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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

आर्मीनिया-अज़रबैजान विवाद

  • 28 Sep 2020
  • 10 min read

प्रिलिम्स के लिये

आर्मीनिया और अज़रबैजान की भौगोलिक स्थिति, नागोर्नो-करबख की भौगोलिक अवस्थिति

मेन्स के लिये

आर्मीनिया और अज़रबैजान के मध्य विवाद की पृष्ठभूमि और भारत की भूमिका

चर्चा में क्यों?

विवादित नागोर्नो-करबख (Nagorno-Karabakh) क्षेत्र को लेकर आर्मीनिया और अज़रबैजान के बीच एक बार फिर हिंसक संघर्ष की शुरुआत हो गई है, जिसके कारण इस क्षेत्र विशिष्ट में स्थिरता लाने और शांति स्थापित करने के प्रयासों को लेकर चिंताएँ और अधिक बढ़ गई हैं।

प्रमुख बिंदु

  • इस संबंध में जारी आधिकारिक सूचना के अनुसार, दोनों देशों के बीच हुए हिंसक संघर्ष के कारण अब तक कुल 16 लोगों की मौत हो गई है, जबकि 100 से अधिक लोग घायल हो गए हैं।
  • ध्यातव्य है कि बीते लगभग चार दशक से भी अधिक समय से मध्य एशिया में आर्मीनिया और अज़रबैजान के बीच चल रहे क्षेत्रीय विवाद और जातीय संघर्ष ने नागोर्नो-करबाख क्षेत्र के आर्थिक-, सामाजिक और राजनीतिक विकास को भी खासा प्रभावित किया है।

विवाद: पृष्ठभूमि

  • वर्तमान नागोर्नो-करबाख क्षेत्र को लेकर आर्मीनिया और अज़रबैजान के बीच विवाद की शुरुआत वर्ष 1918 में तब हुई थी, जब ये दोनों देश रूसी साम्राज्य से स्वतंत्र हुए थे।
  • 1920 के दशक के प्रारंभ में, दक्षिण काकेशस में सोवियत शासन लागू किया गया और तत्कालीन सोवियत सरकार ने तकरीबन 95 प्रतिशत अर्मेनियाई आबादी वाले नागोर्नो-करबाख क्षेत्र को अज़रबैजान के भीतर एक स्वायत्त क्षेत्र बन दिया।
  • यद्यपि स्वायत्त क्षेत्र बनने के बाद भी इस क्षेत्र को लेकर दोनों देशों (आर्मीनिया और अज़रबैजान) के बीच संघर्ष जारी रहा, हालाँकि सोवियत शासन के दौरान दोनों देशों के बीच संघर्ष को रोक दिया है।
  • लेकिन जैसे-जैसे सोवियत संघ का पतन होना शुरू हुआ, वैसे-वैसे ही आर्मीनिया और अज़रबैजान पर इसकी पकड़ भी कमज़ोर होती गई। इसी दौरान वर्ष 1988 में अज़रबैजान की सीमाओं के भीतर होने के बावजूद नागोर्नो-काराबाख की विधायिका ने आर्मेनिया में शामिल होने का प्रस्ताव पारित किया।
  • वर्ष 1991 में सोवियत संघ का विघटन हो गया और नागोर्नो-काराबाख स्वायत्त क्षेत्र ने एक जनमत संग्रह के माध्यम से स्वयं को स्वतंत्र घोषित कर दिया, वहीं अज़रबैजान ने इस जनमत संग्रह को मानने से इनकार कर दिया। 
  • सोवियत संघ के विघटन के साथ ही रणनीतिक रूप से महत्त्वपूर्ण इस क्षेत्र को लेकर आर्मीनिया और अज़रबैजान के बीच भी युद्ध की शुरुआत हो गई।
    • उल्लेखनीय है कि आर्मीनिया और अज़रबैजान दोनों ही समय-समय पर एक दूसरे के ऊपर नागोर्नो-काराबाख स्वायत्त क्षेत्र में जातीय नरसंहार का आरोप लगाते रहे हैं।
  • वर्ष 1992 तक इस क्षेत्र में हिंसा काफी तेज़ हो गई और इसके कारण हज़ारों नागरिक को विस्थापित होना पड़ा, जिसने अंतर्राष्ट्रीय निकायों और संस्थानों को इस क्षेत्र पर ध्यान देने और कार्यवाही करने के लिये मज़बूर किया।
  • मई 1994 में दोनों देशों के बीच संघर्ष को बढ़ते देख रूस ने आर्मेनिया और अज़रबैजान के बीच युद्ध विराम की मध्यस्थता की, किंतु तकरीबन तीन दशकों से यह संघर्ष आज भी जारी है और समय-समय पर संघर्ष विराम उल्लंघन और हिंसा के उदाहरण देखने को मिलते हैं।
  • अप्रैल 2016 में इस क्षेत्र में हिंसक संघर्ष काफी तेज़ हो गया, जिसके कारण इस क्षेत्र में तनाव काफी बढ़ गया था, इस संघर्ष को फोर-डे वॉर (Four-Day War) के रूप में भी जाना जाता है।

हालिया संघर्ष के निहितार्थ

  • विवादित नागोर्नो-काराबाख स्वायत्त क्षेत्र को लेकर आर्मेनिया और अज़रबैजान के बीच वर्ष 1994  के बाद से ही छोटे-छोटे संघर्ष जारी हैं और मध्यस्थता के तमाम प्रयास दोनों देशों के बीच शांति स्थापित करने में विफल रहे हैं।
  • हालाँकि इसके बावजूद अधिकांश जानकारों का मानना है कि आर्मेनिया और अज़रबैजान के बीच एक संपूर्ण युद्ध की संभावना काफी कम है।
  • इस विवादित क्षेत्र में सैकड़ों नागरिक बस्तियाँ है, और यदि दोनों देशों के बीच व्यापक पैमाने पर युद्ध की शुरुआत होती है तो इस क्षेत्र में रहने वाले लोग प्रत्यक्ष तौर पर प्रभावित होंगे और काफी व्यापक पैमाने पर विस्थान दर्ज किया जाएगा।
  • किसी भी प्रकार का व्यापक सैन्य संघर्ष तुर्की और रूस जैसी क्षेत्रीय शक्तियों को इस युद्ध में हिस्सा लेने के लिये मज़बूर कर देगा और तुर्की तथा रूस दोनों ही देश इस युद्ध में शामिल होना नहीं चाहेंगे, इसलिये इस क्षेत्र में शांति स्थापित करना उनकी प्राथमिकता होगी।
  • व्यापक पैमाने पर युद्ध होने के कारण इस क्षेत्र से तेल और गैस का निर्यात भी बाधित होगा, ज्ञात हो कि अज़रबैजान, जो प्रति दिन लगभग 800,000 बैरल तेल का उत्पादन करता है, यूरोप और मध्य एशिया के लिये एक महत्त्वपूर्ण तेल और गैस निर्यातक है। यही सब कारण हैं जिसके दोनों देशों के बीच युद्ध की संभावना काफी कम है।

अंतर्राष्ट्रीय प्रतिक्रिया

  • अमेरिका, ईरान, रूस, फ्रांँस और जर्मनी समेत कई अन्य देशों ने नागोर्नो-काराबाख स्वायत्त क्षेत्र को लेकर आर्मेनिया और अज़रबैजान के बीच को तत्काल समाप्त करने, युद्ध विराम के नियमों का पालन करने और जल्द-से-जल्द इस मामले को वार्ता के माध्यम से सुलझाने का आह्वान किया है।
  • वहीं अज़रबैजान के सहयोगी तुर्की तथा पाकिस्तान ने अर्मेनिया को इस हमले के लिये ज़िम्मेदार ठहराया है और अज़रबैजान के लिये ‘पूर्ण समर्थन’ का वादा किया है। 

भारत और आर्मेनिया-अज़रबैजान विवाद

  • यद्यपि भारत ने अभी तक इस संबंध में कोई विशिष्ट प्रतिक्रिया नहीं है, किंतु क्षेत्रीय शांति और स्थिरता से संबंधित इस मामले पर भारत बारीकी से निगरानी रख रहा है। ज्ञात हो कि भारत के अर्मेनिया और अज़रबैजान दोनों के साथ अच्छे संबंध रहे हैं।  
    • हाल के कुछ वर्षों में भारत और आर्मेनिया के बीच द्विपक्षीय सहयोग में काफी तेज़ी देखी गई है। आर्मेनिया के लिये भारत के साथ घनिष्ठ संबंध स्थापित करना इस दृष्टि से भी काफी महत्वपूर्ण हैं कि भारत, अज़रबैजान-पाकिस्तान-तुर्की के रणनीतिक गठजोड़ को एक संतुलन प्रदान करता है।
    • भारत अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन कॉरिडोर (INSTC) का हिस्सा है, जो कि भारत, ईरान, अफगानिस्तान, अज़रबैजान, रूस, मध्य एशिया और यूरोप के बीच माल की आवाजाही के लिये जहाज़, रेल और सड़क मार्ग का एक नेटवर्क है।
    • उल्लेखनीय है कि अज़रबैजान, तुर्की की तरह कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान की स्थिति का समर्थन करता है।

नागोर्नो-काराबाख स्वायत्त क्षेत्र

  • नागोर्नो-काराबाख (Nagorno-Karabakh) दक्षिण-पश्चिमी अज़रबैजान में स्थित एक पहाड़ी क्षेत्र है, जो कि तकरीबन 4,400 वर्ग किलोमीटर (1,700 वर्ग मील) तक फैला हुआ है। 
  • आर्मेनिया और अज़रबैजान के बीच विवादित नागोर्नो-काराबाख स्वायत्त क्षेत्र आर्मेनिया की अंतर्राष्ट्रीय सीमा से केवल 50 किलोमीटर (30 मील) दूर स्थित है। 
  • इसके अलावा आर्मेनिया समर्थित कुछ स्थानीय अलगाववादी सैन्य समूहों कुछ क्षेत्र पर कब्ज़ा किया हुआ है।

Nagorno

स्रोत: द हिंदू

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