इंदौर शाखा: IAS और MPPSC फाउंडेशन बैच-शुरुआत क्रमशः 6 मई और 13 मई   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

डेली अपडेट्स


सामाजिक न्याय

गिग श्रमिकों से संबंधित चुनौतियाँ

  • 15 Mar 2024
  • 16 min read

प्रिलिम्स के लिये:

गिग श्रमिकों से संबंधित चुनौतियाँ, गिग श्रमिक, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति, सामाजिक सुरक्षा संहिता (2020), वेतन संहिता, 2019

मेन्स के लिये:

गिग श्रमिकों से संबंधित चुनौतियाँ, गिग श्रमिकों के लिये चुनौतियाँ और समाधान, भारत में गिग अर्थव्यवस्था और उठाए जाने वाले कदम

स्रोत:द हिंदू  

चर्चा में क्यों?

हाल ही में पीपल्स एसोसिएशन इन ग्रासरूट्स एक्शन एंड मूवमेंट्स और इंडियन फेडरेशन ऑफ एप-आधारित ट्रांसपोर्ट वर्कर्स द्वारा एक अध्ययन किया गया जो भारत में एप-आधारित कैब तथा डिलीवरी ड्राइवरों/व्यक्तियों जैसे गिग श्रमिकों द्वारा सामना की जाने वाली चुनौतियों पर प्रकाश डालता है।

अध्ययन से संबंधित प्रमुख बिंदु क्या हैं?

  • दीर्घ कार्यावधि:
    • लगभग एक तिहाई एप-आधारित कैब ड्राइवर दिन में 14 घंटे से अधिक कार्य करते हैं, 83% से अधिक ड्राइवर 10 घंटे से अधिक कार्य करते हैं और 60% ड्राइवर 12 घंटे से अधिक कार्य करते हैं।
    • अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के 60% से अधिक ड्राइवर दिन में 14 घंटे से अधिक कार्य करते हैं। काम के घंटों को लेकर ये असमानताएँ कार्य स्थिति पर और अधिक प्रतिकूल प्रभाव डालती हैं।
  • कम वेतन:
    • 43% से अधिक गिग श्रमिक सभी लागतों की कटौती के बाद प्रतिदिन 500 रुपए अथवा 15,000 रुपए से कम आय अर्जित करते हैं।
    • इसके अतिरिक्त 34% एप-आधारित डिलीवरी करने वाले श्रमिक प्रति माह 10,000 रुपए से कम आय अर्जित करते हैं। ये आय असमानताएँ मौजूदा सामाजिक असमानताओं में योगदान करती हैं।
  • आर्थिक तंगी:
    • 72% कैब ड्राइवर और 76% डिलीवरी श्रमिकों को व्यय का प्रबंधन करने में कठिनाई का सामना करना पड़ता है, 68% कैब ड्राइवरों का कुल व्यय उनकी आय से अधिक हो जाता है जिससे संभावित रूप से ऋण जैसी स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
  • असंतोषजनक प्रतिपूर्ति:
    • अध्ययन के अनुसार 80% से अधिक एप-आधारित कैब ड्राइवर कंपनियों द्वारा दिये जाने वाले किराए से असंतुष्ट थे जबकि 73% से अधिक एप-आधारित डिलीवरी करने वाले व्यक्तियों ने उनकी दरों पर असंतोष व्यक्त किया।
    • अध्ययन के अनुसार नियोक्ता द्वारा ड्राइवरों की प्रति सवारी पर लिया जाने वाला कमीशन दर 31-40% है जबकि कंपनियों द्वारा आधिकारिक तौर पर दावा किया गया आँकड़ा 20% है।
  • कार्य की स्थिति: 
    • कार्यावधि के कारण ड्राइवर शारीरिक रूप से थक जाते हैं और विशेष रूप से कुछ ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्मों की 'दरवाज़े पर 10 मिनट की डिलीवरी' नीति के कारण सड़क यातायात दुर्घटनाओं का खतरा बढ़ जाता है।
    • कई ड्राइवर और डिलीवरी बॉय नियमित छुट्टी लेने के लिये संघर्ष करते हैं, जिनमें से 37% से कम ड्राइवर यूनियन से संबंधित हैं।
  • प्लेटफॉर्म से संबंधित मुद्दे: 
    • श्रमिकों को आईडी निष्क्रियकरण और ग्राहक दुर्व्यवहार जैसे मुद्दों का सामना करना पड़ता है, जिससे उनकी प्रभावी ढंग से काम करने की क्षमता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
    • ड्राइवरों और डिलीवरी बॉय का एक महत्त्वपूर्ण बहुमत ग्राहक व्यवहार से नकारात्मक प्रभावों की रिपोर्ट करता है।
  • अनुशंसाएँ: 
    • रिपोर्ट ने यह सुनिश्चित करने के लिये नियमों की सिफारिश की कि कंपनियाँ गिग श्रमिकों को कंपनियों द्वारा कम भुगतान या शोषण से बचाने के लिये निष्पक्ष और पारदर्शी भुगतान संरचनाएँ स्थापित करें।
    • प्लेटफॉर्म श्रमिकों को न्यूनतम वेतन का भुगतान आय में एक निश्चित घटक की गारंटी देने में मदद करेगा।
      • श्रमिकों की ID को ब्लॉक करने के मामलों में, ऐसी प्रथाओं की अनुमति नहीं दी जानी चाहिये और श्रमिकों की ID को अनिश्चित काल के लिये ब्लॉक नहीं किया जा सकता है।
    • प्लेटफ़ॉर्म को श्रमिकों की मांगों का जवाब देना चाहिये, जैसे कि प्रति लेन-देन कमीशन शुल्क कम करना या श्रमिकों को अपने गैसोलीन बिलों के लिये अलग से भुगतान करने की आवश्यकता, जो ईंधन की कीमतों के साथ बढ़ रहे हैं और आय अपर्याप्तता की बढ़ती चिंताओं को संबोधित करना चाहिये।
    • यह अध्ययन एप-आधारित श्रमिकों के लिये मज़बूत सामाजिक सुरक्षा और श्रमिकों की निगरानी के लिये प्लेटफॉर्मों द्वारा उपयोग किये जाने वाले एल्गोरिदम तथा तंत्र की निष्पक्षता पर सरकारी निगरानी की सिफारिश करता है।

गिग वर्कर कौन हैं?

  • गिग वर्कर्स:
    • गिग वर्कर ऐसे व्यक्ति होते हैं जो अस्थायी, लचीले आधार पर काम करते हैं, अक्सर कई ग्राहकों या कंपनियों के लिये कार्य करते हैं या सेवाएँ प्रदान करते हैं।
    • वे पारंपरिक कर्मचारियों के बजाय आम तौर पर स्वतंत्र ठेकेदार होते हैं, जिसका अर्थ है कि वे कब, कहाँ और कैसे काम करते हैं, इस पर उनका अधिक नियंत्रण होता है।
  • गिग इकोनॉमी:
    • एक मुक्त बाज़ार प्रणाली जिसमें अस्थायी पद सामान्य होते हैं और संगठन अल्पकालिक कार्यों के लिये स्वतंत्र श्रमिकों के साथ अनुबंध करते हैं।

गिग वर्कर्स को सामाजिक सुरक्षा लाभ प्रदान करना क्यों आवश्यक है?

  • आर्थिक सुरक्षा: 
    • 'केवल मांग-आधारित' प्रकृति के परिणामस्वरूप रोज़गार की सुरक्षा की कमी होती है और आय की निरंतरता से जुड़ी अनिश्चितता होती है, जिससे बेरोज़गारी बीमा, विकलांगता कवरेज़ तथा सेवानिवृत्ति बचत कार्यक्रमों जैसे सामाजिक सुरक्षा लाभ प्रदान करना और भी उचित हो जाता है।
  • अधिक उत्पादक कार्यबल: 
    • नियोक्ता-प्रायोजित स्वास्थ्य बीमा और अन्य स्वास्थ्य देखभाल लाभों तक पहुँच का अभाव गिग वर्कर्स को अप्रत्याशित चिकित्सा खर्चों के प्रति संवेदनशील बनाता है। उनके स्वास्थ्य एवं कल्याण को प्राथमिकता देने से एक स्वस्थ और अधिक उत्पादक कार्यबल का निर्माण हो सकेगा।
  • अवसरों की समता:  
    • पारंपरिक रोज़गार सुरक्षा से अपवर्जन असमानता पैदा करती है, जहाँ गिग वर्कर्स को शोषणकारी कार्य दशाओं और अपर्याप्त मुआवज़े का सामना करना पड़ता है। सामाजिक सुरक्षा लाभ प्रदान करने से एकसमान अवसर का निर्माण होगा।
  • दीर्घकालिक वित्तीय सुरक्षा: 
    • नियोक्ता-प्रायोजित सेवानिवृत्ति योजनाओं के बिना गिग वर्कर्स अपने भविष्य के लिये पर्याप्त बचत कर सकने में अक्षम हो सकते हैं। गिग वर्कर्स को सेवानिवृत्ति के लिये बचत करने में सक्षम बनाने से उनके लिये भविष्य की वित्तीय कठिनाई और सार्वजनिक सहायता कार्यक्रमों पर निर्भर होने का जोखिम कम होगा।

गिग कर्मचारियों को सामाजिक सुरक्षा लाभ प्रदान करने की राह की प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं?

  • वर्गीकरण और अतिरिक्त लचीलापन:
    • स्वरोज़गार और निर्भर-रोज़गार के बीच की धुंधली सीमाएँ तथा कई फर्मों के लिये कार्य कर सकने या अपनी इच्छा से नौकरी छोड़ सकने की स्वतंत्रता, गिग वर्कर्स के प्रति कंपनी दायित्वों की सीमा निर्धारित करना कठिन बना देती है।
      • गिग इकोनॉमी को इसके लचीलेपन के लिये जाना जाता है, जहाँ कामगारों को यह तय करने की अनुमति मिलती है कि वे कब, कहाँ और कितना कार्य करें। 
        • इस लचीलेपन को समायोजित कर सकने और गिग वर्कर्स की विविध आवश्यकताओं को पूरा कर सकने वाले सामाजिक सुरक्षा लाभों को डिज़ाइन करना एक जटिल कार्य है।
  • वित्तपोषण और लागत वितरण:  
    • पारंपरिक सामाजिक सुरक्षा प्रणालियाँ नियोक्ता और कर्मचारी के योगदान पर निर्भर करती हैं, जहाँ नियोक्ता आमतौर पर लागत के एक उल्लेखनीय भाग का वहन करते हैं। 
      • गिग इकॉनमी, जहाँ कर्मचारी प्रायः स्व-नियोजित होते हैं, के लिये एक उपयुक्त वित्तपोषण तंत्र की पहचान करना जटिल हो जाता है।
  • समन्वय एवं डेटा साझाकरण: 
    • विभिन्न सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रमों के लिये गिग वर्कर्स के आय अर्जन, योगदान एवं पात्रता का सटीक आकलन करने के लिये गिग प्लेटफॉर्म, सरकारी एजेंसियों तथा वित्तीय संस्थानों के बीच कुशल डेटा साझाकरण और समन्वयन आवश्यक है।
      • लेकिन गिग वर्कर्स प्रायः कई प्लेटफॉर्म या क्लाइंट्स के लिये कार्य करते हैं, जिससे इस संदर्भ में समन्वय करना और उचित कवरेज सुनिश्चित करना चुनौतीपूर्ण हो जाता है।
  • शिक्षा और जागरूकता: 
    • कई गिग वर्कर्स सामाजिक सुरक्षा लाभों के संबंध में अपने अधिकारों और पात्रता से अनभिज्ञ भी हो सकते हैं।
      • इनकी जागरूकता बढ़ाना और सामाजिक सुरक्षा, पात्रता मानदंड एवं आवेदन प्रक्रिया के महत्त्व के बारे में शिक्षित करना एक चुनौतीपूर्ण कार्य है।

गिग वर्कर्स की सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये क्या उपाय किया जा सकता है? 

  • सामाजिक सुरक्षा पर संहिता कार्यान्वयन, 2020:
    • हालाँकि सामाजिक सुरक्षा संहिता, 2020 में गिग श्रमिकों के लिये प्रावधान शामिल हैं, नियम अभी तक राज्यों द्वारा तैयार नहीं किये गए हैं और साथ ही बोर्ड की स्थापना के संदर्भ में बहुत कुछ नहीं हुआ है। अतः सरकार को इन पर शीघ्रता से कार्य करना चाहिये।
  • अंतर्राष्ट्रीय उदाहरणों को अपनाना: 
    • यूके ने गिग श्रमिकों को "श्रमिक" के रूप में वर्गीकृत करके एक मॉडल स्थापित किया है, जो कर्मचारियों और स्व-रोज़गार के बीच की एक श्रेणी है।
      • इससे उन्हें न्यूनतम वेतन, सवैतनिक छुट्टियाँ, सेवानिवृत्ति लाभ योजनाएँ और स्वास्थ्य बीमा प्राप्त होता है।
    • इसी प्रकार इंडोनेशिया में वे दुर्घटना बीमा, स्वास्थ्य बीमा एवं मृत्यु बीमा के होते हैं।
  • नियोक्ता उत्तरदायित्वों का विस्तार: 
    • गिग श्रमिकों हेतु मज़बूत समर्थन उन गिग कंपनियों से आना चाहिये जो स्वयं इस जटिल एवं कम लागत वाली कार्य व्यवस्था से लाभान्वित होती हैं।
      • गिग श्रमिकों को स्व-रोज़गार अथवा स्वतंत्र ठेकेदारों के रूप में वर्गीकृत करने की प्रथा को समाप्त करने की आवश्यकता है।
      • कंपनियों को नियमित कर्मचारी के समान लाभ दिया जाना चाहिये।
  • सरकारी समर्थन: 
    • सरकार को शिक्षा, वित्तीय सलाहकार, कानूनी, चिकित्सा अथवा ग्राहक प्रबंधन क्षेत्रों जैसे उच्च कौशल वाले गिग कार्यों में व्यवस्थित रूप से निर्यात बढ़ाने में निवेश करना चाहिये; भारतीय गिग श्रमिकों हेतु वैश्विक बाज़ारों तक पहुँच को आसान बनाकर।
    • साथ ही सामाजिक सुरक्षा लाभ प्रदान करने की ज़िम्मेदारी साझा करने हेतु निष्पक्ष एवं पारदर्शी तंत्र स्थापित करने के लिये सरकारों, गिग प्लेटफॉर्मों एवं श्रमिक संगठनों के बीच सहयोग की आवश्यकता होगी।

गिग श्रमिकों से संबंधित सरकार की पहल:

  • सामाजिक सुरक्षा संहिता, 2020 में 'गिग इकॉनमी' पर एक अलग खंड शामिल है और साथ ही गिग नियोक्ताओं पर सरकार के नेतृत्व वाले बोर्ड द्वारा प्रबंधित सामाजिक सुरक्षा कोष में योगदान करने का दायित्व भी दिया गया है।
  • वेतन संहिता, 2019 गिग श्रमिकों सहित संगठित तथा असंगठित क्षेत्रों में सार्वभौमिक न्यूनतम वेतन एवं आधारभूत वेतन प्रदान करता है।

निष्कर्ष

एप-आधारित श्रमिकों की कार्य स्थितियों, वित्तीय सुरक्षा एवं समग्र कल्याण में सुधार हेतु व्यापक उपायों की आवश्यकता है, उनके अधिकारों तथा सुरक्षा की वकालत करते हुए गिग अर्थव्यवस्था में उनके योगदान को मान्यता दी जाए।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, पिछले वर्ष के प्रश्न  

मेन्स:

प्रश्न. भारत में महिलाओं के सशक्तीकरण की प्रक्रिया में 'गिग इकॉनमी' की भूमिका का परीक्षण कीजिये। (2021)

close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2