।
फेक न्यूज़ के प्रसार को रोकने के लिये भारत की क्या पहल है?
- भारतीय प्रेस परिषद (PCI): नैतिक पत्रकारिता के लिये दिशानिर्देश प्रदान करती है।
- IT अधिनियम, 2000: यह सरकार को मध्यस्थों और ऑनलाइन सामग्री को विनियमित करने का अधिकार प्रदान करता है।
- सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती दिशानिर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम, 2021 के तहत मध्यस्थों को गैर-कानूनी सामग्री की मेज़बानी, प्रकाशन या साझा नहीं करना चाहिये।
- इन सावधानी संबंधी दायित्वों का पालन न करने पर IT अधिनियम की धारा 79 के तहत सेफ हार्बर संरक्षण (कानूनी संरक्षण) का नुकसान होता है
- सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती दिशानिर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम, 2021 के तहत मध्यस्थों को गैर-कानूनी सामग्री की मेज़बानी, प्रकाशन या साझा नहीं करना चाहिये।
- प्रेस सूचना ब्यूरो (PIB) तथ्य-जाँच इकाई: सरकार से संबंधित भ्रामक सूचनाओं का खंडन करती है।
- भारत निर्वाचन आयोग (ECI): आम चुनाव 2024 में भ्रामक सूचनाओं से सक्रिय रूप से निपटने के लिये ECI ने ‘मिथक बनाम वास्तविकता रजिस्टर’ की शुरुआत की।
- ECI चुनावों के दौरान फेक न्यूज़ का मुकाबला करने के लिये अभियान भी चलाता है।
- सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय का परामर्श (2024): भारतीय उपयोगकर्त्ताओं को लक्षित करने वाले ऑनलाइन सट्टेबाज़ी और सरोगेट विज्ञापनों के प्रचार पर प्रतिबंध लगाती है।
- भारतीय साइबर अपराध समन्वय केंद्र (I4C): साइबर अपराधों से निपटने के लिये कानून प्रवर्तन हेतु ढाँचा।
- राष्ट्रीय साइबर अपराध रिपोर्टिंग पोर्टल: नागरिकों को राज्य/संघ राज्य क्षेत्र पुलिस को कार्रवाई के लिये भेजे गए साइबर अपराधों की रिपोर्ट करने की अनुमति देता है।
भारत में फेक न्यूज़ विनियमन को सुदृढ़ करने के लिये कौन-सा तंत्र कार्य कर सकता है?
- कानूनी और विनियामक ढाँचे को मज़बूत करना: कानून में फेक न्यूज़ को राय, व्यंग्य या असहमति से स्पष्ट रूप से अलग किया जाना चाहिये, ताकि इनके दुरुपयोग से बचा जा सके।
- फेक न्यूज़ पर सिंगापुर के आपराधिक कानून और यूरोपीय संघ की स्व-नियामक संहिता विनियमन और प्रवर्तन के बीच संतुलन बनाने के बारे में जानकारी प्रदान करती है।
- तथ्य-जाँच को सशक्त और संस्थागत बनाना: तथ्य-जाँच संगठनों को एक केंद्रीय निकाय द्वारा प्रमाणित किया जाना चाहिये तथा गुणवत्ता मानकों का पालन सुनिश्चित करने के लिये नियमित ऑडिट भी होना चाहिये।
- यूरोपीय तथ्य-जाँच मानक नेटवर्क पारदर्शिता और विश्वसनीयता के लिये मॉडल प्रदान करता है।
- प्लेटफार्म जवाबदेही और विनियमन: उन्हें झूठी जानकारी के वायरल प्रसार को रोकने के लिये अपनी सिफारिश और प्रचार एल्गोरिदम की पारदर्शिता सुनिश्चित करनी चाहिये, जैसा कि यूरोपीय संघ के डिजिटल सेवा अधिनियम में किया गया है, जो प्लेटफार्म की जवाबदेही और अवैध सामग्री के त्वरित हटाने को अनिवार्य करता है।
- इसके अतिरिक्त प्लेटफार्मों को सिंथेटिक या AI-जनित सामग्री को स्पष्ट रूप से लेबल करना चाहिये, ताकि उपयोगकर्त्ताओं को हेरफेर या स्वचालित सामग्री के बारे में सूचित और जागरूक रखा जा सके।
- प्रौद्योगिकी और AI का ज़िम्मेदारी से उपयोग: AI उपकरण फेक न्यूज़ को बढ़ा सकते हैं, लेकिन उद्देश्य-निर्मित AI उपकरण और मानवीय निगरानी के साथ इसे बड़े पैमाने पर कम भी किया जा सकता है।
- सामुदायिक नोट्स कार्यक्रम और AI उपकरण भारत की भाषाई विविधता के लिये भाषिनी (BHASHINI) को एकीकृत कर सकते हैं, ताकि संदर्भ-विशिष्ट गलत सूचना का पता लगाया जा सके।
- मीडिया साक्षरता और जन जागरूकता को बढ़ावा देना: डिजिटल साक्षरता को स्कूल के पाठ्यक्रम में शामिल करना तथा सोशल मीडिया पर आलोचनात्मक सोच एवं ज़िम्मेदार जानकारी साझा करने के व्यवहार को प्रोत्साहित करना।
- भाषाई और सांस्कृतिक रूप से विविध आबादी तक पहुँचने के लिये स्थानीय प्रभावशाली लोगों, तथ्य-जाँचकर्त्ताओं तथा गैर-सरकारी संगठनों का उपयोग करना।
- अंतर-मंत्रालयी समन्वय: एकीकृत कार्रवाई के लिये इलेक्ट्रॉनिकी और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय, सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय, गृह मंत्रालय एवं उपभोक्ता मामलों के मंत्रालयों के प्रयासों को समन्वित करें। दुरुपयोग को रोकने के लिये सुनिश्चित करें कि सामग्री हटाने या दंड की समीक्षा की जाए।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. इस बात का परीक्षण कीजिये कि भारत डिजिटल युग में वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और फेक न्यूज़ के विनियमन के बीच किस प्रकार संतुलन स्थापित कर सकता है। |
UPSC सिविल सेवा विगत के पिछले वर्ष के प्रश्न (PYQ)
मेन्स
प्रश्न. आप 'वाक् और अभिव्यक्ति स्वातंत्र्य' संकल्पना से क्या समझते हैं? क्या इसकी परिधि में घृणा वाक् भी आता है? भारत में फिल्में अभिव्यक्ति के अन्य रूपों से तनिक भिन्न स्तर पर क्यों हैं? चर्चा कीजिये।