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नीतिशास्त्र

नियंत्रित मानव संक्रमण अध्ययन एवं नैतिक चिंताएँ

  • 27 Jul 2023
  • 6 min read

प्रिलिम्स के लिये:

नियंत्रित मानव संक्रमण अध्ययन, मलेरिया, डेंगू, वैक्सीन 

मेन्स के लिये:

भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद के दिशा-निर्देश, नियंत्रित मानव संक्रमण अध्ययन से संबंधित नैतिक चिंताएँ 

चर्चा में क्यों?  

भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR) की बायोएथिक्स यूनिट ने नियंत्रित मानव संक्रमण अध्ययन (CHIS) के नैतिक पहलुओं को संबोधित करते हुए एक सर्वसम्मति नीति वक्तव्य का मसौदा तैयार किया है, जो भारत में इसके संभावित कार्यान्वयन के लिये द्वार खोलता है।

नियंत्रित मानव संक्रमण अध्ययन से संबंधित नैतिक चिंताएँ:
 

  • परिचय:  
    • CHIS एक शोध मॉडल है जो जान-बूझकर स्वस्थ स्वयंसेवकों को नियंत्रित परिस्थितियों में रोगजनकों के संपर्क में लाता है।
    • इसका उपयोग विभिन्न देशों में मलेरिया, टाइफाइड और डेंगू जैसी बीमारियों का अध्ययन करने के लिये किया जाता है।
  • CHIS के कार्यान्वयन के लाभ: ICMR के अनुसार, CHIS में चिकित्सा अनुसंधान एवं सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिये कई लाभ प्रदान करने की क्षमता है:
    • बीमारियों के रोगजनन के संबंध में अंतर्दृष्टि: CHIS बीमारियों के विकास और प्रगति के बारे में अद्वितीय अंतर्दृष्टि प्रदान कर सकता है, जिससे संक्रामक रोगों के संबंध में गहरी समझ विकसित हो सकती है।
    • त्वरित चिकित्सा हस्तक्षेप: शोधकर्ताओं को रोग की प्रगति का तीव्रता से अध्ययन करने की अनुमति देकर CHIS नए उपचार और टीकों के विकास में तेज़ी ला सकता है।
    • लागत प्रभावी और कुशल परिणाम: CHIS को बड़े नैदानिक ​​परीक्षणों की तुलना में छोटे नमूना आकार की आवश्यकता होती है, जिससे यह अधिक लागत प्रभावी अनुसंधान मॉडल बन जाता है।
    • सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रतिक्रिया में योगदान: CHIS के निष्कर्ष सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रतिक्रियाओं, स्वास्थ्य देखभाल के निर्णय और नीति विकास को सूचित कर सकते हैं।
      • CHIS के माध्यम से रोग की गतिशीलता को समझने से भविष्य की महामारियों के लिये तैयारी सुनिश्चित की जा सकती है।
    • सामुदायिक सशक्तीकरण: CHIS अनुसंधान में समुदायों को शामिल करने से उन्हें अपने स्वास्थ्य के अधिकार के साथ स्वास्थ्य देखभाल पहल में सक्रिय रूप से भाग लेने के लिये सशक्त बनाया जा सकता है।
  • नैतिक चुनौतियाँ:
    • जान-बूझकर नुकसान और प्रतिभागियों की सुरक्षा: स्वस्थ स्वयंसेवकों को रोगजनकों के संपर्क में लाने से प्रतिभागियों को संभावित नुकसान के बारे में चिंताएँ बढ़ जाती हैं।
    • प्रोत्साहन और मुआवज़ा: CHIS में प्रतिभागियों के लिये उचित मुआवज़ा निर्धारित करना चुनौतीपूर्ण हो सकता है।  
      • बहुत अधिक मुआवज़े की पेशकश लोगों को अनुचित रूप से भाग लेने के लिये प्रेरित कर सकती है, जो संभावित रूप से सूचित सहमति से समझौता कर सकती है।
      • इसके विपरीत अपर्याप्त मुआवज़ा देने से कमज़ोर व्यक्तियों का शोषण हो सकता है।
    • तृतीय-पक्ष जोखिम: अनुसंधान में शामिल प्रतिभागियों के अतिरिक्त तीसरे पक्ष में रोग संचरण का जोखिम चिंता का विषय है।
    • न्याय एवं निष्पक्षता: एक चिंता का विषय यह भी है कि CHIS में कम आय वाले या हाशिये पर स्थित समुदाय के प्रतिभागियों को असमान रूप से शामिल किया जा सकता है।

आगे की राह

  • नैतिक विचार: इसका पहला कदम CHIS प्रोटोकॉल का गहन मूल्यांकन करने के लिये एक स्वतंत्र नैतिकता समिति की स्थापना करना है।
    • इस समिति में चिकित्सा नैतिकता, संक्रामक रोगों तथा कानूनी प्रतिनिधियों सहित प्रासंगिक क्षेत्रों के विशेषज्ञ शामिल होने चाहिये ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि पूरी प्रक्रिया के दौरान प्रतिभागियों की सुरक्षा और अधिकार संरक्षित हैं।
  • सूचित सहमति और वापसी: CHIS में भाग लेने वाले स्वयंसेवकों को इसके जोखिमों के बारे में पूरी जानकारी होनी चाहिये।
    • सूचित सहमति प्राप्त की जानी चाहिये तथा प्रतिभागियों को बिना किसी दंड के किसी भी समय सहमति वापस लेने का अधिकार होना चाहिये।
  • जोखिम न्यूनीकरण और चिकित्सा सहायता: प्रतिभागियों के लिये जोखिम को कम करने के उपाय किये जाने चाहिये।
    • इसमें परीक्षण के दौरान करीबी चिकित्सा निगरानी तथा यदि कोई प्रतिभागी बीमार हो जाता है तो उचित चिकित्सा देखभाल और उपचार तक पहुँच शामिल है।

स्रोत: द हिंदू

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