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सामाजिक न्याय

बाल विवाह और महामारी

  • 15 Dec 2020
  • 9 min read

चर्चा में क्यों?

चाइल्डलाइन इंडिया द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक महामारी और उसके कारण लागू किया गया देशव्यापी लॉकडाउन मध्य प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में बाल विवाह के नए कारक साबित हुए हैं।

प्रमुख बिंदु

चाइल्डलाइन इंडिया रिपोर्ट के प्रमुख निष्कर्ष

  • रिपोर्ट की मानें तो मध्य प्रदेश में नवंबर 2019 से मार्च 2020 के बीच बाल विवाह के 46 मामले दर्ज किये गए थे, जबकि अप्रैल 2020 से जून 2020 तक देशव्यापी लॉकडाउन के केवल तीन महीनों में यह आँकड़ा 117 तक पहुँच गया।
  • मार्च 2020 से जून 2020 के बीच लॉकडाउन के पहले चार महीनों में समग्र भारत में बाल विवाह के कुल 5,214 मामले दर्ज हुए थे।

कारण

  • आयु घटक
    • शिक्षा का अधिकार अधिनियम केवल 14 वर्ष की आयु तक शिक्षा को निःशुल्क और अनिवार्य बनाता है। शोध से ज्ञात होता है कि यदि किसी बच्चे को 15 वर्ष की आयु में स्कूल छोड़ना पड़ता है तो कम उम्र में उसकी शादी होने की संभावना काफी प्रबल हो जाती है।
      • कम आयु की लड़कियों के लिये लड़कों की तुलना में बाल विवाह का खतरा अधिक होता है।
  • असुरक्षा
    • भारत की कानून व्यवस्था अभी भी लड़कियों और महिलाओं के लिये एक सुरक्षित वातावरण प्रदान करने में सक्षम नहीं हैं, जिसके कारण कई माता-पिता कम उम्र में ही अपनी लड़की की शादी करवा देते हैं।
  • शिक्षा का अभाव
    • लड़कियों को प्रायः सीमित आर्थिक भूमिका में देखा जाता है। महिलाओं का काम घर तक ही सीमित रहता है और उसे भी कोई विशेष महत्त्व नहीं दिया जाता है।
    • इसके अलावा दहेज भी एक बड़ी समस्या है। इस तथ्य के बावजूद कि भारत में दहेज को पाँच दशक पूर्व ही प्रतिबंधित कर दिया गया है, दूल्हे और/या उसके परिवार द्वारा दहेज की मांग करना एक आम प्रथा बनी हुई है।

महामारी के दौरान बाल विवाह में वृद्धि क्यों?

  • महामारी के कारण उत्पन्न हुए आर्थिक संकट ने गरीब अभिभावकों को अपने बच्चों खासतौर पर लड़कियों का विवाह जल्द-से-जल्द करने के लिये मजबूर कर दिया है।
  • स्कूल बंद होने के कारण बच्चों मुख्यतः लड़कियों की सुरक्षा का मुद्दा भी उनके विरुद्ध हिंसा और बाल विवाह का एक प्रमुख कारण है।

प्रभाव

  • बाल विवाह ह्यूमन इम्यूनोडेफिशिएंसी वायरस या HIV जैसे यौन संचारित संक्रमणों की उच्च दर से जुड़ा हुआ है।
  • बाल विवाह प्रजनन क्षमता को बढ़ाकर जनसंख्या वृद्धि में योगदान देता है और ऐसी स्थिति में यदि शिक्षा गुणवत्ता परक न हो, रोज़गार के अवसर सीमित हों, स्वास्थ्य एवं आर्थिक सुरक्षा के साधन उपलब्ध न हों तो अत्यधिक आबादी एक अभिशाप का रूप धारण कर सकती है। 
  • कम आयु में विवाह करने वाले बच्चे प्रायः विवाह के दायित्त्वों को समझने में असमर्थ होते हैं जिसके कारण प्रायः परिवार के सदस्यों के बीच समन्वय का अभाव देखा जाता है।

बाल वधू पर प्रभाव

  • अधिकारों का हनन
    • कम आयु में विवाह करने से लड़कियाँ अपने बुनियादी अधिकारों से वंचित हो जाती हैं। 'बाल अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन' (UNCRC) में उल्लिखित बुनियादी अधिकारों में शिक्षा का अधिकार और दुष्कर्म तथा यौन शोषण जैसे मानसिक अथवा शारीरिक शोषण से सुरक्षा का अधिकार आदि शामिल हैं।
  • सामाजीकरण का आभाव
    • घरेलू ज़िम्मेदारियों के कारण प्रायः बाल वधुओं को अपनी शिक्षा छोड़नी पड़ती है। ऐसा माना जाता है कि यदि घर की महिला शिक्षित होती है तो वह अपने पूरे परिवार को शिक्षित करती है, किंतु यदि वह अशिक्षित है तो उसके बच्चों को भी शिक्षा प्राप्ति के अवसर कम ही  मिलते हैं।
  • महिला सशक्तीकरण में बाधा
    • चूँकि बाल वधू अपनी शिक्षा पूरी करने में सक्षम नहीं होती हैं, वह प्रायः परिवार के अन्य सदस्यों पर आश्रित रहती है, जो लैंगिक समानता और महिला सशक्तीकरण की दिशा में एक बड़ी बाधा है।
  • स्वास्थ्य संबंधी मुद्दे
    • बाल विवाह का बाल वधुओं के स्वास्थ्य पर भी गंभीर प्रभाव पड़ता है, क्योंकि वे न तो शारीरिक रूप से और न ही मानसिक रूप किसी की पत्नी अथवा किसी की माता बनने के लिये तैयार होती हैं।
    • शोध के मुताबिक, 15 वर्ष से कम आयु की लड़कियों में मातृ मृत्यु का जोखिम सबसे अधिक रहता है।
    • इसके अलावा बाल वधुओं पर हृदयाघात, मधुमेह, कैंसर, और स्ट्रोक आदि का खतरा 23 प्रतिशत अधिक होता है। साथ ही वे मानसिक विकारों के प्रति भी काफी संवेदनशील होती हैं।

बाल विवाह रोकने हेतु सरकार के प्रयास

  • वर्ष 1929 का बाल विवाह निरोधक अधिनियम भारत में बाल विवाह की कुप्रथा को प्रतिबंधित करता है।
  • विशेष विवाह अधिनियम, 1954 और बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम, 2006 के तहत महिलाओं और पुरुषों के लिये विवाह की न्यूनतम आयु क्रमशः 18 वर्ष और 21 वर्ष निर्धारित की गई है।
    • बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम, 2006 को  बाल विवाह निरोधक अधिनियम (1929) की कमियों को दूर करने के लिये लागू किया गया था।
  • केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने मातृत्व की आयु, मातृ मृत्यु दर और महिलाओं के पोषण स्तर में सुधार से संबंधित मुद्दों की जाँच करने के लिये एक समिति का गठन किया है। यह समिति गर्भावस्था, प्रसव और उसके पश्चात् माँ और बच्चे के चिकित्सीय स्वास्थ्य एवं पोषण के स्तर के साथ विवाह की आयु और मातृत्व के सहसंबंध की जाँच करेगी। यह समिति जया जेटली की अध्यक्षता में गठित की गई है।
  • बाल विवाह जैसी कुप्रथा का उन्मूलन सतत् विकास लक्ष्य-5 (SDG-5) का हिस्सा है।  यह लैंगिक समानता प्राप्त करने तथा सभी महिलाओं एवं लड़कियों को सशक्‍त बनाने से संबंधित है।

चाइल्डलाइन फाउंडेशन

  • यह भारत में एक गैर-सरकारी संगठन (NGO) है जो बच्चों के लिये चाइल्डलाइन नामक एक टेलीफोन हेल्पलाइन संचालित करता है।
  • यह भारत में बच्चों की मदद के लिये नि:शुल्क आपातकालीन फोन सेवा है, जो चौबीसों घंटे उपलब्ध है।
  • चाइल्डलाइन फाउंडेशन 18 वर्ष की आयु तक के सभी बच्चों के अधिकारों के संरक्षण की दिशा में कार्य करता है। यह गैर-सरकारी संगठन मुख्य तौर पर गरीब वर्ग के बच्चों और लड़कियों के हित में कार्य करता है।
    • यह बच्चों की सुरक्षा में शामिल एजेंसियों का सबसे बड़ा नेटवर्क भी है।

स्रोत: द हिंदू

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