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सतत् विकास लक्ष्य प्रतिवेदन-2019

  • 11 Dec 2019
  • 110 min read

इस प्रतिवेदन में प्रस्तुत की गई सूचना सतत् विकास लक्ष्यों (SDGs) के लिये वैश्विक संकेतक फ्रेमवर्क 1 में निर्धारित संकेतकों पर उपलब्ध नवीनतम आँकड़ों (मई 2019 तक) पर आधारित है, जिसे एस.डी.जी संकेतकों पर अंतर-एजेंसी और विशेषज्ञ समूह (आई.ए.ई.जी.-एस.डी.जी.) द्वारा विकसित किया गया तथा महासभा द्वारा अंगीकृत किया गया है।

सतत् विकास लक्ष्य 1: गरीबी का हर रूप में हर जगह उन्मूलन

  • चरम गरीबी में लगातार कमी हो रही है लेकिन इसकी गति धीमी है, जो वैश्विक रूप से वर्ष 2030 तक गरीबी उन्मूलन के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये पर्याप्त नहीं है।

मुख्य बिंदु

  • चरम गरीबी में जीवन यापन करने वाली दुनिया की आबादी का हिस्सा वर्ष 2015 में घटकर 10 प्रतिशत रह गया, जो कि वर्ष 2010 में 16 प्रतिशत और वर्ष 1990 में 36 प्रतिशत था । पिछले 25 वर्षों में एक अरब से अधिक लोगों ने खुद को गरीबी से बाहर निकाल लिया है। यह प्रगति अधिकांशतः पूर्वी एशिया में हुई जहाँ पर गरीबी की दर वर्ष 1990 के 52 प्रतिशत से गिरकर वर्ष 2010 में 10 प्रतिशत और वर्ष 2015 में 1 प्रतिशत से भी कम हो गई।
  • हाल ही में दक्षिणी एशिया ने चरम गरीबी के खिलाफ प्रभावशाली प्रगति की जिससे वैश्विक दर को कम करने में मदद मिली है, हालाँकि परिवर्तन की गति मंद हो रही है। तात्कालिक पूर्वानुमान दर्शाते हैं कि वर्ष 2018 में चरम गरीबी की दर 8.6 प्रतिशत रही है और आधारभूत अनुमानों से पता चलता है कि यदि मौजूदा रुझान जारी रहते हैं तो विश्व की 6 प्रतिशत आबादी वर्ष 2030 में भी चरम गरीबी में रहेगी।
  • कम आय, अत्यधिक संघर्ष तथा राजनैतिक अस्थिरता से प्रभावित देशों में विशेषत: उप-सहारा अफ्रीका में चरम गरीबी बहुत अधिक है। वर्ष 2015 में प्रतिदिन 1.90 डॉलर से कम में गुज़ारा करने वाले 736 मिलियन लोगों में से 413 मिलियन उप-सहारा अफ्रीका से थे।
  • दुनिया के लगभग 79 प्रतिशत गरीब ग्रामीण क्षेत्रों में रहते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबी की दर 17.2 प्रतिशत है जो कि शहरी क्षेत्रों (5.3 प्रतिशत) की तुलना में तीन गुना अधिक है। अत्यंत गरीब लोगों में से आधे (46 प्रतिशत) 14 वर्ष से कम आयु के बच्चे हैं।

सामाजिक संरक्षण की प्रणालियाँ, बच्चों सहित विश्व के सबसे सुभेद्य (कमज़ोर) लोगों तक पहुँचने में अपर्याप्त रही हैं।

  • सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रम गरीबी के आवेग को कम करते हैं और लोगों के जीवन के प्रत्येक चरण में गरीबी एवं असमानता को रोकने तथा कम करने में मदद करके लोगों को प्रारंभ में ही गरीबी की स्थिति में पहुँचने से भी रोक सकते हैं, लोगों के जीवन के प्रत्येक चरण में गरीबी और असमानता को रोकने तथा कम करने में मदद कर ऐसे कार्यक्रम विभिन्न समाजों को अधिक समावेशी और स्थिर बनाते हैं। हालाँकि विश्व की केवल 45 प्रतिशत आबादी को ही कम-से-कम एक सामाजिक सुरक्षा नकद लाभ कार्यक्रम के अंतर्गत प्रभावी रूप से कवर किया गया है।
  • आँकड़े अन्य समूहों के लिये सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रमों की वैश्विक कमी को भी दर्शाते हैं। केवल 22 प्रतिशत बेरोज़गारों को ही बेरोज़गारी भत्ते का लाभ प्राप्त हो रहा है, 28 प्रतिशत गंभीर रूप से विकलांग व्यक्तियों को विकलांगता नकद लाभ प्राप्त होता है, एक-तिहाई बच्चे ही प्रभावी रूप से सामाजिक सुरक्षा के दायरे में हैं और जन्म देने वाली महिलाओं में से केवल 41 प्रतिशत महिलाओं को ही नकद लाभ प्राप्त होता है। इसके अलावा सामाजिक सहायता नकद लाभ का दायरा सुभेद्य समूहों के लिये 25 प्रतिशत तक कम है तथा बच्चों, कामकाजी उम्र के लोगों और वृद्ध व्यक्तियों को अंशदायी योजनाओं से संरक्षित नहीं किया गया है।

जलवायु से संबंधित आपदाओं की संख्या बढ़ रही है, जिससे गरीब देश सबसे अधिक प्रभावित हैं।

  • गरीबी आपदा जोखिम का एक प्रमुख अंतर्निहित- (बुनियादी) चालक है, इसलिये यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि सबसे गरीब देश आपदाओं के कारण जान-माल की हानि और नुकसान को विषमतापूर्वक अनुभव कर रहे हैं। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर आपदाओं के कारण हुई कुल मौतों की 90 प्रतिशत से अधिक मौतें कम और मध्यम आय वाले देशों में होती हैं। आपदाओं से होने वाले आर्थिक नुकसान भी गरीब देशों की सकल घरेलू उत्पाद (जी.डी.पी.) के सापेक्ष बहुत अधिक हैं।

सतत् विकास लक्ष्य 2: भुखमरी का अंत, खाद्य सुरक्षा और बेहतर पोषण तथा सतत् कृषि को प्रोत्साहन

  • पहले से विस्तृत प्रगति के बावजूद वर्ष 2014 के बाद से भूख से पीड़ित लोगों की संख्या बढ़ रही है। बौनापन (स्टंटिंग) लाखों बच्चों की वृद्धि और संज्ञानात्मक विकास को प्रभावित करता है, जबकि अधिक वज़न का होना कुपोषण का ही दूसरा रूप है जो सभी आयु वर्गों में बढ़ रहा है।

विस्तृत प्रगति के बावजूद भूख से पीड़ित लोगों की संख्या बढ़ रही है।

  • वर्ष 2017 में अनुमानित 821 मिलियन लोग अल्पपोषित थे, यह संख्या वर्ष 2010 में भी समान थी। अल्पपोषण का प्रसार पिछले तीन वर्षों में लगभग 11 प्रतिशत से थोड़ा कम स्तर पर अपरिवर्तित रहा है।
  • उप-सहारा अफ्रीका में स्थिति काफी बिगड़ गई है जहाँ वर्ष 2014 में कुपोषित लोगों की संख्या 195 मिलियन से बढ़कर वर्ष 2017 में 237 मिलियन हो गई।
  • दक्षिण अमेरिका में भी स्थिति बिगड़ती हुई दिखाई दे रही है। यह आर्थिक मंदी का परिणाम हो सकता है, जिसने बढ़ती घरेलू कीमतों और आय में कमी के जबाब में अति सुभेद्य स्थिति से रक्षा के लिये राजकोषीय क्षमता को कम कर दिया है। भोजन की उपलब्धता और कीमतों को प्रभावित करने वाली प्रतिकूल मौसमी स्थितियाँ और लंबे समय तक सशस्त्र संघर्ष, इन प्रवृत्तियों के प्रमुख कारकों में से हैं।

बच्चों में बौनापन (स्टंटिंग) और ऊँचाई के अनुपात में वज़न में कमी (वेस्टिंग) आ रही है, लेकिन एसडीजी लक्ष्यों को पूरा करने के लिये यह गति पर्याप्त नहीं है।

  • चिरकालिक कुपोषण या स्टंटिंग यानी आयु के अनुपात में कम लंबाई को बौनेपन के रूप में परिभाषित किया जाता है। यह बच्चों में सामान्य संक्रमणों द्वारा भी मृत्यु के जोखिम को बढ़ाता है। बौनापन कमज़ोर संज्ञानात्मक विकास के साथ भी जुड़ा हुआ है, जो किसी देश की दीर्घकालिक प्रगति पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है। वर्ष 2000 के बाद से बौने बच्चों के अनुपात में गिरावट आई है, हालाँकि 5 साल से कम उम्र के 149 मिलियन बच्चे वैश्विक रूप से 5 वर्ष की आयु से कम जनसंख्या का 22 प्रतिशत हैं जो कि अभी भी वर्ष 2018 में चिरकालिक रूप से कुपोषित हैं।
  • वर्ष 2018 में 5 वर्ष से कम आयु के 49 मिलियन बच्चों में वैश्विक रूप से 5 वर्ष की आयु से कम जनसंख्या का 7.3 प्रतिशत हैं जो तीव्र कुपोषण, या वेस्टिंग (ऊँचाई के अनुपात में कम वज़न) से पीड़ित हैं, यह वह स्थिति है जो आमतौर पर सीमित पोषक तत्त्वों के सेवन और संक्रमण के कारण पैदा होती है। वेस्टिंग से पीड़ित होने वाले आधे से अधिक बच्चे दक्षिणी एशिया में निवास करते हैं। वर्ष 2018 में ग्लोबल वेस्टिंग की दर वर्ष 2025 के वैश्विक लक्ष्य 5 प्रतिशत और वर्ष 2030 के लक्ष्य 3 प्रतिशत से ऊपर रही है।

अधिक वज़न का प्रसार, कुपोषण का एक और रूप जो सभी आयु वर्गों में बढ़ रहा है।

  • कुपोषण के कारण बच्चों में अधिक वज़न और वेस्टिंग जैसी समस्याएँ देखी जाती हैं। जो बच्चे अधिक वज़न या मोटापे से ग्रस्त होते हैं, वे जल्दी शुरू होने वाले मोटापे से संबंधित स्वास्थ्य और मनोवैज्ञानिक जटिलताओं के उच्च जोखिम में होते हैं।

लघु-स्तरीय खाद्य उत्पादक, विश्व में भूख की समस्या के समाधान में बड़ा योगदान दे सकते हैं।

  • खाद्य सुरक्षा में सुधार तथा गरीबी और भुखमरी को कम करने के लिये विकास में पूरी तरह से भाग लेने के लिये लघु-स्तरीय खाद्य उत्पादकों को सशक्त बनाना महत्त्वपूर्ण है। कई लघु-स्तरीय खाद्य उत्पादक और कृषक परिवार गरीब हैं, जिनके पास सीमित क्षमता और संसाधन हैं, वे नियमित खाद्य असुरक्षा का सामना करते हैं और बाजारों एवं सेवाओं तक उनकी सीमित पहुँच होती है। लघु-स्तरीय खाद्य उत्पादकों की आय और उत्पादकता दोनों ही उनके समकक्षों की तुलना में कम होती है। लघु-स्तरीय उत्पादकों के लचीलेपन और अनुकूली क्षमता को सुदृढ़ करने के लिये उनकी कृषि उत्पादकता में सुधार हेतु मदद की जानी चाहिये। समान रूप से उन्हें अपने महत्त्वपूर्ण प्राकृतिक संसाधनों को जलवायु परिवर्तन के अनुकूल सतत् रूप से प्रबंधित करने में सक्षम बनाना चाहिये और बाज़ारों, वित्तीय सेवाओं, सूचना और ज्ञान तक पहुँच में मौजूद बाधाओं को दूर करना चाहिये।

खाद्य पदार्थों की बढ़ती कीमतों ने विभिन्न देशों को प्रभावित किया है।

  • खराब मौसम के कारण हुई तबाही, नागरिक असुरक्षा और घटते खाद्य उत्पादन ने दुनिया भर के कम-से-कम दो दर्जन देशों में खाद्य कीमतों को बढ़ाने में योगदान दिया है। आर्थिक उथल-पुथल ने भी कुछ देशों में खाद्य कीमतों को बढ़ाया है, जबकि कम सार्वजनिक माल सूची और ईंधन की लागत में वृद्धि के कारण अन्य देशों में उच्च कीमतें दर्ज की गईं हैं।

सतत् विकास लक्ष्य 3: उत्तम स्वास्थ्य सुनिश्चित करना और प्रत्येक आयु वर्ग के लोगों की खुशहाली को प्रोत्साहन।

  • लाखों लोगों के स्वास्थ्य को बेहतर बनाने की राह में काफी प्रगति हुई है। मातृ और शिशु मृत्यु दर में कमी आई है, वैश्विक स्तर पर जीवन प्रत्याशा में वृद्धि जारी है तथा कुछ संक्रामक रोगों से निपटने में लगातार प्रगति हुई है।

वैश्विक लक्ष्य को पूरा करने के लिये मातृ स्वास्थ्य में निरंतर निवेश की ज़रूरत है, विशेष रूप से उप-सहारा अफ्रीका में।

  • मातृ स्वास्थ्य में उल्लेखनीय प्रगति के बावजूद वर्ष 2017 में लगभग 300,000 महिलाओं की मृत्यु गर्भावस्था और प्रसव से संबंधित जटिलताओं के कारण हो गई। उनमें से 90 प्रतिशत से अधिक महिलाएँ निम्न और मध्यम आय वाले देशों में रहती थीं। मातृ मृत्यु के जोखिम से पीड़ित प्रत्येक महिला ने आजीवन मातृ स्वास्थ्य के गंभीर व अनगिनत परिणाम भुगते हैं।
  • मातृ मृत्यु की घटनाओं को अधिकांशतः उचित प्रबंधन और देखभाल के माध्यम से रोका जा सकता है, जिसमें प्रशिक्षित स्वास्थ्य प्रदाताओं द्वारा प्रसव पूर्व देखभाल, कुशल स्वास्थ्य कर्मियों द्वारा प्रसव के दौरान और प्रसव के बाद के हफ्तों में देखभाल और सहायता शामिल है।
  • हालाँकि पिछले कुछ वर्षों में प्रगति धीमी रही है। वर्ष 2030 तक प्रति 100,000 जीवित शिशु प्रसव पर 70 से कम मातृ मृत्यु के वैश्विक लक्ष्य तक पहुँचने के लिये निरंतर निवेश और ध्यान देने की आवश्यकता है, जो एक दशक के दौरान दस लाख से अधिक जीवन बचा सकता है।
  • गर्भावस्था और प्रसव के दौरान जटिलताएँ विकासशील देशों में किशोर लड़कियों की मृत्यु का एक प्रमुख कारण है। यह जोखिम 15 साल से कम आयु की लड़कियों के लिये सबसे अधिक है। वैश्विक स्तर पर किशोर प्रजनन दर प्रति 1,000 किशोरियों पर 56 से घटकर वर्ष 2015 में 45 और वर्ष 2018 में 44 हो गई थी। हालाँकि उप-सहारा अफ्रीका में प्रजनन दर वर्ष 2018 में प्रति 1,000 किशोरियों पर 101 रही है जो कि काफी अधिक है।

यदि 5 वर्ष से कम आयु के बच्चों की मृत्यु दर कम करने के लिये निर्धारित एस.डी.जी लक्ष्य पूरा किया जाता है, तो वर्ष 2030 तक 10 मिलियन अतिरिक्त बच्चों की जान बचाई जा सकेगी।

  • विश्व भर में बाल उत्तरजीविता में उल्लेखनीय प्रगति हुई है और 5 साल से कम उम्र के लाखों बच्चों की जीवित रहने की संभावना वर्ष 2000 की तुलना में आज अधिक हो गई है। 5 वर्ष से कम आयु के बच्चों की मृत्यु दर 49 प्रतिशत तक गिर गई है। वर्ष 2000 में यह दर प्रति 1,000 जीवित जन्मों पर 77 मृत बच्चों की संख्या से घटकर वर्ष 2017 में 39 रह गई। 5 वर्ष से कम आयु में मरने वाले बच्चों की कुल संख्या वर्ष 2000 में 9.8 मिलियन से घटकर 2017 में 5.4 मिलियन रह गई है। इनमें से आधी मौतें सब-सहारा अफ्रीका में हुईं और लगभग 30 प्रतिशत मौतें दक्षिणी एशिया मे हुईं हैं।
  • वर्ष 2017 में 118 देश पहले ही 5 वर्ष से कम आयु की मृत्यु दर के प्रति 1,000 जीवित जन्मों पर 25 मौतों के लक्ष्य को प्राप्त कर चुके हैं । हालाँकि वर्ष 2030 तक लक्ष्य को पूरा करने के लिये लगभग 50 देशों (ज़्यादातर उप-सहारा अफ्रीका में) प्रगति करने की आवश्यकता होगी। अगर यह लक्ष्य हासिल कर लिया जाता है, तो 5 साल से कम उम्र के अन्य 10 मिलियन बच्चों की जान बच जाएगी।

व्यापक टीकाकरण कवरेज के बावजूद खसरा और डिप्थीरिया के प्रकोप से कई मौतें हुई हैं।

  • टीकाकरण को व्यापक रूप से दुनिया के सबसे सफल और लागत प्रभावी स्वास्थ्य मध्यवर्ती उपायों में से एक माना जाता है, जिससे लाखों लोगों की जान बचती है। वर्ष 2017 में 116.2 मिलियन बच्चों का टीकाकरण किया गया, जो अब तक की सबसे बड़ी संख्या है। उसी दौरान कम कवरेज की बजह से खसरा और डिप्थीरिया का प्रकोप भी देखने को मिला था, जिसके परिणामस्वरूप कई मौतें हुईं। यह दर्शाता है कि पूर्ण कवरेज तक पहुँच कितनी महत्त्वपूर्ण हैं जो कि नितांत आवश्यक है।

मलेरिया की स्थिति में गिरावट की बजाय वृद्धि को देखते हुए, सबसे अधिक प्रभावित देशों में तीव्र प्रयासों की तत्काल आवश्यकता है।

  • वर्ष 2015-2017 तक दुनिया भर में मलेरिया के मामलों की संख्या को कम करने में कोई महत्त्वपूर्ण प्रगति नहीं हुई।
  • वर्ष 2010-2015 के बीच मलेरिया की घटनाओं की दर में 18 प्रतिशत की गिरावट आई जो प्रति 1,000 लोगों पर 72 मामलों से घटकर 59 हो गई थी और फिर वर्ष 2015-2017 तक यह दर अपरिवर्तित रही। उप-सहारा अफ्रीका अभी भी मलेरिया के मामलों से सर्वाधिक पीड़ित है, यह क्षेत्र वैश्विक मलेरिया के 90 प्रतिशत से अधिक मामलों के लिये ज़िम्मेदार है और यह संख्या बढ़ती जा रही है।

तपेदिक का पता लगाने और उपचार में अंतराल के साथ दवाओं की प्रतिरोधकता में कमी ने बीमारी के विरुद्ध प्रगति को बाधित करने का कार्य किया है।

  • क्षय रोग दुनिया भर में खराब स्वास्थ्य और मृत्यु का एक प्रमुख कारण है। वर्ष 2017 में अनुमानित 10 मिलियन लोग इस बीमारी से पीड़ित थे। यह उस वर्ष (एच.आई.वी. से ऊपर) एकल संक्रामक कारक द्वारा हुई मौतों का शीर्ष और कुल हुई मौतों का दसवाँ प्रमुख कारण था।
  • एचआईवी-निगेटिव लोगों में तपेदिक मृत्यु दर उसी अवधि में 42 प्रतिशत तक गिर गई। हालाँकि बीमारी का पता लगाने और उपचार करने के मध्य अत्यधिक समय अंतराल बना हुआ है, यद्यपि प्रगति की जो वर्तमान गति है वह वर्ष 2030 तक महामारी को समाप्त करने के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये पर्याप्त नहीं है। इसके अलावा दवा प्रतिरोध के कारण तपेदिक एक खतरा बना हुआ है।

उपेक्षित उष्णकटिबंधीय रोगों को धीरे-धीरे समाप्त किया जा रहा है, लेकिन गरीब देशों में यह अभी भी एक अभी भी एक संकट बना हुआ है।

  • उपेक्षित उष्णकटिबंधीय रोग (एन.टी.डी.) 149 उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय देशों में पाए जाने वाले संचारी रोगों का एक विविध समूह है। वर्ष 2017 में 1.58 बिलियन लोगों को एन.टी.डी. के लिये बड़े पैमाने पर या व्यक्तिगत उपचार और देखभाल की आवश्यकता थी, जो कि वर्ष 2015 में यह संख्या 1.63 बिलियन और वर्ष 2010 में 2.03 बिलियन थी। वर्ष 2017 में 34 देशों ने कम से कम एक एन.टी.डी. को समाप्त करने में सफलता पाई थी।

पर्यावरणीय स्वास्थ्य में खामियों को बीमारी और मृत्यु के प्रमुख योगदानकर्त्ता के रूप में देखा गया है।

  • अपर्याप्त जल, स्वच्छता और साफ़-सफाई का संबंध कई तरह के रोगों से होता है, यह डायरिया के कारण होने वाले 60 प्रतिशत रोगों का भार और मिट्टी से संक्रमित हेल्मिन्थ्स (परजीवी कीड़े) के माध्यम से संक्रमण का 100 प्रतिशत भार और कुपोषण के कारण होने वाले रोगों के 16 प्रतिशत भार से जुड़ा हुआ है (यहाँ भार से तात्पर्य, वित्तीय लागत, मृत्यु दर, रुग्णता या अन्य संकेतकों द्वारा मापी गई स्वास्थ्य समस्या के प्रभाव के रूप में है)।

सतत् विकास लक्ष्य 4: समावेशी और समान गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सुनिश्चित करना तथा सबके लिये आजीवन सीखने के अवसरों को प्रोत्साहन

  • लाखों बच्चे अभी भी स्कूली शिक्षा से दूर हैं और जो स्कूलों में उपस्थित हैं वें सभी भी सीख नहीं रहे हैं। दुनिया भर में सभी बच्चों और किशोरों में से आधे से अधिक बच्चे पढ़ने और गणित में न्यूनतम प्रवीणता मानकों को पूरा नहीं कर पा रहे हैं। शैक्षिक अवसरों और परिणामों में असमानताएँ सभी क्षेत्रों में मौजूद हैं, परंतु उप-सहारा अफ्रीका, मध्य और दक्षिणी एशिया के कुछ हिस्से पिछड़ गए हैं।

किसी विषय को पढ़ने और गणित में कम दक्षता दर वैश्विक रूप से सीखने में समस्या का संकेत देती है।

  • वर्ष 2015 में वैश्विक रूप से प्राथमिक और निम्न माध्यमिक विद्यालय के बच्चो की आयु के अनुमानित 617 मिलियन बच्चों और किशोरों में कुल वैश्विक आबादी के 55 प्रतिशत से अधिक में पढ़ने और गणित में न्यूनतम दक्षता का अभाव था।
  • ऐसे बच्चों की संख्या उप-सहारा अफ्रीका में सबसे अधिक है, जहाँ वर्ष 2015 में प्राथमिक और निम्न माध्यमिक विद्यालय स्तर के 88 प्रतिशत बच्चे (202 मिलियन) पढ़ने में दक्ष नहीं पाए गए थे और 84 प्रतिशत बच्चे (193 मिलियन) गणित में दक्ष नहीं थे। मध्य और दक्षिणी एशिया की स्थिति भी बेहतर नहीं है। यहाँ 81 प्रतिशत बच्चे (241 मिलियन) पढ़ने में दक्ष नहीं थे और 76 प्रतिशत बच्चों (228 मिलियन) में बुनियादी गणितीय कौशल का अभाव था।

प्रारंभिक बाल्यावस्था शिक्षा को स्कूली शिक्षा के सदर्भ में प्रमुख शुरुआत माना जाता है, लेकिन दुनिया के एक-तिहाई बच्चे इससे अछूते रह जाते हैं।

  • साक्ष्य यह दर्शाते हैं कि गुणवत्तापूर्ण प्रारंभिक बाल्यावस्था शिक्षा सबसे अच्छा निवेश होता है जो एक समाज अपने बच्चों में कर सकता है। यह आगे आने वाले वर्षों में सीखने के लिये एक मज़बूत आधारशिला का निर्माण करता है। वास्तव में प्रारंभिक बाल्यावस्था शिक्षा को उच्च आय और निम्न-आय वाले दोनों ही प्रकार के देशों में स्कूल के लिये एक बच्चे की तत्परता या तैयारी के सबसे मज़बूत निर्धारकों में से एक माना गया है।
  • वैश्विक स्तर पर वर्ष 2017 में प्रारंभिक बाल्यावस्था शिक्षा में भागीदारी दर बढ़कर 69 प्रतिशत हो गई थी, जो कि वर्ष 2010 में 63 प्रतिशत थी। हालाँकि विभिन्न देशों के बीच काफी असमानताएँ पाई गईं जो कि 7 प्रतिशत से लेकर 100 प्रतिशत तक की दर में मौजूद थी। अल्प विकसित देशों में प्रारंभिक बाल्यावस्था शिक्षा की भागीदारी दर केवल 43 प्रतिशत थी।

स्कूली शिक्षा से वंचित बच्चों तक पहुँचने में बाधा उत्पन्न हुई है।

  • शैक्षिक पहुँच और भागीदारी में हुई प्रगति के बावजूद वर्ष 2017 में 262 मिलियन बच्चे और किशोर (6 से 17 वर्ष आयु वर्ग के) स्कूली शिक्षा से छूटे हुए थे। जो कि उस आयु वर्ग में वैश्विक आबादी का लगभग पाँचवाँ हिस्सा था। इसमें 64 मिलियन प्राथमिक स्कूल (लगभग 6 से 11 वर्ष आयु वर्ग) के बच्चे थे, 61 मिलियन निम्न माध्यमिक स्कूल (12 से 14 वर्ष आयु वर्ग ) के किशोर थे और 138 मिलियन उच्चतर माध्यमिक स्कूल (15 से 17 वर्ष आयु वर्ग) के युवा थे। ज़्यादातर क्षेत्रों में लड़कियाँ अभी भी शिक्षा पाने में बाधाओं का सामना कर रही हैं, इनमें विशेष रूप से मध्य एशिया, उत्तरी अफ्रीका, पश्चिमी एशिया और उप-सहारा अफ्रीका के क्षेत्र शामिल हैं। इन क्षेत्रों में हर आयु की लड़कियों के लड़कों की तुलना में शिक्षा से वंचित रहने की संभावना अधिक है। वर्ष 2017 में स्कूली शिक्षा से वंचित प्राथमिक स्कूल आयु वर्ग के प्रति 100 लड़कों पर 127 लड़कियों को मध्य एशिया में, 121 लड़कियों को उप-सहारा अफ्रीका में और 112 को उत्तरी अफ्रीका और पश्चिमी एशिया में शिक्षा के अधिकार से वंचित रखा गया।

प्रगति के बावजूद 750 मिलियन वयस्क अभी भी एक साधारण कथन को पढ़ और लिख नहीं सकते हैं, इन वयस्कों में से दो-तिहाई महिलाएँ हैं।

  • 750 मिलियन वयस्क जिनमें से दो-तिहाई महिलाएँ हैं, वर्ष 2016 में भी निरक्षर थीं। उप-सहारा अफ्रीका और दक्षिणी एशिया में वयस्क साक्षरता दर सबसे कम है। अकेले दक्षिणी एशिया में कुल वैश्विक निरक्षर आबादी का लगभग आधा हिस्सा (49 प्रतिशत) निवास करता है। सकारात्मक रूप से युवा साक्षरता दर आमतौर पर वयस्कों की तुलना में अधिक होती है।

सतत् विकास लक्ष्य 5: लैंगिक समानता हासिल करना और सभी महिलाओं एवं लड़कियों को सशक्त करना

  • महिलाओं और लड़कियों के खिलाफ हानिकारक प्रथाओं और हिंसा के अन्य रूपों के साथ-साथ भेदभावपूर्ण कानून और सामाजिक मानदंड व्याप्त रहे हैं। दुनिया भर में महिलाएँ और लड़कियाँ अवैतनिक घरेलू काम का एक असंगत (अनुपातहीन) हिस्सा साझा करती हैं, इसके अलावा उनको अपने यौन एवं प्रजनन स्वास्थ्य और अधिकारों के संबंध में लगातार बाधाओं का सामना करना पड़ता है, जिसमें कानूनी प्रतिबंध और निर्णय लेने में स्वायत्तता का अभाव शामिल है। लैंगिक समानता को प्राप्त करने के लिये मज़बूत और टिकाऊ कार्रवाइयों की आवश्यकता है जो महिलाओं के खिलाफ होने वाले भेदभाव की संरचनात्मक बाधाओं और मूल कारणों को संबोधित करें।

महिलाओं और लड़कियों को हानिकारक प्रथाओं का सामना करना पड़ता है जो उनके जीवन को गंभीरतापूर्वक प्रभावित करती हैं।

  • दुनिया भर में महिलाओं और लड़कियाँ को लगातार हिंसा एवं क्रूर प्रथाओं का सामना करना पड़ रहा है जो उनकी गरिमा पर चोट कर उनकी खुशहाली को मिटाने का कार्य करता है। उनकी सामाजिक, आर्थिक स्थिति और शैक्षिक स्तर की परवाह किये बिना करीबी साथी द्वारा की गई हिंसा सभी उम्र और जातियों की महिलाओं को विभिन्न देशों में प्रभावित करती है। 106 देशों के उपलब्ध नवीनतम आँकड़ों के अनुसार, सर्वेक्षण से 12 महीने पहले तक 18 प्रतिशत महिलाएँ और लड़कियाँ जिनकी उम्र 15 से 49 वर्ष के बीच थी, को मौजूदा या पूर्व क़रीबी साथी द्वारा की गई शारीरिक या यौन हिंसा का सामना करना पड़ा था। महिला जननांग विकृति (एफ.जी.एम.) जैसी प्रथा जिन देशों में चलन में है वहाँ मानवाधिकारों के हनन का गंभीर संकट है, इसने करीब 30 देशों में कम-से-कम 200 मिलियन महिलाओं को प्रभावित किया है।

कई देशों के कानूनी ढाँचे में अंतराल होने से यह महिलाओं के अधिकारों की रक्षा करने में विफल रहा है

  • अध्ययन में शामिल लगभग एक-तिहाई देशों में व्यापक कानूनी ढाँचे और सार्वजनिक जीवन के क्षेत्रों में अंतराल पाया गया। उदाहरण के लिये इन देशों में ऐसे कानूनों का अभाव था जो महिलाओं के खिलाफ प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष भेदभाव दोनों को अपने दायरे में रखते हों। महिलाओं के खिलाफ हिंसा जैसे विषय पर, अध्ययन किये गए देशों में से एक-चौथाई से अधिक देशों में कानूनी अंतराल पाया गया। इन देशों में से 68 प्रतिशत देशों में सहमति के सिद्धांत के आधार पर बलात्कार कानूनों में कमी थी। रोज़गार और आर्थिक लाभ, विवाह और परिवार के विषय पर क्रमशः 29 प्रतिशत और 24 प्रतिशत देशों में कानूनी अंतराल था।

वित्तीयन अंतराल लैंगिक समानता पर कानूनों और नीतियों के कार्यान्वयन को सीमित करता है।

  • लैंगिक बजट का उद्देश्य संसाधन आवंटन के साथ लैंगिक समानता के लिये नीति और कानूनी आवश्यकताओं को एक साथ जोड़ना है। यद्यपि विश्व स्तर पर लैंगिक बजट को ​​क्रियान्वित करने में प्रगति हुई है, लेकिन फिर भी महत्त्वपूर्ण अंतराल बना हुआ है। वर्ष 2018 के आँकड़ों के विश्लेषण में पाया गया कि 69 देशों एवं क्षेत्रों में से 13 देशों (19 प्रतिशत) ने पूरी तरह से उन मानदंडों को पूरा किया है, जबकि 41 देश (59 प्रतिशत) आवश्यकताओं के समीप पहुँचे।
  • एक समान देशों के मध्य 90 प्रतिशत के पास लैंगिक अंतराल को संबोधित करने के लिये नीतियाँ और कार्यक्रम थे, लेकिन उन्हें कार्यान्वित करने के लिये केवल 43 प्रतिशत देशों ने पर्याप्त संसाधन आवंटन की सूचना दी।

सतत् विकास लक्ष्य 6: सबके लिये जल एवं स्वच्छता की उपलब्धता और सतत् प्रबंधन सुनिश्चित करना

  • ताज़ा जल एक बहुमूल्य संसाधन है जो मानव स्वास्थ्य, खाद्य, ऊर्जा सुरक्षा, गरीबी उन्मूलन और सतत् विकास के कई अन्य पहलुओं के लिये आवश्यक है। लेकिन अन्य प्राकृतिक संसाधनों की तरह जल भी खतरे में है। अफ्रीका, एशिया और लैटिन अमेरिका की अधिकांश नदियाँ वर्ष 1990 के दशक की तुलना में अब अधिक प्रदूषित हो चुकी हैं। विश्व के प्राकृतिक आर्द्रभूमि क्षेत्र का अनुमानित 50 से 70 प्रतिशत जल पिछले 100 वर्षों में नष्ट हो गया है, जबकि स्वच्छ पीने का जल और स्वच्छता की बढ़ती पहुँच में पर्याप्त प्रगति हुई है। अरबों लोग जिनमें अधिकतर ग्रामीण क्षेत्रों से हैं, के पास अभी भी इन बुनियादी सुविधाओं का अभाव है। इसकी प्रतिक्रिया में दाताओं (डोनर्स) ने वर्ष 2016 और 2017 के बीच जल क्षेत्र में अपनी सहायता प्रतिबद्धताओं को 37 प्रतिशत तक बढ़ा दिया है। हालाँकि पानी और स्वच्छता सुविधाओं तक पहुँच में सुधार, अपशिष्ट जल उपचार में वृद्धि, जल उपयोग दक्षता बढ़ाने, सीमा जल बेसिन में परिचालन सहयोग का विस्तार और मीठे पानी के पारिस्थितिक तंत्र की रक्षा एवं पुनर्स्थापना करने के लिये बहुत अधिक प्रयास किये जाने की आवश्यकता है।

प्रगति के बावजूद सुरक्षित तौर पर प्रबंधित पेयजल और स्वच्छता को अरबों लोगों तक पहुँचाने के लिये त्वरित कार्रवाई की आवश्यकता है।

  • वर्ष 2000 से 2017 के बीच सुरक्षित तौर पर प्रबंधित पेयजल का उपयोग करने वाली वैश्विक आबादी का अनुपात सेवा के उच्चतम स्तर पर 61 प्रतिशत से बढ़कर 71 प्रतिशत हो गया। सबसे तेज़ प्रगति मध्य एवं दक्षिणी एशिया, लैटिन अमेरिका और कैरेबियन देशों में देखी गई। कुल मिलाकर दुनिया की 90 प्रतिशत आबादी के पास कम-से-कम बुनियादी पेयजल सुविधाएँ हैं। यहाँ तक पहुँचने के बावजूद वर्ष 2017 में लगभग 785 मिलियन लोग बुनियादी पेयजल सुविधाओं से वंचित थे।
    • वैश्विक जनसंख्या की अन्य 30 प्रतिशत आबादी ने बुनियादी स्वच्छता सुविधाओं का उपयोग किया। इस प्रगति के बावजूद वर्ष 2017 में अनुमानित 673 मिलियन लोग (कुल वैश्विक आबादी का 9 प्रतिशत) अभी भी खुले में शौच करते हैं, जिनमें से अधिकांश दक्षिणी एशिया में हैं।
    • वर्ष 2017 में वैश्विक स्तर पर पाँच में से तीन लोगों को, अल्प विकसित देशों में तीन (28 प्रतिशत) में से एक से भी कम को परिसर में साबुन व पानी के साथ हाथ धोने की बुनियादी सुविधा मौजूद थी।

जल तनाव (वाटर स्ट्रेस) ने हर महाद्वीप पर लोगों को प्रभावित किया है, इसके लिये तत्काल और सामूहिक कार्रवाई की आवश्यकता है।

  • दो अरब लोग उच्च जल तनाव का सामना कर रहे देशों में रह रहे हैं और लगभग 4 अरब लोग वर्ष में कम-से -कम एक महीने जल की गंभीर कमी का सामना करते हैं।
  • वर्ष 2030 तक अनुमानित 700 मिलियन लोग तीव्र जल की कमी के कारण विस्थापित हो सकते हैं। उच्च जल तनाव स्तर वाले सभी देश उत्तरी अफ्रीका, पश्चिमी एशिया, मध्य और दक्षिणी एशिया में स्थित हैं।

कई देश अपने जल संसाधनों के एकीकृत प्रबंधन को उन्नत कर रहे हैं, लेकिन अधिक द्रुतगति से प्रगति की आवश्यकता है।

  • उपयोगकर्त्ताओं के बीच स्थिरता और न्यायसंगत साझेदारी सुनिश्चित करने के लिये जल संसाधनों का सावधानीपूर्वक प्रबंधन किया जाना चाहिये। इस तरह के दृष्टिकोण के लिये जो वैश्विक रूपरेखा (फ्रेमवर्क) मौजूद है उसे एकीकृत जल संसाधन प्रबंधन (आई.डब्ल्यू.आर.एम.) के नाम से जाना जाता है, और यह नीतियों, संस्थानों, प्रबंधन उपकरणों एवं वित्तपोषण को अपने दायरे में शामिल करता है। वर्ष 2018 में आई.डब्ल्यू.आर.एम. के अनुसार कार्यान्वयन पर रिपोर्ट प्रस्तुत करने वाले 172 देशों में से 80 प्रतिशत में कार्यान्वयन का स्तर मध्यम-निम्न या उच्चतर था। प्रगति को तीव्र करने करने की आवश्यकता है, विशेष रूप से स्थायी वित्तपोषण के क्षेत्र में। वर्ष 2018 में आई.डब्ल्यू.आर.एम. कार्यान्वयन के लिये औसत वैश्विक स्कोर 100 में से 49 था।

सतत् विकास लक्ष्य 7 : सस्ती, विश्वसनीय, सतत् और आधुनिक ऊर्जा सुलभता सुनिश्चित करना

  • सभी देश लक्ष्य 7 की दिशा में प्रगति कर रहे हैं, जो कि इस बात का संकेत देता है कि ऊर्जा अधिक टिकाऊ और व्यापक रूप से उपलब्ध हो रही है। फिर भी 3 अरब लोगों के लिये स्वच्छ और सुरक्षित खाना पकाने के ईंधन और प्रौद्योगिकियों तक पहुँच में सुधार करने, विद्युत क्षेत्र से परे नवीकरणीय ऊर्जा के उपयोग का विस्तार करने तथा उप-सहारा अफ्रीका में विद्युतीकरण को बढ़ाने के लिये अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है।

10 में से लगभग 9 लोगों की पहुँच अब विद्युत तक है, लेकिन इससे वंचित लोगों तक पहुँचने के लिये और अधिक प्रयास करने की आवश्यकता होगी।

  • वैश्विक आबादी का वह अनुपात जिसे विद्युत सुलभ है वर्ष 2010 के 83 प्रतिशत से बढ़कर 2015 में 87 प्रतिशत और वर्ष 2017 में 89 प्रतिशत (1 प्रतिशत सालाना की बढ़त पिछले दो वर्षों में) तक पहुँच गया है। आज लोगों तक विद्युत की जो सुलभता संभव हो पाई है वह पहले कभी नही हुई। लेकिन अभी भी वर्ष 2017 में 840 मिलियन लोग ऐसे हैं जिनको यह आवश्यक मूलभूत सुविधा सुलभ नही हो पाई, इनमें से ज़्यादातर लोग उप-सहारा अफ्रीका के हैं। इस क्षेत्र में केवल 44 प्रतिशत लोगों को ही विद्युत सुलभ हो पाई है और अनुमानित 573 मिलियन लोग अभी भी विद्युत की सुलभता से वंचित हैं।
  • वर्तमान में विद्युत से वंचित 87 प्रतिशत लोग ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करते हैं। भविष्य के विद्युतीकरण के प्रयासों में ऐसे लोगों को शामिल करने में जटिलता का सामना करना पड़ेगा, जो असेवित (जो अभी भी वंचित हैं), विस्थापित या दूरस्थ, कठिन-पहुँच वाले क्षेत्रों में रहने वाले और कमज़ोर एवं अत्यधिक भार झेल रहे शहरी ग्रिड से संबंधित हैं।

तीन अरब लोग अभी भी खाना पकाने के स्वच्छ ईंधन और प्रौद्योगिकियों से वंचित हैं, जिससे मानव स्वास्थ्य एवं पर्यावरण के लिये गंभीर खतरे की स्थिति उत्पन्न होती है।

  • वर्ष 2010 से 0.5 प्रतिशत की वार्षिक दर से स्वच्छ और सुरक्षित खाना पकाने के ईंधन और प्रौद्योगिकियों की सुलभता में वृद्धि हुई है, जो कि वर्ष 2017 में वैश्विक आबादी का 61 प्रतिशत तक पहुँच गई है। यह प्रक्रिया एस.डी.जी. लक्ष्य को पूरा करने के लिये बहुत धीमी है और अभी भी लगभग 3 बिलियन लोग अकुशल और प्रदूषणकारी खाना पकाने की प्रणालियों पर निर्भर हैं, जिसके परिणामस्वरूप हर साल समय से पहले लगभग 4 मिलियन लोगों की मौत हो जाती है।
  • इस समस्या से निपटने के लिये स्वच्छ ईधन और प्रौद्योगिकी की उपलब्धता, वहन क्षमता, विश्वसनीयता, सीमित वित्तपोषण और उपभोक्ता जागरूकता सहित महत्त्वपूर्ण बाधाओं को दूर करने के लिये नीति निर्माताओं की ओर से ठोस कार्रवाई किये जाने की आवश्यकता होगी।

एक महत्त्वाकांक्षी नवीकरणीय ऊर्जा लक्ष्य को पूरा करने के लिये विद्युत क्षेत्र में प्रगति को परिवहन और परितप्तता तक विस्तारित होना चाहिये।

  • कुल अंतिम ऊर्जा खपत में अक्षय ऊर्जा का हिस्सा वर्ष 2016 में 17.5 प्रतिशत पर पहुँच गया, जो वर्ष 2010 में 16.6 प्रतिशत था। निरपेक्ष रूप से अक्षय ऊर्जा की खपत इस अवधि में 18 प्रतिशत बढ़ी। इसमें आधुनिक नवीकरणीय ऊर्जा का हिस्सा तेज़ गति से बढ़ा है, यह वर्ष 2010 के 8.6 प्रतिशत से बढ़कर 2016 में 10.2 प्रतिशत हो गया।
  • नवीकरणीय ऊर्जा में अधिकांश वृद्धि विद्युत क्षेत्र पर केंद्रित है। ऐसा मुख्य रूप से पवन और सौर ऊर्जा के तेज़ी से विस्तार के कारण हुआ है जो कि निरंतर नीति समर्थन और लागत में कटौती द्वारा प्रेरित है। हालाँकि अंतिम ऊर्जा खपत में विद्युत का केवल 20 प्रतिशत हिस्सा ही है, शेष 80 प्रतिशत परितप्त और परिवहन क्षेत्रों में केंद्रित है, जहाँ नवीकरणीय ऊर्जा का हिस्सा 9 प्रतिशत है और वर्ष 2016 में इसकी वैश्विक बाज़ार में हिस्सेदारी 3.3 प्रतिशत थी। महत्त्वाकांक्षी एस.डी.जी. लक्ष्य को पूरा करने में आधुनिक नवीकरणीय ऊर्जा के इन दोनों प्रमुख क्षेत्रों में परिनियोजन के लिये नीतिगत ध्यान बढ़ाने की आवश्यकता होगी।

ऊर्जा दक्षता में सुधार जारी है लेकिन एस.डी.जी. लक्ष्य तक पहुँचने के लिये ठोस कार्रवाई की आवश्यकता है।

  • ऊर्जा की बढ़ती सुलभता और वहन क्षमता के साथ-साथ ऊर्जा दक्षता में सुधार ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने के वैश्विक लक्ष्य के लिये सबसे महत्त्वपूर्ण है। प्राथमिक ऊर्जा की तीव्रता जिसे सकल घरेलू उत्पाद की प्रति यूनिट कुल ऊर्जा आपूर्ति के रूप में परिभाषित किया गया है, में वर्ष 2016 में 2.5 प्रतिशत तक सुधार हुआ, यह वर्ष 2010 से 2016 के बीच सुधार की वार्षिक दर को 2.3 प्रतिशत तक ले आया। जो कि वर्ष 1990 से 2010 के बीच देखी गई प्रगति से कहीं बेहतर है, जब वार्षिक सुधारों में औसतन 1.3 प्रतिशत की गिरावट आई थी। हालाँकि यह दर अभी भी कम-से-कम 2.7 प्रतिशत के एस.डी.जी. लक्ष्य से कम है।

सतत् विकास लक्ष्य 8: निरंतर, समावेशी औऱ सतत् आर्थिक वृद्धि, सबके लिये पूर्ण और उत्पादक रोज़गार एवं उत्कृष्ट कार्य

  • निरंतर और समावेशी आर्थिक विकास प्रगति को आगे बढ़ा सकता है, सभी के लिये उत्कृष्ट रोज़गार पैदा कर सकता हैं तथा जीवन स्तर में सुधार ला सकता है। लक्ष्य 8 इसीलिये है कि अल्प विकसित देशों में भी आर्थिक विकास के लक्ष्यों को पूरा किया जा सके, खासकर युवाओं के लिये रोज़गार के अवसरों में वृद्धि करना, क्षेत्रों, आयु समूहों और लिंग के आधार पर असमानता को कम करना, अनौपचारिक रोज़गार में कमी करना, सभी श्रमिकों के लिये सकुशल और सुरक्षित कार्य वातावरण को बढ़ावा देना।

अल्प विकसित देशों में आर्थिक संवृद्धि फिर से उन्नति पर है, लेकिन 7 प्रतिशत का लक्ष्य अभी भी पहुँच से बाहर है।

  • जीवन स्तर के औसत मानक के लिये छद‍्म रूप में वैश्विक स्तर पर प्रति व्यक्ति वास्तिवक जी.डी.पी. में वर्ष 2016 में 1.3 प्रतिशत की तुलना में वर्ष 2017 में विश्व स्तर पर 1.9 प्रतिशत की वृद्धि हुई। यह संवृद्धि 2020 तक लगभग 2 प्रतिशत पर स्थिर रहने की उम्मीद है। अल्प विकसित देशों (एल.डी.सी.) के लिये एस.डी.जी लक्ष्य का उद्देश्य कम-से-कम 7 प्रतिशत वास्तविक जीडीपी संवृद्धि है। एल.डी.सी. देशों के वर्ष 2020 तक 5.7 प्रतिशत की संवृद्धि करने की उम्मीद है, जो स्थिर जिंस (कमोडिटी) कीमतों के साथ-साथ अनुकूल बाह्य आर्थिक परिस्थितियों के कारण है। यह प्राकृतिक संसाधन परियोजनाओं और बुनियादी ढाँचे में वित्तीय प्रवाह एवं निवेश को प्रोत्साहित करती है। हालाँकि यह अभी भी लक्ष्य से कम है। इन देशों में आर्थिक विविधीकरण को बढ़ावा देने वाली नीतियों की आवश्यकता है।

श्रम उत्पादकता बढ़ रही है, हालाँकि क्षेत्रों के बीच व्याप्त व्यापक असमानताएँ देखी जा सकती हैं।

  • वर्ष 2009 की वैश्विक आर्थिक मंदी के बाद से श्रम उत्पादकता (इसे प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद के रूप में मापा जाता है) दुनिया भर में लगातार सकारात्मक वार्षिक वृद्धि दर के साथ बढ़ रही है। वर्ष 2018 में वैश्विक स्तर पर श्रम उत्पादकता में 2.1 प्रतिशत की वृद्धि हुई जो वर्ष 2010 के बाद से सबसे अधिक वार्षिक वृद्धि है।

महिलाओं और पुरुषों के बीच वेतन अंतराल की निरंतरता लैंगिक असमानता की स्पष्ट अनुभूति कराता है।

  • 62 देशों के नवीनतम उपलब्ध आँकड़ों के विश्लेषण में पाया गया कि पुरुषों का औसत प्रति घंटा वेतन महिलाओं की तुलना में 12 प्रतिशत अधिक है। औसत लैंगिक वेतन अंतराल प्रबंधकीय और व्यावसायिक, कार्यों, शिल्प और संबंधित व्यापार श्रमिकों, संयंत्र मशीन ऑपरेटरों और कलपुर्जे जोड़ने वाले व्यवसायों के बीच 20 प्रतिशत से अधिक हो गया है। जब रोजगार के अवसरों में अंतराल सामाजिक सुरक्षा की कम पहुँच के साथ संयुक्त हो जाते हैं तब इनका परिणाम दीर्घकालिक आय अंतराल एवं वर्तमान और भविष्य में लैंगिक समानता से समझौते के रूप सामने आ सकता है।

वैश्विक बेरोज़गारी दर लगातार गिर रही है, लेकिन कुछ क्षेत्रों और युवाओं में यह उच्च बनी हुई है

  • वैश्विक बेरोज़गारी दर अंततः 2009 के वैश्विक वित्तीय संकट से उबर गई है। वर्ष 2018 में यह दर 5 प्रतिशत थी जो पूर्व-संकट स्तर से मेल खाती है। हालाँकि असमानताएँ बड़े स्तर पर विभिन्न क्षेत्रों और आयु वर्गों में मौजूद हैं। वर्ष 2018 में उत्तरी अफ्रीका, पश्चिमी एशिया (9.9 प्रतिशत), लैटिन अमेरिका और कैरेबियन (8.0 प्रतिशत) की बेरोज़गारी दर मध्य और दक्षिणी एशिया (3.2 प्रतिशत) की तुलना में 2.5 गुना अधिक थी। युवाओं में वयस्कों की तुलना में बेरोज़गार होने की संभावना तीन गुना अधिक है। वर्ष 2018 में युवा बेरोजगारी दर वयस्कों की 4 प्रतिशत बेरोजगारी दर के अनुपात में 12 प्रतिशत थी।

सतत् विकास लक्ष्य 9: मज़बूत बुनियादी सुविधाओं का निर्माण, समावेशी और सतत् औद्योगीकरण को प्रोत्साहन तथा नवाचार को संरक्षण

  • समावेशी और सतत् औद्योगीकरण, नवाचार और बुनियादी ढाँचे के साथ रोज़गार तथा आय सृजित करने वाली गतिशील और प्रतिस्पर्द्धा आर्थिक शक्तियों को उन्मुक्त कर सकता है। ये शक्तियाँ नवीन प्रौद्योगिकियों को शुरू करने और बढ़ावा देने, अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को सुविधाजनक बनाने तथा संसाधनों के कुशल उपयोग को सक्षम करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। अल्प विकिसित देशों को विशेष रूप से अपने विनिर्माण क्षेत्र के विकास में तेज़ी लाने की आवश्यकता है, यदि वे 2030 तक लक्ष्य को पूरा करना चाहते हैं तो वैज्ञानिक अनुसंधान और नवाचार में निवेश को बढ़ाना होगा।

हालिया प्रगति के बावजूद 2030 के लक्ष्य को पूरा करने के लिये अल्प विकसित देशों में औद्योगीकरण की रफ्तार अभी भी बहुत धीमी है।

  • वर्ष 2018 में विकासशील और विकसित दोनों क्षेत्रों की विनिर्माण संवृद्धि दर धीमी रही है। इसका कारण बड़े पैमाने पर उभरते व्यापार और आयात शुल्क संबंधी बाधाएँ हैं जो भविष्य में होने वाले निवेश विस्तार को बाधित करते हैं। मंदी के बावजूद जी.डी.पी. में विनिर्माण वर्द्धित मूल्य (एम.वी.ए.) की वैश्विक हिस्सेदारी वर्ष 2008 के 15.9 प्रतिशत से बढ़कर 2018 में 16.5 प्रतिशत हो गई। यह वही समयावधि है, जब यह स्थिर होना शुरू हुई थी। अल्प विकिसित देशों में वर्ष 2015 से 2018 के बीच कुल जीडीपी में विनिर्माण का हिस्सा 2.5 प्रतिशत की दर से सालाना बढ़ा। हालाँकि अभी भी वर्ष 2030 तक जीडीपी में एम.वी.ए. हिस्सेदारी को दोगुना करने के लिये आवश्यक गति कम है जो त्वरित कार्रवाई की मांग करता है।

अति गरीब देशों के लघु उद्योगों (छोटे पैमाने की औद्योगिक इकाइयाँ) में उन वित्तीय सेवाओं का अभाव होता है जिनकी उन्हें विकास और नवाचार के लिये आवश्यकता होती है।

  • लघु उद्योग पर्याप्त मात्रा में रोज़गार और स्वरोज़गार सृजित करते हैं। हालाँकि रोज़मर्रा की व्यावसायिक गतिविधियों के लिये स्वीकृत अधिकतम ऋण सीमा उन सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है जिसका इन उद्योगों को सामना करना पड़ता है। इन उद्योगों को विकसित करने के लिये पर्याप्त वित्तपोषण महत्त्वपूर्ण होता है क्योंकि यह उन्हें नवाचार, दक्षता में सुधार, नए बाज़ारों का विस्तार और रोज़गार के नए अवसर पैदा करने की अनुमति देता है।

विभिन्न राष्ट्रों के बीच व्यापक असमानताओं के साथ, अनुसंधान और विकास पर वैश्विक खर्च प्रति वर्ष 2 ट्रिलियन डॉलर पहुँच गया है।

  • अनुसंधान और विकास (आर. एन्ड डी.) में निवेश की गई वैश्विक जी.डी.पी का अनुपात वर्ष 2000 से 2016 में 1.52 प्रतिशत से बढ़कर 1.68 प्रतिशत हो गया। निरपेक्ष रूप से वैश्विक आर.एंड डी. निवेश वर्ष 2000 में 739 बिलियन डॉलर था जो कि बढ़कर वर्ष 2016 में 2 ट्रिलियन डॉलर (क्रय शक्ति समता) तक पहुँच गया। मुद्रास्फीति के साथ समायोजित होने पर यह 4.3 प्रतिशत की औसत वार्षिक वृद्धि दर को दर्शाता है। क्षेत्रों के बीच व्यापक असमानताएँ व्याप्त हैं। जहाँ यूरोप और उत्तरी अमेरिका में वर्ष 2016 में सकल घरेलू उत्पाद का 2.21 प्रतिशत भाग आर. एंड डी. पर व्यय किया गया था, वहीं उप-सहारा अफ्रीका और पश्चिमी एशिया में यह व्यय क्रमशः 0.42 प्रतिशत और 0.83 प्रतिशत था। इस तरह की असमानताएँ विकासशील क्षेत्रों में अनुसंधान और विकास के लिये वित्तपोषण बढ़ाने हेतु मजबूत नीति समर्थन की निरंतर आवश्यकता को दर्शाती हैं।

सतत् विकास लक्ष्य 10: विभिन्न देशों की आंतरिक व उनके बीच असमानताएँ कम करना

  • दुनिया के कई हिस्सों में आय की असमानता बढ़ रही है, अधिकांश देशों में अति गरीब 40 प्रतिशत आबादी आय की असमानता में वृद्धि का अनुभव करती है। श्रम बाज़ार पहुँच और व्यापार से संबंधित आय तथा अन्य असमानताओं को कम करने के लिये अधिक ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है।

देश के भीतर समृद्धि के संवितरण पर उपलब्ध आँकड़ों ने मिश्रित प्रगति दिखाई है।

  • किसी देश में अति गरीब लोग आर्थिक प्रगति में भाग ले रहे हैं, इस तथ्य का पता लगाने के लिये 40 प्रतिशत अति गरीब लोगों की घरेलू आय (या खपत) की तुलना समग्र रूप से जनसंख्या के साथ करना उपयोगी होगा। यह इस बात का एक संकेत देता है कि किसी देश में आय के निचले पायदान पर खड़े 40 प्रतिशत अति गरीब लोगों के साथ समग्र समृद्धि साझा की जा रही है या नहीं। वर्ष 2011 से 2016 की अवधि में तुलनीय आँकडों वाले 92 देशों में इसके परिणाम मिश्रित पाए गए। 69 देशों में सबसे गरीब 40 प्रतिशत लोगों ने अपनी आय में वृद्धि देखी, लेकिन देशों के मध्य इसमें काफी विभिन्नता थी। उन 69 देशों में से 50 में सबसे गरीब 40 प्रतिशत आबादी की आय में वृद्धि राष्ट्रीय औसत से तीव्रतर थी। विशेष रूप से 40 प्रतिशत सबसे गरीब आबादी को अभी भी कुल आय का 25 प्रतिशत से कम भाग प्राप्त हुआ है। कई देशों में आय का बढ़ता हिस्सा शीर्ष 1 प्रतिशत पर चला जाता है।

अमीर और गरीब देश समान रूप से समानता और समावेशिता को बढ़ावा देने वाली नीतियों से लाभान्वित हो सकते हैं।

  • कई देशों में महत्त्वपूर्ण विकास उद्देश्य असमानता को कम कर रहा है और सामाजिक समावेश को संबोधित कर रहा है। सापेक्ष गरीबी और असमानता का एक संकेतक औसत आय स्तर के 50 प्रतिशत से नीचे रहने वाले लोगों की हिस्सेदारी है। 110 उच्च और निम्न-आय वाले देशों के आँकड़ों के विश्लेषण से पता चला कि देश की औसतन 14 प्रतिशत आबादी उस सीमा से नीचे आय के स्तर के साथ रह रही थी।

निम्न-आय वाले देशों को तरजीही व्यापार दर्जे (प्रेफरेंशियल ट्रेड स्टेटस) का लाभ मिलता है।

  • अल्प विकसित देश (एल.डी.सी.), छोटे द्वीप विकासशील राज्यों और बड़े पैमाने पर विकासशील क्षेत्रों तक शुल्क-मुक्त पहुँच के कारण इनके निर्यात में निरंतर वृद्धि हुई है। एल.डी.सी. देश इससे सर्वाधिक लाभान्वित हुए हैं। विकासशील क्षेत्रों से लगभग 51 प्रतिशत निर्यात अब शुल्क मुक्त व्यवहार के योग्य हो गया है। निर्यातकों को तरजीही व्यवहार से लाभ लेने के नियमों के मूल प्रमाणीकरण प्रक्रियाओं का पालन करने की आवश्यकता होती है।

सुव्यवस्थित, सुरक्षित, नियमित और ज़िम्मेदार प्रवासन को सुगम बनाने की नीतियाँ व्यापक तो हैं, लेकिन ये सार्वभौमिकता से बहुत दूर हैं।

  • अधिकांश देशों में ऐसी नीतियाँ हैं जो लोगों के सुव्यवस्थित, सुरक्षित, नियमित और ज़िम्मेदार प्रवासन तथा गतिशीलता को सुगम बनाती हैं। अब भी इस सूचक की छह नीतियों के डोमेन में महत्त्वपूर्ण अंतर देखे जा सकते हैं। प्रत्येक डोमेन के लिये उपलब्ध आँकड़े वाले 105 से अधिक देशों में नीति उपायों का एक व्यापक समूह है, जिसका अर्थ है कि उन्होंने प्रत्येक डोमेन की उपश्रेणियों के 80 प्रतिशत या उससे अधिक के लिये प्रवासन नीति उपायों को सूचित किया है।

सतत् विकास लक्ष्य 11: शहरों और मानव बस्तियों को समावेशी सुरक्षित, लचीला और संवहनीय बनाना

  • वर्ष 2007 से दुनिया की आधी से अधिक आबादी शहरों में रह रही है, इसके वर्ष 2030 तक 60 प्रतिशत तक बढ़ने का अनुमान है। तीव्र शहरीकरण के परिणामस्वरूप झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले लोगों की संख्या भी बढ़ रही है, अपर्याप्त एवं अत्यधिक दबाव में बुनियादी ढाँचे और सेवाओं (जैसे अपशिष्ट संग्रह और जल, सफाई व्यवस्था, सड़क एवं परिवहन), वायु प्रदूषण तथा अनियोजित शहरी विस्तार जैसी चुनौतियाँ सामने आई हैं जिससे निपटने के लिये 150 देशों ने राष्ट्रीय शहरी योजनाएँ विकसित की हैं, इनमें से लगभग आधी अभी कार्यान्वयन के चरण में हैं।

तीव्र शहरीकरण और जनसंख्या वृद्धि पर्याप्त एवं किफायती आवास के निर्माण को आगे बढ़ा रहे हैं।

  • दुनिया भर में झुग्गियों में रहने वाली शहरी आबादी के अनुपात में वर्ष 2000 से 2014 के बीच लगभग 20 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई है (28 प्रतिशत से 23 प्रतिशत तक)। इस सकारात्मक प्रवृत्ति में हाल ही में परिवर्तन हुआ है और वर्ष 2018 में यह अनुपात बढ़कर 23.5 प्रतिशत हो गया। इस प्रकार झुग्गियों या अनौपचारिक बस्तियों में रहने वाले लोगों की कुल संख्या 1 बिलियन से अधिक हो गई। अनुमानित 3 बिलियन लोगों को वर्ष 2030 तक पर्याप्त और किफायती आवास की आवश्यकता होगी। 2030 तक सभी के लिये किफायती और पर्याप्त आवास सुनिश्चित करने के लिये नवीनीकृत नीतियों पर ध्यान और अधिक निवेश की आवश्यकता है।

सार्वजनिक परिवहन की सुलभता में वृद्धि हो रही है, लेकिन विकासशील क्षेत्रों में तीव्रतर प्रगति की आवश्यकता है।

  • सार्वजनिक परिवहन का उपयोग वायु प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन को कम करने में मदद करता है। वर्ष 2018 में 78 देशों के 227 शहरों से प्राप्त आँकड़ों के अनुसार, 53 प्रतिशत शहरी निवासियों की सार्वजनिक परिवहन तक सुविधाजनक पहुँच थी ( निवास स्थान से 500 मीटर दूर पैदल चलने पर बस स्टॉप या कम क्षमता वाली परिवहन प्रणाली या रेलवे या फेरी टर्मिनल ​जिसे 1000 मीटर की दूरी के दायरे में उपलब्ध होने वाले सुविधाजनक सार्वजनिक परिवहन के रूप में परिभाषित किया गया है)। अधिकांश क्षेत्रों में सार्वजनिक परिवहन का उपयोग करने वाले लोगों की संख्या में वर्ष 2001 से 2014 के बीच लगभग 20 प्रतिशत की वृद्धि हुई। मात्र 18 प्रतिशत निवासियों के लिये सार्वजनिक परिवहन की सुविधाजनक पहुँच के साथ उप सहारा अफ्रीका पीछे रह गया है।
  • सभी के लिये धारणीय परिवहन की उपलब्धता सुनिश्चित करने विशेष रूप से सुभेद्य आबादी जैसे कि महिलाओं, बच्चों, वरिष्ठ नागरिकों और विकलांग व्यक्तियों हेतु, मजबूत प्रयासों की आवश्यकता है।

म्यूनिसिपल वेस्ट बढ़ रहा है, जो कि शहरी बुनियादी ढाँचे में निवेश की बढ़ती आवश्यकता को उजागर कर रहा है।

  • वर्ष 2010 से 2018 के बीच एकत्रित आँकड़ों के अनुसार वैश्विक स्तर पर लगभग 2 बिलियन लोग ऐसे पाए गए जो अपशिष्ट संग्रह सेवाओं से वंचित थे और 3 बिलियन लोग नियंत्रित अपशिष्ट निपटान सुविधाओं तक पहुँच से वंचित थे।
  • वैश्विक स्तर पर पैदा होने वाले कचरे की कुल मात्रा वर्ष 2016 में लगभग 2 बिलियन मीट्रिक टन से वर्ष 2050 तक लगभग 4 बिलियन मीट्रिक टन होने की उम्मीद है। नियमित रूप से एकत्र किये गए म्युनिसिपल सॉलिड वेस्ट का अनुपात वर्ष 2001 से 2010 के बीच 76 प्रतिशत से बढ़कर वर्ष 2010 से 2018 के बीच 81 प्रतिशत हो गया।
  • अपशिष्ट प्रबंधन के बुनियादी ढाँचे में निवेश की तत्काल आवश्यकता है ताकि वैश्विक रूप से ठोस कचरे के प्रबंधन में सुधार किया जा सके।

कई शहरों में वायु प्रदूषण एक अपरिहार्य स्वास्थ्य खतरा बन गया है।

  • वर्ष 2016 में दस शहरी निवासियों में से नौ लोग प्रदूषित हवा में श्वास ले रहे थे, अर्थात‍् वह हवा जो कि 10 माइक्रोग्राम या उससे कम प्रति क्यूबिक मीटर के महीन पार्टिकुलेट मैटर (पी.एम. 2.5) के वार्षिक औसत स्तर के लिये विश्व स्वास्थ्य संगठन के वायु गुणवत्ता दिशानिर्देशों को पूरा नहीं करती थी।
  • दुनिया की 50 प्रतिशत से अधिक आबादी के लिये वर्ष 2010 से 2016 के बीच वायु की गुणवत्ता बद्तर हो गई।
  • वर्ष 2016 में निम्न और मध्यम आय वाले देशों में 100,000 से अधिक निवासियों वाले 97 प्रतिशत शहरों की वायु गुणवत्ता, उच्च आय वाले देशों के 49 प्रतिशत शहरों की तुलना में वायु गुणवत्ता दिशानिर्देशों को पूरा नहीं करती थी।
  • वायु प्रदूषण से संबंधित 90 प्रतिशत से अधिक मौतें निम्न और मध्यम आय वाले देशों में होती हैं, मुख्य रूप से एशिया और अफ्रीका में।

सतत् विकास लक्ष्य 12: संवहनीय उपभोग और उत्पादन के पैटर्न को सुनिश्चित करना।

  • वैश्विक रूप से हम अपनी आर्थिक गतिविधियों को संपन्न करने के लिये प्राकृतिक संसाधनों की बढ़ती मात्रा का उपयोग लगातार करते आ रहे हैं। जिस दक्षता के साथ इन संसाधनों का उपयोग किया जाता है वह वैश्विक स्तर पर अपरिवर्तित रहती है, इस वजह से हमने अभी तक आर्थिक विकास और प्राकृतिक संसाधनों के उपयोग को एक समान रूप से बढ़ता नहीं देखा है। प्रत्येक वर्ष मानव उपभोग के लिये उत्पादित आहार का लगभग एक-तिहाई भाग गँवा दिया जाता है या बर्बाद हो जाता है, ऐसा अधिकतर विकसित देशों में होता है। यह सुनिश्चित करने के लिये कि वर्तमान पदार्थों की ज़रूरतें संसाधनों के अति-निष्कर्षण और पर्यावरण को आगे क्षरण की ओर न ले जाए, तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता है। अर्थव्यवस्था के सभी क्षेत्रों में संसाधन दक्षता में सुधार, अपशिष्ट में कमी लाना तथा संवहनीय प्रथाओं को मुख्यधारा में लाने वाली नीतियों को अपनाना चाहिये।

मैटेरियल फुटप्रिंट्स (भौतिक पदछाप) को कम करना एक वैश्विक अनिवार्यता है।

  • ‘मैटेरियल फुटप्रिंट‍्स’ अंतिम उपभोग मांगों को पूरा करने के लिये निकाले गए कच्चे माल की कुल मात्रा को संदर्भित करता है। वैश्विक मैटेरियल फुटप्रिंट‍्स वर्ष 1990 में 43 बिलियन मीट्रिक टन से बढ़कर 2000 में 54 बिलियन और 2017 में 92 बिलियन हो गया। उसमें वर्ष 2000 के बाद से 70 प्रतिशत तथा 1990 के बाद 113 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।

धनी देशों में लोगों की जीवनशैली गरीब देशों से निकाले गए संसाधनों पर अत्यधिक निर्भर है।

  • प्रति व्यक्ति मैटेरियल फुटप्रिंट‍्स भी चिंताजनक दर से बढ़ा है। वर्ष 1990 में लगभग 8.1 मीट्रिक टन प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग व्यक्तिगत ज़रूरतों को पूरा करने के लिये किया गया था। वर्ष 2017 में यह बढ़कर 12.2 मीट्रिक टन हो गया, जो 50 प्रतिशत की वृद्धि को दर्शाता है। उसी वर्ष उच्च आय वाले देशों में प्रति व्यक्ति मैटेरियल फुटप्रिंट‍्स (लगभग 27 मीट्रिक टन प्रति व्यक्ति), उच्च मध्यम आय वाले देशों (प्रति व्यक्ति 17 मीट्रिक टन) की तुलना में 60 प्रतिशत और कम आय वाले देशों (प्रति व्यक्ति 2 मीट्रिक टन) की तुलना में 13 गुना अधिक था। उच्च आय वाले देशों का मैटेरियल फुटप्रिंट‍्स उनकी घरेलू सामग्री की खपत से अधिक है, जो यह दर्शाता है कि उन देशों में खपत अंतर्राष्ट्रीय आपूर्ति श्रृंखलाओं के माध्यम से अन्य देशों के संसाधनों पर निर्भर करती है। प्रति व्यक्ति उच्च आय वाले देश दुनिया में कहीं और से निकाले गए 9.8 मीट्रिक टन प्राथमिक संसाधनों पर निर्भर हैं।

सतत् उपभोग और उत्पादन में वृद्धि सभी एस.डी.जी लक्ष्यों में प्रगति करती है।

  • धारणीय और लचीले समाजों में परिवर्तन अंतिम रूप से ग्रह पर मौजूद सीमित प्राकृतिक संसाधनों के उत्तरदायित्वपूर्ण प्रबंधन पर निर्भर करेगा। वर्ष 2018 में 262 प्रतिवेदित नीतियों पर किये गए अग्रगामी प्रारंभिक अध्ययन और अन्य साधनों से ज्ञात होता है कि जहाँ धारणीय उपयोग और उत्पादन प्रक्रियाओं के संभावित आर्थिक लाभों को जितनी मान्यता मिली है, उसके मुकाबले सामाजिक लाभों को अभी भी काफी हद तक अनदेखा किया गया है। केवल 11 प्रतिशत नीतियों ने स्वास्थ्य में उनके प्रभावों पर विचार किया है और मात्र 7 प्रतिशत नीतियाँ इसके लैंगिक प्रभाव को देखती हैं। सभी एस.डी.जी लक्ष्यों में ऐसी नीतियों के लाभ हेतु निरूपण उनके सतत् विकास के लिये धारणीय खपत और उत्पादन के समग्र योगदान को समझने की आवश्यकता है और परिवर्तनकारी बदलाव का समर्थन करने के लिये सम्मि​लन की आवश्यकता होगी।

सतत् विकास लक्ष्य 13: जलवायु परिवर्तन और उसके प्रभावों का सामना करने के लिये तत्काल कार्रवाई करना ।

  • जलवायु परिवर्तन हमारे समय का निर्धारक मुद्दा है और सतत् विकास के लिये सबसे बड़ी चुनौती है। विनाशकारी परिणामों और अपरिवर्तनीय परिवर्तनों से बचने के लिये ग्लोबल वार्मिंग को 1.5° C तक सीमित करना आवश्यक है। इसके लिये ऊर्जा, भूमि और शहरी बुनियादी ढाँचे और औद्योगिक प्रणालियों में त्वरित एवं दूरगामी परिवर्तनों की आवश्यकता होगी। हालाँकि कई देशों ने राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (एन.डी.सी.) तय कर जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिये वित्तपोषण बढ़ाकर सकारात्मक कदम उठाए हैं फिर भी अभी कहीं अधिक महत्त्वाकांक्षी योजनाओं और समाज के सभी पहलुओं में अभूतपूर्व परिवर्तन की आवश्यकता है। वित्त तक पहुँच, लचीलेपन और अनुकूली क्षमता को मजबूत करने की आवश्यकता है विशेष रूप से अल्प विकिसित देशों और विकासशील छोटे द्वीपीय राज्यों में।

जलवायु परिवर्तन के बुरे प्रभावों से बचने के लिये समाज के सभी स्तरों पर अभूतपूर्व परिवर्तन की आवश्यकता होगी।

  • वर्ष 2017 में वायुमंडलीय कार्बन डाइऑक्साइड की सांद्रता 405.5 भाग प्रति मिलियन (पी.पी.एम.) (2015 में 400.1 पी.पी.एम से ऊपर) तक पहुँच गई जो कि पूर्व-औद्योगिक स्तर का 146 प्रतिशत है। वैश्विक तापन को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने का मतलब है कि उत्सर्जन में जल्द-से-जल्द कमी लाना, जिसका आगे चलकर त्वरित न्यूनीकरण करना होगा। वैश्विक कार्बन उत्सर्जन में वर्ष 2010 के स्तर से 2030 तक 45 प्रतिशत की कमी लानी होगी और वर्ष 2050 तक निवल शून्य उत्सर्जन स्तर को प्राप्त करने के लिये लगातार तीव्र प्रयास करना होगा। मई 2019 तक 186 दलों ने पेरिस समझौते की संपुष्टि कर दी है। समझौते के अंतर्गत दलों से एन.डी.सी. तय करने, संवाद करने और उसे बनाए रखने की अपेक्षा की गई है (लक्ष्य, नीतियों और जलवायु परिवर्तन के जवाब में नियोजित कार्यों सहित)। साथ ही 183 दलों (182 देशों और यूरोपीय संघ) ने जलवायु परिवर्तन सचिवालय पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन के लिये अपने पहले एन.डी.सी. को प्रस्तुत किया था, और एक दल ने अपने दूसरे एन.डी.सी. को प्रस्तुत किया था। दलों से अनुरोध किया गया है कि वे अपने मौजूदा एन.डी.सी. का अद्यतन करें या 2020 तक नवीन योगदानों को सूचित करें। वर्ष 2030 तक उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिये सभी देशों को अपने नवीन एन.डी.सी. तय करने के प्रति अधिक ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता होगी।

देश बढ़ते जलवायु खतरों को देखते हुए आपदा जोखिम न्यूनीकरण की रणनीतियाँ विकसित कर रहे हैं।

  • जैसा कि लक्ष्य 1 में वर्णित है कि जलवायु परिवर्तन पहले से ही आपदा जोखिम को बढ़ा रहा है। आपदा जोखिम न्यूनीकरण के लिये सेंदाइ फ्रेमवर्क 2015-2030 नए आपदा जोखिमों को रोकने और मौजूदा जोखिमों को कम करने के लिये कार्रवाई हेतु स्पष्ट लक्ष्य और प्राथमिकताओं को रेखांकित करता है। इसके अंगीकरण से कई देश 2020 तक राष्ट्रीय और स्थानीय आपदा जोखिम न्यूनीकरण रणनीतियों को सेंदाई फ्रेमववर्क के अनुरूप विकसित और कार्यान्वित करने के लिये प्रयासरत हैं। 70 देशों से प्राप्त नवीनतम प्रतिवेदनों (2017-2018) में से 67 देशों में ऐसी रणनीतियाँ पाई गई थीं जिन्हें सेंदाई फ्रेमववर्क के साथ कुछ हद तक जोड़ा गया था। कई स्थानीय सरकारों ने स्थानीय रणनीतियों को राष्ट्रीय रणनीतियों के अनुरूप विकसित किया था।

जलवायु से संबंधित वित्तीय प्रवाह में वृद्धि हुई है लेकिन यह वृद्धि समस्या के पैमाने को देखते हुए अपर्याप्त है और अभी भी जीवाश्म ईंधन में निवेश से प्रभावित है।

  • वैश्विक स्तर पर जलवायु संबंधी वित्तीय प्रवाह में वृद्धि हुई है जिसमें अधिकांश धन ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को रोकने के लिये समर्पित है। वित्त पर संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सचिवालय स्थायी समिति द्वारा तीसरा द्विवार्षिक मूल्यांकन वर्ष 2013-2014 से 2015-2016 तक वैश्विक जलवायु वित्त में 17 प्रतिशत की वृद्धि दर्शाता है। वर्ष 2014-2015 तक विकास में तेज़ी को बड़े पैमाने पर अक्षय ऊर्जा में नए निजी निवेश के उच्च स्तर द्वारा संचालित किया गया था, जो वैश्विक कुल का सबसे बड़ा खंड है। हालाँकि ये वित्तीय प्रवाह काफी हैं, लेकिन ये समस्या के पैमाने पर और वैश्विक निवेश में व्यापक रुझानों के संबंध में अपेक्षाकृत अपर्याप्त हैं। इसके अलावा जलवायु गतिविधियों में निवेश अभी भी जीवाश्म ईंधन (2016 में 781 अरब डॉलर) से प्रभावित है।

ज़्यादातर देश जलवायु परिवर्तन के अनुकूल अपनी क्षमता और प्रतिरोधकता को बढ़ाने की योजनाएँ बना रहे हैं।

  • कई विकासशील देशों ने जलवायु परिवर्तन के प्रति अपनी सुभेद्यता को कम करने और राष्ट्रीय विकास योजना में जलवायु परिवर्तन अनुकूलन को एकीकृत करने के लिये राष्ट्रीय अनुकूलन योजनाओं (एन.ए.पी.) को बनाने और कार्यान्वित करने के लिये एक कार्यविधि की शुरुआत की है। ये योजनाएँ सभी देशों को पेरिस समझौते के तहत अनुकूलन पर वैश्विक लक्ष्य को प्राप्त करने में मदद करेंगी अर्थात् अनुकूलन क्षमता बढ़ाने, प्रतिरोधकता सुदृढ़ करने और जलवायु परिवर्तन की सुभेद्यता कम करने के मामले में।
  • संयुक्त राष्ट्र के फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑफ क्लाइमेट चेंज के तहत राष्ट्रीय अनुकूलन योजनाओं (एनएपी) के लिये विकासशील देशों को तकनीकी मार्गदर्शन और सहायता अल्प विकसित देशों के विशेषज्ञ समूह और अन्य गठित निकायों द्वारा प्रदान की जाती है। वर्ष 2014 के बाद से कुल 154 सहायता गतिविधियाँ सूचित की गई हैं।

सतत् विकास लक्ष्य 14: सतत् विकास हेतु महासागरों, सागरों और समुद्री संसाधनों का संवहनीय एवं संरक्षित उपयोग

  • महासागर मानवों द्वारा श्वसन की गई कुल ऑक्सीजन का लगभग आधा भाग उत्पन्न करते हैं और एक जलवायु नियामक के रूप में कार्य करते हैं। यह वायुमंडलीय तापन और एक-चौथाई से अधिक मानवों द्वारा उत्सर्जित कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करते हैं। हालाँकि दशकों से बढ़ रहे कार्बन उत्सर्जन से महासागरीय तापन में वृद्धि हुई है और उनकी रासायनिक संरचना में बदलाव आया है। महासागरों के अम्लीकरण के परिणामस्वरूप होने वाले प्रतिकूल प्रभाव, जलवायु परिवर्तन (समुद्र-जलस्तर में वृद्धि सहित), चरम मौसम की घटनाओं, तटीय कटाव, अति मत्स्यन, प्रदूषण और प्राकृतिकवास क्षरण द्वारा समुद्री और तटीय संसाधनों के अविरत खतरों (जो वर्तमान में मौजूद हैं) को और अधिक बढ़ाने का कार्य किया गया है। ऐसे संरक्षित क्षेत्र, नीतियाँ एवं संधियाँ जो कि महासागरीय संसाधनों के उत्तरदायित्वपूर्ण निष्कर्षण को प्रोत्साहित करती हैं इन खतरों का सामना करने के लिये महत्त्वपूर्ण हैं।

भू आधारित प्रदूषक और समुद्री मलबा तटीय आवासों के लिये हानिकारक हैं लेकिन पानी की गुणवत्ता में सुधार संभव है।

  • दुनिया भर में तटीय क्षेत्र भू आधारित प्रदूषकों से प्रभावित हैं जिनमें सीवेज और पोषक तत्त्व अपवाह शामिल हैं, जिससे तटीय सुपोषण (यूट्रोफिकेशन), पानी की गुणवत्ता में गिरावट और तटीय समुद्री पारिस्थितिक तंत्र की हानि होती है। स्वच्छ जल संकेतक महासागरीय प्रदूषण के स्तर का एक मापक है जो यह दर्शाता है कि जल के गुणवत्ता की चुनौतियाँ सभी जगह मौजूद हैं लेकिन कुछ विषुवतीय क्षेत्रों में यह सबसे अधिक तीव्र है, इनमें विशेषकर एशिया, अफ्रीका और मध्य अमेरिका के कुछ हिस्से शामिल हैं।
  • वर्ष 2012 से 2018 तक के रुझानों के विश्लेषण से पता चलता है कि सकारात्मक परिवर्तन वास्तव में संभव है। इसी अवधि में 220 तटीय क्षेत्रों में से 104 ने अपने तटीय जल की गुणवत्ता में सुधार किया है। इस तरह के सुधारों के लिये नीतिगत प्रतिबद्धताओं की आवश्यकता है जो अपशिष्ट जल उपचार और कृषि स्रोतों से रासायनिक और पोषक तत्त्वों के अपवाह तथा प्लास्टिक मलबे को कम करने की वैश्विक प्रतिबद्धताओं के साथ जुड़ सकें।

बढ़ते अम्लीकरण से समुद्री जीवन को क्षति पहुँच रही है जिससे जलवायु परिवर्तन को संतुलित करने की महासागर की भूमिका में बाधा उत्पन्न हो रही है।

  • महासागर द्वारा वायुमंडलीय कार्बन डाइऑक्साइड का प्रयोग समुद्री जल के कार्बोनेट गुणधर्मों में बदलाव करते हुए इसकी रासायनिक संरचना को बदलना है, जिसके परिणामस्वरूप जल के पी.एच. स्तर (और यह समुद्र में अम्लीकरण बढ़ाता है) में कमी आती है।
  • कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन की वर्तमान दर पर इस सदी के अंत तक महासागरीय अम्लता में 100 से 150 प्रतिशत की वृद्धि का अनुमान है। समुद्री अम्लीकरण से मत्स्य पालन, जलीय कृषि, जीवों के साथ-साथ खाद्य सुरक्षा सहित पारिस्थितिकी तंत्र की सेवाओं को भी खतरा पैदा होता है। यह तटीय संरक्षण (प्रवाल भित्तियों को कमजोर करके समुद्र तट को ढाल देती है), परिवहन और पर्यटन को भी प्रभावित करता है, जैसे ही महासागर की अम्लता में वृद्धि होती है, वातावरण से कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करने की इसकी क्षमता कम हो जाती है, जिससे जलवायु परिवर्तन को संतुलित करने की महासागर की भूमिका में बाधा उत्पन्न होती है।

वर्ष 2010 के बाद से समुद्री संरक्षित क्षेत्रों की सीमा दोगुनी हो गई है लेकिन प्रमुख जैव विविधता क्षेत्रों की सुरक्षा के लिये और अधिक प्रयास किये जाने की आवश्यकता है।

  • संरक्षित क्षेत्र सतत् विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं यदि वे प्रभावी रूप से प्रबंधित और जैव विविधता के लिये महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में स्थित हों। दिसंबर 2018 तक राष्ट्रीय क्षेत्राधिकार के अंतर्गत जल सीमा क्षेत्र का 17 प्रतिशत हिस्सा संरक्षित क्षेत्रों के दायरे में था। संरक्षित क्षेत्रों द्वारा आच्छादित समुद्री प्रमुख जैव विविधता क्षेत्रों (Key Biodiversity Areas—KBAs) का औसत प्रतिशत भी वर्ष 2000 में 31.2 प्रतिशत से बढ़कर 2018 में 45.7 प्रतिशत हो गया।
  • इस प्रगति के बावजूद जिस गति से प्रमुख जैव विविधता क्षेत्रों को संरक्षित किया जा रहा है, वह धीमी हुई है और यदि यही वर्तमान प्रवृत्ति जारी रहती है, तो 2030 तक ये क्षेत्र समतल हो जाएंगे। नए समुद्री संरक्षित क्षेत्रों को स्थापित करने और मौजूदा क्षेत्रों के प्रबंधन को सुदृढ़ करने के लिये पुन: प्रयास किये जाने की की आवश्यकता है।

मत्स्य भंडार में गिरावट स्थिर होती प्रतीत हो रही है, अब उन्हें फिर से स्थापित करने कि आवश्यकता है, विशेष तौर पर गंभीर रूप से क्षीण हुए क्षेत्रों में।

  • मत्स्य पालन में स्वास्थ्य और उत्पादकता को सुरक्षित ऱखने के लिये जैविक रूप से धारणीय स्तरों के भीतर मत्स्य भंडार को प्रबंधित किया जाना चाहिये। अति मत्स्यन न केवल खाद्य उत्पादन को कम करता है, बल्कि पारिस्थितिकी प्रणालियों के कामकाज को भी बाधित करता है और अर्थव्यवस्था तथा समाज के लिये नकारात्मक नतीजों के साथ जैव विविधता को भी कम करता है। वर्ष 1974 में जैविक रूप से धारणीय स्तरों के भीतर समुद्री मत्स्य भंडार का अनुपात 90 प्रतिशत से घटकर वर्ष 2015 में 67 प्रतिशत हो गया। हालाँकि वर्ष 2008 के बाद से यह घटती प्रवृत्ति स्थिर हो गई है जो कि एक उत्साहजनक संकेत है।
  • इसके विपरीत पूर्वी मध्य प्रशांत और पूर्वोत्तर प्रशांत क्षेत्रों में जैविक रूप से धारणीय स्तर (85 प्रतिशत से ऊपर) पर मत्स्य भंडार का अनुपात सर्वाधिक था। विशेष तौर पर गंभीर रूप से क्षीण हो चुके क्षेत्रों में अति मत्स्यन भंडार के पुनर्निर्माण के लिये अधिक केंद्रित प्रयासों की आवश्यकता है।

सतत् विकास लक्ष्य 15: सतत‍् उपयोग को बढ़ावा देने वाले स्थलीय पारिस्थितिकीय प्रणालियों, सुरक्षित जंगलों, भूमि क्षरण और जैव विविधता के बढ़ते नुकसान को रोकने का प्रयास करना।

  • मानवीय गतिविधियाँ पारिस्थितिकी तंत्रों को निरंतर नष्ट कर रही हैं, जिस पर सभी प्रजातियाँ निर्भर करती हैं। हालाँकि जंगलों के क्षरण की गति धीमी है लेकिन यह चिंताजनक दर पर जारी है। हाल ही में आई संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार एक मिलियन पौधे और जानवरों की प्रजातियों के विलुप्त होने का खतरा बना हुआ है और वर्ष 2000 से 2015 के बीच पृथ्वी के कुल क्षेत्र के अनुमानित 20 प्रतिशत हिस्से का क्षय हो चुका था। स्थिति की गंभीरता को देखते हुए तत्काल कार्रवाई और सभी के हित के लिये जैव विविधता हानि को रोकने और पारिस्थितिकी तंत्र की रक्षा करने के लिये पृथ्वी के साथ हमारे संबंधों में बुनियादी रूपांतरण की आवश्यकता है।

जैव विविधता की हानि का तीव्र स्तर एक आपातकालीन प्रतिक्रिया की मांग करता है।

  • वैश्विक जैव विविधता की हानि तीव्र गति से हो रही है जो हमें पृथ्वी के पारिस्थितिकी तंत्रों में अज्ञात और अपरिवर्तनीय परिवर्तनों के करीब ले जा रहा है। रेड लिस्ट इंडेक्स जो कि स्तनधारियों, पक्षियों, उभयचरों, प्रवाल और साइकायड की 20,000 से अधिक प्रजातियों के उपलब्ध आँकड़ों पर निगरानी रखता है, के अनुसार पिछले 25 वर्षों में प्रजातियों के विलुप्त होने का जोखिम बढ़कर लगभग 10 प्रतिशत तक हो गया है।
  • जलवायु परिवर्तन और विदेशी आक्रामक प्रजातियों के आवास नुकसान के प्राथमिक संचालकों में अरक्षणीय कृषि, निर्वनीकरण, अरक्षणीय पैदावार और व्यापार आदि शामिल हैं। कृषि, उद्योग, व्यापार तथा अन्य क्षेत्रों में गंभीर रूप से संकटग्रस्त प्रजातियों की मुख्यधारा के विलुप्त होने के जोखिम को कम करने के लिये त्वरित कार्रवाई की आवश्यकता है।

क्षय से पृथ्वी पर भूमि के कुल क्षेत्र का पाँचवाँ भाग और एक अरब लोगों का जीवन प्रभावित हो रहा है।

  • पृथ्वी के कुल भूमि क्षेत्र के 20 प्रतिशत भाग का वर्ष 2000 से 2015 के बीच क्षय हो गया था, जिसके परिणामस्वरूप मानवीय खुशहाली की आवश्यक सेवाओं की महत्त्वपूर्ण हानि हुई है। यूरोप, उत्तरी अमेरिका, उत्तरी अफ्रीका और पश्चिमी एशिया को छोड़कर सभी क्षेत्रों में भू-क्षरण 22.4 प्रतिशत से 35.5 प्रतिशत भूमि क्षेत्र को आच्छादित करता है, जो कि प्रत्यक्ष रूप से एक अरब से अधिक लोगों के जीवन को प्रभावित करती है।
  • भूमि आच्छादन में वैश्विक प्रवृत्ति बड़े पैमाने पर मानव-प्रेरित प्रक्रियाओं जिसमें मरुस्थलीकरण, निर्वनीकरण, अनुचित मिट्टी प्रबंधन, फसल विस्तार और शहरीकरण शामिल है, के कारण भूमि के प्राकृतिक और अर्द्ध प्राकृतिक वर्गों में निवल हानि का संकेत देती है।

लक्ष्य 2030 को पूरा करने के लिये प्रमुख जैव विविधता क्षेत्रों के संरक्षण की प्रगति को त्वरित करना चाहिये।

  • स्थलीय, मीठे पानी और पर्वतीय जैव विविधता के लिये प्रमुख महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों (के.बी.ए.) की रक्षा करना प्राकृतिक संसाधनों के दीर्घकालिक और सतत् उपयोग को सुनिश्चित करने के लिये आवश्यक है। संरक्षित क्षेत्रों द्वारा आच्छादित स्थलीय, मीठे पानी और पर्वतीय जैव विविधता के लिये प्रमुख महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों का वैश्विक औसत प्रतिशत वर्ष 2000 से 2010 के बीच 10 प्रतिशत से अधिक अंकों तक बढ़ा था। हालाँकि वर्ष 2010 से 2018 तक आच्छादन में केवल दो से तीन प्रतिशत अंकों की वृद्धि हुई है। वर्तमान दर पर वर्ष 2030 तक प्रत्येक जैव विविधता के लिये प्रमुख महत्त्वपूर्ण क्षेत्र का 50 प्रतिशत से कम औसत वैश्विक स्तर पर संरक्षित क्षेत्रों द्वारा आच्छादित किया जाएगा।

पर्वतीय पारिस्थितिकी तंत्र आवश्यक पर्यावरणीय सेवाएँ प्रदान करते हैं, लेकिन इनकी स्थिति विभिन्न क्षेत्रों में व्यापक रूप से भिन्न-भिन्न होती है।

  • पर्वतीय क्षेत्रों के हरित आच्छादन (जंगलों, घास के मैदानों / झाड़ियों और खेतों द्वारा) का सकारात्मक प्रभाव प्रमुख रूप से पर्वतों के स्वास्थ्य की स्थिति की जानकारी देता है और इसके परिणामस्वरूप स्वयं पारिस्थितिक तंत्र की भूमिका को पूरा करने की उनकी क्षमता भी इससे संबंधित होती है। वर्ष 2017 के आँकड़ों का उपयोग करके पर्वतीय क्षेत्रों के हरित आच्छादन की एक वैश्विक आधार रेखा स्थापित की गई है। उस वर्ष विश्व स्तर पर 76 प्रतिशत पर्वतीय क्षेत्र वनस्पति से आच्छादित थे। ओशिनिया में लगभग सभी पर्वतीय क्षेत्रों को आच्छादित किया गया था, जबकि उत्तरी अफ्रीका और पश्चिमी एशिया में यह हिस्सा केवल 60 प्रतिशत था।

वन क्षेत्र अभी भी घट रहा है, किंतु इसके घटने की दर धीमी है।

  • वर्ष 2000 से 2015 के बीच कुल भूमि क्षेत्र की हिस्सेदारी के रूप में वन क्षेत्र 31.1 प्रतिशत से घटकर 30.7 प्रतिशत हो गया। लैटिन अमेरिका और उप-सहारा अफ्रीका में हुए बड़े पैमाने पर गिरावट के साथ उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में यह नुकसान सर्वाधिक हुआ है।
  • कुछ उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में वनों को हुए नुकसान को एशिया के कई हिस्सों के साथ-ही-साथ यूरोप और उत्तरी अमेरिका में हुई वन भूमि में वृद्धि ने आंशिक तौर पर संतुलित किया है। परिणामस्वरूप वर्ष 2010 से 2015 तक वन हानि की निवल वार्षिक दर वर्ष 2000 से 2005 की तुलना में लगभग 25 प्रतिशत धीमी थी। इसके अलावा दीर्घकालिक प्रबंधन योजनाओं के अंर्तगत वनों और संरक्षित वन क्षेत्रों का समानुपात स्थिर रहा है या फिर विश्व के सभी क्षेत्रों में वृद्धि हुई।

अंतर्राष्ट्रीय समझौते जैव विविधता संरक्षण के लिये नवीन दृष्टिकोण विकसित कर रहे हैं।

  • लाभों के साझाकरण के माध्यम से आनुवंशिक संसाधनों और जैव विविधता के संरक्षण तथा धारणीय उपयोग को प्रोत्साहित करने वाली रूपरेखा को अंगीकृत करके देश प्रगति कर रहे हैं।
  • 1 फरवरी, 2019 तक आनुवंशिक संसाधनों तक पहुँच और उनके उपयोग से प्राप्त होने वाले लाभों के उचित और समान साझाकरण पर नागोया प्रोटोकॉल को यूरोपीय संघ सहित 116 अनुबंधित दलों द्वारा अनुमोदित किया गया था (अनुमोदन में वर्ष 2016 से 65 प्रतिशत की वृद्धि हुई)। उसी तारीख को 61 दलों ने भी पहुँच और लाभों के साझाकरण संबंधी (ए.बी.एस) रूपरेखाओं को अनुमोदित किया है और संबंधित जानकारी को पहुँच और लाभों के साझाकरण वितरण-केंद्र (2016 में 6 से ऊपर) में प्रकाशित किया गया था।

सतत् विकास लक्ष्य 16: सतत् विकास के लिये शांतिपूर्ण एवं समावेशी समाजों को प्रोत्साहन, सभी के लिये न्याय सुलभ कराना और प्रत्येक स्तर पर प्रभावी, जवाबदेह और समावेशी संस्थाओं की रचना करना।

  • लाखों लोग अपनी सुरक्षा, अधिकारों और अवसरों से वंचित हैं, वहीं मानवाधिकार कार्यकर्त्ताओं और पत्रकारों पर होने वाले हमले विकास की राह में बाधक बन रहे हैं। अधिकतर देश मानवाधिकारों के हनन के मामलो को उजागर करने के लिये और अधिक खुले एवं न्यायपूर्ण समाजों को बढ़ावा देने वाले कानूनों एवं विनियमों को बनानें में विफल रहे हैं। यह सुनिश्चित करने के लिये कि इन प्रणालियों को सही तरीके से कार्यान्वित किया जाए, बहुत अधिक कार्य करने की आवश्यकता है। टकराव और हिंसा के अन्य रूप सतत् विकास के लिये रुकावट के समान हैं। वर्ष 2018 में युद्ध, उत्पीड़न और संघर्ष के कारण विस्थापित होने वाले लोगों की संख्या 7 करोड़ से अधिक हो गई है, शरणार्थियों के लिये संयुक्त राष्ट्र उच्चायोग के इतिहास में यह 70 वर्षों में विस्थापित हुए लोगों की सबसे ज़्यादा संख्या है। यह सभी लोग दुर्व्यवहार के विभिन्न प्रकारों के प्रति संवेदनशील हैं, जिनमें तस्करी, हिंसा और गैर-समावेशी निर्णय शामिल हैं। ऐसे लोगों को पर्याप्त संरक्षण प्राप्त हो यह सुनिश्चित करने के लिये समावेशी समाजों और सतत् विकास के लक्ष्यों को प्राप्त करना सर्वोपरि है।

समग्र रूप से युवा पुरुषों में हत्या का खतरा अधिक होता है, जबकि करीबी साथी द्वारा नर हत्या की सबसे अधिक शिकार महिलाएँ होती हैं।

  • वर्ष 2007-2017 के दशक में वैश्विक मानव हत्या दर लगभग 6 प्रति 100,000 लोगों पर स्थिर थी, जिसमें सबसे अधिक दर लैटिन अमेरिकी और कैरेबियाई देशों में देखी गई। मानव हत्या करने वालों की संख्या 11 प्रतिशत बढ़ी है, जो कि वर्ष 2000 के 419,000 से बढ़कर 2017 में 464,000 हो गई है। लगभग 80 प्रतिशत मानव हत्या में पीड़ित पुरुष रहे हैं, किंतु अंतरंग साथी/परिवार से संबंधित हत्या के मामलों में सर्वाधिक पीड़ित (64 प्रतिशत) महिलाएँ रही हैं। केवल अंतरंग साथी द्वारा मानव हत्याओं के मामले में देखें तो, महिला पीड़ितों की संख्या 82 प्रतिशत से भी अधिक थी। 15 से 29 वर्ष के युवा पुरुषों ने कुछ क्षेत्रीय विभिन्नताओं के साथ समग्र रूप से सर्वाधिक मानव हत्या के जोखिम का सामना किया है।

मानव तस्करी से पीड़ित लोगों को अधिकतर यौन शोषण और ज़बरन श्रम में लगाया जाता है।

  • हालिया वर्षों में विश्व के कई देशों में तस्करी पीड़ितों की बढ़ती संख्या का पता चला है, जो वर्ष 2010 में औसतन 150 पीड़ित प्रति देश की संख्या से बढ़कर 2016 में 254 हो गई है।
  • वर्ष 2016 में वैश्विक रूप से चिन्हित कुल पीड़ितों में लगभग आधी वयस्क महिलाएँ शामिल थीं और लड़कियों की संख्या लगभग 23 प्रतिशत थी। अधिकांश पीड़ितों की तस्करी यौन शोषण (लगभग 59 प्रतिशत) के लिये की गई थी, तथा एक-तिहाई से अधिक की तस्करी ज़बरन श्रम के लिये की गई थी। शोषण के विभिन्न रूप के आधार पर पीड़ितों की प्रोफाइल अलग-अलग थी। जबकि वर्ष 2016 में 83 प्रतिशत महिलाओं की तस्करी यौन शोषण के लिये की गई थीं, और 82 प्रतिशत पुरुषों की तस्करी ज़बरन श्रम के लिये की गई थी।

जन्म पंजीकरण एक मानव अधिकार है, फिर भी दुनिया भर में अंडर-5 आयु समूह के तीन-चौथाई से कम बच्चे पंजीकृत हैं।

  • जन्म पंजीकरण मूलभूत सामाजिक सेवाओं और कानूनी न्याय जैसे व्यक्तिगत अधिकारों तक लोगों की सुगम पहुँच को सुनिश्चित करने के लिये एक आधार होता है। फिर भी वर्ष 2010 से 2018 की अवधि में 161 देशों से प्राप्त आँकड़े यह बताते हैं कि विश्व भर में 5 साल से कम उम्र के तीन-चौथाई (73 प्रतिशत) बच्चों के पास ही उनका पंजीकृत जन्म प्रमाण है।
  • नागरिक पंजीकरण प्रणाली में सुधार करने और नागरिकों के बीच जागरूकता बढ़ाने के लिये हाल ही में बहुत कार्य किया गया है, लेकिन यह सुनिश्चित करने के लिये लगातार प्रयासों की आवश्यकता है कि सभी बच्चे अपने पहचान के अधिकार का दावा कर सकें।

मानवाधिकार रक्षकों, पत्रकारों और व्यापार संघियों की हत्या की दर बढ़ रही है।

  • 1 जनवरी से 31 अक्तूबर, 2018 के मध्य संयुक्त राष्ट्र ने 41 देशों में मानवाधिकार रक्षकों, पत्रकारों और व्यापार सघियों की हत्या की 397 घटनाओं को दर्ज और सत्यापित किया। प्रत्येक सप्ताह, औसतन 9 ऐसे लोगों की हत्या कर दी गई जिन्होंने अधिक समावेशी और समानतापूर्ण समाज बनाने की कोशिश की। वर्ष 2015 से 2017 तक प्रतिदिन औसतन 1 हत्या के साथ इसमें चिंताजनक वृद्धि हुई।
  • जब तक सदस्य राष्ट्र अपने अंतर्राष्ट्रीय दायित्व के अनुरूप ऐसे लोगों के संरक्षण के लिये उपलब्ध नहीं होते जो दूसरों के मौलिक अधिकारों और स्वतंत्रता के लिये खड़े हैं तो मानवाधिकार रक्षक, पत्रकार और व्यापार संघी दुनिया के सभी देशों में इन हत्याओं का आसान लक्ष्य बनते रहेंगे।

सतत् विकास लक्ष्य 17: क्रियान्वयन के साधनों को सुदृढ़ करना और सतत् विकास के लिये वैश्विक साझेदारी को नई शक्ति प्रदान करना

  • एस.डी.जी. के और अधिक कार्यान्वयन के लिये समर्थन प्राप्त किया गया है, लेकिन प्रमुख चुनौतियाँ अभी भी शेष हैं। वैश्विक आबादी के बड़े हिस्से की इंटरनेट तक पहुँच बनी हुई है और अल्प विकिसित देशों के लिये एक प्रौद्योगिकी बैंक स्थापित किया गया है, इसके बावजूद भी डिजिटल अंतराल मौजूद है। व्यक्तिगत प्रेषण (भेजा हुआ धन) अब तक के सबसे ऊँचे स्तर पर है, लेकिन आधिकारिक विकास सहायता (ओ.डी.ए.) में गिरावट आ रही है तथा निजी निवेश प्रवाह अक्सर सतत् विकास के साथ तालमेल नहीं बना पाता है। इसके अलावा चल रहे व्यापार तनाव के कारण वैश्विक विकास धीमा हो गया है और कुछ सरकारें बहुपक्षीय कार्रवाई से पीछे हट गई हैं। साहसपूर्ण निर्णयों के साथ अब मज़बूत अंतर्राष्ट्रीय सहयोग की आवश्यकता है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि देशों के पास एस.डी.जी. लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये पर्याप्त साधन हों।

विकास के वित्तपोषण को बढ़ावा देने के लिये संकल्प के बावजूद अनुदान में गिरावट हो रही है।

  • वर्ष 2018 में आधिकारिक विकास सहायता में कुल 149 बिलियन डॉलर की गिरावट दर्ज की गई, जो 2017 में वास्तविक रूप से 2.7 प्रतिशत कम है। यह गिरावट मोटे तौर पर शरणार्थियों की मेज़बानी के लिये दाता देश की सहायता में कमी के कारण आई। द्विपक्षीय परियोजना, कार्यक्रमों और तकनीकी सहायता, जो कि कुल शुद्ध ODA के आधे से अधिक का प्रतिनिधित्व करती है, वर्ष 2017 से 2018 तक वास्तविक संदर्भ में 1.3 प्रतिशत बढ़ी। बहुपक्षीय संगठनों का योगदान जो कुल शुद्ध ओ.डी.ए. के एक-तिहाई का प्रतिनिधित्व करते हैं, स्थिर थे। वास्तविक रूप से मानवीय सहायता की दर 8 प्रतिशत तक गिर गई। ओ.डी.ए. अल्पविकसित देशों के लिये बाहरी वित्तपोषण का सबसे बड़ा स्रोत है।

सतत‍् विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये कराधान सहित घरेलू संसाधनों का प्रभावी उपयोग महत्त्वपूर्ण है।

  • राष्ट्रीय स्वामित्व के सिद्धांत के अनुरूप घरेलू संसाधनों का प्रभावी उपयोग सतत‍् विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये महत्त्वपूर्ण है। कर के बोझ का आकलन अर्थात् करों के रूप में राजस्व की आर्थिक और सामाजिक निहितार्थों के साथ एक महत्त्वपूर्ण राजकोषीय नीति है। 20 विकसित और अन्य उन्नत अर्थव्यवस्थाओं के समूह के बीच कराधान की औसत समग्र दर वर्ष 2017 में सकल घरेलू उत्पाद का 23 प्रतिशत थी, जो विकासशील और उभरती बाज़ार अर्थव्यवस्थाओं के बीच 18 प्रतिशत थी।

विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के बीच व्यापार तनाव वैश्विक भर में उत्पादकों और उपभोक्ताओं को प्रभावित कर रहा है।

  • बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के बीच चल रहे और बढ़ते व्यापार तनावों ने दुनिया भर में उपभोक्ताओं और उत्पादकों पर प्रतिकूल और व्यापार तथा वित्तीय बाज़ारों पर नकारात्मक प्रभाव डाला है। वर्ष 2017 में व्यापार-भारित टैरिफ दुनिया भर में औसतन 2.2 प्रतिशत तक कम हो गए। हालाँकि वैश्विक आर्थिक असंतुलन को दर्शाते हुए क्षेत्रीय स्तर पर बड़े अंतर पाए गए। वर्ष 2017 में उच्चतम टैरिफ दरों को उप-सहारा अफ्रीकी और एलडीसी द्वारा लागू किया गया था, जो कि आयातित माल का मूल्य में क्रमशः 7.1 प्रतिशत और 7.8 प्रतिशत है। वे टैरिफ, उच्च आय वाले देशों (1.2 प्रतिशत) के साथ-साथ समग्र (3.7 प्रतिशत) रूप में विकासशील देशों की तुलना में काफी अधिक थे। दक्षिण-पूर्वी एशिया में आयात शुल्क की दर 1.7 प्रतिशत थी, जो इस क्षेत्र के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के लिये खुलेपन को दर्शाती है।

दुनिया की आधी से अधिक आबादी ऑनलाइन सेवाओं की उपयोगकर्त्ता है, अब हमें पूरा ध्यान शेष आधी आबादी को निर्देशित करने पर देना चाहिये।

  • इंटरनेट विकास का एक प्रवेश द्वार हो सकता है और कई साथ ही सतत‍् विकास लक्ष्यों के लिये कार्यान्वयन का साधन हो सकता है। वर्ष 2018 के अंत में दुनिया की आधी से अधिक आबादी (3.9 बिलियन लोगों) ने इंटरनेट का उपयोग किया जो समाज को अधिक समावेशी वैश्विक सूचना प्रदान करने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है। वर्ष 2018 में विकसित देशों में 80 प्रतिशत से अधिक लोग विकासशील देशों के 45 प्रतिशत लोगों, अल्प विकसित देशों के 20 प्रतिशत लोगों की तुलना में ऑनलाइन सेवाओं के उपयोगकर्त्ता थे। माना जाता है कि ब्रॉडबैंड नेटवर्क तक पहुँच वैश्विक आर्थिक उत्पादन पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव डालती है।

आँकड़ों के लिये वित्तीय सहायता बढ़ी है, लेकिन एसडीजी द्वारा बनाई गई मांग को पूरा करने के लिये अभी भी पर्याप्त नहीं है।

  • विकास योजना के लिये उच्च-गुणवत्ता और समय पर सुलभ डेटा की मांग बढ़ रही है। उस मांग को पूरा करने के लिये देशों को एक मज़बूत राष्ट्रीय सांख्यिकीय योजना स्थापित करने की आवश्यकता है जिसमें राष्ट्रीय सांख्यिकीय प्रणाली में सांख्यिकीय क्षमता में सुधार करने के लिये पर्याप्त धन और राजनीतिक समर्थन उपलब्ध हो। वर्ष 2017 में 102 देशों की तुलना में वर्ष 2018 में दुनिया भर के 129 देशों ने एक राष्ट्रीय सांख्यिकीय योजना लागू की थी। हालाँकि कई देशों में ऐसा करने के लिये आवश्यक धन की कमी थी। यूरोप और उत्तरी अमेरिका के 94 प्रतिशत की तुलना में उप-सहारा अफ्रीका केवल 23 प्रतिशत योजनाओं का पूरी तरह से वित्तपोषण कर पाया।
  • वर्ष 2030 तक सांख्यिकीय क्षमता निर्माण के उद्देश्यों को पूरा करने के लिये वर्तमान सांख्यिकीय प्रतिबद्धताओं (कुल आधिकारिक विकास सहायता का 0.33 प्रतिशत) को दोगुना करने की आवश्यकता है।
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