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‘चिल्ड्रन एंड डिजिटल डंपसाइट’ : WHO की रिपोर्ट

  • 18 Jun 2021
  • 10 min read

प्रिलिम्स के लिये: 

ई-कचरा, चिल्ड्रन एंड डिजिटल डंपसाइट्स रिपोर्ट के बारे में 

मेन्स के लिये: 

स्वास्थ्य और पर्यावरण पर ई-कचरे का प्रभाव और भारत में इसका पुनर्नवीनीकरण

चर्चा में क्यों?

विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization- WHO) ने अपनी हालिया रिपोर्ट "चिल्ड्रन एंड डिजिटल डंपसाइट्स" (Children and Digital Dumpsites) में उस जोखिम को रेखांकित किया है जिसका सामना अनौपचारिक प्रसंस्करण में काम करने वाले बच्चे इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों या ई-कचरे के कारण कर रहे हैं।

  • इन ई-कचरे के डंपिंग स्थलों पर कम-से-कम 18 मिलियन बच्चे (पाँच साल से कम उम्र के) और लगभग 12.9 मिलियन महिलाएँ कार्य करती हैं।
  • उच्च आय वाले देशों के ई-कचरे को प्रत्येक वर्ष प्रसंस्करण के लिये मध्यम या निम्न आय वाले देशों में डंप कर दिया जाता है।

प्रमुख बिंदु:

ई-कचरे के संदर्भ में:

  • ई-वेस्ट (E-Waste) का संदर्भित रूप इलेक्ट्रॉनिक-वेस्ट (Electronic-Waste) है। इस शब्द का प्रयोग पुराने या जो प्रयोग में नहीं हैं ऐसे  इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का वर्णन करने के लिये किया जाता है।
    • इसमें मुख्य रूप से ऐसे इलेक्ट्रॉनिक उपकरण शामिल हैं, जो पूरी तरह से या आंशिक रूप से उपभोक्ता या थोक उपभोक्ता द्वारा कचरे के रूप में त्याग दिये जाते हैं और साथ ही निर्माण, नवीनीकरण तथा मरम्मत प्रक्रियाओं से खारिज कर दिये जाते हैं।
    • इसमें 1,000 से अधिक कीमती धातुएँ और अन्य पदार्थ जैसे सोना, तांबा, सीसा, पारा, कैडमियम, क्रोमियम, पॉलीब्रोमिनेटेड बाइफिनाइल और पॉलीसाइक्लिक एरोमैटिक हाइड्रोकार्बन शामिल हैं।

ई-कचरे की मात्रा:

  • वैश्विक परिदृश्य: ग्लोबल ई-वेस्ट स्टैटिस्टिक्स पार्टनरशिप (Global E-waste Statistics Partnership) के अनुसार उत्पन्न ई-कचरे की मात्रा में विश्व भर में तेज़ी से वृद्धि हो रही है। 
    • वर्ष 2019 में लगभग 53.6 मिलियन टन ई-कचरा उत्पन्न हुआ था।
    • इस ई-कचरे का केवल 17.4% औपचारिक रूप से पुनर्नवीनीकरण किया गया था। जबकि इसके बाकी हिस्से को अनौपचारिक श्रमिकों द्वारा अवैध प्रसंस्करण के लिये निम्न या मध्यम आय वाले देशों में डंप कर दिया गया था।
    • इसका प्रमुख कारण स्मार्टफोन और कंप्यूटर की बढ़ती संख्या है।
  • भारतीय परिदृश्य:
    • केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) के अनुसार भारत ने 2019-20 में 10 लाख टन से अधिक ई-कचरा उत्पन्न किया, जो 2017-18 में उत्पादित ई-कचरे (7 लाख टन) की तुलना में बहुत अधिक है। इसके विपरीत, 2017-18 से ई-कचरा निराकरण क्षमता (7.82 लाख टन) में वृद्धि नहीं की गई है।
    • वर्ष 2018 में, पर्यावरण मंत्रालय ने ट्रिब्यूनल को बताया था कि भारत में 95% ई-कचरे का पुनर्नवीनीकरण अनौपचारिक क्षेत्र द्वारा किया जाता है और स्क्रैप डीलर इसका निपटान से अवैज्ञानिक रूप से (एसिड में जलाकर या घोलकर) करते हैं।

डिजिटल डंपसाइट्स पर कार्य करने का प्रभाव:

  • बच्चों पर: ई-कचरे के संपर्क में आने वाले बच्चे छोटे आकार, अपने कम विकसित अंगों और विकास की तीव्र दर के कारण उनमें मौजूद जहरीले केमिकल्स के प्रति विशेष रूप से संवेदनशील होते हैं। 
    • वे अपने आकार की तुलना में अधिक प्रदूषकों को अवशोषित करते हैं। उनका शरीर विषाक्त पदार्थों को झेलने और शरीर से बाहर निकालने में वयस्कों की तुलना में कम सक्षम होता है।
    • साथ ही यह बच्चों की सांस लेने की क्षमता और फेफड़ों के कार्यप्रणाली पर भी असर डालता है। यह बच्चों के डीएनए को नुकसान पहुँचा सकता है। इससे थायरॉयड संबंधी विकार और बाद में कैंसर तथा हृदय रोग के खतरे में वृद्धि हो सकती है।
  • महिलाओं पर:  इस कचरे के संपर्क में आने से न केवल एक गर्भवती  महिला बल्कि उसके अजन्मे बच्चे के स्वास्थ्य और विकास पर भी खतरा होता है। इसके कारण बच्चे का समय से पहले जन्म, मृत्यु तथा उसके विकास पर असर पड़ सकता है। साथ ही यह उसके मानसिक विकास, बौद्धिक क्षमता एवं बोलने की क्षमता को भी प्रभावित कर सकता है।
  • अन्य पर: ऐसे स्थलों पर काम करने का खतरनाक प्रभाव उन परिवारों और समुदायों पर भी पड़ता है जो इन ई-कचरा डंपसाइट के आस-पास रहते हैं।

ई-कचरे का प्रबंधन (अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन):

  • खतरनाक कचरे की सीमा-पार आवाजाही के नियंत्रण पर बेसल कन्वेंशन, 1992:
    • मूल रूप से बेसल कन्वेंशन में ई-कचरे का उल्लेख नहीं था लेकिन बाद में इसमें वर्ष 2006 (COP 8) में ई-कचरे के मुद्दों को शामिल किया गया। 
    • यह सम्मेलन पर्यावरण के अनुकूल प्रबंधन सुनिश्चित करने के साथ-साथ विकासशील देशों में अवैध यातायात की रोकथाम और ई-कचरे के बेहतर प्रबंधन के लिये क्षमता निर्माण में मदद करता है।
    • बेसल कन्वेंशन के COP9 में नैरोबी घोषणा को अपनाया गया था। इसका उद्देश्य इलेक्ट्रॉनिक कचरे का पर्यावरण अनुकूल प्रबंधन के लिये अभिनव समाधान तैयार करना है।

भारत में ई-कचरे का प्रबंधन:

  • निर्माता:
    • सरकार ने ई-कचरा (प्रबंधन) नियम, 2016 लागू किया है जो विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व (EPR) को लागू करता है।
      • विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व एक ऐसी रणनीति है जो किसी उत्पाद के संपूर्ण जीवनकाल के दौरान आई पर्यावरणीय लागत और उसके बाज़ार मूल्य को एकीकृत करने को प्रोत्साहित करती है।
  • राज्य सरकार:
    • राज्यों को ई-कचरे के निराकरण और पुनर्चक्रण सुविधाओं के लिये औद्योगिक स्थान निर्धारित करने की ज़िम्मेदारी सौंपी गई है।
    • उनसे यह भी अपेक्षा की जाती है कि वे ई-कचरे के निराकरण और पुनर्चक्रण सुविधाओं में लगे श्रमिकों के स्वास्थ्य तथा सुरक्षा के लिये उपाय करें।
  • ई-कचरे का पुनर्चक्रण:
    • घरेलू और व्यावसायिक इकाइयों से कचरे को अलग करने, प्रसंस्करण और निपटान के लिये भारत का पहला ई-कचरा क्लिनिक भोपाल, मध्य प्रदेश में स्थापित किया गया है।

आगे की रह:

  • भारत में अधिकांशतः ई-कचरे का पुनर्चक्रण असंगठित इकाइयों में द्वारा किया जाता है, जिसमें बड़ी संख्या में जनशक्ति लगी होती है। प्रिंटेड सर्किट बोर्ड (PCBs) से आदिम तरीकों से धातुओं की रिकवरी सबसे हानिकारक कार्य है।
  • उचित शिक्षा, जागरूकता और सबसे महत्त्वपूर्ण वैकल्पिक लागत प्रभावी तकनीक प्रदान करने की आवश्यकता है ताकि इससे आजीविका कमाने वालों को बेहतर साधन उपलब्ध कराए जा सकें। 
  • ई-अपशिष्ट प्रबंधन में भारत के सामने आने वाली चुनौतियों का समाधान करने के लिये एक समग्र दृष्टिकोण की आवश्यकता है। असंगठित क्षेत्र की इकाइयों के लिये संग्रह, निराकरण, पृथक्करण पर ध्यान केंद्रित करने हतु एक दृष्टिकोण हो सकता है, जबकि संगठित क्षेत्र द्वारा धातु निष्कर्षण, पुनर्चक्रण और निपटान किया जा सकता है।
  • असंगठित क्षेत्र में छोटी इकाइयों और संगठित क्षेत्र की बड़ी इकाइयों को एकल मूल्य शृंखला में शामिल करने के लिये एक उपयुक्त तंत्र विकसित करने की आवश्यकता है।

स्रोत: डाउन टू अर्थ

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