सामाजिक न्याय
अप्रत्याशित विश्व में बाल कल्याण
- 17 May 2025
- 18 min read
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चर्चा में क्यों?
संयुक्त राष्ट्र अंतर्राष्ट्रीय बाल आपातकालीन कोष (यूनिसेफ) की "अप्रत्याशित विश्व में बाल कल्याण (Child Wellbeing in an Unpredictable World)" शीर्षक वाली रिपोर्ट से पता चलता है कि कोविड-19 महामारी की शुरुआत के बाद से विश्व के सबसे अमीर देशों में बच्चों की शैक्षणिक प्रदर्शन क्षमता, मानसिक स्वास्थ्य और शारीरिक कुशलता में भारी गिरावट आई है।
कोविड-19 का वैश्विक बाल कल्याण पर क्या प्रभाव पड़ा?
- शैक्षणिक बाधाएँ: महामारी के दौरान 3 से 12 महीने तक स्कूल बंद रहने से पढ़ाई बुरी तरह बाधित हुई।
- वर्ष 2022 में लगभग 8 मिलियन 15 वर्षीय बच्चे (आयु समूह का लगभग 50%) कार्यात्मक रूप से साक्षर और संख्यात्मक रूप से सक्षम नहीं थे, जो वर्ष 2018 के बाद से 4% की वृद्धि को दर्शाता है।
- बुल्गारिया, कोलंबिया, कोस्टा रिका, साइप्रस और मैक्सिको जैसे देशों में 15 वर्ष की आयु के दो तिहाई से अधिक बच्चों में मूलभूत कौशल का अभाव पाया गया।
- मानसिक स्वास्थ्य में गिरावट: उपलब्ध आँकड़ों वाले 32 देशों में से 14 में बच्चों के संतोषपूर्ण जीवन (लाइफ सेटिस्फेक्शन) के स्तर में भारी कमी आई है। जापान एकमात्र ऐसा देश था जहाँ बच्चों की लाइफ सेटिस्फेक्शन में सुधार देखा गया।
- शारीरिक स्वास्थ्य संबंधी चिंताएँ: 43 देशों में से 14 में अधिक वजन और मोटापे की दर में काफी वृद्धि हुई है, जो दीर्घकालिक रूप से चिंताजनक प्रवृत्ति बनी हुई है।
- बाल कल्याण में सर्वश्रेष्ठ: मानसिक कल्याण, शारीरिक स्वास्थ्य और कौशल के आधार पर बाल कल्याण के मामले में नीदरलैंड और डेनमार्क शीर्ष दो देश हैं तथा दूसरे स्थान पर फ्राँस है
बाल कल्याण का मापन
आयाम |
घटक |
संकेतक |
मानसिक स्वास्थ्य |
संतोषजनक जीवन |
15 वर्ष की आयु में उच्च संतोषजनक जीवन जीने वाले बच्चों का प्रतिशत |
किशोर अवस्था में आत्महत्या |
15 से 19 वर्ष की आयु में आत्महत्या दर |
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शारीरिक स्वास्थ्य |
शिशु मृत्यु |
5 से 14 वर्ष की आयु में शिशु मृत्यु दर |
अधिक वजन |
5 से 19 वर्ष की आयु में अधिक वजन वाले बच्चों का प्रतिशत |
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कौशल |
शैक्षणिक दक्षता |
15 वर्ष की आयु में पढ़ाई और गणित में दक्ष बच्चों का प्रतिशत |
सामाजिक कौशल |
15 वर्ष की आयु में स्कूल में आसानी से दोस्त बनाने वाले बच्चों का प्रतिशत |
भारत में बाल कल्याण की स्थिति क्या है?
- मानसिक स्वास्थ्य: भारत में, मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रहे अधिकांश बच्चों का न तो निदान हो पाता है और न ही उन्हें कोई उपचार मिलता है।
- कोविड-19 से पहले भी, लगभग 50 मिलियन बच्चे प्रभावित थे, जिनमें से 80-90% ने कभी उपचार नही लिया।
- यूनिसेफ-गैलप के 2021 के एक सर्वेक्षण में पाया गया कि केवल 41% भारतीय युवा मानसिक स्वास्थ्य सहायता लेने के पक्ष में थे, जो इस मुद्दे पर व्यापक सामाजिक बहिष्कार और सहायता न लेने की प्रवृत्ति को उजागर करता है।
- भारत में, 15-19 वर्ष की किशोर आयु वर्ग में आत्महत्या मृत्यु का चौथा प्रमुख कारण है।
- शारीरिक स्वास्थ्य:
- पोषण: यूनिसेफ की वर्ल्ड ओबेसिटी एटलस 2022 रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 2030 तक 27 मिलियन से अधिक बच्चे मोटापे से ग्रस्त हो सकते हैं (वैश्विक स्तर पर प्रत्येक 10 में से 1)। इससे संबंधित आर्थिक व्यय वर्ष 2019 में 23 बिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़कर 2060 तक 479 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँचने का अनुमान है।
- शिशु मृत्यु दर: शिशु मृत्यु दर (IMR) प्रति 1000 जीवित जन्मों पर 39 (वर्ष 2014) से घटकर 27 (वर्ष 2021) हो गई है।
- पाँच वर्ष से कम आयु में मृत्यु दर (U5MR) प्रति 1000 जीवित जन्मों पर 45 (वर्ष 2014) से घटकर 31 (वर्ष 2021) रह गई है।
- कौशल:
- शैक्षिक दक्षता: भारत का स्कूली शिक्षा तंत्र विश्व के सबसे बड़े तंत्रों में से एक है, जिसमें 24 करोड़ से अधिक छात्र और 90 लाख शिक्षक शामिल हैं। हालाँकि, साक्षरता और संख्यात्मक ज्ञान विशेष रूप से प्रमुख चुनौतियाँ बने हुए हैं।
- आर्थिक सर्वेक्षण 2024-25 में कहा गया है कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP), 2020 का लक्ष्य 2030 तक 100% सकल नामांकन अनुपात (GER) हासिल करना है।
- वर्तमान में, प्राथमिक स्तर पर GER लगभग सार्वभौमिक (93%) है, लेकिन माध्यमिक स्तर पर यह कम (77.4%) है।
- प्रगतिशील नामांकन के बावजूद, सीखने की क्षमता निम्न हैं, विशेष रूप से मूल साक्षरता और अंकगणित में।
- विश्व बैंक के लर्निंग पॉवर्टी इंडेक्स (मूलभूत पाठ पढ़ने में असमर्थ 10 वर्ष के बच्चों का प्रतिशत) के अनुसार, भारत की लर्निंग पॉवर्टी दर कोविड-19 के बाद बढ़कर 70% हो गई, जो वर्ष 2019 में 55% थी।
- सामाजिक कौशल: स्माइल फाउंडेशन के एक सर्वेक्षण से पता चलता है कि भारत में 58% शिक्षकों का मानना है कि कोविड-19 के दौरान बच्चे सामाजिक कौशल सीखने से चूक गए है जिससे वह आसानी से विचलित हो जाते हैं।
- शैक्षिक दक्षता: भारत का स्कूली शिक्षा तंत्र विश्व के सबसे बड़े तंत्रों में से एक है, जिसमें 24 करोड़ से अधिक छात्र और 90 लाख शिक्षक शामिल हैं। हालाँकि, साक्षरता और संख्यात्मक ज्ञान विशेष रूप से प्रमुख चुनौतियाँ बने हुए हैं।
बच्चों के स्वास्थ्य में गिरावट के क्या कारण हैं?
- आर्थिक असमानता: आर्थिक असमानताएँ लाखों बच्चों को पौष्टिक भोजन, आश्रय, स्वास्थ्य देखभाल और शिक्षा जैसी बुनियादी ज़रूरतों से वंचित करती हैं।
- गरीब परिवारों के बच्चों के बाल श्रम तथा स्कूल छोड़ने की संभावना अधिक होती है।
- दीर्घकालिक कुपोषण से (बौनापन, दुर्बलता) बच्चे अधिक प्रभावित (विशेष रूप से निम्न आय वाले और हाशिये पर पड़े समुदाय) हो रहे हैं।
- गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य देखभाल तक अपर्याप्त पहुँच, विशेष रूप से ग्रामीण और आदिवासी क्षेत्रों में, बच्चों के जीवित रहने और दीर्घकालिक विकास पर प्रभाव डालती है।
- सामाजिक कारण: भेदभावपूर्ण प्रथाएँ (जैसे बेटों के पक्ष में पक्षपात, जाति-आधारित बहिष्कार) और हानिकारक पारंपरिक प्रथाएँ जैसे बाल विवाह, महिला जननांग विकृति आदि, कई बच्चों के अधिकारों और कल्याण को प्रभावित करती हैं।
- संघर्ष क्षेत्रों या शरणार्थी शिविरों में बच्चे आघात, भूख, हिंसा और बुनियादी सेवाओं तक पहुँच की कमी का सामना करते हैं।
- प्रवासी बच्चों को अक्सर राष्ट्रीय शिक्षा और स्वास्थ्य प्रणालियों से बाहर रखा जाता है, जिससे उनकी संवेदनशीलता बढ़ जाती है।
- बहुत कम उम्र से ही बढ़ते शैक्षणिक दबाव, पारिवारिक तनाव और डिजिटल माध्यमों के अत्यधिक उपयोग के कारण बच्चों और किशोरों में अवसाद, चिंता और यहाँ तक कि आत्महत्या के मामले भी बढ़ रहे हैं।
- तस्करी, यौन शोषण और घरेलू हिंसा की बढ़ती घटनाएँ बाल कल्याण के संकट को बढ़ा रही हैं।
- डिजिटल असमानता: डिजिटल शिक्षा के उदय ने विशेष रूप से ग्रामीण और आदिवासी क्षेत्रों में, उपकरणों, बिजली या इंटरनेट तक पहुँच से वंचित बच्चों को वंचित कर दिया है।
- माता-पिता और बच्चों के बीच डिजिटल साक्षरता की कमी (भारत में केवल 38% परिवार डिजिटल रूप से साक्षर हैं) भी सीखने के अंतर में योगदान देती है।
- इसके अतिरिक्त, सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों के अनियंत्रित उपयोग से बच्चे साइबरबुलिंग, ऑनलाइन उत्पीड़न, लत, गलत सूचना और हानिकारक सामग्री के संपर्क में आते हैं ।
- राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के अनुसार, वर्ष 2022 में बच्चों के विरुद्ध साइबर अपराध के कुल लगभग 1800 मामले दर्ज किये गए थे।
- सोशल मीडिया आत्मसम्मान और मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है, विशेष रूप से किशोरों के बीच अवास्तविक तुलना और ऑनलाइन साथियों के दबाव के कारण।
- जलवायु परिवर्तन और पर्यावरणीय तनाव: चरम मौसमी घटनाएँ, बढ़ता तापमान, वायु प्रदूषण और जल संकट बच्चों के स्वास्थ्य और रहन-सहन की स्थिति को प्रभावित करते हैं।
- जलवायु परिवर्तन से खाद्य असुरक्षा और विस्थापन बढ़ता है, जिससे बच्चों की शिक्षा और भावनात्मक स्थिरता बाधित होती है।
बाल कल्याण में सुधार हेतु भारत क्या उपाय कर सकता है?
- पोषण और स्वास्थ्य हस्तक्षेप को सुदृढ़ करना: कुपोषण और बौनेपन को कम करने के लिये पोषण की गुणवत्ता, टीकाकरण, स्वास्थ्य जाँच और प्रारंभिक शिक्षा को बढ़ाकर समेकित बाल विकास सेवाओं (ICDS) का विस्तार और सुधार करना।
- कुपोषण को कम करने के लिये पोषण अभियान को बढ़ावा देना, साथ ही किशोर पोषण और सूक्ष्म पोषक पूरकता पर ध्यान केंद्रित करना।
- मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य में सुधार के लिये गर्भावस्था से लेकर प्रसवोत्तर अवस्था तक देखभाल को मज़बूत करना, जननी सुरक्षा योजना के माध्यम से संस्थागत प्रसव को बढ़ावा देना तथा मृत्यु दर को कम करने और बाल स्वास्थ्य में सुधार के लिये मिशन इंद्रधनुष के माध्यम से टीकाकरण का विस्तार करना आवश्यक है।
- मानसिक स्वास्थ्य पर ध्यान देना: WHO के मानसिक स्वास्थ्य अंतर कार्रवाई कार्यक्रम (MHGAP) से प्रेरित होकर, मानसिक स्वास्थ्य चुनौतियों का सामना कर रहे बच्चों की पहचान करने और उन्हें सहायता प्रदान करने के लिये शिक्षकों और परामर्शदाताओं को प्रशिक्षित करके स्कूल-आधारित मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रमों को लागू करना।
- दुर्व्यवहार या आघात से प्रभावित बच्चों के लिये चाइल्डलाइन 1098, परामर्श केंद्रों और पुनर्वास सेवाओं जैसी बाल संरक्षण सेवाओं को सुदृढ़ बनाना।
- डिजिटल साक्षरता: राष्ट्रीय डिजिटल साक्षरता कार्यक्रम को स्कूली पाठ्यक्रम (NEP 2020 के तहत) में साइबर सुरक्षा पाठ्यक्रम को एकीकृत करना चाहिये। शिक्षकों और अभिभावकों को ऑनलाइन जोखिमों की पहचान करने के लिये प्रशिक्षित करना चाहिये।
- असमानता और सामाजिक बहिष्कार को कम करना: लैंगिक असमानताओं को दूर करने के लिये बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ जैसी योजनाओं को लागू करना और उसे सुदृढ़ बनाना।
- गरीबी से उत्पन्न कमज़ोरियों को कम करने के लिये प्रत्यक्ष नकद अंतरण और सामाजिक सुरक्षा जाल का विस्तार करना।
- बाल दुर्व्यवहार और शोषण का मुकाबला करना: यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (POCSO) अधिनियम, 2012, किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) संशोधन अधिनियम, 2021 और बाल श्रम अधिनियम (निषेध और विनियमन) 1986 का सख्त कार्यान्वयन। सामुदायिक सतर्कता और रिपोर्टिंग तंत्र को बढ़ावा देना।
- अंतर्राष्ट्रीय सर्वोत्तम प्रथाओं का लाभ उठाना: ब्राजील के बोल्सा फैमिलिया जैसे बहु-क्षेत्रीय मॉडल को अपनाना, जो नकद हस्तांतरण को स्वास्थ्य एवं शिक्षा की शर्तों से जोड़ता है, जिससे बच्चों के कल्याण में व्यापक सुधार होता है।
- यूनिसेफ और विश्व बैंक की सिफारिशों का पालन करना, जैसा कि 'पहले 1000 दिन' अभियान में रेखांकित किया गया है, जो बच्चे के जीवन के पहले 1,000 दिनों में निवेश करने पर ज़ोर देता है तथा इसे संज्ञानात्मक और शारीरिक विकास के लिये महत्त्वपूर्ण समय मानता है।
- भारत को पर्यावरणीय जोखिमों से बच्चों की सुरक्षा के लिये, संयुक्त राष्ट्र बाल अधिकार समिति की सिफारिशों के अनुसार, बाल-संवेदनशील जलवायु अनुकूलन रणनीतियों को शामिल करना चाहिये।
निष्कर्ष
यूनिसेफ की रिपोर्ट दुनियाभर की सरकारों के लिये एक चेतावनी है। यह रिपोर्ट इस बात को रेखांकित करती है कि शिक्षा, मानसिक स्वास्थ्य और पोषण जैसे क्षेत्रों में, विशेष रूप से कमज़ोर और वंचित बच्चों के लिये, समग्र एवं बाल-केंद्रित नीतियों को शीघ्र अपनाना अत्यंत आवश्यक है। यदि शीघ्र और सतत् कार्रवाई नहीं की गई, तो एक पूरी पीढ़ी का भविष्य संकट में पड़ सकता है।
दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: प्रश्न: कोविड-19 महामारी का बाल कल्याण पर बहुआयामी प्रभाव और उनसे निपटने के लिये नीति-स्तरीय सुझावों पर चर्चा कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)
प्रारंभिक
प्रश्न. बाल अधिकार पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन के संदर्भ में निम्नलिखित पर विचार कीजिये: (2010)
विकास का अधिकार
अभिव्यक्ति का अधिकार
मनोरंजन का अधिकार
उपर्युक्त में से कौन-सा/से बाल अधिकार है/हैं?
(a) केवल 1
(b) केवल 1 और 3
(c) केवल 2 और 3
(d) 1, 2 और 3
उत्तर: (d)
मेन्स:
प्रश्न: अब तक भी भूख और गरीबी भारत में सुशासन के समक्ष सबसे बड़ी चुनौतियाँ हैं। मूल्यांकन कीजिये कि इन भारी समस्याओं से निपटने में क्रमिक सरकारों ने किस सीमा तक प्रगति की है। सुधार के लिये उपाय सुझाइये। (2017)
प्रश्न. राष्ट्रीय बाल नीति के मुख्य प्रावधानों का परीक्षण कीजिये तथा इसके कार्यान्वयन की प्रस्थिति पर प्रकाश डालिये। (2016)